बुद्धिजीवी और आरएसएस/मोहन भागवत

भारतीय महागाथा भारतीय सभ्यता विशिष्ट व्याख्यान

राजीव मल्होत्रा: मैं दो विषयों पर आपके विचार जानना चाहूँगा | एक है, हिंदुओं को अधिक बौद्धिक बनाना | और दूसरा है, बौद्धिकों को अधिक हिंदू बनाना | पहली स्थिति के लिए हमें खुला मन रखने वाले बौद्धिकों को ढूँढ़ना होगा | कई अच्छे हिंदू संघ के बारे में दोषपूर्ण धारणा रखते हैं | मेरे जैसे लोग भी, जो दशकों से हिंदुओं के लिए लड़ते आ रहे हैं, संघ को लेकर दोषपूर्ण विचार अपनाए हुए थे | आप कैसे ऐसे लोगों के साथ जुड़ सकते हैं और इस प्रकार का खुला मन रखने वाले बौद्धिकों के साथ अधिक सहयोग कर सकते हैं, ताकि वे दृढ़ता के साथ हमारी तरफ झुक जाएँ ? यह बौद्धिकों को अधिक हिंदू बनाना है | दूसरा हे, हिंदुओं को अधिक बौद्धिक बनाना | जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों के बौद्धिक स्तर को कैसे उठाएँ, ताकि वे विश्व स्तर के बौद्धिक बन सकें ? कैसे गली का क्रिकट खेलने वाली टीम को अंतर्राष्ट्रीय ओडीआई स्तर का बनाएँ ? इसके लिए भिन्न तरीके का प्रशिक्षण आवश्यक है | इन दोनों मार्गों के बारे में आपकी क्या सोच है ?

मोहन भागवत: हाँ, ये दोनों ही आवश्यक हैं | तभी विश्व में चल रही वैचारिक प्रवाह की दिशा परिवर्तित की जा सकेगी | बौद्धिक लोग हिंदू धर्म को अपमानजनक दृष्टि से देखते हैं | इसे परिवर्तित करना होगा |

राजीव मल्होत्रा: हाँ |

मोहन भागवत: इसलिए हमें खुला मन रखने वाले और विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे विशेषज्ञों से संपर्क करना होगा और उन्हें सही सूचना देनी होगी ताकि वे इस सूचना के आधार पर स्वयं किसी निर्णय पर पहुँच सकें | इसके साथ-साथ हमें स्वयं भी बौद्धिक सामग्री उत्पन्न करनी होगी |

राजीव मल्होत्रा: हाँ | जानकार लोगों को सूचना को सही रीति से प्रस्तुत करना होगा | यह इसलिए क्योंकि हर समूह का जुड़ने, बात करने और वाद-विवाद करने का अपना ढंग होता है |

मोहन भागवत: हाँ | इसीलिए हमारे यहाँ प्रज्ञा प्रवाह जैसी गतिविधियाँ चलती हैं | हम अपने बौद्धिकों को प्रशिक्षित कर रहे हैं | हम जन-सभाओं में अन्य बौद्धिकों को भी आमंत्रित कर रहे हैं, और उनके समक्ष अपने विषयों को रख रहे हैं | हम दोनों इन विषयों पर अपने-अपने विचार रखते हैं और फिर एक ऐसा प्रारूप तैयार किया जाता है, जो बाहर की विश्व में टिक सकता है | हम यह पिछले दो वर्षों से करते आ रहे हैं, और यह काम बढ़ता जा रहा है |

राजीव मल्होत्रा: वेद पाठशालाओं के संबंध में, पंडितों के बच्चे और उनके बच्चे, इस परंपरागत काम को करने के स्थान पर गूगल या अमेज़न जैसी कंपनियों के लिए काम करने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं | अब इसमें दोषपूर्ण कुछ नहीं है और सभी को हमारे बाज़ार-आधरित अर्थव्यवस्था में स्वयं निर्णय करने का अधिकार है | परन्तु इससे बौद्धिक जनों को तैयार करने के लिए बनी परंपरागत प्रणालियाँ अब पनप नहीं पा रही हैं और उनमें कोई पढ़ने को तैयार नहीं हो रहा है | कई लोगों ने मुझसे कहा है कि वे जो काम पीढ़ियों से करते आ रहे हैं, उनके बच्चे उस काम से बिलकुल ही भिन्न और नया कोई काम करना चाह रहे हैं | समय बदल रहा है और अब हमारे लिए अपनी परंपरागत प्रणालियों से पर्याप्त बुद्धिजीवि तैयार करना कठिन हो रहा है, और हमें दूसरे स्थानों से लोग लाने की आवश्यकता हो रही है |

