राजीव: नमस्ते! मेरे साथ हैं, प्रोफेसर वैद्यनाथन। आपका एक बार फिर स्वागत है। तो आइए, चीन की चर्चा करें।
भारत के लोग अपने आप की तुलना पश्चिम के साथ करते हैं और कहते हैं कि कुछ मामलों में हम उनसे बेहतर हैं।
पर असली कसौटी चीन होना चाहिए, जो हमारे पड़ोस में है। वह हमारे लिए वह एक सामरिक चुनौती ही नहीं है, बल्कि एक आर्थिक चुनौती भी है। वे प्रौद्योगिकी में द्रुत प्रगति कर रहे हैं, और कई क्षेत्रों में विश्व में अग्रणी हैं।
चीन और भारत पर चीन के प्रभाव के बारे में आपके क्या विचार हैं?
वैद्यनाथन: शायद मेरे विचार औरों के विचारों से भिन्न हैं। चीन में कई लोग, कम से कम अधिक उम्र के लोग, अपने आपको भारत का छोटा भाई मानते हैं। मैंने चीन में बहुत यात्रा की है और कुछ लोगों ने मुझसे कहा है कि उन्हें अगली बार भारत में जन्म लेना होगा, ताकि वे मोक्ष प्राप्त कर सकें। कुछ बुजुर्ग इस पर सचमुच यकीन करते हैं। सांस्कृतिक दृष्टि से हमने उन्हें बहुत प्रभावित किया है। आप उस प्रसिद्ध कहावत को तो जानते ही होंगे….
राजीव: हाँ पर चीनी लोग बहुत ही व्यावहारिक भी होते हैं। जब वे आग तापते हुए बैठे होते हैं और कुछ भारतीय पर्यटकों को प्रभावित करना चाहते हैं, तब वे ऐसी बातें करते हैं।
वैद्यनाथन: नहीं यह इस तरह की बातें नहीं हैं।
राजीव: उनके वास्तविक कार्रवाइयाँ व्यावहारिक और आत्म-केंद्रित होती हैं।
वैद्यनाथन: मैं उसे आत्म-केंद्रित तो नहीं कहूँगा। यह उनका राष्ट्रीय हित है। भारत को भी राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए कार्य करना चाहिए। हमने कभी ऐसा नहीं किया है।
राजीव: सच कहा।
वैद्यनाथन: हम तो राष्ट्रीय हित में काम करने वालों की खिल्ली उड़ाते हैं। हममें अहंकार भरा हुआ है कि हम ही सही हैं, और हम ऐसी चीज़ें करते रहते हैं जो स्वयं हमें नुकसान पहुँचाती हैं। वे ऐसा नहीं करते हैं। हमने सांस्कृतिक रूप से उन्हें बहुत प्रभावित किया है।
राजीव: पर वह तो हजारों साल पहले की बात है, नया चीन, माओ से शुरू करते हुए, भारतीय संस्कृति से बहुत दूर चला गया है।
वैद्यनाथन: वह कम्यूनिस्ट चीन ज्यादा नहीं है। यह नौकरशाहों या राजनीतिज्ञों में है।
राजीव: हाँ। उस पर मुख्य रूप से पूँजीवाद, और पश्चिमी तौर-तरीकों की छाप है। प्रभाव के मुख्य स्रोत हैं, पैसा, उद्योग, प्रौद्योगिकी, जो सब पश्चिम से आया है।
वैद्यनाथन: 62 के युद्ध को छोड़कर हमारा उनके साथ कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ है।
राजीव: पर सीमा को लेकर विवाद तो जारी है, और इसे वे सुलटाने से मना कर रहे हैं।
वैद्यनाथन: हमें चीन को प्रभावित करने की कोशिश करनी चाहिए।
राजीव: वे कई जगहों पर सैनिक अड्डे भी बना रहे हैं। सेशेल्स, जहाँ वे भारतीयों को आने नहीं दे रहे हैं। वे श्रीलंका, पाकिस्तान और म्यानमार में हैं।
वैद्यनाथन: वे भारत के विरुद्ध इस्लाम का भी उपयोग कर रहे हैं।
राजीव: वे हमारे सभी पड़ोसियों को बरगलाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। अब वे पैसे और निवेश से नेपाल को भी अपने खेमे में खींच रहे हैं। औसत नेपाली कहता है, चीनी हमारे लिए सदा मौजूद हैं। वे चीनी उत्पाद खरीद रहे हैं, और नेपाल के बाज़ार चीनी माल से भर गया है। नेपाल में पानी बेशुमार मात्रा में है।
