भारतीय इतिहास की कुछ अंतर्दृष्टियां / मीनाक्षी जैन – 2

अयोध्या राम जन्मभूमि कम्युनिस्ट विश्वासघात

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मीनाक्षी जैन: अधिकाँश मुस्लिम हिंदुओं, को उनके लिए इसके महत्व के कारण, यह स्थल सौंप देना चाहते थे | परन्तु वे बताते हैं कि वामपंथी इतिहासकारों के एक समूह ने उन्हें विश्वास दिलाया कि ऐसा नहीं करें |

राजीव मल्होत्रा: अर्थात् ये वामपंथी हैं जिन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच फूट डाला |

मीनाक्षी जैन: उन्होंने उन्हें इस समस्या का एक सुखद समाधान निकालने से रोका | दूसरा विवरण जो हाल ही में प्रकाशित हुआ है, किशोर कुणाल द्वारा है, जो प्रधान मंत्री वी पी सिंह और चंद्रशेखर के अधीन विशेष कर्तव्य अधिकारी थे | वे एक आन्तरिक विवरण देते हैं कि किस प्रकार वामपंथियों ने कई मुद्दों पर पथभ्रष्ट किया | मध्ययुगीन स्रोतों के संदर्भ में, कोई भी नहीं है जिसे कि या तो वामपंथियों या मैंने पाया है जो कहता है कि बाबरी मस्जिद बिलकुल नए स्थान पर बनाया गया था | सभी मध्ययुगीन स्रोत स्पष्ट रूप से बताते हैं कि राम मंदिर ध्वस्त किया गया था और उस स्थल पर एक मस्जिद बनाई गयी थी | राम के जनमभूमि के रूप में अयोध्या का संदर्भ कई फारसी स्रोतों में हैं |

राजीव मल्होत्रा: फारसी स्रोत ?

मीनाक्षी जैन: हाँ !

राजीव मल्होत्रा: किस काल में ?

मीनाक्षी जैन: 16वीं शताब्दी से आरम्भ से | अबुल फजल लिखते हैं कि अयोध्या पवित्र है क्योंकि यह राम के जन्म का पवित्र स्थान है | जो भी वे बनाना चाहते थे, उसके लिए 1600 में अकबर ने हनुमान टीला को छह बीघा भूमि दी थी | उस अनुदान को लगभग 1723 में नवीनीकृत किया जाना था | वो मुंशी जिसे अनुदान का नवीनीकरण लिखना था, ने लिखा था कि अकबर द्वारा अनुदान नवीनीकृत किया जा रहा था | और मैं, इस अनुदान का मुंशी, राम के जन्मभूमि से यह लिख रहा हूँ | यह एक फारसी प्रलेख (दस्तावेज) है | मस्जिद-ए-जन्मस्थान नाम लेते हुए, बाबरी मस्जिद के मुत्तावाली जिसका मैंने पहले उल्लेख किया था, ने अंग्रेजों को दो याचिकाएं भेजी थीं | वह कहता है कि मैं मस्जिद-ए-जन्मस्थान का मुत्तावाली हूँ | किसी मस्जिद का नाम जन्मस्थान क्यों होगा ? 18वीं शताब्दी में मुसलमानों द्वारा लिखे गए कई विवरण हैं जो सभी इसका उल्लेख करते हैं |

एक और विवरण है | एक मुस्लिम विवरण नहीं बल्कि मोहम्मद शोएब द्वारा लिखी गई एक रिपोर्ट | उन्होंने बाबरी मस्जिद में पाए गए 3 शिलालेखों पर लिखा था | उनके अनुसार, एक शिलालेख कहता है कि यह मस्जिद राम मंदिर के स्थान पर बनायी गई है |

राजीव मल्होत्रा: वहां पर यह ऐसा कहता है ?

मीनाक्षी जैन: हाँ, परन्तु किसी और ने वो शिलालेख नहीं देखा है | इसे कब हटा दिया गया था ? यह सौ से अधिक वर्षों तक सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया ?

राजीव मल्होत्रा: सही ! एक शिलालेख के बारे में एक विवाद है जिसपर वामपंथी कहते हैं कि इसे धोखाधड़ी से रखा गया था | इसके बारे में हमें बताएं |

मीनाक्षी जैन: 6 दिसंबर 1992 को, जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था, तो मस्जिद की दीवारों से एक बड़ा शिलालेख बरामद किया गया था, 5 फीट x 2 फीट का | इसे एएसआई के पुरालेख विभाग द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर समझा गया था | शिलालेख ने कहा कि यह एक विष्णु-हरि मंदिर है और मंदिर का विवरण दिया, किसने इसे बनाया और कब | यह दृढ़ प्रमाण था कि वहां मंदिर था | परन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने, विशेष रूप से इरफान हबीब ने, कहा कि इसे बाबरी मस्जिद के मलबे से बरामद नहीं किया गया था | उन्होंने कहा कि यह “विष्णु-हरि शिलालेख” लखनऊ संग्रहालय से चुराया गया था और वहां पर बिठाया गया था |

