क्या नारायणमूर्ति (इन्फोसिस, Infosys) भारत के लिए एक अच्छे ब्राण्ड एम्बेसडर हैं?

व्याख्यान

आई. आई. टी, मुंबई

क्या नारायणमूर्ति (इन्फोसिस, Infosys) भारत के लिए एक अच्छे ब्राण्ड एम्बेसडर हैं?

मैंने जब भी विदेशियों से बात की और बताया कि मैं इंडिया से हूँ, तो वो बड़े चमकृत होते हैं. ओह!! इंडिया!!! क्या आपने इस धारणा में कोई बदलाव देखा – 80 के दशक से आज तक?

तो भारत एक दिलचस्प और अनोखी जगह है (इसमें कोई शक नहीं).

वर्तमान समय में भारत के पास एक अवसर है अपना एक बहुत प्रभावशाली ब्राण्ड बनाने का.

बहुत लोग इधर उधर जा कर भारत के बारे में बोलते हैं, बगैर यह समझे कि भारत देश का सांस्कृतिक प्रतिनिधि कैसे बना जाये.

हमें भारत का एक प्रभावशाली ब्राण्ड बनाना चाहिए. इस ब्राण्ड का महत्व (मूल्य) है. इसका वित्तीय महत्व (Financial Value) भी है.

एक दूसरी जगह बातचीत में मैं यह बता रहा था कि SONY (प्रसिद्ध जापानी कंपनी) के संस्थापक-चेयरमैन, से एक इंटरव्यू में पूछा गया के सोनी कंपनी के उत्पाद इतने अच्छे क्यों हैं? अच्छी गुणवत्ता वाले एवं सुन्दर. तो उनका जवाब था कि इसका उत्तर जापानी संस्कृति में है. जापान में लड़कियां (जो बाद में फैक्ट्री में काम करती हैं) जब बड़ी होती हैं तो उन्हें फूलों को सजाने की विधि सिखाई जाती है. यह बच्चियां बचपन से ही सूक्ष्मता (Precision), सुन्दरता एवं aesthetics, इन गुणों का महत्व सिखाया जाता है.

उन्हें यह भी सिखाया जाता है कि मेहमान का बहुत ख्याल रखना है और उसके लिए अपना सर्वोत्तम यत्न करना है (डू दी वेरी बेस्ट ) और उत्कृष्ट कार्य करना है (बी परफेक्ट).

यही लड़कियां जब काम करने आती हैं तब हम उन्हें सिखाते हैं कि आप ग्राहक को एक मेहमान के तौर पर देखो, जो भी छोटे से छोटा काम आप इस ग्राहक के लिए करो वो बहुत लगाव से व प्रेम से करो. अपना पूरा तन-मन उस काम में लगाओ. यह हैं जापानी मूल्य जो उन्होंने बचपन से सीखें हैं.

अब दूसरी तरफ किसी ने नारायणमूर्ति से पूछा कि भारतीय कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर में इतने अच्छे कैसे हैं? और अगर वे (नारायणमूर्ति) सोनी के चेयरमैन के तरह का जवाब देते तो वो कह सकते थे कि हमारे यहाँ प्राचीन काल से, आर्यभट्ट के समय से गणित, परिमाण-संबंधी, व तर्क शास्त्र के  अध्ययन की परंपरा रही है. हमारे यहाँ ध्यान (meditation) कि परंपरा रही है , इसलिए हम अधिक समय तक कार्य में ध्यान लगा पाते हैं. हमारे यहाँ विचार एवं दर्शन शास्त्र के अध्ययन की परम्परा रही है, इसीलिए हम बुद्धि-संबद्धि कार्यों में काफी अच्छा प्रदर्शन करते हैं. तो नारायणमूर्ति को कुछ ऐसा कहना चाहिए था.

मगर उन्होंने क्या कहा  – हम अंग्रेजों के आभारी हैं जो यहाँ आये और उन्होंने हमें विज्ञान, गणित, और अंग्रेजी सिखायी. इसलिए हम अच्छे हैं.

कितनी घटिया बात है!!!

अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का कोई एहसास ही नहीं. आप कभी एक जापानी को ऐसे बात करते हुए नहीं देखेंगे. आप कभी एक चीनी को ऐसे बात करते हुए नहीं देखेंगे.

तो अभी पश्चिम की तरफ से भारत के प्रति सकारात्मक झुकाव हो रहा है, मगर ज्यादा तकलीफ भारतियों से है. वे पूरी तरह से तैयार नहीं हैं. उन्होंने अपने बच्चों को ठीक से नहीं बताया हुआ है. वरिष्ठ ऑफिसर्स को यह तरीका नहीं आता कि “ब्राण्ड इंडिया” (Brand India) को कैसे बढ़ाना है (How to project Brand India), हमारी सांस्कृतिक धरोहर क्या है. जो उदाहरण हमने दिए उनमे से कुछ भी हमारे वरिष्ठ ऑफिसर्स को पता हो तो वे बातचीत का नजरिया ही बदल सकते हैं.

हम शुरू से ही ज्ञान बांटते रहे हैं (नॉलेज सप्लायर). नालंदा प्राचीन युग का महान विश्वविद्यालय था, जहाँ से सब तरफ ज्ञान का उजियारा जाता था.

तो हमें बार बार कहना है कि हम शुरू से ज्ञान आपूर्तिकर्ता (Knowledge exporter) रहे हैं, खगोलशास्त्र, गणित, खनिजशास्त्र, कृषि, जीव विज्ञान, वनस्पति शास्त्र (Botany), आयुर्वेद, कपडा उद्योग, इन सब पर हमारा ज़बरदस्त योगदान रहा है – कितना कुछ है जिस पर हम बात कर सकते हैं.

असल में हमें खुद ही नहीं पता है हमारी सभ्यता और संस्कृति का.

इसीलिए एक कार्य जो हमारी फाउंडेशन ने शुरू किया है वो है: भारतीय इतिहास में विज्ञान और प्रोद्योगिकी में जो तरक्की हुई है, उस पर शोध करना.

अब अकेला मैं अकेला कुछ हद तक ही कर सकता हूँ. अभी तो मैं कहीं भी नहीं देखता कि “ब्राण्ड इंडिया” को सही से प्रोजेक्ट करने के लिए कोई ठोस कदम उठाये जा रहे हैं.

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