टीवी धारावाहिक – आर्य-द्रविड़ संघर्ष

आर्य आक्रमण मिथक भारत विखंडन

आज मैं एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करूंगा। मुद्दा यह है कि एक नया टीवी धारावाहिक आने वाला है जो कि काल्पनिक आर्य-द्रविड़ संघर्ष पर आधारित है। इस धारावाहिक का निर्माण मुंबई के एक बहुत ही प्रतिष्ठित समूह द्वारा किया जा रहा है। यह जानकारी इतनी महत्वपूर्ण है कि मैं चाहता हूँ कि आप उन सभी विवरणों को ध्यान से सुने जो मैं आपको देने जा रहा हूँ ।

हम यह चर्चा करेंगे कि: (१) मुझे इन तथ्यों का पता कैसे चला-क्योंकि यह आधिकारिक नहीं है; (२) हम सभी को इसके बारे में क्या करना चाहिए और (३) यह क्यों एक गंभीर समस्या है?

यह धारावाहिक सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकता है और हमें ऐसे किसी तनाव को रोकना चाहिए। हमें उन लोगों से संपर्क स्थापित करना चाहिए जो इस तरह के टीवी धारावाहिक का निर्माण कर रहे हैं एवं उनके साथ सकारात्मक बहस करके उन्हें बहुत ही दोस्ताना तरीके से अपना पक्ष बताना चाहिए – ध्यान रहे यह पूरी बातचीत अत्यंत सौहाद्रपूर्ण वातावरण में होनी चाहिए।

अब मैं आपको बताता हूँ कि मैंने क्या सुना है। मैं एक व्यक्ति को जानता हूँ जो मेरा अनुसरण करता है और काफी  विश्वसनीय है – इस व्यक्ति को इस टीवी धारावाहिक में (जो स्टार प्लस, एक बहुत बड़ी टीवी कंपनी द्वारा प्रसारित किया जायेगा), एक आर्य सैनिक की भूमिका के लिए ऑडिशन पर बुलाया गया था।

इस धारावाहिक की स्क्रिप्ट/कहानी श्री के. वी. विजयेंद्र प्रसाद (जिसने सुपरहिट फिल्म बाहुबली की पटकथा लिखी थी) ने लिखी है; मुझे बताया गया कि वे एक महत्वपूर्ण पटकथा लेखक हैं। इसके निर्माता-निर्देशक रोज ऑडियो-विसुअल के मालिक गोल्डी बहल हैं। गोल्डी बहल एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं, उनका परिवार काफी जाना माना है, उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण कार्य किया है और वह एक विश्वसनीय व्यक्ति हैं।

इस धारावाहिक की कहानी है कि कैसे आर्य आते हैं और द्रविड़ लोगों पर आक्रमण कर, उन्हें हरा कर, उन पर आधिपत्य जमा लेते हैं। मूल पृष्ठभूमि यही है; इस मूल पृष्ठभूमि के भीतर वे नाटक, प्रेम कहानियां, झगड़े आदि दिखायेंगे। तो मूल संदेश यही है (आर्य द्रविड़ संघर्ष) और क्योंकि यह सत्य नहीं है इसलिए ऐसा दिखाना एक बहुत ही खतरनाक बात है। यह सामाजिक रूप से गैर जिम्मेदाराना बात है; यह राजनीतिक रूप से भी खतरनाक है। हम आगे चर्चा करेंगे कि ऐसा क्यों है?

अभी हमें यह नहीं पता है कि इस धारावाहिक के पीछे शोधकर्ता कौन हैं । हो सकता है कि कोई देवदत्त पट्टनायक जैसा व्यक्ति हो जो कि अपनी जानकारी वेंडी डोनिगर या पोलाक सरीखे पश्चिमी विद्वानों से लेता हो । यह भी हो सकता है कि शोधकर्ता कोई पश्चिमी भारतविद या इन पश्चिमी भारतविदों का कोई भारतीय सिपोय (sepoy: मानसिक रूप से पश्चिमी सभ्यता का दास) हो । वह कौन है यह हम अभी नहीं जानते हैं ।

हो सकता है कि यह सिर्फ सुनी सुनाई बात हो, अफवाह या कोई गपशप हो। इसलिए हमें निमाताओं से पूछना चाहिए कि क्या यह तथ्य सही हैं? मैंने दो या तीन लोगों से अलग अलग इन बातों को स्वतंत्र रूप से सत्यापित करने के लिए कहा था – उन्होंने कुछ पूछताछ की और उन्होंने मुझे बताया है कि यह बातें सच हैं।