इस पानी को चीन उत्तर की दिशा में मोड़ सकता है। हमने नेपाल और बंग्लादेश के साथ पानी को लेकर अपनी लड़ाइयाँ अब भी नहीं सुलटाई हैं। ये विवाद अब भी बने हुए हैं। उनके पास इस पानी को पाइपों के द्वारा तिब्बत भेजने की प्रौद्योगिकीय क्षमता है।
तिब्बत पर कब्जा जमाने के बाद, वे 50-60 अरब डालर पाकिस्तान में लगाकर, पाकिस्तान को भी हथियाना चाह रहे हैं। इसके बाद नेपाल की बारी आएगी। इस तरह यदि हम उनके वास्तविक कार्यकलापों को ध्यान में लें, तो भले ही वे हमारी संस्कृति से प्रेम करते हों, वे हमारे साथ शत्रुवत व्यवहार कर रहे हैं।
वैद्यनाथन: हमें जो करना चाहिए था, वह हमने नहीं किया। पिछले 20 साल में हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता से उनकी युवा पीढ़ी को प्रभावित करना चाहिए था। हमें अमर चित्र कथा की लाखों प्रतियाँ चीनी भाषा में मुद्रित करके चीन में वितरित करना चाहिए था। हमने भारतीयों को चीन जाने से रोका। अभी हाल में कांची के शंकराचार्य को योग-विद्या फैलाने के लिए चीन जाने नहीं दिया गया। भारत सरकार ने हमारी संस्कृति और धर्म को चीन में फैलाए जाने को प्रोत्साहित नहीं किया है। जब तक आप चीनी युवाओं को और चीनी लोगों को प्रभावित नहीं करेंगे, चीन के साथ अच्छे संबंध कैसे स्थापित हो सकते हैं?
राजीव: आप जानते हैं, चीन में कौन योगाभ्यास ला रहे हैं? अमेरिकी योग शिक्षक। वे लोग जो भारतीय संस्कृति से पलट गए हैं, योग को अमेरिकी योगा में पचा चुके हैं, वे चीन में योग-विद्या पहुँचा रहे हैं।
वैद्यनाथन: यह हमारी गलती है।
राजीव: बेशक।
वैद्यनाथन: मैं यह कह रहा हूँ कि चीन अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। मेरी राय यह है कि यदि हम सामरिक रीति से कार्य करें, तो हम चीन में अव्यवस्था फैला सकते हैं। चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के एक नेता की बेटी ने मुझसे कहा कि वे चीन में गैरकानूनी रीति से काम कर रहे चर्च के क्रियाकलापों से बहुत डरे हुए हैं। चीन में चर्च की गतिविधियाँ जिस कदर गैरकानूनी रीति से बढ़ गई हैं, वह सचमुच अविश्वसनीय है। चीन में मुसलमानों की एक बहुत बड़ी समस्या है।
राजीव: कुछ चीनी प्रांतों में।
वैद्यनाथन: हाँ, पर उनके यहाँ इस्लाम पर कड़े प्रतिबंध भी लगे हुए हैं। शांघाई या बीजिंग का औसत नागरिक इस्लाम के प्रभाव का विरोधी है। हम चीन पर सही दबाव नहीं डाल रहे हैं। एक अन्य उदाहरण है, हमें भारत में चीन का अध्ययन करने के लिए 40-50 चीनी अध्ययन केंद्र स्थापित करने चाहिए थे। हमने ऐसा नहीं किया है। जेएनयू में एक है।
राजीव: चीनी अध्ययन पर। हमें चीन का पूर्वपक्ष करना चाहिए।
वैद्यनाथन: हाँ। हमें चीन को बर्तानिया या अमेरिका के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। हमें अपने दृष्टिकोण से चीन को देखना चाहिए, और हमने ऐसा नहीं किया है। क्या आप बता सकते हैं चीनी मामलों में पारंगत 50 भारतीय विशेषज्ञों के नाम?