प्रश्न यह है कि उस दिन इतने सारे लोगों और इतने सारे मीडिया के सामने, उस शिलालेख को लाना कैसे संभव था ? यह लखनऊ संग्रहालय से चोरी कब हुई थी ? प्रोफ़ेसर हबीब ने जोर देकर कहा है कि लखनऊ संग्रहालय से यह शिलालेख चोरी हो गया था | अब किशोर कुणाल, पीएमओ (प्रधान मंत्री कार्यालय) में एक बहुत ही प्रभावशाली व्यक्ति होने के नाते लखनऊ संग्रहालय गए | उस शिलालेख की छवि ली | उन्होंने लखनऊ संग्रहालय के दैनिक पंजी की प्रविष्टियों का निरीक्षण किया जो कहता था कि यह शिलालेख 1953 में लखनऊ संग्रहालय में रखा गया था और यह शिलालेख का वर्णन करता है | लखनऊ संग्रहालय में जो है वो वास्तव में त्रेता के ठाकुर मंदिर का एक शिलालेख है |

राजीव मल्होत्रा: इसलिए यह विवरण से मेल नहीं खाता है |

मीनाक्षी जैन: कोई समानता नहीं | कोई भी कल्पना करेगा कि इस प्रकार की घटनाओं के बाद वामपंथी इतिहासकार तुरंत इसका प्रत्युत्तर देंगे | दो दशकों से आप कह रहे हैं कि विष्णु-हरि शिलालेख वहां डाला गया है परन्तु अब जब विपरीत प्रमाण प्रस्तुत किया जा रहा है तो आपको प्रत्युत्तर देना चाहिए | मेरे विचार में, मेरे द्वारा जांचे गए सभी तथ्य वामपंथी इतिहासकारों के दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हैं | परन्तु वे कभी प्रत्युत्तर नहीं देते |

राजीव मल्होत्रा: अर्थात् वे केवल अनदेखा करते हैं |

मीनाक्षी जैन: वे चुप्पी से मारते हैं | मेरी पुस्तक वाम इतिहासकारों के प्रति बहुत आलोचनात्मक है | मेरी पुस्तक में एक अध्याय है जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उनके शपथपूर्वक साक्षियों से उद्धरण लेता है | यह दिखाता है कि ये लोग इतिहास की मूल बातों से भी पूरी तरह से अनभिज्ञ थे | यह वास्तव में लज्जाजनक है |

राजीव मल्होत्रा: क्या इरफान हबीब मुख्य अपराधी हैं या उनकी एक पूरी टोली (गिरोह) है ?

मीनाक्षी जैन: इरफान हबीब, आर एस शर्मा, रोमिला थापर, डी एन झा, सूरज भान और मंडल – ये छह लोग अगुआ थे | उनमें से अधिकाँश का निधन हो गया है | इरफान हबीब, रोमिला थापर, और डी एन झा जीवित हैं परन्तु  इरफान हबीब सबसे सक्रिय हैं |

राजीव मल्होत्रा: अति उत्कृष्ट ! आपने सती पर भी कुछ काम किया है |

मीनाक्षी जैन: क्या मैं इसके बारे में कुछ और कह सकती हूँ ?

राजीव मल्होत्रा: हाँ कृपया |

मीनाक्षी जैन: जो क्षतिपूर्ति की बात है वह यह कि अगली पीढ़ी के वामपंथी इतिहासकारों के पास इस प्रकार की लड़ाई की भूख नहीं है | उनका शोध गैर-विवादास्पद विषयों पर है | सैद्धांतिक रूप से मुझे लगता है कि लड़ाई जीत ली गयी है |

राजीव मल्होत्रा: परन्तु वास्तविक भौतिक स्थल के संदर्भ में नहीं |

मीनाक्षी जैन: नहीं, परन्तु अगली पीढ़ी के किसी में भी दृढ़ता नहीं है …

राजीव मल्होत्रा: विद्वान जैसों में…

मीनाक्षी जैन: हाँ |

राजीव मल्होत्रा: समुदाय के बीच यह एक प्रतिष्ठा का विषय और छवि बचाने का विषय बन गया है |

मीनाक्षी जैन: हाँ | अगली पीढ़ी के शिक्षाविदों में इस विचारधारात्मक लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए इरफान हबीब, आर एस शर्मा और रोमिला थापर जैसे लोगों की दृढ़ता और साहस नहीं है | मेरी समझ यह है कि वे इसे सुरक्षित रहकर खेलना चाहते हैं |

