संस्कृति और आर्थिक सशक्तीकरण – मोहनदास पाई के साथ चर्चा

भारतीय महागाथा व्याख्यान

राजीव मल्होत्रा: संस्कृति और अर्थव्यवस्था परस्पर संबंधित हैं | क्या आपको लगता है कि वैश्वीकरण, संयोजकता (कनेक्टिविटी), पश्चिमीकरण, निगमीकरण और सेंसेक्स केंद्रित अर्थव्यवस्था ने हमारी संस्कृति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है ?

मोहनदास पाई: हमारी संस्कृति पर इसका प्रभाव इस सीमा तक है कि हम मानते हैं कि पश्चिम हमसे श्रेष्ठतर है | क्यों ? क्योंकि हम दरिद्र हैं | उदारीकरण (खुलने) के बाद चीन ने पश्चिम की नकल करना आरम्भ कर दिया, यह सोचकर कि वे श्रेष्ठतर हैं | लोगों ने पश्चिमी नाम अपनाया और विभिन्न काम किये | अब वे धनवान हैं और कहते हैं कि वे स्वाभिमानी चीनी हैं | इसलिए उन्होंने अपनी पहचान में निवेश करना आरम्भ कर दिया है और अपने मूल की ओर वापस जा रहे हैं | वे मिंग पुष्पपात्रों का वापस क्रय कर रहे हैं | जापानी आज अपनी विरासत पर गौरवान्वित हैं क्योंकि विनाशकारी युद्ध के बाद वे आर्थिक रूप से सशक्त हैं |

भारतीय दरिद्र हैं | इसलिए हम पश्चिम की ओर देखते हैं और सोचते हैं कि श्वेत श्रेष्ठतर हैं | यहां तक कि जब एक श्वेत वेटर सूट पहनकर किसी कमरे में प्रवेश करता है तो हमारे लोग खड़े हो जायेंगे | हम दरिद्र हैं और हमें लगता है कि त्वचा के रंग का प्रभाव पड़ता है | उस सीमा तक अर्थशास्त्र संस्कृति को प्रभावित करता है |

पर सामान्य लोग जो वैश्वीकरण से प्रभावित नहीं हुए हैं, हमारी संस्कृति का सम्मान करते हैं क्योंकि वे उस संस्कृति को जीते हैं | भारत की संस्कृति एक जीवंत संस्कृति और एक व्यक्ति के जीवन की अभिव्यक्ति है | यह प्रदर्शन के लिए नहीं है | यह हमारे जीवन, हमारे गीत, हमारे लोरियों, हमारे वस्त्रों, और भोजन में परिलक्षित होता है | यह सहजीवी और प्रकृति के साथ सामंजस्य में है | जैसे-जैसे हम आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं, हमें अपनी जड़ों को पुनः ढूंढना चाहिए और पश्चिम की नक़ल पर विराम लगाना चाहिए |

मैं लोगों से पूछता हूँ कि एक गर्म जलवायु में वे सूट-टाई क्यों पहनते हैं | जब मैं अपने कुर्ता में यात्रा करता हूँ और हवाई अड्डे पर जाता हूँ तो लोग मुझे हीन दृष्टि से देखते हैं या सोचते हैं कि मैं राजनेता हूँ | जब मैं व्यापार सम्बन्धी बैठक में जाता हूँ तो लोग सोचते हैं कि मैं एक विदूषक हूँ | क्योंकि मैं टाई नहीं पहनता | हम टाई क्यों पहनें ? हम पश्चिम के दासों की भांति व्यवहार क्यों करते हैं ?