मैंने स्वयं इन तथ्यों की जांच नहीं की है मगर कुछ विश्वसनीय लोगों (एक से ज्यादा) ने जाँच की है और उन्होंने मुझे बताया है कि धारावाहिक में अभी क्या चल रहा है । हमें पता चला है कि धारावाहिक के कुछ एपिसोड की शूटिंग आरम्भ हो गयी है । इसका अर्थ यह है कि धारावाहिक सिर्फ “ड्राइंग बोर्ड पर” नहीं है – असल शूटिंग आरम्भ हो गयी है । यह निर्णय कि धारावाहिक कितने दिन दिखाया जायेगा – तीन महीने, छह महीने या नौ महीने – यह टीआरपी पर भी निर्भर करता है – मैं इन विवरणों को अभी प्राप्त नहीं कर पाया हूँ । मैं बस आपको वही बता रहा हूँ जो मुझे पता है।

आर्य द्रविड़ के बीच इस तरह का भेद पैदा करना, एक बहुत ही खतरनाक कृत्य है जो भारत विखंडन में लगे हुए तत्वों द्वारा किया जा रहा है – इनमे से हरेक तत्व के अपने अलग मंतव्य हैं मगर मूल बात यह है कि इस तरह का प्रसार हमारे हित में नहीं है । यदि आप मेरी किताब “ब्रेकिंग इन्डिया” पढ़ें तो आप एक बहुत विस्तृत विवरण एवं बहुत सारे तर्क के साथ उन कारणों को जान पाएंगे कि क्यों आर्य द्रविड़ संघर्ष की बात गलत है। आप आनुवंशिक डेटा देखें, भाषाई आंकड़ों पर नजर डालें, आप पुरातात्विक आंकड़ों पर नजर डालें – उनसे आप समझ पाएंगे कि यह आर्य द्रविड़ संघर्ष की बात बिलकुल असत्य है । अध्ययन करके ही आप अपने खुद के निष्कर्ष तक पहुँच सकते हैं मगर ऐसा बिलकुल नहीं है कि यह बात ऐसे ही स्वीकारी जा सके । असल में अनेकों सबूत इस विचार के विपरीत पाए गए हैं ।

अंग्रेजों द्वारा यह सिद्धांत शुरू किया गया था कि आर्य लोग बाहर से आये थे । अंग्रेजों ने मैक्समुलर, जो कि एक जर्मन था, उसे इस अध्ययन के लिए रखा था, और मैक्समुलर ने इस सिद्धांत को जन्म दिया था । फिर बिशप काल्डवेल, एक और ब्रिटिश व्यक्ति ने भी इस सिद्धांत को बढ़ावा दिया। इस प्रकार इन दोनों ने और उनके छात्रों और अनुयायियों ने मिल कर इस विचार को आगे बढ़ाया। शुरुआती दिनों में भारत में इसे स्वीकार नहीं किया गया; न तो उत्तर में, और न ही दक्षिण में; किसी ने भी इसे स्वीकार नहीं किया। परन्तु पिछले 50 से 75 वर्षों में; अगर कहें तो करीब 1950 से कई लोग इस सिद्धांत को मानने लगे और फिर इस सिद्धांत का प्रयोग वोट बैंकिंग और राजनीतिकरण के लिए होने लगा।

हाल ही में कुछ ईसाई मिशनरी इस सिद्धांत को इसलिए प्रसारित करते हैं क्योंकि यह उन्हें लोगों को अलग करके परिवर्तित करने में मदद करता है । कई मातहत सिद्धांतकार जो वामपंथी विचारों वाले हैं, एवं अन्य भारत विखंडन में लिप्त ताकतों ने भी इस आर्य द्रविड़ भेद को काफी बढ़ावा दिया है । यह सिद्धांत वास्तविक तथ्यों द्वारा नहीं अपितु राजनीति से जीवित रखा जा रहा है – इस बात को समझना बहुत महत्वपूर्ण है।