राजीव: ठीक है, ये भारत की नीतियों की कमियाँ हैं। पर हमें चीन जैसा है, उसका भी तो हिसाब-किताब करना चाहिए। चीन एक के बाद एक प्रौद्योगिकी में अग्रणी स्थान प्राप्त करता जा रहा है – सौर ऊर्जा, सौर ऊर्जा पैनल। विश्व में जितने सौर ऊर्ज पैनेल उपयोग किए जाते हैं, उनमें से 75% चीन में बनते हैं। वे बहुत जल्द बिजली से चलने वाली कारों में अग्रणी स्थान प्राप्त करने जा रहे हैं। वे उस प्रौद्योगिकी में सबसे आगे हैं, जो सड़क पर चलती कारों को सौर ऊर्ज से पुनरावेशित कर देती है।
चीन जैव-प्रौद्योगिकी और नैनो-प्रोद्योगिकी में सबसे आगे है। वे दुनिया भर से सर्वोत्तम विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों को ला रहे हैं और उन्हें विश्व स्तर का वेतन दे रहे हैं। अमेरिका में मेरे ऐसे कई मित्र हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र के सर्वोच्च विशेषज्ञ हैं, और ये चीन में बसने जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा वेतन पेश किया जा रहा है जिसे वे मना कर ही नहीं सकते।
चीन अपनी दौलत का उपयोग करके पश्चिम के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों को खरीद रहा है, और अफ्रीका जैसे देशों से कच्चा माल ला रहा है। अफ्रीका तो चीन का उपनिवेश जैसा ही हो गया है। वहाँ से बेशुमार खनिज लाए जा रहे हैं। तीसरा है, इस्लाम के साथ चीन का सामरिक गठबंधन। इस तरह वे अपनी दौलत का उपयोग तीन तरह से कर रहे हैं – पश्चिम से सर्वश्रेष्ट विशेषज्ञों को खरीदने के लिए, अफ्रीका से कच्चा माल खरीदने के लिए, और अन्य सभ्यताओं से लड़ने के लिए इस्लाम के साथ साठगाँठ करने के लिए।
शायद लंबी अवधि में उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी क्योंकि वे इस्लाम को बिना सोचे-समझे अपना दोस्त बना रहे हैं। अल्प काल में, वे इस्लाम से दोस्ती दूसरों पर हमला करने के लिए कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वे पाकिस्तान को दिल से चाहते हैं, पर पाकिस्तान उनके लिए एक उपयोगी मूर्ख है। इस वस्तुस्थिति को देखते हुए हमें क्या करना चाहिए?
वैद्यनाथन: सबसे पहले, हमें यूरोपियों और अमेरिकियों के चीन-विरोधी करतूतों में सहयोगी होने का
आभास नहीं देना चाहिए। हमारे बारे में चीन का खयाल यह है कि दुनिया की घटती ताकतों द्वारा चलाए जाने वाले चीन विरोधी अभियानों में हम सहयोग कर रहे हैं।
राजीव: पर हम जापान के मित्र हैं।
वैद्यनाथन: हमें जापान के साथ अपनी मैत्री बढ़ानी चाहिए।
राजीव: चीन के साथ जापान को बड़ी समस्याएँ हैं।
वैद्यनाथन: ठीक
राजीव: जापान भारत के साथ इसलिए मिलना चाहता है, क्योंकि चीन उनके लिए एक बड़ा खतरा है।
वैद्यनाथन: खैर यह सब जैसा भी हो, शायद आप इससे सहमत होंगे कि हमें चीन के साथ सभ्यता के स्तर पर हमारी जो दीर्घ परंपरा है, उस पर लौट आना चाहिए। बौद्ध और हिंदू संस्कृतियों में बड़ी समानताएँ हैं, और सभ्यताओं के बीच दुनिया में जो यह लड़ाई चल रही है, उसमें इन दोनों को साथ खड़ा होना चाहिए। मेरा मानना है कि हम बड़ी आसानी से चीन को यकीन दिला सकते हैं कि इस्लाम उनकी मदद नहीं कर सकता है। वे स्वयं इसे जल्द समझ जाएँगे।
