राजीव मल्होत्रा: नमस्ते, मेरे साथ आज एक बहुत ही विशिष्ट अतिथि हैं, मीनाक्षी जैन, जिन्हें मैं दो दशकों से जानता हूँ | हम बहुत लंबे समय पश्चात भेंट कर रहे हैं | वे भारतीय इतिहास और राजनीति पर सबसे अच्छे विद्वानों में से एक हैं | हम दोनों ने भारतीय वामपंथ के काम की आलोचना की है | वे या तो हमसे लड़ते हैं या हमें अनदेखा करते हैं या हमारी निंदा करते हैं | हम उसपर टिप्पणियों की तुलना करेंगे | सबसे पहले मैं स्वागत कहना चाहता हूँ |
मीनाक्षी जैन: धन्यवाद !
राजीव मल्होत्रा: यह एक अच्छा अवसर है और हमें संपर्क में रहना चाहिए |
मीनाक्षी जैन: धन्यवाद !
राजीव मल्होत्रा: आप दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास और राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे ?
मीनाक्षी जैन: मैं एक पाठक थी |
राजीव मल्होत्रा: जब इरफान हबीब और रोमिला थापर जैसे लोगों के साथ वामपंथी शीर्ष पर थे, तब प्रचलित विद्वत्ता क्या थी जो उस समय लोकप्रिय थी ?
मीनाक्षी जैन: भारतीय शिक्षाजगत पर उनका शिकंजा (पूर्ण नियंत्रण) था और वे सभी वित्तपोषण (फंडिंग) करने वाली संस्थाओं को नियंत्रित करते थे | जो छात्र शोध करना चाहते थे, उन्हें उनके दृष्टिकोण को अपनाना पड़ता था | इतिहासकार और विद्वान के रूप में एक पहचान बनाने के लिए उनकी विचारधारा को नहीं अपनाना किसी के लिए भी बहुत कठिन था | सभी वित्तपोषक संस्थाएं उनके नियंत्रण में थीं | इसलिए यदि आप अपना स्वयं का मार्ग बनाना चाहते थे तो यह एकाकी का मार्ग था |
राजीव मल्होत्रा: क्या इंदिरा गांधी इसके लिए ज़िम्मेदार थी ? ऐसा कब हुआ ?
मीनाक्षी जैन: यह तब हुआ था जब कांग्रेस अल्पमत सरकार बन गई थी |
राजीव मल्होत्रा: उन्हें गठबंधन सहयोगियों की आवश्यकता थी |
मीनाक्षी जैन: और उन्होंने सीपीआई को चुना | वाम अपनी वैचारिक स्थिति को आगे बढ़ाने में विशेषज्ञ है | उन्होंने एक मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय माँगा | कांग्रेस ने इस मंत्रालय के महत्व को अनुभव नहीं किया होगा | या हो सकता है कि उन्होंने भारत और उसके इतिहास के वामपंथी दृष्टिकोण का समर्थन किया हो | तो प्रोफ़ेसर नुरुल हसन ने मंत्रालय सम्हाला | प्रोफ़ेसर नुरुल हसन की पहली कार्रवाई गैर-वामपंथी प्रतिष्ठित इतिहासकारों को अवरोधित या अन्यायसंगत घोषित करना था |
राजीव मल्होत्रा: मुझे कुछ उदाहरण दें |
मीनाक्षी जैन: आर सी मजूमदार, जदुनाथ सरकार | जदुनाथ सरकार ने मुगल साम्राज्य का एक उत्कृष्ट तथ्य आधारित अध्ययन किया था और वामपंथियों ने भारतीय इतिहास के बारे में उनके विचार का अनादर किया | जदुनाथ सरकार की नवीन जीवनी में, विद्वान आश्चर्यचकित है कि इरफान हबीब ने अपनी पुस्तक “मुगल भारत की कृषि प्रणाली” में एक बार भी जदुनाथ सरकार का उल्लेख नहीं किया है |
राजीव मल्होत्रा: अर्थात् …
मीनाक्षी जैन: अर्थात् वे पूरी तरह से उन्हें अनदेखा करते हैं | वे केवल इतिहास के पृष्ठों से लोगों को हटा रहे हैं |
राजीव मल्होत्रा: क्या नुरुल हसन सीपीआई से थे ?
