जन्माष्टमी का यह एक महत्वपूर्ण अवसर है और इसलिए यह खुशी, और उत्सव मनाने का समय है। मैं आप से यह बात करना चाहता हूँ कि जब हमारा समुदाय इस उत्सव के लिए तैयार हो रहा था, कुछ ऐसे हिन्दू विरोधी घटक थे, जिन्होंने हिन्दुओं पर हमला करना शुरू कर दिया ।
हवाई द्वीप में एक हिन्दू राजनीतिज्ञ पर वैचारिक हमला किया गया था। यह हिन्दू राजनीतिज्ञ वास्तव में जन्म से विदेशी हैं और हवाई द्वीप की ही रहने वाली हैं । उनका नाम तुलसी है, और वे बहुत खुले तौर पर और सार्वजनिक रूप से हिंदू मत का पालन करती हैं । तुलसी ने विभिन्न हिन्दू उद्देश्यों के लिए हमेशा समर्थन दिया है – हम उन पर भरोसा कर सकते हैं, और हम यह विश्वास कर सकते हैं कि वह हमारे दृष्टिकोण का सही प्रतिनिधित्व करेंगी। यहाँ अमरीका में ऐसा कोई भी दूसरा नहीं है जो राजनीतिक दायरे में अपने हिंदू पहचान के बारे में सार्वजनिक स्तर पर खुलकर बात करता हो ।
तो तुलसी पर उनके प्रतिद्वंद्वी ने व्यक्तिगत आक्षेप किया। मैं अभी कुछ हिंदू विरोधी आरोप व टिप्पणियों को पढ़ने जा रहा हूँ, जो कि इस हिंदू उम्मीदवार के खिलाफ ईसाईयों को भड़काने के लिए प्रयुक्त की गयीं थी ।
एक औरत जिनका नाम एंजेला काइहुई है – मैं नहीं जानता कि आप इसका उच्चारण कैसे करते है – उन्होंने इस घृणा के अभियान को शुरू किया था – और वे इस हिंदू उम्मीदवार के खिलाफ राजनीतिक प्रतियोगी थीं । उनके पोस्टर कुछ ऐसा कहते थे – “क्या आप इस बात से सहमत हैं कि तुलसी के लिए वोट करना, एक शैतान के लिए वोट करना हैं?” आगे वे तुलसी को शैतान का उपासक बताती हैं- “एक ईश्वर या हज़ार ईश्वर – आप कौन सा विकल्प चुनेंगे?”एक पोस्टर की कलाकृति में नरक की आग के साथ शैतान दिखाया गया है जिसका अर्थ है कि यह जो हिन्दू उम्मीदवार (तुलसी) है उसका पंथ कितना खतरनाक है । एक और पोस्टर पर लिखा हुआ था कि अमेरिका में एक पवित्र युद्ध (holy war) लड़ा जा रहा है – और उस पोस्टर पर लिखा है “गीता और पवित्र बाइबल में चुनाव” ।
एक और पोस्टर में कृष्ण की एक छवि है, और उसका निहितार्थ है कि (हिन्दुओं के लिए) कृष्ण ईसाई मान्यता के गॉड से बेहतर हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे हिन्दू विरोधी अभियान हवाई द्वीप में जोर शोर से चले थे। मैं यह नही कहना चाहता कि आप इसका सामान्यीकरण करे और कहें कि हर कोई ऐसा ही है, क्योंकि यह बात पूरी तरह सच नहीं है लेकिन मेरी मूल बात और गहन है। यह सिर्फ एक अपवाद नहीं है – इस तरह की घटना हमें कुछ गंभीर ऐतिहासिक बातों का स्मरण कराती है जिनके बारे में हमें चिंतन करना चाहिए GOP पार्टी (जिसकी उम्मीदवार यह ईसाई महिला थी) ने आधिकारिक वक्तव्य दिया कि वे इस तरह के (हिन्दूविरोधी) प्रचार और इन विचारों का समर्थन नहीं करते हैं – इसलिए यह बात समाप्त हो गयी। लेकिन मेरे लिए यह बात समाप्त नहीं हुई – उस हिन्दू उम्मीदवार की आलोचना इसलिए नहीं हुई क्योंकि GOP अचानक कृष्ण का सम्मान करने लग गयी है । GOP के लोग अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं, इसलिये इस चुनावी माहौल में वे ऐसा कुछ नही कहेंगे जिससे वोट खोने या अनुदान खोने का कोई कारण बने । इसलिए उनके अनुसार कोई राजनीतिक गलती नहीं होनी चाहिये, राजनीतिक रूप से सब सही होना चाहिये । GOP का यह निर्णय वास्तव में हिंदू पंथ का सम्मान करने के बजाय एक राजनीतिक निर्णय है – और इसलिए ऐसी सोच मेरे लिए एक समस्या है।
