मुल्ला तानाशाह

व्याख्यान स्वदेशी मुस्लिम

राजीव मल्होत्रा: नमस्ते ! मेरी आज की अतिथि हैं – अंबर ज़ैदी  | मैं उनसे कुछ दिन पहले जयपुर में मिला | वहाँ सामाजिक माध्यम पर विभिन्न विषयों पर एक समारोह हो रहा था | वे एक पैनल में भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं, और बड़े ही आत्मविश्वास के साथ, आधुनिक, उदारवादी, उन्मुक्त दृष्टिकोण से अपनी बात रख रही थीं |

मैं चाहता हूँ अपने समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय मुसलमान मेरे साथ बात करें | मैंने ईसाइयों और यहूदियों के साथ काफी शास्त्रार्थ किया है, पर मुसलमानों के साथ नहीं | इसे भी शुरू करने के लिए मैं ऐसे मुसलमानों की खोज में हूँ, जो मुझे उनके समुदाय के दूसरे लोगों से मिलवाएँ | अंबर ज़ैदी मुझे इमामों और इस्लामी विद्वानों से मिलएँगी | योजना यही है | तो, स्वागत है आपका, मेरे कार्यक्रम में |

अम्बर जैदी: धन्यवाद |

राजीव मल्होत्रा: तो आपकी पृष्ठभूमि यह है कि आपने जामिया मिलिया विश्वविद्यालय से जन-संपर्क (मास कम्यूनिकेशन) की पढ़ाई की है |

अम्बर जैदी: हाँ |

राजीव मल्होत्रा: इसके अलवा आप वृत्तचित्र बनाती हैं | आप एक स्वतंत्र मीडिया कर्मी भी हैं |

अम्बर जैदी: हाँ |

राजीव मल्होत्रा: आपके बारे में एक रोचक बात यह है कि मुसलमान होते हुए भी, आपने डीएवी स्कूल, यानी आर्य समाज स्कूल में पढ़ा है | यह अनुभव कैसा रहा ?

अम्बर जैदी: डीएवी स्कूल में दूसरे बच्चों के ही समान मैं हर दिन गायत्री मंत्र और सरस्वती मंत्र का उच्चारण करती थी | यह कोई अनूठी बात नहीं थी |

राजीव मल्होत्रा: आपके मुसलमान मित्रों को यह कैसा लगता था ?

अम्बर जैदी: वास्तव में मेरे मित्रों में हिंदू ही ज़्यादा हैं | मैं हिंदुओं के बीच बढ़ी हुई हूँ |

राजीव मल्होत्रा: डीएवी स्कूल के हिंदू बच्चों को कैसा लगता था जब कोई मुसलमान छात्रा गायत्री मंत्र बोलती थी ?

अम्बर जैदी: जब हम बच्चे थे, तब हमें ये सब अधिक पता नहीं था कि कौन हिंदू है और कौन मुसलमान | हमारे लिए हर दिन सरस्वती की वंदना करना या गायत्री मंत्र बोलना आम बात थी |

राजीव मल्होत्रा: आप तीन तलाक पर एक वृत्तचित्र बना रही हैं | तीन तलाक के बारे में आपकी क्या राय है ? तीन तलाक को लेकर भारत की मुसलमान महिलाओं की राय को आप कैसे वर्णित करेंगी ?

अम्बर जैदी: देखिए, तीन तलाक संपूर्ण रूप से इस्लाम और कुरान विरोधी बात है | उसका इस्लाम और कुरान से कोई संबंध नहीं है |

राजीव मल्होत्रा: तब वह इस्लाम में आया कैसे  ?

अम्बर जैदी: वह हज़रत उमर के समय आया | देखिए, कोई भी नियम या कानून उसके समय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है | वे कानून वर्षों पहले बनाए गए थे, 1400 वर्ष पहले, वे अब लागू ही नहीं होते हैं |

राजीव मल्होत्रा: हिंदू धर्म में श्रुति और स्मृति, इन दोनों को अलग रखा गया है |

अम्बर जैदी: हाँ | मैं जानती हूँ |

राजीव मल्होत्रा: श्रुति अपरिवर्तनीय है, पर स्मृति बदलती रहती है | इस्लाम में कुरान अपरिवर्तनीय है |

अम्बर जैदी: हमारे यहाँ भी कुरान और हदिस हैं | कुरान स्थायी है, और हदिस हज़रत मोहम्मद साहब के जीवन का वृत्तांत है |

राजीव मल्होत्रा: पर कुछ मुसलमान हदिस को भी अपरिवर्तनीय और कानून जैसा ही मानते हैं |

अम्बर जैदी: हमारे यहाँ कितने ही हदिस हैं | आवश्यकता है कि उन हदिसों को पहचाना जाए, जो प्रामाणिक हैं | कठिनाई की बात यही है | इसके साथ ही, हमारे यहाँ कुरान है, जो स्थायी है और वास्तव में वही हमारी धार्मिक पुस्तक है, जिसका हमें पालन करना है | तो, इसको लेकर कोई समस्या नहीं होनी चाहिए |

राजीव मल्होत्रा: यदि हदिस प्रामाणिक हो भी, तो क्या आप यह कह सकती हैं कि वह उसके समय के लिए भले ठीक रहा हो, पर आज के लिए वह ठीक नहीं हो सकता है |

अम्बर जैदी: देखिए, समस्या यह है कि इस्लाम में कई संप्रदाय हैं, जैसे शिया, अहमदिया, हनफी, सलाफी, वहाबी वगैरह | यही दिक्कत है |

राजीव मल्होत्रा: पर यह तो ईसाइयों में भी है, दूसरों में भी है | कई परंपराएँ हैं |

अम्बर जैदी: इनकी व्याख्या कैसे की जाती है, यही दिक्कत की बात है | कुरान अरबी भाषा में हैं, भारतीय मुसलमानों के लिए उनकी अपनी भाषा में कुरान की आवश्यकता है | हमें खुद अपने प्रयास से कुरान को समझना है | आज हमारी समझ दूसरों पर आधारित है, जैसे कोई इमाम | वे अपने मतों और व्याख्याओं को अपने अनुयायियों पर थोपते हैं |

राजीव मल्होत्रा: पर कुरान के अनुसार क्या इमाम को कुरान की व्याख्या करने का विशेष अधिकार मिला हुआ है, अथवा कोई भी स्वयं यह कर सकता है ?