इस्लाम चीन के लिए एक बड़ा खतरा है।
राजीव: चीन की सोच यह है कि पहले असली, यानी सैनिक ताकत से सब पर हावी हो जाओ, इसके बाद अपना प्रभाव फैलाने (या सॉफ्ट पावर) की चिंता करो। यही वजह है कि चीन की सांस्कृतिक क्रांति में संस्कृति को अलग रखकर असली ताकत हासिल करने पर जोर दिया गया। फिर उन्हें समझ में आया कि उन्हें पूँजीवाद, पैसा और अमेरिकी प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है। इस तरह चीन की तरक्की वास्तव में इस असली ताकत – यानी वित्त, व्यवसाय, सैनिक शक्ति, और राजनीति- में हुई है। जब वे इन क्षेत्रों में पूर्ण दबदबा हासिल कर लेंगे और उन्हें आवश्यक लगने वाले भू-क्षेत्रों पर कब्जा जमा लेंगे, तब वे सॉफ्ट पावर के क्षेत्र में भी बड़ा खिलाड़ी बनने पर विचार करेंगे।
पर इस समय, यदि हम उनसे कहें कि तुम इन असली ताकत के क्षेत्रों में अग्रणी बनने की अपनी कोशिश छोड़ दो और इसके बदले हमारी सॉफ्ट पावर ले लो, तो वे कहेंगे, फिलहाल रहने दो।
वैद्यनाथन: उन्हें ऐसे सौदे में रुचि नहीं होगी। पर उनकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वे तानाशाही शासन-व्यवस्था में काम करते हैं, जिसमें ताकत मुट्ठी भर लोगों के पास रहती है।
राजीव: हाँ।
वैद्यनाथन: जिसे वन मैन शो कहा जाता है। उसने अपने आपको पाँच और सालों के लिए नियुक्त कर लिया है।
राजीव: पर उनकी शासन व्यवस्था इसकी अनुमति देती है।
वैद्यनाथन: पर चीन के विभिन्न क्षेत्रों में भयानक स्तर पर असंतोष फैला हुआ है। हमने चीन में अव्यवस्था फैलाने की
सक्रिय कोशिश कभी नहीं की है।
राजीव: पर, हमारे यहाँ तो भारत-तोड़ो ताकतें बहुत ही सक्रिय हैं। पर चीन-तोड़ो ताकतों का नामोनिशान भी आपको चीन में नहीं मिलेगा।
वैद्यनाथन: दरअसल, वैसी ताकतें वहाँ भी बेशुमार हैं। चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर असंतोष है।
राजीव: उनके हाथ में हथियार नहीं है।
वैद्यनाथन: नहीं। इन विद्रोहों के बारे में हम इसलिए नहीं जान पाते हैं क्योंकि चीन के बारे में जानकारी के लिए हम न्यूयोर्क टाइम्स को ताकते रहते हैं, जो इस तरह की खबरें नहीं छापेगा।। जब कोको-कोला और पेप्सी चीन में गए, तो उनके साथ एक अनकहा अनुबंध कर लिया गया था, जिसके तहत पश्चिमी मीडिया में चीन को नुकसान पहुँचाने वाली कोई भी खबर नहीं आएगी। तो सब लोग चीन के बारे में अटकलें ही लगाते रह जाते हैं। पर मैं कहता हूँ, जब चीन में सामाजिक विस्फोट होगा, तब वह वाकई बहुत विशाल स्तर पर होगा।
राजीव: पर मैंने तो भारतीयों को यह 25 साल से कहते हुए सुना है, कि चीन का गुब्बारा जल्द फूट जाएगा, उनकी अर्थव्यवस्था जाली है। पर वे तो हर क्षेत्र में हमसे आगे निकले ही जा रहे हैं। वे हमसे तीन गुना बड़े हो गए हैं।
वैद्यनाथन: नहीं, यह सब मुख्यतः विश्वव्यापी कंपनियों की मदद से हुआ है। बात यह है कि भारत एक प्रेशर कुकर के समान है, जो कभी फटता नहीं है। जब दाब बढ़ता है, तो उसकी सीटी बजने लगती है, और कुछ दाब निकल जाता है। हमारी नींव मजबूत है। हमारे यहाँ सरकारें बदलती रहती हैं
