राजीव: नमस्ते। मेरे साथ हैं, प्रोफेसर वैद्यनाथन। हम एक और रोचक वीडियो करेंगे। यूरोप में आपके अनुसार क्या चल रहा है? उसका विश्व पर और भारत पर क्या असर पड़ेगा।
वैद्यनाथन: पहले बुरी खबर। यूरोप युद्ध के कगार पर खड़ा है। अगले तीन से पाँच सालों में यूरोप में एक भयानक युद्ध छिड़ने वाला है।
राजीव: इस्लाम के साथ?
वैद्यनाथन: हाँ, कई चीज़ों के साथ। यूरोप में देखे जा रहे चार रुझान वहाँ के लिए अतिमहत्वपूर्ण हैं। पहला: वहाँ परिवार लगभग खत्म हो चुका है। यूरोप में होने वाले आधे से अधिक जन्म विवाह के बाहर होते हैं। वहाँ के लोग बहुत कम बचत करते हैं। वहाँ की सरकारें लगभग पूरी तरह से लोगों की देखभाल कर रही है। परिवार का राष्ट्रीयकरण और व्यवसायों का निजीकरण चल नहीं सकता है। भारत में, हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं। परिवारों की पारंपरिक भूमिका को सरकार के हवाले किया गया है। दूसरे, यूरोप के देशों की जन्म दर बहुत घट गई है। वह 1 के निकट पहुँच गया है।
राजीव: वे तुर्की और अन्य देशों को लोगों को ला रहे हैं।
वैद्यनाथन: हाँ। उन्होंने जन्म दर बढ़ाने के लिए कई तिकड़म करके देख लिए हैं, जैसे तीसरे बच्चों को कर-मुक्ति देना, दूसरे बच्चे के लिए मुफ्त शिक्षण, वगैरह। पर कुछ भी काम नहीं कर रहा है। 2001 में, जर्मनी अपने सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगों में काम करने के लिए भारत के लोगों को ग्रीन कार्ड देना चाहती थी।
शायद उस समय स्किमिडिट वाइस-चांसलर थे। पर बवेरियन ईसाई अतिवादी जोसेफ स्ट्रॉस ने हंगाम मचा दिया। उसने कहा, इंडर (इंडिया या भारत) आकर हमारे किंडर (यानी बच्चे) का स्थान ले लेगा। यह एक बड़ा मसला बन गया। भारतीय विशेषज्ञों को ग्रीन कार्ड देने का प्रस्ताव खारिज हो गया। लेकिन अब मेर्केल ने यमन, सीरिया, इराक आदि जगहों से आए हुए शरणार्थियों में लाने के प्रस्ताव को मान लिया है।
राजीव: भारतीयों को आने नहीं दिया गया, पर मध्य-पूर्व के लोगों को लाया जा रहा है।
वैद्यनाथन: इनमें से कई अँगूठा-छाप लोग हैं। वे कुछ नहीं कर सकते। इनमें से कई ने दावा किया है कि वे बच्चे हैं, जैसे हमारे कश्मीरे के पत्थर-बाज़। 20 साल के हैं, पर अपने आपको बच्चा बताते हैं। जैसे हमारे 19-से-कम वाली क्रिकेट टीम जिसमें 26 साल के खिलाड़ी अपने आपको 16 साल से कम बताते हैं। इन तथा-कथित शरणार्थी बड़ी तदाद में पहुँच रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की शब्दावली में इन्हें बिना दस्तावेज़ों के नागरिक कहा जाता है। और उनकी अर्थव्यवस्था ठीक-ठाक नहीं है।