मुझे यह बात भी परेशान करती है कि अमरीका की किसी मुख्यधारा में इस हिन्दुफोबिया के विरोध में कोई स्वर नहीं उठा । अगर ऐसा विरोध किसी मुस्लिम का हुआ होता तो इसे इस्लामोफोबिया का मामला बनाकर सभी टीवी चैनल, शैक्षणिक क्षेत्र के लोगों का और बाकी लोगों का साक्षात्कार लेकर, इस इस्लामोफोबिया की कड़ी निंदा करते।
इसी तरह अगर यहूदियों के विरोध में इस तरह का आक्षेप लगाया जाता तो भी एक बड़ा हंगामा खड़ा हो गया होता, लेकिन क्योंकि यह मामला हिन्दुओं से सम्बंधित है – हमारे समुदाय में से भी कोई खड़ा नहीं होना चाहता और इस बात पर कोई हंगामा नहीं करना चाहता ।
शायद हम स्वयं ही शर्मिंदा हो जाते हैं, और क्योंकि हमे अपनी उपलब्धियों पर बड़ा गर्व है और हम अपने आप को पीड़ित नहीं दिखाना चाहते – इसलिए हम यह मुद्दा नहीं उठाना चाहते। हम बहुत अच्छी तरह से जीवन व्यतीत कर रहे हैं तो भला हम ऐसी घटनाओं (हिन्दूफोबिया) के बारे में क्यों चिंता करें? इसलिए मैं फिर कहता हूँ कि आप ऐसा न समझे कि यह घटना एक अपवाद है – यह सिर्फ अनेक होने वाली घटनाओं मे से एक घटना है।
अब मैं अमेरिकी लोगों की, पश्चिमी लोगों की ईसाई पंथ की सामूहिक चेतना के बारे में बात करना चाहता हूँ । हमारे लिये यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि इस चेतना का आधार क्या है?
हमें यह समझना होगा कि ईसाई कई देवताओं, बहुदेववाद, मूर्ति पूजा आदि से क्यों घबराते हैं ? मैं यह संदेश देना चाहता हूँ कि यूरोप में ईसाई पंथ एक विदेशी पंथ था । यूरोप के मूल निवासी ईसाई नहीं थे । ईसाई पंथ यूरोप में एक हिंसक आक्रमण के तौर पर आया – उससे पहले यूरोप “पेगन” था अर्थात मूर्ति पूजक या प्रकृति उपासक था। इस पंथ के उनके अपने स्वयं के अलग-अलग नाम थे, लेकिन उन्हें ईसाई “पेगन” के नाम से बुलाते थे। यह “पेगन”पंथ ईसाई पंथ से पूर्व हजारों साल तक रहा था । इन मूल निवासियों पर एक बाहरी आक्रामक पंथ के मानने वालों (अर्थात ईसाइयों) द्वारा हमला किया गया था – और उसके उपरांत इन लोगों का धर्मान्तरण किया गया था।
जीसस के समय में तो ईसाइयत केवल मध्य पूर्व का एक पंथ था । ईसाई पंथ वास्तव में अरबों, यहूदियों से सम्बंधित एक पंथ है – जो कि भूमध्य सागर के दक्षिण में जन्मा एक पंथ है । यूरोप, जो कि भूमध्य सागर के उत्तर में है, ईसाई पंथ का मूल स्थान कभी भी नहीं रहा । तो ईसाई पंथ का यूरोप भर में धीरे-धीरे प्रसार होकर फैलने में हजार साल लग गये। मतलब जीसस के एक हजार साल बाद यूरोप पूरी तरह से ईसाई हो गया था ।
इसलिए इस महत्वपूर्ण बात को हमें याद रखना है, क्योंकि ईसाई आक्रमणकारियों और मूल पेगन निवासियों के बीच की लड़ाई बहुत हिंसक थी और धर्मान्तरण की यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं थी । इसमें बहुत समय लगा था । धर्मान्तरण की प्रक्रिया जितनी हिंसक होती है, अचेतन पर उतना ही गहरा आघात पहुँचता है । इसलिए यूरोपीय ईसाइयों के अचेतन में अभी भी उनके दूर अतीत की यह स्मृति जीवित है – जो उनकी विरासत और उनके पूर्वजों (जो ईसाई नहीं थे) के बारे में है ।
यूरोप में पेगन पंथ से छुटकारा पाने के लिए, उसे बदनाम किया गया – कई आरोप लगाये गए – कहा गया कि वे शैतान के उपासक हैं । उन्हें नीचा दिखाने के लिये सभी प्रकार की कल्पित कथाओं का उपयोग किया गया, जिससे उन्हें मारने की, उनके खिलाफ हिंसा की कार्रवाई को सही ठहराने में, आसानी हो । यह सब इतिहास में ठीक से दर्ज किया गया है । अगर आप ईसाई इतिहास का अध्ययन करते हैं, तो इस पंथ का यूरोप में कैसे फैलाव हुआ था – इसका ठीक विवरण आपको मिल जायेगा ।