मीनाक्षी जैन: वे वामपंथी थे |
राजीव मल्होत्रा: संभवतः पार्टी के सदस्य नहीं ?
मीनाक्षी जैन: वे एक पत्रधारक सदस्य थे |
राजीव मल्होत्रा: पर आप बच गए |
मीनाक्षी जैन: हाँ क्योंकि मैं किसी से संरक्षण या नौकरी की कामना नहीं कर रही थी | मेरे पास एक छोटी-सी नौकरी थी जिसने मेरी सहायता की |
राजीव मल्होत्रा: क्या शोध-पत्र प्रकाशित करना सरल था ?
मीनाक्षी जैन: नहीं ! मैंने कभी प्रयास नहीं किया क्योंकि प्रकाशन एक सिरदर्द था | भले ही मैंने अपने विषयों में उल्लेखनीय योगदान दिया है | मेरी पुस्तकें प्रकाशकों द्वारा नकार दी गयी थीं क्योंकि पांडुलिपि वाम विद्वानों के पास गए थे |
राजीव मल्होत्रा: लोगों यह अनुभव नहीं करते हैं | सभी प्रकाशकों को तथाकथित महत्वपूर्ण लोगों द्वारा पुस्तकों की समीक्षा करानी होती है चाहे अच्छे विद्वान हों या न हों, और ये लोग आपकी पुस्तक को मार देते हैं |
मीनाक्षी जैन: एक पुस्तक, मध्यकाल में हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर एक विस्तृत अध्ययन, एक समीक्षक को भेजा गया था | समीक्षक ने कहा कि यह एक गंभीर और व्यापक काम था | परन्तु मैं प्रकाशक को यह लिखने का सुझाव दूंगा कि “यह हिंदू-मुस्लिम संबंधों का हिंदू दृष्टिकोण है” | भयभीत प्रकाशक ने कहा, “मुझे बहुत खेद है, पर मैं इसे प्रकाशित नहीं कर सकता क्योंकि यह हिंदू दृष्टिकोण बताता है” |
राजीव मल्होत्रा: उस समय मुख्य प्रकाशक कौन थे ? ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ?
मीनाक्षी जैन: मैं किसी का भी नाम नहीं लेना चाहूंगी पर मैंने चार प्रकाशकों के पास प्रयास किया था | और प्रत्येक प्रसंग में समीक्षकों ने कहा कि वैसे तो यह एक गंभीर काम है, पर यह एक प्रकार के दृष्टिकोण को दर्शाता है | इसलिए यह नकार दिया गया था | मेरी अयोध्या पांडुलिपि चार प्रकाशन संस्थाओं द्वारा अस्वीकृत की गयी थी | भारतीय पुरातत्वविदों ने, जो उस स्थल के उत्खनन में बहुत सक्रिय रूप से संलिप्त हुए हैं, हस्तक्षेप किया और इसे पढ़ा |
राजीव मल्होत्रा: अभिनव (हाल के) वर्षों में आप किन पुस्तकों पर काम कर रही हैं ?
मीनाक्षी जैन: वे प्रकाशित हो चुके हैं | 8वीं शताब्दी के मध्य से लेकर 19वीं शताब्दी के मध्य तक विदेशी यात्रियों के विवरणों पर “ट्रैवलर्स टू इंडिया: द इंडिया दे साव” पर एक 3 खण्डों का अध्ययन |
राजीव मल्होत्रा: वे कहां से आए थे ?