युवकों में बेरोजगारी की दर 50% है। वहाँ युवक का मतलब है 16 से 24 साल के लोग। भारत जैसा नहीं, जहाँ 48 साल का व्यक्ति युवा नेता कहला रहा है। यह अब हमारा विपक्षी नेता है, क्यों? तमिल नाडु में 63-64 साल का एक नेता है, स्टैलिन, जो अपनी पार्टी के युवा मोर्चे का प्रमुख है।
राजीव: हाँ जैसे राहुल गाँधी अब भी एक युवक है।
वैद्यनाथन: दरअसल मैं भी दक्षिण से हूँ। मेरे छात्र शायद अभी तक पैदा भी नहीं हुए हैं। खैर, वहाँ युवकों में बेरोजगारी बहुत अधिक है। स्थानीय आबादी तीन चीजों को लेकर बेहद नाराज है। एक है वहाँ के तथा-कथित यूरोक्रैट, यानी यूरोपियन यूनियन के अफसर। बेल्जियम हमारे सभी निर्णय ले रहा है, यहाँ तक कि ककड़ी की आकृति क्या होनी चाहिए, इसका भी। यह उनकी नाराजगी का एक प्रमुख कारण है।
बेरोजगारी बढ़ रही है और इसके लिए बाहर से आए लोगों को दोषी माना जा रहा है। बाहर के इन लोगों को सरकार नागरिकों के कल्याण के लिए जो पैसा खर्च करती है, वह मिल रहा है। उन्हें अच्छे मकान दिए जाते हैं, और सभी सुख-सुविधाएँ दी जाती हैं। बाहर से आए इन लोगों में से 95% मुसलमान हैं, जो यूरोप में खिलाफत कायम करना चाहते हैं।
तर्की यूरोप में खिलाफत स्थापित करने की योजना का समर्थन कर रही है। चूँकि यूरोप आधुनिक हो गया है, वहाँ के लोग चर्च कम जाते हैं। लंदन या पैरिस का पर्यटक बस सबसे पहले आपको कीसी चर्च दिखाने ले जाएगी। वहाँ के चर्च पर्यटकों की रुचि के विषय बन गए हैं, न कि पूजा-स्थल।
एक रविवार को मैं इंग्लैड के एक बड़े चर्च में गया, जिसमें 1500 लोग बैठकर प्रार्थना कर सकते हैं। वहाँ केवल सात बुजुर्ग लोग आए हुए थे। हाँ, केवल सात लोग। उनमें से एक चर्च का पादरी था, जो व्याख्यान दे रहा था। मैं आठवाँ व्यक्ति था। व्याख्यान के बाद पादरी मेरे पास आया। उसने पूछा, तुम कहाँ से आए हो? मैंने कहा भारत से। ओह! भारत अँधकार में धँसा हुआ देश है। मैंने कहा, हाँ यह तो सच है कि हमारे यहाँ बड़े-बड़े पावर-कट होते हैं। वह समझ नहीं पाया मैं क्या कह रहा था। वह सचमुच सोच रहा था कि हम गहरे अँधकार में फँसे हुए हैं, और उसे हमारी मदद करनी चाहिए। इस तरह, वहाँ के लोग चर्च कम जाते हैं।
आपने शायद पीईडब्लू रिपोर्ट पढ़ी होगी, जो बताता है कि यूरोप में, विशेषकर उत्तरी यूरोप में, ईसाइयों की संख्या बहुत घट गई हैं। स्वयं पोप इसे लेकर चिंतित है। अभी हाल में उसने कहा, यूरोप को दुबारा ईसाई बनाना होगा। यूरोप में ईसाई मजहब की जगह आधुनिकता ने ले ली है। जबर्दस्ती गर्भ-निरोध अपनाने वाली पीढ़ी। मिशिगन के एक प्रोफेसर ने 1956 में गर्भनिरोधक गोली का आविष्कार किया था। और तब से स्थिति बहुत ही खराब हो गई है। यूरोप समलैंगिकता को स्वीकार करता है।