राजीव मल्होत्रा: विद्वानों ने इसे समुदायों के बीच की लड़ाई में परिवर्तित कर दिया है | और भले ही वे चले जाएँ, समुदाय इससे शीघ्रता से आगे बढ़ने (भूलने) में सक्षम नहीं होंगे | क्योंकि उन्होंने इतनी सारी उत्तेजनाओं को जन्म दिया है |

मीनाक्षी जैन: यह वोट बैंक से जुड़ा एक राजनीतिक विषय है |

राजीव मल्होत्रा: हाँ | तो हमें सती पर अपनी पुस्तक के बारे में बताएं |

मीनाक्षी जैन: ठीक है तो यह एक रोचक पुस्तक है | हर किसी ने सती के बारे में सुना है | क्योंकि यह हमारे मस्तिष्क में डाल दिया गया है कि लॉर्ड विलियम बेंटिक के सामाजिक सुधारों में से एक सती का उन्मूलन था | जब मैंने अध्ययन आरम्भ किया, तब मैंने लिखित और मूर्तिकला के प्रमाण और सती के आंखों-देखी विवरणों की खोज की | सती का पहला आँखों-देखा विवरण तब का है जब महान सिकंदर वापस घर लौट रहा था |

राजीव मल्होत्रा: वह महान नहीं है |

मीनाक्षी जैन: यूनान का सिकंदर | उनके एक दल में एक भारतीय सेनानायक शशि गुप्त था जिसकी मृत्यु हो गई थी | यवन सैनिक यह देखकर आश्चर्यचकित हुए कि उसकी दो विधवाएं आपस में लड़ रही हैं कि किसे उसके साथ सती होना है | यह सती का पहला अभिलेखित आँखों-देखा विवरण है | अगला प्रमाण मध्य प्रदेश से 5वीं शताब्दी ईसवी से है  | और इब्न बतूता का | सती के वास्तविक आंखों-देखे विवरण बहुत कम हैं | जब वास्को डी गामा भारत के लिए नया मार्ग जान जाता है, तो बहुत सारे विदेशी यात्री आते हैं | वे यूरोप में भारी मांग के कारण भारत के बारे में लिखते हैं | वे यात्रा वृत्तांत लिखते हैं | यह देखते हुए कि सती भारत के विचित्र प्रथाओं में से एक है, हमें इसे सम्मिलित करना चाहिए | तथापि इन यूरोपीय यात्रियों के विवरणों के परीक्षण से पता चलता है कि वे एक दूसरे के विवरणों को दुहराते हैं | सती के आंखों-देखे विवरणों की वास्तविक संख्या बहुत कम है और भारत के भीतर का भूगोल अस्पष्ट है |

राजीव मल्होत्रा: अर्थात् पूरी मिथक बनाई गई है…

मीनाक्षी जैन: यह सब उचित सीमाओं के भीतर था | अचानक 18वीं-19वीं शताब्दी में, जब ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल को नियंत्रित करना आरम्भ कर देती है, तब स्थिति परिवर्तित हो जाती है | उन्हें बहुत स्पष्ट है कि वे सभ्यता फैलाने के लिए नहीं बल्कि पैसे कमाने के लिए भारत आए हैं | ईसाई धर्मप्रचारकों को अंग्रेजी क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी और जो आ जाते थे, उन्हें तुरंत वापस भेज दिया जाता था | इसलिए मिशनरी संसद को बताना चाहते थे कि भारत दोषपूर्ण रीति-रिवाजों का देश था |

राजीव मल्होत्रा: और वहां हमारी आवश्यकता है  |

मीनाक्षी जैन: हाँ | इसलिए उन्होंने 50,000 – 1 लाख महिलाओं के सती होने का आंकडा बनाया | रोचक बात यह है कि ये विवरण केवल बंगाल से आते हैं | जहां सती की परंपरा नहीं है |

राजीव मल्होत्रा: यह राजस्थान में है |

मीनाक्षी जैन: सती और जौहर मूल रूप से राजस्थान में हैं |

राजीव मल्होत्रा: तो अनुभवजन्य प्रमाण इसे राजस्थान में दिखाते हैं, परन्तु अंग्रेज इसे बंगाल में बता रहे थे |

मीनाक्षी जैन: स्वतंत्रता के बाद सती के लगभग 40 प्रसंग रहे हैं |

राजीव मल्होत्रा: किसके आसपास ?

