राजीव: नमस्ते! एक बार फिर हमारे साथ हैं, डॉ. वैद्यनाथन जी। आइए उनसे प्राप्त करते हैं विवादास्पद नोटबंदी पहल के बारे में उनकी अंतर्दृष्टि।
वैद्यनाथन: हाँ, नोटबंदी के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। इस विषय पर हज़ारों पृष्ठ लिखे गए हैं, और कई लीटर स्याही खर्च की गई है। टाइप करने में। यह तीन दृष्टिकोणों से एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहल रही है। प्रथम – सरकार सिद्ध किया कि वह अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने वाले निर्णय लेने का साहस रखती है।
राजीव: अपनी निर्णायकता प्रदर्शित की।
वैद्यनाथन: हाँ।
राजीव: इससे सरकार एक संदेश प्रेषित कर रही थी।
वैद्यनाथन: द्वितीय – यह है कि भारत सरकार ऐसा कुछ कर सकती है जिसके बारे में जनसाधारण को भनक भी नहीं थी। सामान्यतः, इससे पहले कि सरकार कोई घोषणा करे, उसके बारे में टीवी चैनलों और अखबारों में अटकलें और चर्चाएँ आ चुकी होती हैं।
राजीव: जैसे परीक्षाओं के पेपर लीक हो जाते हैं।
वैद्यनाथन: ठीक कहा। पर इस मामले में यह आश्चर्यजनक है कि सरकार नोटबंदी को अंत तक गोपनीय रख सकी। ऐसा विरले ही होता है कि सरकार कोई बड़ा निर्णय ले और इसके बारे में किसी को भी पहले न मालूम पड़े। केवल मुट्ठीभर नौकरशाहों और प्रधान मंत्री को इसके बारे में मालूम था। ऐसी सूचनाएँ भी मुझे मिली हैं कि वित्त मंत्री तक को पूरी जानकारी नहीं दी गई थी।
राजीव: यह एक बड़ी उपलब्धि है।
वैद्यनाथन: तृतीय – सब लोग कह रहे हैं कि सारा पैसा बैंकों में वापस आ गया, पर यह सचाई नहीं है। नक्सल-प्रभावित इलाकों में जो बेशुमार पैसा था, उसका अधिकांश पकड़ा जा सका। पहले 169 जिले नक्सल-प्रभावित थे। आज केवल 45 जिलों में नक्सलों का प्रभाव देखा जा रहा है। यह आश्चर्यजनक कमी है।
राजीव: उनके पास पुराने नोट थे।
वैद्यनाथन: इन्हें वे नए नोटों में बदल नहीं सके। और ये पुराने नोट भी जब्त किए गए। बहुत सारा पैसा बैंकों में निक्षेप के रूप में वापस आ गया।
राजीव: पर अब नए नोट पुराने नोटों जितने ही चलन में आ चुके हैं। अतः, नकद पर चलने वाली अर्थव्यवस्था पहले की स्थिति में वापस आ गई है।
वैद्यनाथन: भारत हमेशा ही नकद प्रधान अर्थव्यवस्था रहेगी क्योंकि हम तेजी से वृद्धि कर रहे हैं। लोग इसे समझ नहीं पा रहे हैं। 2 साल पहले हमारी सकल घरेलू आय 125 लाख करोड़ रुपए थी। आज वह 150 लाख करोड़ रुपए हैं। हम 6-7 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहे हैं।
राजीव: पर लोगों ने सोचा कि हर कोई इलेक्ट्रॉनी पैसे का उपयोग करेंगे, जैसे पेटीएम। पर ऐसा नहीं हुआ है।
वैद्यनाथन: वह भी हुआ है। डिजिटल अर्थव्यवस्था और बैंकिंग में भी वृद्धि हुई है। अच्छा? सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम कोई लिथुआनिया या लाटविया नहीं हैं। हमारी आबादी 125 कोरड़ – या करीब डेढ़ अरब है, और वह 29 राज्यों में फैली हुई है। लोग सोचते हैं कि जादू छड़ी फेर देने से सब कुछ हो जाएगा। कि, मोदी को आकर कोई जादू कर देना चाहिए – पर ऐसा सब नहीं होता है। एक महत्वपूर्ण बदलाव जरूर आया है। इसके साथ ही, जैसे-जैसे आर्थिक गतिविधियाँ बढञेंगी, नकद का उपयोग भी बढ़ेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि नकद का उपयोग आर्थिक गतिविधि की रफ्तार से भी अधिक तेजी से नहीं हो रहा है। वह आर्थिक गतिविधियों के अनुरूप ही चल रहा है। और मुझे यकीन है कि आगे चलकर वह स्थिर हो जाएगा।
राजीव: तो क्या काले धन पर आधारित अर्थव्यवस्था समाप्त हो गई है अथवा नहीं?