राजीव: पर यह जरूरी नहीं है कि लोकतंत्र देश को असली क्षेत्रों में ताकतवर बनाए। वह हमें क्षीण भी कर सकता है। हम एक-दूसरे को नीचा दिखाने में संलग्न अपने नेताओं पर गर्व कर सकते हैं, पर इस तरह की अंदरूनी लड़ाई हमें कमजोर कर रही है।
वैद्यनाथन: नहीं, कमजोर नहीं। हम लंबी दूरी के घोड़े हैं, मैरथन जीतने वाले धावक। लोकतंत्र की यही ताकत होती है। वह हमें धीमा करता है।
राजीव: ओलंपिक्स में चीन और भारत दोनों ही कहीं के नहीं थे, अब चीन दूसरे या तीसरे स्थान पर है, पर भारत अब भी कहीं नहीं हैं। इसका संबंध अनुशासन, एथलेटिक्स…
वैद्यनाथन: राजीव, ऐसा भी एक समय था, जब पूर्वी जर्मनी को ओलंपिक्स में सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक मिलते थे।
राजीव: पर एथ्लेटिक्स में जीत हासिल कर सकने वाले खिलाड़ी तैयार करने के लिए जो प्रणाली खड़ी करनी होती है, उसे खड़ी करने के लिए 20 साल लगता है। वे उसे राष्ट्र निर्माण के ही एक हिस्से के रूप में बना देते हैं। उन्हें लगा कि खेल-कूद और एथलेटिक्स में अच्छा प्रदर्शन राष्ट्र निर्माण का एक भाग है।
वैद्यनाथन: उन्होंने बच्चों को अपने कब्जे में ले लिया, और उन्हें प्रशिक्षण देने लगे। भारत में यदि आप 10 बच्चों को अपने कब्जे में लेकर प्रशिक्षण देने लगेंगे, तो हमारे टीवी चैनलों में बवाल मच जाएगा – क्यों बच्चों को माता पिता से अलग किया जा रहा है? लोकतंत्र में सफलताएँ धीरे-धीरे प्राप्त होती हैं।
राजीव: सवाल यह है कि क्या हमारे पास इतना समय है? कहीं ऐसा न हो, कि भारत-तोड़ो ताकतें इससे पहले ही हमारे देश के टुकड़े-टुकड़े कर दें।
वैद्यनाथन: नहीं। हम यह दौड़ पिछले डेढ़ हजार साल से जीतते आ रहे हैं। हम इसमें पीछे नहीं रहने वाले हैं…
राजीव: पर हमारा देश जमीन खोता जा रहा है, दुनिया में हमारा प्रभाव क्षेत्र घटता जा रहा है, और हमारे ही देश में हमारी संस्कृति तोड़ी-मरोड़ी जा रही है। अपने ऊपर हमारा नियंत्रण ही नहीं रहा। हमारे नेताओं को ब्लैकमेल किया जा सकता है, क्योंकि वे जीमेल का उपयोग करते हैं। वे नहीं समझ पाते कि सीआईए विदेशी बैंकों में मौजूद उनके खातों पर नज़र रखी हुई है। वे उनसे एक फोन करके अपना काम निकलवा सकते हैं।
यदि तुम हमारे कहे अनुसार नहीं करोगे, तो हम तुम्हें तबाह कर देंगे। हमारे नेता ब्लैकमेल किए जाने के बहुत बड़े खतरे के तले जी रहे हैं। हम एक टाइम बोंब पर बैठे हैं। और हम जनसंख्या विस्फोट और मुसलमानों के निरंतर घुसपैठ का भी सामना कर रहे हैं। हमें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हम चीन के खतरे को ऐसे हवा में उड़ा नहीं सकते हैं। देखिए उन्होंने पिछले 30 सालों में क्या हासिल कर लिया है। हमें इसकी सराहना करनी चाहिए। उनकी जैसी आर्थिक वृद्धि विश्व इतिहास में पहले कभी नहीं देखी गई है।
वैद्यनाथन: बिलकुल। इसमें कोई शक नहीं है। पर यह तो बताएँ, साठ के दशक में कितने करोड़ चीनी खुद अपनी सरकार द्वारा मारे गए थे?