अम्बर जैदी: कोई भी किसी भी चीज़ की व्याख्या नहीं कर सकता है | अल्लाह कुरान में कहते हैं कि आपके पास यह मजहबी किताब है, उसे पढ़ें, समझें और चाहें तो उसकी आलोचना भी करें | यदि आपको लगे कि वह सही है, तो उसका पालन करें |

राजीव मल्होत्रा: तब फिर ऐसा क्यों माना जाता है कि कुरान की आलोचना करना या उसके बारे में कोई प्रश्न भी करना ईश्वर की निंदा करना माना जाता है |

अम्बर जैदी: यह दिक्कत है | मैं इमाम शब्द की व्याख्या करना चाहूँगी, उसका मतलब है नेता | इमाम वह व्यक्ति है यो समुदाय का नेतृत्व करता है या जो एक मजहबी नेता के रूप में इबादत का नेतृत्व करता है | उससे उम्मीद की जाती है कि वह हमें आगे की ओर ले जाएगा |

राजीव मल्होत्रा: ठीक |

अम्बर जैदी: पर इमाम वास्तव में हमें पीछे की ओर ले जा रहे हैं |

राजीव मल्होत्रा: नहीं, मेरा प्रश्न यह नहीं था | कुरान में क्या अल्लाह यह कहते हैं कि आपको इमाम का अनुसरण करना चाहिए… ? आप कह रही हैं कि इमाम का अनुसरण करना ज़रूरी नहीं है |

अम्बर जैदी: नहीं हमें किसी का भी अनुसरण नहीं करना है, केवल कुरान का अनुसरण करना है | इमामों की कोई हैसियत नहीं है | वे सब कोई राजनीति खिचड़ी पकाने के इरादे से आते हैं | वे सब नेता बनना चाहते हैं | वे ऐसे लोग हैं, जो बिना चुनाव जीते ही नेता बनना चाहते हैं | यही उनका मकसद है | हर मौलाना, मुल्लाह और इमाम बिना चुनाव लड़े नेता बनना चाहता है |

राजीव मल्होत्रा: आपने पहले कहा कि कुरान आपको कुरान की आलोचना करने की इजाज़त देता है |

अम्बर जैदी: आप अपने विवेक से काम ले सकते हैं |  देखिए, कुरान में अल्लाह कहते हैं, यदि आपको यह ठीक लगे, तो इस पर दो बार विचार करें, और फिर इसका पालन करें | यदि आपको यह ठीक लगे, तो इसका पालन करें |

राजीव मल्होत्रा: पर यदि आपको संदेह हो, तो क्या आप अपने संदेह को ज़ाहिर कर सकते हैं ?

अम्बर जैदी: आप हमेशा अपने संदेहों को ज़ाहिर कर सकते हैं |

राजीव मल्होत्रा: तब फिर ऐसा क्यों है कि संदेह करने को भी ईश्वर निंदा ठहराने वाले कानून मौजूद हैं ?

अम्बर जैदी: अल्लाह पर शक करना अल्लाह की निंदा करना है | चीज़ों पर शक करना नहीं |

राजीव मल्होत्रा: ठीक है, तो आप अल्लाह पर शक नहीं कर सकते | मान लिजिए आप एक खास व्याख्या से असहमत होते हैं, तब ?

अम्बर जैदी: कोई उदाहरण दें |

राजीव मल्होत्रा: मान लीजिए कुरान में कुछ है जिसके बारे में एक इमाम अपनी व्याख्या बता देता है | पर आप उससे सहमत नहीं है | आप यह कर सकते हैं | इसकी इजाज़त है ?

अम्बर जैदी: हाँ |

राजीव मल्होत्रा: पर क्या मुसलमान अक्सर इस अधिकार का उपयोग करते हैं ?

अम्बर जैदी: भारत के मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनमें से अधिकतर अनपढ़ और गरीब हैं | भारत के मुसलमानों में बहुत कम, अधिक से अधिक 10%, अमीर और पढ़े-लिखे हैं | ज़्यादातर मुसलमान दूसरों की राय के अनुसार चलने के लिए मज़बूर हैं | वे इन गरीब भारतीय मुसलमानों में कट्टरपन की आग को भड़का रहे हैं |

राजीव मल्होत्रा: तो, यदि आप…

अम्बर जैदी: ये गरीब मुसलमान विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं | वे गरीब हैं, पढ़े-लिखे नहीं हैं, अपने अधिकारों और दायित्वों से अपरिचत हैं |

राजीव मल्होत्रा: इसलिए वे जानते ही नहीं हैं कि कैसे विरोध जताएँ, कैसे किसी को चुनौती दें |

अम्बर जैदी: एकदम सही कहा | तो ज़्यादातर भारतीय मुसलमान 90% मुसलमान, अनपढ़ हैं, और उन्हें दूसरों की राय के अनुसार हाँका जाता है, और यही कट्टरपन की जड़ है | वे सामान्य लोग हैं जिनकी जरूरतें सामान्य इंसानी जरूरतें हैं | उन्हें नौकरियाँ चाहिए, उनके बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ चाहिए | यही असली दिक्कत है |

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