वैद्यनाथन: वह अब भी मौजूद है। जब तक बॉलीवुड और क्रिकेट रहेगा, काल धन कहीं नहीं जाएगा। काले धन के ये दो प्रमुख स्रोत हैं। इनके अलावा, व्यापार और वाणिज्य से भी काला धन बनता है।
राजीव: जमीन-जायदाद से भी।
वैद्यनाथन: हाँ। काले धन वाली अर्थव्यवस्था को मिटाना आसान नहीं है। एक बात बताऊँ, दुनिया के किसी भी भाग में काले धन को नहीं मिटाया जा सका है। न तो जर्मनी में न ही इंग्लैंड में। हाँ अर्थव्यवस्था में उसका अनुपात कम-ज्यादा रहता है। दूसरे, उन देशों में, वह थोक में होता है, जैसे जब हवाई जहाज खरीदे जाते हैं। वहाँ आक्षेप राष्ट्रपति, सांसद आदि के स्तर के लोगों पर लगाया जाता है। भारत में काला धन खुदरा व्यापारियों और छोटे पैमाने के उद्योगों में देखा जाता है।
राजीव: हाँ। क्या यह सच नहीं है कि आधार को इसीलिए लाया गया था कि सभी लेन-देनों का लेखा-जोखो हो सके, और काले धन से छुटकारा पाया जा सके?
वैद्यनाथन: हाँ। देखिए, लोग डेढ़ दिन में नतीजा चाहते हैं। ऐसा नहीं होने वाला है। बैंकिंग की आदतें बदले में वक्त लगता है। भारत में करीब 75,000 बैंक शाखाएँ हैं। 1969 के राष्ट्रीयकरण के बाद, कुछ हजार रह गए थे। अब वे छोटे कस्बों और गाँवों तक में फैल गए हैं। फिर भी, अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा भाग अब भी बैंकों के दायरे के बाहर है।
राजीव: बहुत लोगों को लगा कि नोटबंदी के कारण वे तबाह हो गए हैं। क्या इसमें कोई सचाई है?
वैद्यनाथन: पर उन्हें अब बहाल कर दिया गया है। मैं नोटबंदी की आलोचना कुछ अन्य कारणों के लिए करूँगा। उसका आयोजन बेहतर रीति से करना चाहिए था। नए आकार के नोटों को सँभालने में सक्षम एटीएम मशीनों की संख्या का आकलन ठीक से नहीं किया गया। वे पुनरंशांकन (रीकैलिब्रेशन) आदि बहुत से ऊँटपटाँग काम कर रहे थे।
दूसरे, उन्हें सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, बीएसएफ या सेना का उपयोग करना चाहिए था। नोटों के परिहन के लिए इनका उपयोग करना चाहिए था। इनके पास दूर-दराज जगहों में भी पहुँचने के लिए पर्याप्त वाहन मौजूद हैं।
राजीव: बहुत बड़ी मात्रा में नोटों को इधर से उधर ले जाने की आवश्यकता थी।
वैद्यनाथन: हाँ। इसमें इनकी मदद ली जा सकती थी।तीसरे, वे आईटीसी, हिंदुस्तान लीवर, पतंजली, श्रीराम ट्रांसपोर्ट जैसी बड़ी कंपनियों के नेटवर्क का उपयोग कर सकते थे। इन्हें अस्थायी बैंकों का दर्जा दिया जा सकता था। वे जनसाधारण को नए नोट वितरित कर सकते हैं, और वे काफी विश्वसनीय कंपनियाँ हैं। इन सब म्यूचुअल फंडों के लिए
राजीव: हमारे यहाँ लाखों स्वतंत्र वित्तीय सलाहकर हैं। उनकी मदद ली जा सकती थी। वे नोटबंदी को सफल बनाने के लिए जनसाधारण और सरकार के बीच के संपर्क सूत्र बनाए जा सकते थे।
वैद्यनाथन: बिलकुल। ऐसा करके उन लंबी-लंबी कतारों को काफी छोटा किया जा सकता था।
यह सब एकबारगी के कष्ट हैं, और वह अब बीत चुका है। अब क्या हम नोटबंदी के कारण बेहतर स्थिति में हैं या बदतर?