वहाँ शादी से पहले सहवास को और विवाह के बाहर बच्चे पैदा करने को बुरा नहीं माना जाता है। इस्लाम इन सबका विरोध करता है। ध्यान में रखें, इस्लाम आधुनिकता के विरुद्ध युद्ध छेड़ना चाहता है, ईसाई मजहब के विरुद्ध नहीं। उन्होंने किसी भी चर्च में बम नहीं फोड़े हैं। वे वामपंथी उदारवादियों द्वारा चलाई जा रही आधुनिकता के विरुद्ध हैं।
राजीव: इसे समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। पश्चिमी सभ्यता का विरोध करने वाला यह इस्लाम पुराने समयों के ओटमन साम्राज्य के विरुद्ध लड़ने वाले ईसाई योद्धाओं से भिन्न है, इन युद्धों में ईसाई मजहब और इस्लाम आपस में टकराए थे। अब इस्लाम सेकुलर, आधुनिक, निरीश्वरवादी पश्चिमी सभ्यता का विरोध कर रहा है।
वैद्यनाथन: इसलिए मुझे समझ में नहीं आता कि वामपंथी उदारवादी फिरकापरस्त इस्लाम का समर्थन क्यों कर रहे हैं।
राजीव: हाँ।
वैद्यनाथन: वे शमा और परवाने की तरह हैं।
राजीव: ठीक।
वैद्यनाथन: बंग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इडोनेशिया आदि में, जहाँ भी इस्लाम ताकतवर बन गया, उसने वामपंथी उदारवादियों औक कम्यूनिस्टों को जड़ से उखाड़ दिया है।
राजीव: इनमें स्वयं उनके अपने उदारवादी मुसलमान शामिल हैं, क्योंकि ये भी उनकी विचारधारा को खतरा पेश करते हैं।
वैद्यनाथन: बड़ा खतरा – अफगानिस्तान में नजीबुल्ला को एक पेड़ से लटकाया गया, और उसकी लाश को तीन दिन तक वहीं लटक रहने दिया गया, ताकि उसे सब देख सके। वह कम्यूनिस्टों का समर्थक था। वह अफगानिस्थान का राष्ट्रपति था। इसलिए मुझे इन वामपंथी उदारवादियों का दृष्टिकोण समझ में नहीं आता है कि वे इस्लाम का समर्थन डर से कर रहे हैं या मोहब्बत से या दोनों से। वे इस्लामी फिरकापरस्तों का दिल खोलकर समर्थन कर रहे हैं।
आज यूरोप में एक बड़ा आंदोलन चल रहा है, जिसे अर्थशास्त्री और विदेशी मामलों के विशेषज्ञ जनवादी, राष्ट्रवादी, नस्लवादी, फासिस्टवादी वगैरह कह रहे हैं। यह आंदोलन मूलभूत रूप से उन विश्वव्यापी संस्थाओं के विरोध में खड़ा है और वह स्थानीय सार्वभौमता को बहाल करना चाहता है। फ्रांस के ले पने या इटली के सिल्विया को लें। वे बाहर से आने वाले लोगों और इस्लाम का विरोधी हैं। नीदरलैंड के गीर्ट लाइल्डर्स ने नीदरलैंड की अदालत में मामला दर्ज किया है।
राजीव: ये राष्ट्रवादी एक खास नस्ल या नृजाति के लोगों के पक्षधर हैं और वे खगोलीकरण और तथा-कथित उदारवादी मूल्यों के विरोधी हैं। क्योंकि उनको लगता है कि इन मूल्यों को यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे संस्थानों को कमजोर कर दिया है। इन बहुराषट्रीय संस्थानों ने स्थानीयकरण को कुंद कर दिया है।
वैद्यनाथन: ठीक।
राजीव: क्या हम कह सकते हैं कि खगोलीकरण को पलटा जा रहा है?
वैद्यनाथन: या कि स्थानीयकरण का पलड़ा भारी होता जा रहा है?