मीनाक्षी जैन: यूरोप, चीन, सुदूर पूर्व, और मुस्लिम विश्व से | दसवीं शताब्दी के मध्य के बाद से कई | बहुत सारे अरब और फारसी लेखक थे |
राजीव मल्होत्रा: स्रोत कहां हैं ?
मीनाक्षी जैन: मैंने इस प्रकार के कार्यों के अंग्रेजी अनुवादों का उपयोग किया |
राजीव मल्होत्रा: क्या वे भारत में हैं या कहीं और ?
मीनाक्षी जैन: सभी स्थानों पर |
राजीव मल्होत्रा: आपने उन्हें विभिन्न पुस्तकालयों से इकट्ठा किया था ?
मीनाक्षी जैन: हाँ !
राजीव मल्होत्रा: तो विवरणों को पढ़ने पर लोगों को क्या आश्चर्यचकित करेगा ?
मीनाक्षी जैन: भारत में जो कुछ उन्होंने देखा, लगभग सभी विवरण उसके विस्मय से भरे थे | आर्थिक प्राणशक्ति और समाज में महिलाओं की स्थिति उनके लिए एक आँख-खोलने वाली थी | एक इतालवी सज्जन पेट्रा डेला वेला पहले दक्षिण भारत आये थे | उनके साथ एक दुभाषिया या व्याख्याकार था | ईरान के शाह का साक्षात्कार करने के बाद वे दक्षिण भारत आए जहां मातृसत्तात्मक समाज प्रचलित था | वे एक गांव में जाते हैं और कहते हैं, “मैं इस क्षेत्र के शासक को देखना चाहता हूँ |” उन्होंने कहा कि शासक एक महिला है और वह अभी घर पर नहीं है | वह एक गड्ढे के उत्खनन के निरीक्षण के लिए क्षेत्र में थी |
वे भी उस क्षेत्र में जाते हैं और एक महिला को अपनी ओर आते हुए देखते हैं | वह रसोई में काम करने वाली एक महिला की भांति कपड़े पहनी प्रतीत होती है और कोई चप्पल नहीं | और वे कहते हैं कि जब मैंने उससे बात करना आरम्भ किया तो मैंने उसे ईरान के शाह जितना बुद्धिमान पाया | जो प्रश्न वो पूछती है और उसकी जागरूकता दक्षिण भारत में महिलाओं की मातृसत्ता के बारे में आँखें खोलने वाली है | वे जाति-व्यवस्था के बारे में लिखते हैं जो बहुत भिन्न है उससे जैसा हम आज उसे समझते हैं | एक उदाहरण मद्रास के एक अंग्रेजी कलेक्टर के बारे में है |
राजीव मल्होत्रा: किस अवधि में ?
मीनाक्षी जैन: 18 वीं सदी |
राजीव मल्होत्रा: ठीक |
मीनाक्षी जैन: पहला विवरण 1766 का था | यह 18वीं शताब्दी है | मद्रास का एक अंग्रेजी कलेक्टर मद्रास से कुछ सौ मील दूर दूसरे गांव में जाना चाहता है | उसकी पालकी ढोने वाले ब्राह्मण थे जो उसे गांव ले जा रहे थे | वह पालकी पर बैठा था क्योंकि वह पूरी दूरी तक घुड़सवारी नहीं करना चाहता था | जब वह उस गांव में आता है, तो पालकी ढोने वाले गंदे हो चुके होते हैं | जैसे ही वह नीचे आता है, वह विस्मित हो जाता है कि गांव में कोई भी उसे नहीं देख रहा है | और हर कोई पालकी ढोने वाले को प्राणम कर रहा है, जिन्हें वह समझ जाता है कि वे ब्राह्मण हैं, भारतीय परंपराओं और ज्ञान प्रणाली के संरक्षक | वे समाज में आदर पाते हैं भले ही उनके पास कोई राजनीतिक शक्ति न हो | ये बहुत ही रोचक प्रसंग हैं |
राजीव मल्होत्रा: मेरे पास आपकी पुस्तकें हैं |
मीनाक्षी जैन: धन्यवाद !