मोहन भागवत: पिछले एक हजार वर्ष से हिंदुओं में बौद्धिक क्रियाकलाप ठहर सा गया है | वह अपना बचाव करने में ही पूरी तरह संलग्न हो गया था | इसलिए वे बाहर की ओर नहीं फैल रहे थे, अपने आपको विश्व के सामने प्रस्तुत नहीं कर रहे थे, और विश्व को सही दिशा में ले जाने में अपना योगदान नहीं दे रहे थे | अचानक हम एक नए विश्व में आ गए हैं |

राजीव मल्होत्रा: हम उसके लिए तैयार नहीं हैं | यह कुछ ऐसा है कि हम अच्छे समाचार के लिए तैयार नहीं थे पर वह अचनाक हम पर आ पड़ा है |

मोहन भागवत: सचेत रहने का प्रशिक्षण गुरुकुलों से ही आरम्भ हो जाना चाहिए | इसलिए कुछ महीने पहले उज्जैन की एक गुरुकुल परिषद में यह निर्णय लिया गया कि गुरुकुलों में परंपरागत शिक्षण और नए प्रकार का शिक्षण साथ-साथ चलना चाहिए | विज्ञान और आध्यात्मिकता एक दूसरे के विरोध में क्यों खड़े हों ?

राजीव मल्होत्रा: हाँ |

मोहन भागवत: हमने अपने मार्गों से कई वैज्ञानिक बातों को सिद्ध किया है | हमें यह दिखाना होगा कि कैसे वैदिक विवेक और वैज्ञानिक निष्कर्ष एक-दूसरे के साथ मेल खाते हैं | हलाँकि उन दिनों वैसी प्रयोगशालाएँ और वैज्ञानिक नहीं थे, जिस प्रकार के आज हैं, पर अध्ययन करने का मार्ग दोनों स्थानों पर समान था |

राजीव मल्होत्रा: हाँ! पश्चिम आयुर्वेद से कई बातों की नकल कर रहा है | उसने पिछले कुछ सदियों में हमारे गणित से बहुत कुछ नकल करके सीखा है |

मोहन भागवत: खगोलशास्त्र में भी |

राजीव मल्होत्रा: बहुत कुछ सीखा है | अब योग-विद्या की बारी है | भारत ज्ञान का निर्यातक रहा है | नलंदा के समय में विश्व भर में हमें मान्यता मिली हुई थी और लोग हमारा सम्मान करते थे | अब वे चोरी-चकारी पर उतर आए हैं, और हमारा बिलकुल सम्मान नहीं करते हैं | अब वे हमारे ज्ञान को चुराते हैं और हम पर सीना-ज़ोरी करते हुए दोषपूर्ण चीज़ों के लिए हमें अपमानित करते हैं |

मोहन भागवत: एक बात और है, आज सभी बातों पर एकाधिकार स्थापित किया जा रहा है, ज्ञान पर भी | हम ज्ञान उत्पन्न करने वाले लोग हैं और आपको हमारी बात माननी होगी | इस प्रकार की प्रवृत्ति भारत में अज्ञात थी |

राजीव मल्होत्रा: हाँ |

मोहन भागवत: हम ज्ञान बाँटते थे |

राजीव मल्होत्रा: हम खुला मन रखते थे |

मोहन भागवत: तो अब हमारा सामना पहली बार इस प्रकार की बंद प्रवृत्ति से हो रहा है | हम इस आघात से उभर रहे हैं और अपना बचाव करने के लिए कमर कस रहे हैं |

राजीव मल्होत्रा: संपर्क करने का संघ का मार्ग है घर-घर जाना, मोहल्लों के स्तर पर काम करना, सामूहिक भोजन आदि में सम्मिलित होना | यह उस परिस्थिति में महत्व रखता था जब लोगों का सामाजिक जीवन स्थानीय स्तर का होता था | पर अब हमारे सामाजिक जीवन में भौतिक दूरी बहुत बढ़ गई है | लोग लंबी दूरियाँ तय करते हैं | वे इंटरनेट पर एक-दूसरे से मिलते हैं | इसलिए व्यक्ति के सामाजिक लेन-देन का क्षेत्र बहुत बड़ा हो गया है | क्या आपको लगता है, घर-घर जाकर काम करने का मार्ग इस नए युग में भी चल सकता है या हमें लोगों से संपर्क करने के नए मार्गों की आवश्यकता है, जैसे इंटरनेट पर या लंबी दूरी पर संपर्क ?