वैद्यनाथन: निश्चय ही बेहतर स्थिति में है। एक बड़ा फायदा यह हुआ है कि भारत किस्म के भ्रष्टाचार में कमी आई है जो नकद के स्तर पर होता था। उदाहरण के लिए, आपको बैंगलूरु या चेन्नई में मकान का पंजीकरण कराना हो, तो पहले लोग 40 टका नकद में और 60 टका चेक में देने की बात करते थे।
राजीव: यह दिल्ली में अभी होता है।
वैद्यनाथन: पर यह कम हुआ है। आज उन्हें चिंता होती है कि इस सब नकद राशि का वे करेंगे क्या? अब ज्यादा लोग नकद लेने के लिए राजी नहीं हो रहे हैं। मैं नकद में 20 लाख का क्या करूँगा? मैं उसे खर्च कैसे करूँगा? आज यह आसान नहीं है, जैसा नोटबंदी के पहले था।
दूसरे, अब सरकार प्रवर्तन निदेशालय, आय कर विभाग आदि के जरिए बेहतर आँकड़े प्राप्त कर रही है। वे बड़े लेन-देनों पर निगरानी रख पा रहे हैं। उदाहरण के लिए, आज यदि आप कार खरीदें, तो विक्रेता नकद स्वीकार नहीं करेगा। जेवर बेचने वाली दुकानों भी अब नकद नहीं लिया जा रहा है, यदि आप पुराने ग्राहक हो, तो ही वे नकद लेने को राजी होते हैं।
राजीव: तो नोटबंदी की आलोचना करने वाले बहुत जल्द परिणाम की आशा कर रहे हैं, जब कि इसका दीर्घकालिक प्रभाव अच्छा ही होने वाल है।
वैद्यनाथन: हाँ उसका प्रभाव बहुत ही अच्छा रहेगा।
राजीव: तो लंबी अवधि में हम इसके फायदे देख सकेंगे।
वैद्यनाथन: भारत में कानून और उसके प्रवर्तन में अंतर है। ये दोनों एक ही चीज़ नहीं है। यूरोप, इंग्लैंड आदि में चार्टेर्ड अकाउंटिंग में एक विषय होता है, बैंकिंग लॉ। भारत में उसकी जगह है, बैंकिंग लॉ एंड प्रैक्टिस। इसी तरह हमारे यहाँ आय कर कानून और उसका प्रवर्तन अलग-अलग है। अंतिम जन तक पहुँचना आसान नहीं है। जब सेल फोन आए, सबने उसे यह कहकर धिक्कारा कि यह तो अमीरों के हाथों का खिलौना भर है। आज सेल फोन हर आदमी के हाथों में देखा जा रह है। गरीब से गरीब आदमी भी सेल फोन लेकर घूम रहा है।
राजीव: आइए जीएसटी की चर्चा करें।
वैद्यनाथन: वह भारत में हुए बड़े क्रांतिकारी बदलावों में से एक है। उसने तीन बातों को सिद्ध किया है। 29 राज्य कुछ सामान्य सिद्धांतों पर सहमत हो गए हैं और उन्हों अपने व्यक्तिगत करों को छोड़ना स्वीकार कर लिया है।18 से लेकर 19 अलग-अलग करों में सम्मिलित करके पूरे देश के लिए एक कर बना दिया गया है।
राजीव: पर कुछ लोग इसकी आलोचना क्यों कर रहे हैं?
