हिन्दुओं पर अत्याचार और मीडिया — डॉ मोहन भागवत

भारत विखंडन

राजीव मल्होत्रा: मैं संघ के लोगों की हत्याओं के कष्टप्रद विषय पर चर्चा करना चाहता हूँ | किसी भी व्यक्ति का मारा जाना भयानक है | परन्तु जब कहीं पर किसी ईसाई के विरुद्ध अत्याचार होता है, तो यह विश्व समाचार बन जाता है | लोग इसे एक बड़ी बात बना देते हैं | संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या के कई प्रकरण हुए हैं | परन्तु हिंदुओं पर अत्याचार पर मुख्यधारा की मीडिया का ध्यान नहीं गया है | निश्चित रूप से वैश्विक मीडिया का नहीं | यह वास्तव में मुझे चिंतित कर रहा है क्योंकि यह उन हिंदुओं का मनोबल गिराता है जो सोचते हैं कि यदि कुछ होता है तो हमारे लिए कोई बोलने वाला या ध्यान रखने वाला नहीं है | जबकि यदि किसी ईसाई के साथ छोटा-मोटा कुछ होता है, तो यह विश्व समाचार बन जाता है | उनके पास बड़े तंत्र और नेटवर्क हैं | हमारे पास नहीं | जब हम पीड़ित होते हैं तब प्रचार और आक्रोश की कमी पर आप कैसा अनुभव करते हैं ?

मोहन भागवत: यह एक यांत्रिक समस्या है | हमने ऐसे तंत्र स्थापित नहीं किये हैं जिससे विश्व हमारी दुर्दशा देख सके | 1000 वर्षों की आक्रामकता के बाद अब हिंदू समाज जाग गया है | पहले उन्हें वश में किया जाता था | उन्हें अनुमति नहीं थी…

राजीव मल्होत्रा: हम केवल जीवित रहने का प्रयास कर रहे थे |

मोहन भागवत: … पूर्ण रूप से जीने के लिए | अब, उन्हें जागृत करना होगा, इस अवसर को पकड़ना होगा और इन सभी अंगों का निर्माण करना होगा | वैश्विक चर्चा में हमारे लिए बोलने के लिए हमारे पास कोई लॉबी नहीं है | हमें उसका निर्माण करना होगा |

राजीव मल्होत्रा: हाँ |

मोहन भागवत: जब हम इन सभी तंत्रों को बना लेंगे, तब सब कुछ उचित ढंग से होगा | इस बीच, हम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और सभी स्थानों की घटनाओं के प्रति मीडिया का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं | हम हिंदुओं के लिए निडर होकर बोलते हैं | हम मीडिया के प्रवचन को परिवर्तित करना चाहते हैं | यह धीरे-धीरे हो रहा है | मुझे लगता है कि दस वर्षों में यह परिवर्तन होगा |

राजीव मल्होत्रा: देखिये, मैं जहां भी जाता हूँ, बहुत जोर से, खुलकर, आत्मविश्वास और निडरता से बोलता हूँ | जब मैं कहता हूँ कि हिंदू वास्तव में कई प्रकरणों में पीड़ित हैं, तो लोगों के लिए विश्वास करना कठिन होता है | उन्हें लगता है कि हिंदू को उत्पीड़क के रूप में चित्रित किया जाना चाहिए | कि हमपर हमारे अपने देश में अत्याचार हो रहा है एक ऐसी बात है जिस पर वे विश्वास नहीं कर सकते | संघ को हमारे विरुद्ध अत्याचार का एक डेटाबेस विकसित करना चाहिए | सभी नृशंसता साहित्य जिसमें हमारे ऊपर अत्याचार करने वाले अन्य लोग सम्मिलित हैं | यहां तक कि संघ के लोगों की सभी हत्याओं का एक संकलन भी बहुत महत्वपूर्ण आंकड़ा होगा | मैं इसमें सहायता करना चाहूंगा क्योंकि मैं उन विषयों पर ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ जो चर्चा में नहीं हैं |

मोहन भागवत: हम निश्चित रूप से आपके सहयोग का स्वागत करेंगे | हमने यह आरम्भ कर दिया है | पहली बार, पिछले वर्ष हमने केरल, आंध्र, बंगाल और असम में इस आक्रामकता में मारे गए हमारे स्वयंसेवकों का एक डेटाबेस तैयार किया | एक चित्र पुस्तक बनाई गई और प्रमुख व्यक्तियों, मीडिया आदि को प्रस्तुत की गई | परन्तु फिर से, हमने प्रचार किया | परन्तु मीडिया में जो शक्तियां हैं वे इस प्रकार के प्रचार पर अंकुश लगाने का प्रयास करती हैं, क्योंकि हमारे पास वह तंत्र नहीं है | हमें इसकी आवश्यकता है ताकि विश्व हमारा पक्ष भी सुने |

राजीव मल्होत्रा: एक काम जो मैं करता हूँ वो है वैश्विक मंचों पर जाना | मैंने ब्रिटिश संसद के सदन में अपनी बात रखी | अब मुझे एक यूरोपीय संघ के मंच पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया जा रहा है | मैं पूरे साहस के साथ सभी स्थानों पर जाता हूँ | मैंने अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग को संबोधित किया है और इस बारे में तर्क दिया है |

मोहन भागवत: हाँ |

राजीव मल्होत्रा: उन्होंने कहा, आप इस प्रकार से तार्किक और व्यवस्थित ढंग से समझाने वाले पहले व्यक्ति हैं | उन्होंने अनिच्छा से मेरे विचार को स्वीकार किया क्योंकि मैंने उनके साथ आंकडा साझा किया था | वे चुप रहे |

मोहन भागवत: हाँ |

राजीव मल्होत्रा: वास्तव में, उनकी नवीनतम रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में यह दोष है और उन्होंने इस बात को सटीक रूप से उद्धृत नहीं किया | इसलिए, यहां तक कि वाशिंगटन में बैठी, उच्च वेतन वाले लोगों वाली एक वरिष्ठ संस्था दोषपूर्ण रूप से सूचित हो सकती है | दुःख की बात है कि हमारा दूतावास बहुत कुछ नहीं कर रहा है | मैं निर्भीक होकर इस प्रकार बात करता हूँ और दूतावास के लोग इसे कुछ संकटकारी मानकर दूर रहना पसंद करते हैं | संभवतः यह धर्मनिरपेक्षता का पुराना बोझ है |

मोहन भागवत: हाँ | – उन्हें पिछले 75 वर्षों की उन प्रवृत्तियों को दूर करना होगा |

राजीव मल्होत्रा: हाँ |

मोहन भागवत: और बाहर आकर अपने मन की बात कहनी होगी |

राजीव मल्होत्रा: हाँ |


 

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