अफ्रीका में भी यही तरीका अपनाया गया था । वहां भी उन स्थानों के मूल पंथों के ऊपर आक्रमण किया गया और धर्मान्तरण के लिए दुष्प्रचार किया गया । यही सब लैटिन अमेरिका में भी हुआ और वही अब भारत में हो रहा है । तो अगर आप समझना चाहते है कि भारत में क्या चल रहा है और उसका संभावित परिणाम क्या होने वाला है, तो आप यूरोप को देखें । हम अक्सर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को देखते है । हम यूरोप को नहीं देखते । यूरोप का भी यही इतिहास रहा है और यह बात समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इसलिए यूरोपीय मानसिकता में, एक अचेतन स्मृति अभी भी है; इस मानसिकता में अपने ही अतीत की बुराईया करना, उसको गालियाँ देना, आरोप लगाना, उसको “शैतानी पंथ” कहना – इन सब बातों को प्रोग्राम किया गया है । इसलिए यह लड़ाई मूर्तियों, बहु देवत्व, परमात्मा का स्त्री स्वरुप में होना, प्रकृति की पूजा करना – इन सब बातों के खिलाफ थी – इस मानसिकता के अनुसार इन सभी मान्यताओं का समाप्त होना आवश्यक था ।
इसलिए आज के ईसाई जब हिन्दू धर्म में यह सभी कुछ देखते हैं – तो उन्हें अपने अतीत के वे पहलू याद आते हैं जिन्हें उन्होंने अस्वीकार कर दिया था । हिंदू धर्म उन्हें याद दिलाता है, कि किन तत्वों को उन्होंने (हिंसा के साथ) खारिज कर दिया था । इन सभी तत्वों के बारे में सैकड़ो वर्षों से उनके अन्दर भरा गया है – यह गलत है, यह बुरा है – यह “शैतानी तत्व” है और इससे आप नरक में जायेंगे ।
ऐसा नहीं कि यह सारे विचार ख़ास हिंदुओं को नष्ट करने के लिए लाये गए थे – हिंदूओं से उनका सामना तो हाल की बात है । लेकिन यह उन के मन मे शताब्दियों से बसाया गया विचार था क्योंकि यूरोप के मूल पंथों का नाश करके उन्हें उखाड़ फेंकना एक वृहद परियोजना थी ।
कहने का तात्पर्य यह है कि एक ईसाई के लिए अन्य ईसाइयों को हिंदू धर्म के खिलाफ भड़काना बहुत आसान है। यही बात इस्लाम के खिलाफ भड़काने जैसी नहीं है । ईसाई पंथ में इस्लाम के साथ लड़ने के तरीके अलग हैं । लेकिन जब हिन्दू धर्म से लड़ने की बात आती है, तो उन्हें सिर्फ पेगन लिंक और पेगन विचार को जगा देना होता है कि यह सब शैतानी बातें हैं और इन सब बातों को हमने बहुत पहले ही खारिज कर दिया था ।
हिंदुओं पर दो तरह से हमला किया जा रहा हैं । एक ईसाई तरीका है जिसके बारे में मैंने अभी बात की, जैसे कि भड़का कर – हिन्दुओं को मूर्तिपूजक, बहुदेववादी, कई हाथवाले देवताओं को मानने वाले,अजीब देवताओं को मानने वाले और विशेष रूप से बहुत डरावनी देवियों को मानने वाले, प्रकृति पूजा करने वाले – ऐसा बताकर उनके निंदा करना ।
दूसरा तरीका जिसे वामपंथी मार्ग कह सकते हैं, पंथनिरपेक्षता पर आधारित मार्ग है । यह ईसाइयत की नहीं, बल्कि मानव अधिकारों की बात करता है । “मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है, “जाति व्यवस्था” आदि – हिन्दू धर्म को घेरने के यह उनके तरीके हैं । देखने वाली बात है कि किस तरह यह दो पक्ष – दक्षिणपंथी और वामपंथी एक साथ आ जाते हैं – यही मेरी पुस्तक ” ब्रेकिंग इंडिया”/ “भारत विखंडन” का विषय है।