वैद्यनाथन: क्योंकि जीसीटी ने कुछ हद तक काला धन बनाने की उनकी क्षमता को कम कर दिया है। वह पैसे के सभी हलचलों को पकड़ता है। फिर आप धन-वापसी प्राप्त कर सकते हैं, बशर्ते आपके पास जीएसी नंबर हो। जीएसटी की सीमा अधिक ऊँची रखी जानी चाहिए थी, जैसे 10 करोड़ तक के कारोबार को जीएसटी से छूट दे देनी चाहिए थी। इन्हें बाद में जीएसटी के तहत लाया जा सकता था। हमारी स्थिति झूले के समान है। हम एक छोर से दूसरे छोर जाते रहते हैं।
पहले हमारे यहाँ शेयर बाज़ोरों में लोग ऊँची आवाज़ों में चिल्लाकर बोली लगाया करते थे। आज ऐसा नहीं होता है। शेयरों में हुए सभी लेन-देन सॉफ्टवेयर या सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से करना होता है। इस तरह यह झूले का एक छोर है। न्यूयोर्क और टोक्यो में आज भी ऊँची आवाज़ में चिल्लाकर बोली लगाई जाती है। पर हम न यहाँ हैं न वहाँ।
जीएसटी में हमने सभी को तुरंत शामिल करने की कोशिश की। बेहतर यह होता कि हम शुरुआत बड़े कारोबारियों से करते, जीएसटी प्रणाली को स्थिर करते और फिर धीरे-धीरे उसमें छोटे कारोबारियों को लाते। तो क्या लोग इसलिए नाराज हैं क्योंकि वे इस तरह के भुगतान करने से ज्यादा परिचित नहीं हैं।
राजीव: यह लेन-देन से जुड़ी बात है। तीन-चार साल में जीएसटी के कारण लोग अधिक फायदे में रहेंगे।
वैद्यनाथन: हाँ। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि यह एक क्रांतिकारी कदम है। जरा सोचिए,18 प्रकार के कर। इसमें ईयू सफल नहीं हो पाया है, पर हम सफल रहे हैं। हम ईयू जितने ही बड़े हैं, भौगोलिक दृष्टि से और अर्थव्यवस्था की विशालता की दृष्टि से। पूरे देश के लिए एक कर वाली बात कल्पनातीत है।
राजीव: वे आय कर को खत्म क्यों नहीं कर देते?
वैद्यनाथन: वह एक अलग विषय है। आय कर लोगों से सीधा लिया जाने वाला कर है। जीएसटी परोक्ष रूप से लिया जाने वाला कर है।
राजीव: पर क्या जीएसटी को थोड़ा बढ़ाकर सरकार आय कर से जितना मिलता है, उतनी आमदनी नहीं कमा सकती है?
वैद्यनाथन: नहीं। लोग 4 स्लाबों की अभी से आलोचना कर रहे हैं। जीएसटी परोक्ष रूप से लिया जाने वाला कर है।
राजीव: वह उपभोग पर लगने वाला कर है।
वैद्यनाथन: आय कर का उद्देश्य आय के स्तर के अनुसार समता लाना है। पारंपरिक मतों के अनुसार जीएसटी प्रकार के कर सामान्यतः प्रतिगामी हैं। जबकि आयकर प्रगतिशील है। मैं कहूँगा कि जीएसटी एक बड़ी चीज़ है। सबसे पहले, सभी 29 राज्य इसके लिए सहमत हुए।
राजीव: यदि नोटबंदी और जीएसटी अच्छी पहलें हैं, तो इसी पैमाने की वह कौन-सी अगली चीज़ है, जिसे सरकार को करना चाहिए?