आप जो हैं वही रहें | आप एक सफल भारतीय हैं | अपनी संस्कृति को जियें, अपना भोजन करें और जो चाहते हैं करें | पश्चिम से सर्वश्रेष्ठ लें और जितना संभव हो, अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ पश्चिमी शिक्षा दें | लेकिन भारतीय के रूप में सुखी और सुरक्षित रहें | आपको अपनी संस्कृति का सम्मान करना सीखना चाहिए और इसके लिए आपको सांस्कृतिक कलाकृतियों की आवश्यकता है | हमारे पास बौद्धिक होने चाहिए जो इस मिट्टी में जन्मे हों, परंपरा में ओत-प्रोत हों और हमें संस्कृति को समझा सकते हों |

महाभारत और रामायण मनुष्यों के सबसे महान महाकाव्य हैं | संभवतः इलियड और ओडिसी कुछ सीमा तक तुलनीय हो सकते हैं | ग्रीक के इलियड और ओडिसी पश्चिमी सभ्यता के लिए आधार बन गए | चीन में संभवतः यह पुस्तक “जर्नी टू द वेस्ट” है जो पश्चिम में जाने वाले एक बौद्ध भिक्षु के बारे में है | या “द थ्री किंगडम्स” जो उस समय के बारे में है जब चीन तीन साम्राज्यों के बीच युद्ध के बाद एकीकृत हो गया था | परन्तु मानवीय भावनाओं, व्यापकता, करुणा और मानव जाति के दुविधाओं के सन्दर्भ में रामायण और महाभारत से कुछ भी तुलनीय नहीं है |

उसमें सबकुछ है, तो हम उन्हें अपने बच्चों को क्यों नहीं सिखाते ? यह संस्कृति के बारे में है, न कि धर्म के बारे में | लेकिन छद्म-धर्मनिरपेक्षवादी इसका विरोध करेंगे क्योंकि उन्होंने धर्मनिरपेक्षता को नहीं समझा है | राजीव, ऐतिहासिक रूप से धर्मनिरपेक्षता एक ऐसे राज्य के प्रतिरोध के रूप में उभरी जहां चर्च और राजा लोगों का दमन करते थे |

राजीव मल्होत्रा: सही कहा |

मोहनदास पाई: कैथोलिक चर्च के पोप राजा का अभिषेक करते थे जो पवित्र हो जाता था क्योंकि वह ईश्वर से सत्ता प्राप्त करता था |

राजीव मल्होत्रा: बिलकुल |

मोहनदास पाई: प्रोटेस्टेंट आंदोलन आरम्भ हुआ | वे भी ईसाई थे परन्तु उन्होंने पोप की सत्ता को नहीं स्वीकारा और बाइबल के व्यक्तिगत पठन में विश्वास किया | उन्होंने चर्च और राज्य के गठबंधन से लड़ाई लड़ी और कहा कि उन्हें पृथक होना चाहिए | इसका यह अभिप्राय नहीं था कि गैर-ईसाईयों को पैठ बनाने दिया गया | यह केवल ईसाई धर्म के लिए था |

राजीव मल्होत्रा: सही बात |

मोहनदास पाई: ईसाई धर्म के विभिन्न संप्रदायों ने विरोध किया और यह परिणाम आया | इसका मुझसे, हमसे या हमारी संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है | पश्चिमी देशों में वे अभी भी स्कूल में बाइबल पढ़ते हैं क्योंकि यह उनकी संस्कृति है | तो फिर हमें अपने बच्चों को रामायण और महाभारत क्यों नहीं पढ़ाना चाहिए ? यह हमारी परंपरा और मानवता की एक महान विरासत है | यह बताता है कि मनुष्यों को कैसे जीना चाहिए | हमें यह करना चाहिए |

राजीव मल्होत्रा: हाँ

मोहनदास पाई: और हमें धर्मनिरपेक्षता पर अटके नहीं रहना चाहिए | राजीव ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज में चर्च-सम्बन्धी विद्यालय हैं |