राजीव: यह भी ठीक है। तो इस वृद्धि की कीमत यह रही है।
वैद्यनाथन: कोई नहीं जानता। आँकड़े ही नहीं हैं। एक बात और, चीनी सरकार हर पाँच-छह सालों पर अपने आँकड़ों में हेरा-फेरी करती है।
राजीव: पर सभी ताकतवर, आधुनिक देशों ने इस हिंसा की कीमत चुकाई है। अमेरिकी क्रांति को देखिए, फ्रांस की क्रांति को देखिए। रूसियों ने और चीनियों ने यह कीमत चुकाई है। जापान में सामुराई संस्कृति ने भी यह कुर्बानी ली है। अन्य देशों में राष्ट्र निर्माण के लिए हमेशा ही एक पीढ़ी की कुर्बानी दी गई है। भारत ने ऐसा नहीं किया है। हमें आज़ादी आसानी से मिल गई। यदि हमें सुभाष चंद्र बोस के रास्ते आज़ादी मिली होती तो…
वैद्यनाथन: बिलकुल।
राजीव: बात कुछ और ही होती। हमने क्षत्रियों का मार्ग नहीं अपनाया। हमने धरने और अनशन पर बैठने का मार्ग अपनाए। हम उनके लिए इतनी बड़ी मुसीबत बन गए कि उन्होंने यहाँ से चला जाना ही श्रेयस्कर समझा। आज़ादी पाने के इस तरीके से दृढ़ राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं होता है। यही कारण है कि हमारे शहरों में कोई भी नियम-पालन नहीं करता है। हमें स्वच्छ भारत इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि सब कचरा कहीं भी फेंक देते हैं। समाज के प्रति आदर भाव का यहाँ अभाव है।
वैद्यनाथन: क्योंकि हमारी आज़ादी की लड़ाई का नेतृत्व एक बनिए ने की, न कि क्षत्रियों ने।
राजीव: यदि भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस का मार्ग अपनाते हुए हमने अँग्रेज़ों को बाहर निकाला होता, तो हमने लड़ने में उस्ताद एक पूरी पीढ़ी का निर्माण कर लिया होता।
वैद्यनाथन: हाँ।
राजीव: चीन ने अपनी क्रांति के द्वारा यह कीमत चुकाई है। यह सही है कि इस क्रांति में उनकी पूरी एक पीढ़ी नष्ट हो गई। पर उसकी वजह से आज वे अच्छी स्थिति में हैं। हमने यह कीमत नहीं चुकाई है। हम इसका गुणगान नहीं कर सकते। हम इतने निस्तेज हैं, कि हमें कुछ नहीं होता, क्योंकि हम जीवंत, जोशीला देश नहीं हैं। कोई हमें गंभीरता से नहीं लेता है। चाहे बात संयुक्त राष्ट्र की हो, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की हो, चीन हर जगह छाया हुआ है। कोई नहीं कहता कि असली ताकत तो भारत है। केवल भारतीय ऐसा सोचते हैं अपने बारे में। पर विश्व में हम बड़े बड़े निर्णय लिए जाने वाले मंचों में हैं ही नहीं।
वैद्यनाथन: बिलकुल नहीं हैं। – पर चीन है।
राजीव: तो सवाल यह है, क्या हम इसे स्वीकार करें कि चीन सफल हो गया है? ट्रंप चाहता है कि अमेरिका दुबारा महान बनें, पर दुबारा महान बना है चीन। भारत तो अभी सोच भर रहा है कि हमें भी कभी महान बनना चाहिए। पर महान बनने के लिए जो करना होता है, वह हम नहीं कर रहे हैं। हमारे नेताओं की इन आपसी लड़ाइयों में ही हमारा पैसा और हमारी ऊर्जा खत्म हुई जा रही है। इसमें शक ही नहीं है कि चीन दुबारा महान हो गया है। समझने वाली जो बात अब रह गई है, वह है, इनमें भारत कहाँ स्थित है?