मीनाक्षी जैन: पूरे भारत में और उनमें से दो तिहाई राजस्थान में हैं और बंगाल में कोई भी नहीं है | हमसे आशा है कि हम विश्वास करें कि जिस क्षण बेंटिक ने सती को “समाप्त कर दिया”, अगले दिन से यह बंगाल में रुक गया |

राजीव मल्होत्रा: मैं अपने दर्शकों को चाहता हूँ जिनमें से कई सोचते हैं कि सारा उपनिवेशवाद ईसाई धर्म के लिए था | यह पूर्णतः असत्य है | ईस्ट इंडिया कंपनी नहीं चाहती थी कि ईसाई मिशनरी आएं | वे इस विशाल धन-अर्जन यन्त्र में व्यवधान नहीं चाहते थे जिसे उन्होंने भारत में स्थापित किया था | ईस्ट इंडिया कंपनी मिशनरियों के विरुद्ध थी | ब्रिटिश संसद में वे विपरीत पक्ष ले रहे थे | ईस्ट इंडिया कंपनी ने तर्क दिया कि यदि मिशनरी आते हैं, तो विद्रोह होगा और यह धन के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करेगी | मिशनरियों को तब भारत में क्रूरता के बारे में वितर्क देना पड़ा था |

मीनाक्षी जैन: प्रारंभिक ईस्ट इंडिया कंपनी के लोग भारतीय रीति-रिवाजों और संस्थानों के प्रति प्रशंसा से भरे हुए थे | वे अंग्रेजी संस्थानों को भारत लाने के विरुद्ध थे | भारतीय संस्थानों की उपेक्षा की जा सकती है परन्तु वे भारतीयों के लिए उपयुक्त हैं और उन्हें पुनर्जीवित किया जाना है |

राजीव मल्होत्रा: वे चाहते थे कि भारतीय समाज बना रहे और वे धन अर्जित करते रहें |

मीनाक्षी जैन: इसके आलावा इस्लाम के आने से पहले के भारतीय सभ्यता के प्रति गहन प्रशंसा थी |

राजीव मल्होत्रा: परन्तु फिर 1800 के आरम्भ में मैकाले ने इसे परिवर्तित कर दिया |

मीनाक्षी जैन: हाँ | एक समूह था – एन्ग्लिसिस्ट (Anglicists) |

राजीव मल्होत्रा: रोचक बात यह है कि प्रख्यात मैकाले के मिनट से पहले वो राम मोहन रॉय थे | मुझे नहीं पता कि वे उन्हें राजा क्यों कहते हैं |

मीनाक्षी जैन: वे एक छोटे ज़मीनदार थे

राजीव मल्होत्रा: अंग्रेजों के हाथ बीके हुए | मेरे लिए राम मोहन रॉय एक दुर्जन (खलनायक) हैं क्योंकि वे अंग्रेजों को लिखते हैं कि वह चाहते हैं कि वे भारत की उन्नति करने के लिए अंग्रेजी शिक्षा लाएं | उन्होंने हमारे पारंपरिक तंत्र को अंग्रेजी और ब्रिटिश शिक्षा की शैली के साथ पदस्थापित करने का विचार आरम्भ किया | यह मैकाले के मिनट से पहले था |

मीनाक्षी जैन: ब्रिटिश संसद में, एडमंड बर्क ने कहा कि कोई थेम्स के तट से बलूत (ओक) ले जाकर गंगा के तट पर नहीं लगा सकता है | उनके संस्थान उनकी आवश्यकताओं की पूर्ती अच्छे ढंग से करते हैं और हमें उन्हें पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है | भारत और संसद में अंग्रेज अधिकारियों के मध्य एक बहुत सशक्त समूह था जो भारतीय संस्थानों को पुनःस्थापित करना चाहते थे |

राजीव मल्होत्रा: रोचक बात यह है कि परम्परावादी इसे अकेले छोड़ने में रूचि रखते थे | वास्तव में उदारवादी इसे विघटित करना चाहते थे | हम सामान्यतः सोचते हैं कि उदारवादियों से निपटना सरल है | ये उदारवादी हैं जिनके पास मानवाधिकारों की धारणा है | जॉन स्टुअर्ट मिल, जिसे उदारवाद आंदोलन का प्रमुख माना जाता है, और अन्य भारतीय समाज के साथ अधिक छेड़छाड़ करना चाहते थे |

मीनाक्षी जैन: इवान्जेलिकल (ईसाई धर्म प्रचारक) (जो लोग भारत को ईसाई बनाना चाहते थे) और यूटिलिटेरियन जिसका अभिप्राय है कि जॉर्ज मिल और जॉन स्टुअर्ट मिल ने एक साथ सहयोग किया |

राजीव मल्होत्रा: अर्थात् ईसाई धर्मप्रचारकों और उदारवादी वामपंथियों का गठबंधन 1800 के मध्य से रहा है |

मीनाक्षी जैन: हाँ !

राजीव मल्होत्रा: अर्थात् आज का गठबंधन संयोग नहीं है | क्या यह रोचक नहीं है ?

मीनाक्षी जैन: हाँ !

राजीव मल्होत्रा: परम्परावादी, जो पूंजीपति थे, केवल पैसा कमाना चाहते थे | वे इन सभी विषयों में रुचि नहीं रखते थे |

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