हवाई एक बहुत ही दिलचस्प जगह है और यह ताजा प्रकरण जो मैंने अभी बताया, हवाई में हुआ है। हवाई में ईसाई पंथ सिर्फ 200 साल पुराना है। मतलब यह एक नवीनतम ईसाई क्षेत्र है । इसलिये मूल निवासियों के मन में ईसाई पंथ के आने से पहले के अतीत की स्मृति अभी भी ताजा है । हवाई के मूल निवासी जो वहां के मूल पंथों को मानते हैं, अभी भी ईसाई पंथ से लड़ रहे हैं । यह संघर्ष अभी भी चल रहा है – वे अभी नष्ट नही हुए हैं । मेरा मतलब है कि लोग इसके बारे में बात नहीं करना चाहते हैं, लेकिन अगर आप इन स्थलों पर जायें, और वहाँ के स्थानों को देखें, जहाँ वे अब भी अपने पुराने पंथों को मानते हैं और उनका पालन डरकर, छुपकर करते हैं, तो आप पाएंगे कि उन्होंने संघर्ष अभी भी छोड़ा नहीं है । पेगन पंथों के खिलाफ (ईसाइयत की) लड़ाई अभी भी जारी है, और बहुत सक्रिय है । यह एक जीवंत लड़ाई है, जो चल रही है । इसलिए हिंदू धर्म के खिलाफ दुष्प्रचार कर उस पर विदेशी और पेगन होने का आरोप लगाना आसान है ।
इस संदर्भ में मैं चाहता हूँ कि आप यह बात समझें । आप जब भी पश्चिमी देशों के किसी ईसाई से मिलें – उनमें से करीबन सारे ईसाई हैं – आप उन्हें इस बात की याद दिलाएं कि उनके पूर्वजों का पंथ वास्तव में ईसाई पंथ नहीं था । वे असल में एक साजिश के शिकार हैं जो चौथी शताब्दी के आसपास हुई थी – इस साजिश में एक बहुत आक्रामक ढंग से ईसाइयत का आरम्भ हुआ, जो लगभग एक हजार साल के लिए यूरोप में चलता रहा ।
उनमें से कई लोगों ने वास्तव में ईसाई पंथ को अस्वीकार किया है और वे पहले के अपने पंथ में जाना चाहते हैं, विशेष रूप से महिलाओं की अपने पुराने पंथ में जाने की बहुत इच्छा है क्योंकि उन्हें वह अधिक अपना लगता है । इसलिए यह बात आपके लिये यूरोप के ईसाईयों से चर्चा करने का एक विषय हो सकता है । जब आप उनसे मिलते हैं तो कह सकते है कि अरे आप गोरों का पंथ शुरू से ही ईसाई नहीं है । ईसाई पंथ तो एक मध्य पूर्वी पंथ है जो कि आपने अपनाया है, यह तो एक विदेशी पंथ है । यह बात ऐतिहासिक रूप से सही है और ईसाई इतिहासकारों ने भी इसे स्वीकार किया है ।
इसको मैं कहता हूँ गंभीर अध्ययन की पद्दति को उलट देना । पश्चिम, भारत का बहुत गंभीरता से अध्ययन करता है । हम पश्चिम का उस गंभीरता से अध्ययन नहीं करते । हवाई में घटा प्रकरण जो मैने आपको बताया – अगर भारत में इसी तरह की घटना घटती, किसी के साथ बलात्कार होता है, किसी को मार दिया जाता, या कोई हिंसा होती, या कोई किसी और के खिलाफ एक बयान देता, तब पश्चिमी विद्वान इसे तुरंत मनुस्मृति, रामायण और पुराने ऐतिहासिक बातों के साथ जोड़कर दोष देते और कहते कि यह भारतीय इन पुरातनपंथी बातों को ढोते हैं और वे लोग हर बात की इसी संदर्भ में व्याख्या करने की कोशिश करते।
ये विदेशी एक निश्चित तरीके से भारतीयों के बारे में सोचते हैं जैसा कि उन्हें सिखाया गया है । हमें इस प्रक्रिया को बदलना होगा – जब भी पश्चिम में ऐसी बात होती है तब उसे एक अपवाद के रूप में लेने के बजाय हमें गहरी संस्कृति (deep culture) के संदर्भ में इसकी व्याख्या करने में सक्षम होना चाहिए ।
गहरी पश्चिमी संस्कृति (deep culture) क्या है? अमेरिका और ईसाई पंथ का क्या अतीत रहा है – उनकी क्या पौराणिक कथाएँ रही हैं – इनके बारे में जानना जरुरी है । ऐसी घटनाये क्यों होती हैं? इसके क्या कारण हैं – हमें ये जानना होगा । हमें अमेरिका और यूरोप की घटनाओं की व्याख्या करनी चाहिए – चाहे वो डोनाल्ड ट्रम्प का बढ़ता प्रभाव हो या स्कूल की हिन्दू विरोधी पाठ्यपुस्तक हों । हमें इन घटनाओं की एक पृथक रूप में नहीं बल्कि बहुत गहरी अभिव्यक्ति के रूप में व्याख्या करनी चाहिए।
मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि इस पर विचार करे और कुछ ही दिनों में फिर से आप से बात करने की आशा करता हूँ ।
Pic Credit: hindutva.info