वैद्यनाथन: भारतीयों द्वारा विदेशों में रखे गए काले धन को देश में ले आना।
राजीव: पर यह कैसे किया जा सकता है? यह उनका वायदा था।
वैद्यनाथन: हाँ। संयुक्त राष्ट्र के भ्रष्टाचार-विरोधी कानून हैं। हम एक आज्ञप्ति जारी कर सकते हैं और उसे संसद में पारित करवा सकते हैं, जिसमें कहा गया हो कि विदेशों में भारतीयों द्वारा रखा गया पैसा भारत सरकार की संपत्ति है, और फिर उस पर राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त किया जा सकता है।
राजीव: इसे प्रवर्तित करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी।
वैद्यनाथन: हाँ। इसके बाद एक प्रप्ती नियुक्त करके सभी 71 कर-स्वर्गों (टैक्स हैवेन), और विदेशी बैंकों से संपर्क करके उनसे भारतीयों द्वारा उनके पास रखे गए पैसे की जानकारी देने के लिए कहा जा सकता है। आरबीआई के जरिए कारोबारी आवश्यकताओं के लिए रखा गया पैसा अलग चीज है। पर इसके अलावा जो भी पैसा हो, वह भारत सरकार की है।
राजीव: सभी राजनीतिक दल इस तरीके से वाकिफ हैं।
वैद्यनाथन: हाँ।
राजीव: पर वे इसे अमल में नहीं लाना चाहते, और इसके लिए परस्पर साँठगाँठ कर लेते हैं। इस तरह सभी राजनीतिक दल एक तरह के माफिया है, और वे एक-दूसरे की चमड़ी दुरुस्त रखने में सहयोग करते हैं। वे जनता के समक्ष बोलते कुछ हैं, पर अपने वायदों को निभाते नहीं हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है?
वैद्यनाथन: यह एक षडयंत्र ही है। सभी शामिल हैं इसमें।
राजीव: तो यह कभी नहीं किया जा सकता है?
वैद्यनाथन: कारोबारी लोग, फिल्मों के अभिनेता, बड़े-बड़े खिलाड़ी और नेता लोग इसमें शामिल हैं। यह कोई राज़ की बात नहीं है। आय कर विभाग स्विट्ज़रलैंड में अधिकारी नियुक्त करना चाहता था। इसकी आवश्यकता नहीं है। आज ज़ुरिच चले जाएँ और सुबह सात बजे से लेकर शाम छह बजे तक वहाँ के भारतीय रेस्टोरेंट में बैठ जाएँ।
ज़ुरिच के बैंकों के साथ अपना काम निपटाने लेने के बाद भारत की ये सभी जानी-मानी हस्तियाँ वहाँ खाना खाने के लिए पधारती हैं। तो, यह कोई राज़ की बात नहीं है। इसके दो नतीजे होंगे। एक, आईएसआई और सीआईए जैसी ऐजेन्सियों को इन लोगों के बारे में पता है। वे इस जानकारी का उपयोग भारतीय नेताओं को ब्लैकमेल करने के लिए करते हैं।
यदि आप अमुक कार्रवाई करेंगे, तो हम इस जानकारी को सार्वजनिक कर देंगे। यह एक बात है। पर आज नहीं तो कल सरकार अथवा सरकार का कोई विभाग कार्रवाई शुरू करेगा ही, क्योंकि लोगों का दबाव आएगा।
राजीव: चीन में भ्रष्टचार के लिए मृत्यु-दंड का प्रावधान है।
वैद्यनाथन: हाँ।
राजीव: यह वहाँ लोकप्रिय नहीं था, और सभी लोगों ने मानवाधिकार की शिकाय की। पर चीनियों ने इसकी परवाह नहीं की। अब जहाँ तक भ्रष्टाचार का संबंध में चीन में स्थित सुधर गई है। हाँ।
वैद्यनाथन: पर भारत में सभी को फाँसी देना हो, तो बहुत बड़ी मात्रा में रस्सी की आवश्यकता पड़ेगी। – हाँ। हा-हा-हा।
वैद्यनाथन: रस्सी बनाने वाले उद्योग में काफी तरक्की देखी जाएगी।
राजीव: हमारी यह चर्चा काफी अच्छी रही।
वैद्यनाथन: हाँ।
राजीव: जब हम वापस आएँगे, तब मैं प्रोफेसर वैद्यनाथन से और भी महत्वपूर्ण प्रश्न पूछूँगा।
वैद्यनाथन: धन्यवाद।
राजीव: धन्यवाद।