राजीव मल्होत्रा: मैंने इसे नहीं पढ़ा है |
मीनाक्षी जैन: एक शब्दकोश की भांति, आप इसे एक बार में नहीं पढ़ सकते हैं |
राजीव मल्होत्रा: हम विदेशी यात्रियों के मूल स्रोतों से क्या सीखते हैं इस सम्बन्ध में इन चौंकाने वाले प्रसंगों को मंडलियों या सम्मेलनों का विषय होना चाहिए |
मीनाक्षी जैन: विद्वानों द्वारा बिना छाना हुआ | हाँ |
राजीव मल्होत्रा: कुछ खोज क्या हैं जो लोगों को आश्चर्यचकित करेंगे ?
मीनाक्षी जैन: पूर्ण रूप से |
राजीव मल्होत्रा: क्योंकि आज हम जो सोचते हैं यह उससे विरोधाभास करेगा |
मीनाक्षी जैन: यह एक आंख खोलने वाला होगा |
राजीव मल्होत्रा: हम सहयोग करेंगे | ठीक है अच्छा है | आप अपने अयोध्या सम्बन्धी कार्य के लिए जानी जाती हैं, एक बहुत ही विवादास्पद विषय जिसके लिए बहुत साहस चाहिए | मुझे अपने काम के बारे में बताएं और यह क्या बताता है |
मीनाक्षी जैन: अयोध्या विवाद पर मुझे कोई जानकारी नहीं थी | मेरी प्रारंभिक प्रतिक्रिया भावनात्मक थी | इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद मैंने इस विषय का अध्ययन करना आरम्भ कर दिया | किसी ने मुझे इरफान हबीब द्वारा लिखित अलीगढ़ हिस्टोरियन फोरम द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका दी | पुस्तिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय पर एक अभियोग थी |
राजीव मल्होत्रा: जो नहीं जानते हैं उनके लिए, इरफान हबीब एक अतिप्रतिष्ठित, वामपंथी विद्वान हैं जिन्होंने प्रत्येक हिंदू दृष्टिकोण को त्याग दिया, नकार दिया और अस्वीकार कर दिया | या सही दृष्टिकोण को |
मीनाक्षी जैन: परन्तु मैं बस…
राजीव मल्होत्रा: बहुत एकपक्षीय विचारधारात्मक
मीनाक्षी जैन: मैं अयोध्या पर कुछ कहना चाहूंगी | उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस निर्णय को उलटने जा रहा था | मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या भारत में कोई न्यायालय ऐसा दोषपूर्ण निर्णय देगा | इसलिए मैंने 5000 पृष्ठों के निर्णय को पढ़ा और यह मेरे लिए वास्तविक रूप में आँखें खोलने वाला था | वाम इतिहासकारों द्वारा फैलाई गयी सारी बातों को दोषपूर्ण पाया गया था…
राजीव मल्होत्रा: न्यायालय द्वारा ?