एक और बात; आपमें से जो लोग सोचते हैं कि यह धारावाहिक तो केवल कला है या यह केवल कल्पना लोक की बात है – मैं आपको बता रहा हूँ कि जो भी विचार सिद्धांत रूप में आरम्भ होता है, अंत में वही सिद्धांत आपके दैनिक जीवन को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अपनाता है। यह विचार नीति को प्रभावित करता है, मीडिया को प्रभावित करता है, यह नवीन मिथकों को जन्म देता है – मिथक जिन पर बाद में कई लोग विश्वास करने लगते हैं । यह बात कई सदियों से सच होती आई है । आप अपने स्वयं के इतिहास पर नजर डालें तो आप देखेंगे कि काव्य और कला लोकप्रिय स्तर पर संदेश प्रसारित करने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आये हैं। हम देखते हैं कि वैदिक विचारों को नृत्य के माध्यम से और कहानियों के माध्यम से प्रेषित किया गया था।  इसी तरह से इस (आर्य द्रविड़ संघर्ष को) विचार को भी कला के माध्यम से प्रेषित किया जा सकता है । तो जहाँ एक तरफ अच्छी बातें कला के माध्यम से प्रेषित की जा सकती हैं,वहीँ बुरी बातें भी प्रेषित की जा सकती हैं। नाजियों ने अपने विचारों को प्रसारित करने के लिए कला का इस्तेमाल किया था; चर्च अपने विचारों को प्रसारित करने के लिए कला का उपयोग करता है, मार्क्सवादी भी कला का इस्तेमाल करते हैं। ISIS अपने विचारों को प्रसारित करने के लिए इन सभी प्रकार के मीडिया का उपयोग करता है । इसलिए इस तरह मीडिया का उपयोग करके अपने विचारों का प्रचार प्रसार करना एक बहुत अच्छी तरह से ज्ञात तथ्य है – ऐसे लोगों से मेरा मत है कि वे किसी भुलावे में न रहे और यह न कहें कि “अरे यह केवल कल्पना है” या “यह केवल एक धारावाहिक है”आदि । मूल बात यह है कि लोगों के विचारों को प्रभावित करने के यह सब बड़े पुराने और महत्वपूर्ण तरीके रहे हैं।

अब हम देखते हैं कि तथ्यात्मक रूप से हमारे पास इस मुद्दे के बारे में क्या जानकारी है। मैं दक्षिण भारत में सबसे प्रख्यात पुरातत्वविद्, नागास्वामी जी की एक हाल ही की किताब का उल्लेख करने जा रहा हूँ । नागास्वामी जी की आयु अस्सी के करीब की है; वे एक प्रख्यात विद्वान हैं और उनकी काफी विश्वसनीयता है । उन्होंने अभी एक नई किताब विमोचित करी है – जिसका शीर्षक है: तमिलनाडु – वेदों की भूमि।

यह पुस्तक सही तथ्य सामने लाती है । इस धारणा के ठीक विपरीत – कि विदेशी आर्य बाहर से वेद और संस्कृत लेकर आये थे और तमिल भूमि का इनसे कुछ लेना देना नहीं था; आर्य द्रविड़ों पर आक्रमण कर रहे थे; बहुत संघर्ष और दुश्मनी हुई थी – यह पुस्तक वास्तविक तथ्य सामने लाती है। ध्यान रहे – नागास्वामी जी एक पुरातत्वविद् है। वे किसी सुनी सुनाई बात पर नहीं बल्कि वास्तविक भौतिक साक्ष्य का उपयोग करते हैं । भौतिक पुरातात्विक साक्ष्य ही परम साक्ष्य है। अब मैं कुछ बातों का वर्णन करता हूँ, जो उन्होंने अपनी किताब में लिखी हैं : वे कहते हैं कि संगम युग के सभी महान तमिल राजा वैदिक अनुष्ठान करते थे । वे सभी धर्म शास्त्र द्वारा निर्धारित मार्ग का अनुसरण करते थे । प्राचीन तमिल राजा वेद, वेदांग का अध्ययन करते थे और दैनिक यज्ञ करते थे – जिनका पंच महायज्ञ के रूप में उल्लेख है । यह सारी जानकारी सबसे पुराने तमिल साहित्य और भौतिक साक्ष्यों से मिली है। इसके अलावा जन्म संस्कार, मृत्यु संस्कार, विवाह संस्कार आदि में, प्राचीन तमिलों द्वारा वैदिक निषेधाज्ञा का पालन किया जाता था। राजा अपने मंत्री के रूप में वैदिक विद्वानों को नियुक्त करता था और उन्हें भूमि दान के तौर पर देता था । यहाँ तक कि न्यायाधीशों का चयन धर्म शास्त्र पर आधारित एक परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद ही होता था।

इसलिए नागास्वामी जी की पुस्तक आप सभी के लिए पढ़ने हेतु एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक है।