मोहन भागवत: यहाँ दो भिन्न-भिन्न बातें हैं | लोगों से संपर्क करना एक बात है | पर उनके प्रवृत्ति को परिवर्तित करना दूसरी बात है | लोक संग्रह और लोक संपर्क एक बात है | लोक संस्कार इसका अगला चरण है | जब संस्कारी लोगों को सामाजिक जीवन में लगाया जाता है, तब वह लोक-योजन बन जाता है | लोक संपर्क के लिए हमें विश्व के साथ-साथ परिवर्तित होना होगा, नए माध्यम और तकनीकें अपनानी होंगी, जैसे इंटरनेट | अब हम इंटरनेट से भी लोगों को सदस्य बनाते हैं | हमारी वेबसाइट में ‘संघ से जुड़ें’ बटन है | हम अपनी पहुँच की सीमा को बढ़ाने के लिए इस प्रकार की तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं | अभी हाल में संघ ने शिक्षक वर्ग के समापन समारोह को फेसबुक से विश्व भर में प्रसारित किया था | हाँ हम अपनी पहुँच की सीमा को बढ़ाने के लिए यह सब कर रहे हैं | पर हमारा वास्तविक काम मनुष्य को गढ़ना है जिसके लिए निजी रूप से आमने-सामने का संपर्क आवश्यक है, और यह चलता रहेगा | पर इन सबमें हमें वृद्धि करने की आवश्यकताहै |

राजीव मल्होत्रा: आप सही कह रहे हैं | व्यक्तिगत संपर्क में प्राण शक्ति का जो विनिमय होता है, वह दूर के संपर्कों में नहीं हो पाता है | दूर से संवाद संभव है पर प्राण शक्ति का विनिमय नहीं |

मोहन भागवत: मनुष्यों को गढ़ने का मार्ग हर स्थान पर समान है, यहाँ तक कि प्रबंधन और नेतृत्व में भी | आप देखेंगे कि इन सबमें ये बातें हैं |

राजीव मल्होत्रा: समूह में व्यक्तियों के बीच की अंतर्क्रियाएँ और एक-दूसरे को पसंद या नापसंद आना, इत्यादि के लिए निकटता की आवश्यकता होती है |

मोहन भागवत: यह सब चलते रहना चाहिए | पर पहुँच की अपनी सीमा को बढ़ाने और काम करने की अपनी गति बढ़ाने के लिए हमें आधुनिक प्रौद्योगिकी का भरपूर उपयोग करना होगा |

राजीव मल्होत्रा: भारत की 100 प्रतिशत जनसँख्या में से कुछ 30 प्रतिशत दृढ़तापूर्वक हिंदू समर्थक है और वह धर्म के लिए सब कुछ दाँव पर लगाने के लिए तैयार है | यह समूह अपने हिंदू होने को दिवाली पर कार्ड भेजने जैसे कामों तक सीमित नहीं रखता है, अपितु वह पूर्ण रूपेण समर्पित और दृढ़ है | एक अन्य 20 प्रतिशत बिलकुल दूसरे छोर पर है, वह पूर्णतः हिंदू-विरोधी है, और इनके साथ बात करना अनुपयोगी है |

बचा हुआ 50 प्रतिशत भ्रमित, भटका हुआ, और अवसरवादी है और वह इन दोनों छोरों के बीच झूलता रहता है | यह समूह हमारे लिए सबसे बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है | क्योंकि जो पूर्णतः हिंदू-विरोधी हैं, वे अपना दृष्टिकोण नहीं परिवर्तित करने वाले हैं | जो पहले ही हमारे साथ हैं, उन्हें तो केवल और सशक्त करने की आवश्यकता है | पर जहाँ तक हमारे विचारों को फैलाने का संबंध है, यह 50 प्रतिशत जनसँख्या सबसे अधिक महत्व की है | इसके लिए ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो उनकी ही शर्तों पर, उनकी ही भाषा में, उनकी ही जीवन शैली अपनाते हुए उनके साथ जुड़ सकते हैं | अच्छा संवाद तब शुरू होता है जब हम पहले उस व्यक्ति के परिवेश में अपने को डुबो लेते हैं, और फिर धीरे-धीरे उसे अपनी ओर ले आते हैं | इसके लिए ऐसे लोग चाहिए जो उनके पास जा सकें | यह एक बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि विश्व अचानक परिवर्तित हो गई है |