मीनाक्षी जैन: न्यायालय ने उनके विचारों को स्वीकार नहीं किया | मैंने भी |
राजीव मल्होत्रा: मुझे कुछ प्रमुख बातें बताएं जो उन्होंने कहा पर वे त्रुटिपूर्ण हैं |
मीनाक्षी जैन: कई उदाहरण हैं | उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने 19वीं शताब्दी में फूट डालो और शासन करो की अपनी नीति के अंतर्गत अयोध्या विवाद को जन्म दिया था | उन्होंने कहा कि उस स्थल पर उसके पहले किसी भी मंदिर का कोई प्रमाण नहीं है | और राम की पूजा स्वयं 18वीं सदी के उत्तरार्ध – 19वीं सदी की घटना है | विडंबनात्मक रूप से वामपंथी दृष्टिकोण को खंडित करने वाले प्रलेख (दस्तावेज़) फैजाबाद जिला न्यायालय में भाग्यवश बच गए थे | महान विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने 1858 से अवध पर शासन करना आरम्भ कर दिया | इसके बाद, अयोध्या पर सभी विवादों के अभिलेख (रिकॉर्ड) फैजाबाद जिला न्यायालय में रखे गए थे | आश्चर्यजनक रूप से वे प्रलेख 150 वर्षों तक बिना क्षति के बचे रह गए |
अयोध्या का पहला प्रलेख 1858 का है – अवध के थानेदार द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी | कि 25 सिख बाबरी मस्जिद में प्रवेश कर गए और हवन और पूजा आरम्भ कर दी | तो यह एक छोटा सा पन्ना 1858 से अब तक सुरक्षित रहा है | दो दिन बाद बाबरी मस्जिद के मुत्तावाली या अधीक्षक ने यह कहते हुए फैजाबाद न्यायालय में मामला दर्ज किया कि सिखों ने प्रवेश किया था | और हवन और पूजा कर रहे थे | उन्होंने मस्जिद की सारी दीवारों पर चारकोल से राम शब्द लिखा था | वो यह भी कहते हैं कि इस घटना के पहले से ही बाबरी मस्जिद का परिसर हिन्दुओं के नियंत्रण में था जिसे वे जन्मस्थान मानते हैं | परन्तु अब दोनों – अंदर का क्षेत्र और बाहरी क्षेत्र उनके पास हैं | इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसे एक महत्वपूर्ण तथ्य के रूप में माना कि एक मुस्लिम स्रोत कहता है कि 1858 से हिंदू प्रांगण के अन्दर और बाहर हैं |
राजीव मल्होत्रा: यह वामपंथियों के लिए एक बहुत बड़ी हार थी |
मीनाक्षी जैन: 1858 से 1949 तक, जब तक बाबरी मस्जिद के अंदर मूर्ति नहीं रखी गई, हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच कई न्यायिक अभियोग (मामले) हैं | एक और उदाहरण | 1888 में, बाबरी मस्जिद का मुत्तावली न्यायालय में एक अभियोग दायर करता है और कहता है अब तक रामनवमी और कार्तिक मेला के समय हिंदू बाबरी मस्जिद के अंदर प्रसाद, फूल और फल की दुकानों लगाते थे | बहुत से लोग आते थे, बिक्री अच्छी थी और बाबरी मस्जिद और हिंदुओं के बीच आय साझा करने का समझौता हुआ था |
राजीव मल्होत्रा: ह वर्ष क्या है ?
मीनाक्षी जैन: 1888 के आसपास | मेरी पुस्तक में सटीक वर्ष है | उन्होंने कहा कि उस वर्ष जन्मस्थान के महंतों ने बिना उनके परामर्श के साझाकरण के आधार को एकतरफा रूप से परिवर्तित कर दिया | इसलिए वह ब्रिटिश अधिकारियों से पुराने 50-50 के साझाकरण के आधार को पुनःप्रतिष्ठित करने का अनुरोध करता है |
राजीव मल्होत्रा: ये चौंकाने वाले हैं | मुस्लिम स्रोत क्या कहते हैं ?
मीनाक्षी जैन: दो अभिनव (हाल के) प्रकाशित कार्य हैं जिनसे अयोध्या विवाद में रूचि रखने वाले लोगों को अवगत होना चाहिए | एक के के मोहम्मद की आत्मकथा है | वे एएसआई के एक पुरातत्वविद थे और उन्होंने कहा कि कई मुस्लिम उस स्थल को सौंपने के लिए गंभीरता से इच्छुक थे |
राजीव मल्होत्रा: कब ?
मीनाक्षी जैन: जब 1989 के आसपास विवाद आरम्भ हुआ |
राजीव मल्होत्रा: ठीक है |