राजीव मल्होत्रा: हाँ |

मोहनदास पाई: स्टैनफोर्ड, हार्वर्ड और सभी स्थानों पर हैं |

राजीव मल्होत्रा: उनके यहाँ डिविनिटी स्कूल हैं |

मोहनदास पाई: और उन्हें राज्य द्वारा वित्त पोषित किया जाता है |

राजीव मल्होत्रा: हाँ |

मोहनदास पाई: ब्रिटेन में, राजीव, रानी चर्च और राज्य की मुखिया है | हॉउस ऑफ लॉर्ड्स में बिशप हैं और वहां चर्च के शीर्ष लोग इकट्ठा होते हैं | डेविड कैमरून ने कहा था “हम एक ईसाई देश हैं |” यदि आप कहते हैं कि भारत हिंदू मूल्यों पर बना है, हम एक हिंदू राष्ट्र हैं, तो लोग आपकी आलोचना करेंगे और आपको धर्मांध कहेंगे | क्योंकि यह एक सभ्यता है और हर कोई उस पर विश्वास करता है | हमारे व्यक्तिगत जीवन में हम स्वतंत्र हैं और राज्य को किसी भी धर्म को थोपना नहीं चाहिए | यानी यह एक सीमित बात है जिसे अवश्य लागू करना चाहिए | परन्तु ये सांस्कृतिक कलाकृतियां हमारी सभ्यता की संपत्ति हैं | यदि किसी दूसरे धर्म का कोई इसे नहीं चाहता तो यह ठीक है | लेकिन उन्हें इसका अंग होना चाहिए और सीखना चाहिए | मैं एक इसाई विद्यालय गया था जहां ईसाइयों के लिए बाइबिल की अनिवार्य कक्षाएं थीं परन्तु हमारे लिए नहीं |

राजीव मल्होत्रा: ठीक |

मोहनदास पाई: इसके स्थान पर हमारे लिए नैतिक विज्ञान था जो कुछ सीमा तक तटस्थ था |

राजीव मल्होत्रा: मैंने भी पढ़ा था

मोहनदास पाई: यह ठीक है, लेकिन अब उन्होंने पाठ्यचर्या से नैतिक विज्ञान को हटा दिया है | इसलिए जब तक हम अपने बच्चों को नैतिक विज्ञान और सांस्कृतिक शिक्षा नहीं देते, तब तक वे अपने लोकाचारों से जुड़े भारतीय के रूप में कैसे उभरेंगे ?

राजीव मल्होत्रा: सही कहा | धर्मनिरपेक्षता एक झूठी आयात है क्योंकि हम जिसका पालन करते हैं वह उससे बहुत भिन्न है जो पश्चिम में व्यवहार में लाया जाता है |

मोहनदास पाई: पर राजीव आपको यह समझना पड़ेगा कि यह एक राजनीतिक मुद्दा है | गांधीजी की हत्या के बाद नेहरू हिंदू-विरोधी हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि हिंदू-समर्थक सत्ता में आ जाएंगे | हिंदू महासाभा को बहिष्कृत कर दिया गया क्योंकि उनके पास एक भिन्न विचार था | यानी एक विरोधी गाथा आरम्भ की गई जिसमें तब वामपंथी जुड़ गए और यह राजनीतिक बन गया | वाम सफल नहीं हो सका क्योंकि भारत अत्यधिक धार्मिक है और विभिन्न जाति के रूप में संगठित है |

राजीव मल्होत्रा: बिलकुल |

मोहनदास पाई: हमारी व्यवस्था सामंतवादी नहीं है | पश्चिमी सामंतवाद में एक जाति अन्य सभी पर हावी थी | फिर जब कारखानों आये तो एक श्रमिक वर्ग था | हमारे पास कभी भी श्रमिक वर्ग नहीं था | हमारे पास शिल्पकार और बुनकर थे | हमारे पास रूस की भांति एक औद्योगिक वर्ग नहीं था | उनके लिए यह सामंती व्यवस्था के प्रति प्रतिक्रिया थी जो हमारे यहाँ नहीं थी | इसलिए वामपंथी असफल रहे और हिंदू धर्म उनका सबसे बड़ा शत्रु बन गया |

राजीव मल्होत्रा: हाँ

मोहनदास पाई: नेहरू और इंदिरा गांधी से निकटता का उपयोग करते हुए, वामपंथी शिक्षा प्रणाली पर हावी हैं जिन्होंने नूरुल हसन के अधीन हमारे इतिहास को फिर से लिखा और हमारी संस्कृति की भर्त्सना की | उन्होंने हमें यह अनुभव कराया कि हमारी संस्कृति धर्मनिरपेक्षता-विरोधी है | हमारी सोच गड़बड़ है और हमें इसे ठीक करने की आवश्यकता है |