मोहन भागवत: नहीं, ऐसा नहीं है | हम इसके अभ्यस्त हो चुके हैं | यह शिक्षण के समान है और शिक्षण में शिक्षक को छात्र के स्तर पर उतर आना होता है, तभी वह छात्र को ऊपर उठा सकेगा | शाखा में भी हम यही करते हैं | हम उनके साथ उनके स्तर पर जुड़ते हैं | हम उनके सामने हमारे विषयों को रखते हैं, ताकि वे उन्हें अपनी भाषा में समझ सकें और धीरे-धीरे उन्हें हमारे विचारों के निकट लाते हैं | चूँकि हम यह हर दिन करते आ रहे हैं, हम नई परिस्थितियों के लिए शीघ्र अनुकूलित हो जाते हैं |

राजीव मल्होत्रा: शाखाओं का पारंपरिक मार्ग अपने स्थान पर है | क्या आपको लगता है कि शाखाओं में बौद्धिक स्तर संतोषजनक है ? क्योंकि आजकल के युवा-जन बहुत प्रश्न करते हैं | वे सब बातों के लिए साक्ष्य और प्रमाण चाहते हैं | वे आँख मूँदकर किसी की बात को यों ही नहीं मान लते हैं | बल्कि वे सत्ता के लोगों के विचारों को नित्य चुनौती देते हैं | क्या आपको लगता है कि शाखाएँ बौद्धिक रूप से परिवर्तित हो रहे परिवेश में युवाओं के रुझान के साथ-साथ चल रही हैं ?

मोहन भागवत: हमारा मार्ग आँख मूँद किसी से कुछ भी मनवाने का नहीं है | ऐसा नहीं है कि हम कुछ कहते हैं और सब लोग उसे मान लेते हैं | यह मेरा अनुभव है | आप स्वयं भी अनुभव कर लें | फिर अपने निष्कर्ष पर पहुँचें | व्यक्ति इस बौद्धिक प्रक्रिया से गुजरता है | जब वह प्रश्न करता है, तो हमें उनके प्रश्नों का उत्तर देना होता है | वह इस अनुभव को दैनिक जीवन में परखता है | इसके बाद ही वह हम पर विश्वास करता है | इसके बाद ही वह कहता है कि मैं आपके कहे अनुसार करूँगा | अनुसरण पहले नहीं आता है | वह स्वयं किसी निष्कर्ष पर पहुँचने का परिणाम होता है | व्यक्ति स्वयं कहता है कि मैं वैसा करूँगा | वह वैसा करने का निर्णय लेता है | ऐसा नहीं है कि हम उससे वैसा करने को कहते हैं |

हम केवल यह कहते है, आप शाखा में आएँ | पर कोई भी हमारे कहने भर से शाखा में नहीं आ जाता है | हर बार जब वह आता है, उसे कुछ ऐसे अनुभव होते हैं, जो उसे हर दिन शाखा में आने के लिए प्रेरित करते हैं | इसके बाद वह नियमित स्वयंसेवक बनता है | इस प्रकार मार्ग वही है |

हमें प्रश्न पूछे जाने या तर्क किए जाने को लेकर कोई कठिनाई नहीं है | हम तो इसे प्रोत्साहित करते हैं | हमें प्रसन्नता होती है जब कोई स्वयंसेवक हमसे प्रश्न करता है | ऐसा क्यों ? ऐसा क्यों नहीं ? हम बड़े प्रसन्न माहौल में समय गुजारते हैं, जिसमें कोई भी किसी से भी प्रश्न कर सकता है |

नवीं कक्षा का एक लड़का हमारे वर्ग का प्रबंधक था | मैं सर्वकार्यवादी था | किसी ने उसे बहकाया कि मेरी मूँछें नकली हैं, बाज़ार से क्रय की हुईं | वह 3-4 दिन तक मुझे गौर से देखता रहा | जब वह इसकी पुष्टि नहीं कर सका, तब उसने स्वयं ही मेरे पास आकर पूछा, क्या आपकी मूँछें असली हैं, या बाज़ार से क्रय की हुईं ? इस प्रकार हमारे यहाँ खुला परिवेश रहता है |

राजीव मल्होत्रा: यह तो बड़ा अच्छा संकेत है | एक बच्चा भी सहज अनुभव करता है …

मोहन भागवत: वह सीधे मेरे पास आकर प्रश्न कर सकता है और मैं उसके प्रश्न का उत्तर देने के लिए बाध्य हूँ | मैं उसे डाँटकर भगा नहीं सकता कि तुम तो 9वीं के छात्र मात्र हो, ऐसे प्रश्न मत करो, भाग जाओ यहाँ से… – उसके प्रश्न का उत्तर देना मेरे लिए आवश्यक है | जिज्ञासा समाधान हमारे हर स्तर के कार्यक्रम का अहम अंग है | हमारे प्रांत प्रचारक बैठक में भी जिज्ञासा समाधान होता है | कोई भी प्रश्न कर सकता है, और आपको उत्तर देना होगा |

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