अब आप नवीनतम डीएनए साक्ष्यों व आनुवंशिक साक्ष्यों को देखिये । यह सभी साक्ष्य भारत में एक समूह और किसी दूसरे समूह के बीच कोई बड़ा विभाजन प्रदर्शित नहीं करते हैं । इसके अलावा यह पता चलता है कि हम भारतीयों एक समूह के रूप में दुनिया के अन्य भागों के कई समुदायों से बहुत अलग हैं । आप भाषाई साक्ष्यों को देखिये, अलग अलग कलाकृतियों को देखिये । अभी दक्षिण भारत में एक 2,000 साल से अधिक पुराने पुरातात्विक स्थल की खोज हुई है – इस स्थल और उत्तर भारत के कई पुरातात्विक स्थलों में गहन समानताएं हैं; इसलिए हम जानते हैं कि उत्तर और दक्षिण में लोगों, विचारों, ग्रंथों, आध्यात्मिक विचारों के तल पर आपस में गहन आदान प्रदान होता था।

तो मेरा यह जानकार जो आर्य सैनिक के रोल के लिए ऑडिशन देने जा रहा था – एक ऐसा रोल जिसमे उसे द्रविड़ों पर हमला करना, उन पर आधिपत्य जमाना था – अगर यह बात सच है तो हमें इसका विरोध करना चाहिए। सिर्फ निर्माताओं द्वारा यह छोटा सा disclaimer लिख देने से “कि यह सब सच नहीं है, काल्पनिक है” – मैं इससे संतुष्ट होने वाला नहीं हूँ । मुझे लगता है कि उनके द्वारा ऐसा करना बड़ा गैर जिम्मेदाराना होगा।

कल्पना करें कि अगर कोई मोहम्मद साहब के बारे में कुछ गलत कहानी गढ़े – और उन्हें कुछ गलत कार्य करता हुआ दिखाए – या ऐसा ही कुछ ईसा मसीह के बारे में दिखाए – और बस एक छोटा सा disclaimer डाल दे कि यह सब काल्पनिक है – मुझे नहीं लगता है इन पंथों के लोग मात्र इतने से शांत हो जायेंगे। तो फिर हिंदुओं से ही क्यों अपेक्षा रखी जाती है कि वे शांत रहे और इस तरह की गलत बात को स्वीकार कर लें?

यह विवाद सिर्फ हिंदुओं से ही सम्बंधित नहीं है – आर्य द्रविड़ संघर्ष की अवधारणा केवलमात्र हिंदुओं के लिए ही समस्या नहीं है – यह सभी भारतीयों के लिए एक समस्या है, क्योंकि यह बहुत विवाद और तनाव पैदा कर सकता है – यह पहले से चल रहे विभाजनकारी और विखंडन के भाव को और बल देगा।

इसलिए मैं निर्माता और निर्देशक, स्टार प्लस चैनल, कहानी लेखक श्री विजयेंद्र प्रसाद से अनुरोध करूंगा; मैं गोल्डी बहल से भी अनुरोध करूंगा – कि यह सब लोग थोडा पुनर्विचार करें और वैकल्पिक दृष्टिकोण रखने वाले कुछ विद्वानों से परामर्श करें – ऐसे विद्वानों को साथ लाकर एक चर्चा करें। इस  कार्य में हड़बड़ी नहीं करें क्योंकि किसी भी जल्दीबाजी से कोई बहुत गलत घटना का आरम्भ हो सकता है।

अब अगर वे यह सब समझ कर भी आगे बढ़ते हैं और वे इस मैत्रीपूर्ण सलाह पर कोई ध्यान नहीं देते हैं – अगर वे सब जानते हुए भी, ऐसी चीजों का निर्माण करते हैं जो सामाजिक सौहाद्र को बिगाडें, और लोगों के बीच शत्रुता को बढाएं – तो मुझे लगता है कि ऐसी दशा में उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि आप यहाँ सहिष्णुता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई दे सकते हैं – यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कम, राजद्रोह के अधिक करीब है।

अब आखिर में सरकार को इन बातों का ध्यान रखना है। जनहित याचिका पर विचार किया जा सकता है मगर मुझे लगता है कि हमें इस धारावाहिक से जुड़े लोगों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए। हमें जल्दी निष्कर्ष निकालने से पहले उनकी बात भी सुननी चाहिए। हम लोग थोडा सुनें वे क्या कहना चाहते हैं।

आज की चर्चा एक प्रयास है – इस विषय पर बातचीत का सिलसिला आरम्भ करने का। मैं इस धारावाहिक के निर्माताओं के साथ किसी भी जगह इस बात पर चर्चा करने को उपलब्ध हूँ। दूसरी तरफ अगर वे कहते हैं कि कुछ भी हो वे तो इस परियोजना में आगे ही बढ़ेंगे – ऐसा होना सभी गंभीर सोच रखने वाले भारतीयों के लिए एक वास्तविक त्रासदी होगी और इसलिए मैं चिंतित हूँ।


(राजीव मल्होत्रा जी के व्याख्यान से लिया गया)

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