हमें अपने बच्चों को हमारे सभी महान सांस्कृतिक कलाकृतियों को अवश्य पढ़ाना होगा | पश्चिम अपने बच्चों को इलियड और ओडिसी सिखाता है | ये महाकाव्य यवन देवताओं के बारे में हैं लेकिन कोई भी धर्म को प्रचारित करने का दुखड़ा नहीं रोता है | यानी विवाद अनावश्यक है |

एक और उदाहरण अयोध्या है जो हिन्दुओं के लिए पवित्र भूमि है जैसे मक्का और मदीना मुसलमानों के लिए, वैटिकन ईसाइयों के लिए और यरूशलम तीनों अब्राहमिक धर्मों के लिए है | उनसे कभी भी उनके पवित्र भूमि के बारे में पूछताछ नहीं की जाती है | वैटिकन नगर में जब यहूदियों ने भूमि क्रय करने का प्रयास किया तो पोप ने उन्हें रोक दिया | मक्का-मदीना में हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है | कोई भी इसकी आलोचना नहीं करता है | यरूशलम में वे एक दूसरे की भूमि क्रय नहीं कर सकते हैं | जबकि अयोध्या में कोई भी कुछ भी करने में सक्षम है |

अयोध्या में हमारे पास एक भव्य मंदिर क्यों नहीं होना चाहिए ? यह हमारी पवित्र भूमि है और हमारे अस्तित्व और विश्वास के केंद्र में है | लोगों को मक्का मदीना में विश्वास है क्योंकि पैगंबर वहां से आये थे | उसपर कोई प्रश्न नहीं करता है | लोग अपने धर्मों के ऐतिहासिक महत्व के कारण यरूशलम जाते हैं | लोग वैटिकन क्यों जाते हैं ? पोप के कारण | कोई भी इन पर प्रश्न नहीं करता है | लेकिन हमारे सम्बन्ध में इसे दमनकारी समझा जाता है | हमारे देश में और हमारी पवित्र भूमि में हमें इतने सारे कामों को करने से रोका जाता है |

राजीव मल्होत्रा: हां

मोहनदास पाई: मस्जिद को तोड़ना त्रुटिपूर्ण था क्योंकि भारत विधि के शासन द्वारा शासित है | जिन्होंने अपराध किया, उन्हें अवश्य विधिसम्मत दण्ड मिलना चाहिए | लेकिन अब जब उन सभी बातों का ध्यान रखा गया है, तो हमें वामपंथियों को छोड़कर भारतीयों के विशाल बहुमत के लिए मंदिर बनाना चाहिए, यह हमारी पवित्र भूमि है |

राजीव मल्होत्रा: हाँ बिल्कुल |

मोहनदास पाई: यह ठीक है | कुछ नहीं होगा | हमारा देश नहीं टूटेगा | मुस्लिमों की अपनी पवित्र भूमि देश के बाहर है | मक्का और मदीना में भी, इस्लाम के कई पवित्र स्थल, पैगम्बर के पवित्र मस्जिद समेत अन्य कब्रिस्तानों को भी सड़क निर्माण के लिए हटा दिया गया है | ऐसा नहीं है कि यह बहुत पवित्र है | हम इन सब से अवगत हैं | लेकिन हम अभी भी क्यों …?

राजीव मल्होत्रा: अयोध्या इस्लाम के शीर्ष 100 या शीर्ष 500 पवित्र स्थानों में से एक भी नहीं है | यह इस्लाम के मानचित्र पर भी नहीं है, क्योंकि यह उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है |

मोहनदास पाई: यह महत्वपूर्ण नहीं है | फिर भी यह प्रकट कराया जाता है कि यदि वहां एक मंदिर बनाया गया तो भारत डूब जाएगा | भारत यहाँ 5000 वर्षों से है और 5000 वर्षों तक रहेगा | आप और मैं जायेंगे, परन्तु भारत नहीं | यह एक बड़ा देश रहेगा |

इस साक्षात्कार के अगले खंड में मोहनदास पाई मानस की लड़ाई जीतने पर चर्चा करेंगे | बहुत ही रोचक |

Featured Image Source: – http://www.newindianexpress.com/cities/bengaluru/2016/dec/19/we-need-to-allow-criticisms-in-religion-1550663.html

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