और उनका दोस्त पाकिस्तान तो हमारे लिए किसी काम का नहीं है। हम चाहें तो अमेरिका, जापान, और वियतनाम को अपना दोस्त बना सकते हैं, पर ऐसा करके इस भौगोलिक-राजनीतिक घालमेल में रूस की बलि चढ़ा रहे हैं। रूस हमारा एक विश्वस्त साथी रहा है। हम तो यही चाहते हैं कि चीन हमारे साथ अधिक मैत्रीपूर्ण व्यवहार करे। मोदी कई बार चीन हो आए हैं। ऐसा नहीं है हम कोशिश नहीं कर रहे हैं। पर, भारत को लेकर उनके कुछ तय लक्ष्य हैं। अंततः तो चीन नहीं चाहेगा कि एक और ऐसा देश दुनिया के क्षितिज पर उभरे, जो आबादी के मामले में, प्रति व्यक्ति आय के मामले में उसकी बराबरी कर सके।
वैद्यनाथन: देखिए, चीन की सरकार बहुत ही सुगठित है और विश्व भर में उसे मान्यता मिली हुई है। भारत की सरकार बिखरी-बिखरी है और ऊँचे स्तर के निर्णय जिन विश्व-मंचों में लिए जाते हैं, वहाँ उसे स्थान नहीं मिला हुआ है। पर भारतीय समाज अधिक संगठित है। मैं आपको यकीन दिला सकता हूँ। हमारा समाज ग्रमीण स्तर पर और समुदाय के स्तर पर मजबूत है। वह मजबूत और जीवंत है। इसे पर्याप्त महत्व नहीं दिया जा रहा है। किसी भी लोकतंत्र में, हमें राज्य और समाज के बीच के फर्क को समझना चाहिए।
राजीव: बेशक।
वैद्यनाथन: मैं समझता हूँ, चीन के समाज में खलबली मची हुई है और उसे नियंत्रित किया जा रहा है।
तीन गोर्ज वाले बाँध बनाने के लिए, बताइए तो, कितने लोगों की बलि चढ़ाई गई होगी वहाँ! यदि आप तमिल नाडु में आठ लेन वाली सड़क बिछाना चाहें, तो हज़ार विरोधों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे तो भारत-तोड़ो ताकतें हैं।
राजीव: पर राष्ट्र निर्माण में हमेशा किसी मजबूत नेता का हाथ रहता है, इसके लिए कुर्बानियाँ देनी होती हैं, और कम से कम एक पीढ़ी को तो मानवाधिकार के उल्लंघनों को सहना पड़ता ही है। – तभी समाज गतिशील और लक्ष्योन्मुखी हो पाएगा… हम अभी समृद्ध हुए नहीं हैं, विकसित हुए नहीं है, पर अमीर देशों के जैसे मानवाधिकारों की गुहार लगा रहे हैं।
वैद्यनाथन: हाँ।
राजीव: हम अमीर देशों के जैसे अधिकार चाहते हैं, हालाँकि अभी यहाँ गरीबी खत्म नहीं हुई है। ऐसे कैसे चल सकता है?
वैद्यनाथन: और हमें गरीब देशों की जिम्मेदारियाँ भी निभानी हैं।
राजीव: शायद हमें कुछ समय के लिए तानाशाही सरकार की आवश्यकता है। जैसे सिंगापुर में रही थी।
वैद्यनाथन: पता है हमें क्या चाहिए? किसी क्षत्रिय को सामने आकर देश की बागडोर अपने हाथों में ले लेनी चहिए।
इसके बजाय भारत का सारा नियंत्रण वैश्य प्रवृत्ति के लोगों के हाथों में है। हर कोई व्यवसायी बनना चाहता है।
जहाँ भी देखिए, सब अपना कारोबार शुरू करना चाह रहे हैं। सरकार को तो क्षत्रिय होना चाहिए। अब तक तो सरकार वैश्य प्रवृत्ति की रही है। उसने व्यवसाय चलाने की कोशिश की है, और वह इसमें विफल रही है। अब वे इन व्यवसायों को बेच रहे हैं। हमारी सरकार वैश्य वृत्ति की है, और हमारी जनता भी वैश्य वृत्ति की ओर झुक गई है।
हमें क्षत्रिय सरकार की आवश्यकता है।
राजीव: तो हम सहमत हैं कि चीन को लेकर हमारे विचार एक नहीं हैं, पर इसको लेकर हम सहमत हो सकते हैं कि
हम भारतीयों के लिए चीन महत्वपूर्ण हो जाना चाहिए?
वैद्यनाथन: चीनी अध्ययन वाले हमारे यहाँ 100 केंद्र होने चाहिए।
राजीव: हम पश्चिम का उपनिवेश रहे हैं, इसलिए हम हमेशा पश्चिम की ही चर्चा करते रहते हैं।
हम चीन की पर्याप्त चर्चा नहीं करते हैं। लोग चाहे कहीं भी हों, भारत-चीन के संबंधों पर चर्चा-परिचर्चा करने के लिए अधिक व्यवस्थाएँ होनी चाहिए। चीन के विषय में अधिक शोध प्रबंधों के लिए पैसे उपलब्ध कराना चाहिए।
वैद्यनाथन: हमें चीन को अपने बारे में जानकारी और हमारे दृष्टिकोणों से अवगत कराना चाहिए।
राजीव: हाँ? इसके साथ ही हम समापन करते हैं। हम फिर आएँगे इसी तरह के अन्य वीडियो के साथ। धन्यवाद।
वैद्यनाथन: धन्यवाद।