सबरीमाला: ईश्वर और न्यायाधीश

व्याख्यान हिन्दू धर्म

भारतीय न्यायपालिका को अविलम्ब हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान पर शिक्षित करने की आवश्यकता है | यदि वे मंदिरों से संबंधित विषयों और विभिन्न हिंदू प्रथाओं पर निर्णय देते हैं तो उन्हें अधिक समझ होनी चाहिए |

अन्य सभी की तुलना में हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान के बारे में जो विशिष्ट बात है वह यह कि एक ही ईश्वर, इस विश्व में एक व्यक्ति के रूप में अनंत रूपों में प्रकट होता है | इसलिए किसी मंदिर में रखी मूर्ती एक जीवित भगवान है जिसके पास हम जाते हैं और पूजा करते हैं | यह वहां बैठे एक व्यक्ति जैसा है और मैं उनके साथ बातचीत कर रहा हूँ |

यह स्वर्ग में बैठे किसी तत्त्व का प्रतीक नहीं है | इब्राहिमी धर्मों में ईश्वर सदैव ब्रह्मांड के बाहर रहता है | वो ब्रह्माण्ड के बाहर है जबकि हम मस्जिद, गिरजाघर या यहूदी उपासनास्थल में उसकी उपासना कर सकते हैं | ईश्वर का प्रतीक यदि कुछ है तो बस यह ध्यान में रखना कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं | ईश्वर वास्तव में वहाँ नहीं है |

परन्तु हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में ईश्वर ब्रह्मांड में अवस्थित है | एक मूर्ति पवित्र है जिसका अर्थ है कि ईश्वर वास्तव में उपस्थित है | ईश्वर को उपस्थित कराने के लिए प्राण-प्रतिष्ठा नामक नामक एक विशिष्ट प्रक्रिया की जाती है जब भगवान् को स्थापित किया जाता है | जब तक प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती है, और देवता को आकर इसे अपने निवास के रूप में स्वीकारने के लिए आमंत्रित नहीं किया जाता है तब तक यह पत्थर का एक टुकड़ा रहता है | वह विशेष देवता अब अपने नए घर में रहना आरम्भ कर देते हैं |

प्रत्येक देवता का एक भिन्न व्यक्तित्व, जीवन शैली, प्रवृत्तियां, रूचि और संपर्क का प्रिय माध्यम होता है | वे देवी या देवता हो सकते हैं | प्रत्येक देवी या देवता का अपना गुण होता है और किसी व्यक्ति के दर्शन के लिए अपनी निर्धारित विधि होती है |

दर्शन का अर्थ है, मैं और देवता, हम एक बातचीत कर रहे हैं, एक जीवित व्यक्ति जैसा | किसी चर्च में आप दर्शन नहीं कर रहे हैं | न ही किसी मस्जिद में | आप ईश्वर या अल्लाह से प्रार्थना कर रहे हैं जो वहां नहीं अपितु कहीं और है | अल्लाह स्वर्ग में स्थित है |

यह समझने के लिए कि मंदिर में क्या होता है, इसका अस्तित्व क्यों है, दर्शन का उद्देश्य, और आप किसका दर्शन कर रहे हैं जो मैंने कहा वह न्यूनतम आवश्यक ज्ञान है जो कि किसी भी न्यायाधीश को हमारी परंपरा के साथ छेड़-छाड़ करने से पहले होना चाहिए |

कोई मंदिर किसकी संपत्ति है ?

यह किसी राज्य की या आपकी या मेरी नहीं है, अपितु उन लोगों की है जो सम्मिलित होकर इस देवता को वहां रहने के लिए आमंत्रित करते हैं ताकि वे दर्शन कर सकें | यह एक भक्त के रूप में मेरे और देवता जिनका मैं दर्शन कर रहा हूँ, के बीच का विषय है |

यदि हम कहते हैं, कि मैं यह फल लाता हूँ, तो मैं यही करूंगा | किसी देवता का सप्ताह के कुछ दिनों में निर्धारित विधि हो सकता है या कुछ खाद्य प्रतिबंध या वस्त्रों की आवश्यकता हो सकती है | उस मूर्ति के लिए जो भी विशिष्ट करने योग्य या न करने योग्य होता है हम इसका सम्मान करते हैं क्योंकि यही हमारी परंपरा है |

हर मूर्ति अद्वितीय है और सभी देवताओं पर एक समान संस्कृति लागू नहीं होती है | यदि आप नहीं समझते हैं और इसका सम्मान नहीं करते हैं, तो आप अनिवार्य रूप से हिंदू धर्म का अपमान कर रहे हैं | प्रत्येक धर्म की अपनी विशिष्ट आवश्यकताएं होती हैं | “सही क्या है” इसके बारे में अपना विचार थोपने के स्थान पर आपको किसी धर्म का उसकी शर्तों पर सम्मान करना होगा | यह इस न्यायाधीश की आस्था नहीं है, अपितु वहां पूजा करने वाले लोगों की है | न्यायाधीश को पर्याप्त रूप से सच्चरित्र और विनम्र होना चाहिए ताकि आस्था सम्बन्धी अपने विचारों को पृथक कर सके और इससे जुड़े लोगों की आस्था के अनुसार न्याय कर सके |

यह सैकड़ों वर्षों से उनका निवेश है | वे इस मंदिर के रखरखाव के लिए दान करते रहे हैं | यह आगम और निर्धारित परंपरा के अनुसार उनकी मूर्ति और पूजा करने का अधिकार है | इसलिए, ऐसे मंदिर को धर्मनिरपेक्ष, ऐतिहासिक स्थल या संग्रहालय के रूप में देखना धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन है | यह किसी जीवित देवता के बिना एक मृत स्थान है | यह किसी का निवास स्थान है जिसकी हम पूजा करते हैं | आप इससे पवित्रता को दूर नहीं कर सकते हैं और इसे एक कला या मूर्ती नहीं मान सकते हैं | यह कोई तामाशा या पर्यटन स्थल या मनोरंजन नहीं है |

भारतीय न्यायपालिका को इस महत्वपूर्ण बिंदु को समझने की आवश्यकता है | उन्हें आमंत्रित करना चाहिए या तो अखाड़ा परिषद को या हिंदू धर्माचार्य या किसी आधुनिक गुरु जैसे आर्ट ऑफ लिविंग या चिन्मय मिशन को, शिक्षण के लिए | या इस्कॉन या हिंदू आध्यात्मिक संगठन को, जो प्राथमिक रूप से भक्ति में संलग्न हो, को आना चाहिए और उन्हें शिक्षित करना चाहिए |

मैं आश्चर्यचकित हूँ जब घमंडी न्यायाधीश निर्णय लेते हैं, महत्वपूर्ण गुरुओं और आचार्यों के विशेषज्ञ राय के बिना | वे किसी शंकराचार्य को बुला सकते थे | मेरा अनुरोध यह है कि भारतीय न्यायपालिका को समझ में आनी चाहिए – राज्य से धर्म की विभक्ति और हिंदुओं के धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करना | परन्तु हिंदुओं ने बहुत लंबे समय से इस प्रकार के हस्तक्षेप का विरोध नहीं किया है और अब इसका समय आ गया है |

आप सभी को नमस्ते | कृपया इस संदेश का प्रचार करें अपने राजनेताओं, धार्मिक नेताओं, मीडिया के लोगों को और उन्हें सम्मिलित करें |

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