राजीव: हाँ? खगोलीकरण पीछे हट रहा है और उसके द्वारा खाली किए गए स्थान में स्थानीयकरण फिर से सिर उठा रहा है।
वैद्यनाथन: बिलकुल। हंगरी, पोलैंड और ऑस्ट्रिया ये तीन देश मुसलमानों के आगमन के तीव्र विरोधी हैं। वे साफ-साफ कह रहे हैं कि वे अपनी संस्कृति को बचाना चाहते हैं और मुसलमानों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। इस्लामी लोग तो यूरोप में खिलाफत कायम करना चाहते हैं। लंदन को तो सब कोई लंदनिस्तान कहा जा रहा है। यूरोप को यूरेबिया कहा जा रहा है। वे यूरोप में खिलाफत कायम करके उसकी राजधानी लंदन या पेरिस को बनाना चाहते हैं। वे उन दिनों की याद करते हैं जब स्पेन और दूसरी जगहों से अंडल्यूशियन साम्राज्य का शासन यूरोप में चलता था। चर्च बंद हो रहे हैं। कुछ में तो शराब-खाने खुल गए हैं। हालाँकि दोनों का धंधा ‘स्पिरिट’ का है। तो इंग्लैड और यूरोप में चर्च शराब-खाने, मस्जिद या हिंदू मंदिर बनते जा रहे हैं।
स्वामिनारायण संप्रदाय ने इंग्लैड के कुछ चर्चों को खरीदकर उन्हें मंदिरों में बदला है। उनकी पूरी व्यवस्था पर हमला हो रहा है। छोटी-छोटी आगें हर जगह सुलगा दी गई हैं। सब लोग वाहनों का उपयोग करके किए जाने वाले आतंकी हमलों के बारे में जान गए हैं, जिनमें जिहादी आतंकवादी किसी बस पर काबू करके उसे बहुत सारे लोगों के ऊपर चला देता है। इन कृत्यों के लिए ज्यादा पैसा नहीं लगता है।
राजीव: इन सबसे भारत के लिए नए अवसर खुलते हैं, अथवा ये भारत के लिए भी खतरे हैं?
वैद्यनाथन: सच कहूँ तो यूरोप ने लड़ने का हौसला खो दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है।
राजीव: नैटो को रूसियों के साथ लड़ने के बजाय इस चीज से लड़ना चाहिए।
वैद्यनाथन: नहीं। यूरोप अब लड़ने का दमखम नहीं रखता है। वे ट्रंप पर निर्भर हैं। ट्रंप इसे जानता है। यही कारण है कि वह यूरोप से नाराज है। बेल्जियम की सेना में औसत उम्र 44 है। उनकी कमर की माप भी यही है। वे किसी से कैसे लड़ सकते हैं? जर्मनी को कुछ हद तक छोड़कर, बाकी सारा यूरोप शराब-खानों, संगीत दीर्घाओं, सॉकर के मैदानों और समुद्र तट के अय्याशों में बदल गया है। मनोरंजन और आराम-तलबी उनकी रग-रग में घुस चुकी है।
फ्रांस में वे काम के घंटों को अभी के 33-34 घंटों से भी कम करना चाहते हैं। यूरोप अब लड़ नहीं सकता है। वह अमेरिका की राह देखेगा, और अमेरिका को उनकी लड़ाई लड़ने के लिए आना होगा। पर अमेरिका भी इन्कार कर सकता है, क्योंकि थैले में बंद होकर अमेरिका के सैनिकों की हर लाश जब अमेरिका पहुँचती है, तो वहाँ बवाल मच जाता है।
दूसरी बात यह है कि वे यूरोप में वैसी लड़ाई नहीं लड़ सकते हैं जैसी लड़ाई वे मध्य-पूर्व में लड़ते हैं। वे वहाँ आसमान से बम गिरा देते हैं। यूरोप में ऐसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि वहाँ की आबादी…
राजीव: श्वेतों की है।
वैद्यनाथन: वे अपनी ही श्वेत आबादी को कैसे मार सकते हैं। होगा यह कि भारत से दबाव डाला जाएगा कि वह यूरोप अपने सैनिक भेजें।
राजीव: पर भारत नहीं मानेगा क्योंकि भारत ने मध्य-पूर्व में एक भी सैनिक नहीं भेजा है, हालाँकि यदि वह भेजता तो उसे बहुत फायदा हो सकता था।
वैद्यनाथन: नहीं। भारत से अब कहा जाएगा कि लो तुम संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना दिए जाते हो।
राजीव: आपका मतलब है, सुरक्षा परिषद का सदस्य?
वैद्यनाथन: हाँ। हमें बहला-फुसला जाएगा कि हम शांति बनाए रखने के लिए अपनी फौज भेजें। सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्यता पाने के लिए एक शर्त रखी जाएगी
राजीव: कि हम यूरोप में शांति बनाए रखने के लिए अपनी फौज भेजें।
वैद्यनाथन: भारती फौज हमेशा से दूसरों की लड़ाई लड़ती आ रही है। पहले महायुद्ध में हमारे बहुत से लोग मारे गए थे।
राजीव: उस युद्ध में 12 लाख भारतीय सैनिक लड़े थे, जिनमें से 75,000 मारे गए। पूरे पहले महायुद्ध में मारे गए इन भारतीयों के लिए पूरी दुनिया में केवल एक स्मारक है – इंडिया गेट। दूसरे महायुद्ध में भी भारत की सेना लड़ी थी।
राजीव: पर इसके लिए उसे कोई स्मारक नहीं मिल सका।
वैद्यनाथन: बर्तानिया के सेनापति को पूरा यकीन था कि जर्मनी हार जाएगी। लोगों ने पूछा – क्यों ? उसने कहा हम आखिरी हिंदुस्तानी तक जर्मनों से लड़ेंगे। दूसरों की लड़ाइयाँ लड़ने के लिए हम हमेशा तैयार रहते हैं। अपनी लड़ाइयाँ लड़ने के लिए नहीं। कहा जा सकता है कि हम अच्छे सिपोय हैं। हमसे यूरोप के लिए लड़ने को कहा जाएगा। यूरोप जाकर उनकी लड़ाई लड़ते हुए हमें बहुत सावधान रहना होगा। यह निर्णय लेना भारत के लिए काफी कठिन होगा।
राजीव: बिलकुल।
वैद्यनाथन: भारत में 17 करोड़ मुसलमान रहते हैं। हमारी विेदेश नीति हमेशा ही घरेलू मसलों से प्रभावित रही है। हमें अपनी फौज भेजने के लिए राजी होना चाहिए, पर हमारी कुछ शर्ते होनी चाहिए: अमेरिका और यूरोप के देशों को साफ शब्दों में घोषणा करनी चाहिए कि संपूर्ण जम्मू-कश्मीर जिसमें पाकिस्तान और चीन के कब्जे में जो कश्मीर है, वह भी शामिल है, वह भारत का है। दूसरे, बलूचिस्तान एक स्वतंत्र और अलग सार्वभौम देश है। तीसरे, तिब्बत भारत का हिस्सा है।
राजीव: या एक स्वतंत्र देश है।
वैद्यनाथन: उन्हें यह भी मानना होगा कि अगले पाँच-दस सालों में पाकिस्तान को चार या पाँच अलग देशों में बाँट देना होगा। यदि ये शर्तें मानी जाती हैं, तो हम अपनी फौज भेजने के बारे में सोच सकते हैं। हमें बदले में कुछ मिलना चाहिए, तभई हम अपने लगों को वहाँ लड़ने भेजेंगे।
राजीव: यह काफी रोचक विचार है, जो यूरोप की तकलीफ की चर्चा से निकल आया है – वहाँ की बिगड़ती स्थिति और वहाँ घुमड़ रही विभी समस्याएँ और फिरकापरस्त इस्लाम के साथ उनकी लड़ाई। अन्यथा, यूरोप का खात्मा हो जाएगा। यूरोप के लोग लड़ नहीं सकते, अमेरिकी नहीं लड़ेंगे, और भारतीयों से लड़ने के लिए कहा जाएगा।
यदि हम प्रोफेसर की सलाह मानें, तो क्या यह हमारे लिए अवसर प्रदान करता है? हमें अपनी फौज भेजने के लिए राजी हो जाना चाहिए, बशर्ते वे हमारे लिए कुछ करें, जिनसे चीन के साथ हमारा सीमा विवाद सुलटे, पाकिस्तान का मामला पटरी पर आए, और हम संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन जाएँ।
यदि अमेरिका और यूरोप इन सबकी व्यवस्था करके दे सकें, तो हम अपनी फोज भेजेंगे, और इस अघोषित तीसरे महायुद्ध में भाग लेंगे, जो इस्लाम और यूरोप के बीच यूरोप की मिट्टी में इस समय चल रहा है।
यह काफी रोचक और लोगों को भड़काने वाला विचार है।
वैद्यनाथन: यूरोप लड़ नहीं सकता, अमेरका नहीं लड़ेगा, और भारत को तब तक नहीं लड़ना चाहिए जब तक उसकी कुछ शर्तें पूरी नहीं की जातीं।
राजीव: धन्यवाद।
वैद्यनाथन: धन्यवाद।