भारत विखंडन / मूल्यांकन – प्रोफेसर वैद्यनाथन — 1

भारत विखंडन

राजीव: नमस्ते! मैं एक बार फिर प्रोफेसर वैद्यनाथन के साथ हूँ। मैं भारत-तोड़ो ताकतों के बारे में बात करना चाहूँगा। कुछ सात साल पहले मैंने एक पुस्तक लिखी थी।

वैद्यनाथन: हाँ।

राजीव: लेकिन मैंने उस पर काम करना 20 साल पहले ही कर दिया था। मैंने भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलूर में एक व्याख्यान दिया था, जिसका विषय था, “सभ्यताओं की इस भिडंत में भारत कहाँ खड़ा है?” मुझ पर आरोप लगाया गया है कि सनसनी फैला रहा हूँ और षडयंत्रों की अटकलें लगा रहा हूँ। मैंने इसके बारे में चर्चा करना जारी रखा है। भारत-तोड़ो पुस्तक में मैंने जो भविष्यवाणियाँ की थीं, वे आज सत्य साबित हो रही हैं। हमें उन्हें गंभीरता से लेनी चाहिए। भारत में काम कर रहे भारत-तोड़ो ताकतों के बारे में आपका क्या मूल्यांकन है?

वैद्यनाथन: पहले तो राजीव, मैं आपको वह किताब लिखने के लिए धन्यवाद देना चाहूँगा। मैंने उसे पढ़ा है। जब लोगों को इन सबकी भनक भी नहीं थी, आपने इन पर एक पूरी किताब लिख दी। इस किताब ने जो प्रभाव छोड़ा है, उसके लिए मैं आपको और इन्फिनिटी प्रतिष्ठान को धन्यवाद देता हूँ। आज ट्विटर और फेसबुक में लोग # भारत-तोड़ो ताकतें का उपयोग करते हैं। शायद इसके आगे “आर” लगाना चाहिए, यह दिखाने के लिए कि इस पर आपका कॉपीराइट है।

राजीव: वह किताब एक आंदोलन बन गई है।

वैद्यनाथन: हाँ। पर आपने उसे यों ही मुफ्त में दे डाली। अब भारत-तोड़ो ताकतों की उपस्थिति के उल्लेखनीय प्रमाण उपलब्ध हैं। पर भारत-तोड़ो ताकतें बढ़ी भी हैं। मैं एक उदाहरण देता हूँ। कई तमिल टीवी चैनलों के बारे में मैं बेहिचक कह सकता हूँ कि वे सब भारत-तोड़ो ताकतों के लिए एक मंच का काम करते हैं। बहुत से लोगों को जिन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिल सकती है – वे पूर्ण रूपेण अयोग्य हैं – अचानक आंदोलनकारी हो गए हैं। सभी को आंदोलनकारी कहा जा रहा है। कौन इन्हें यह प्रमाण-पत्र दे रहा है? कोई कब निष्क्रियवादी से सक्रियवादी, यानी आंदोनकारी हो जाता है? पत्रकारों का प्रशिक्षण देने वाले कई संस्थानों में पढ़े पत्रकार नक्सल-समर्थक और ईवीआर पार्टी के समर्थक हो गए हैं। वे नियमित पत्रकार नहीं हैं। इनमें से कुछ तो गुंडे-मवाली हैं। वे इधर-उधर जाकर

बखेड़ा खड़ा करते रहते हैं। तमिल नाडु भारत-तोड़ो ताकतों के लिए अखाड़ा बन गया है।

सभी प्रकार की औद्योगिक गतिविधियों का विरोध किया जा रहा है। चाहे वह ओनजीसी की पाइपलाइन हो, आईओसी हो या स्टेरलाइट हो। कुंदमकुलम परमाणु संयंत्र का भी विरोध हुआ था।

राजीव: हाँ।

वैद्यनाथन: अब न्यूट्रीनो का विरोध जोरों से किया जा रहा है। यह चेन्नै को सेलम को जोड़ने वाली शानदार आठ लेनों की सड़क है। कोई झंडा लिए आ खड़ा होता है और कह देता है यह हमारी तमिल भूमि को नुकसान पहुँचाएगा। यह बेहद खतरनाक है। इसे चर्च से भारी समर्थन मिल रहा है। इन चर्चों को विदेशों में अकूत धन मिलता है। यह इस तरह की ताकतों का घालमेल है….अखिल भारत के स्तर पर भी भारत-तोड़ो ताकतें सक्रिय हैं।

राजीव: हाँ। मीडिया खुले तौर पर इनका समर्थन कर रही है…

वैद्यनाथन: उत्तर-पूर्व, मध्य भारत…

राजीव: कश्मीर,

वैद्यनाथन: मध्य प्रदेश और नक्सल-प्रभावित इलाके। भारत की सार्वभौमता और अखंडता को कमजोर करने की एक बड़ी कोशिश जारी है। ये भारत के टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहते हैं। दक्षिण भारत को एक अलग पहचान देने की हास्यास्पद प्रयास भी जारी है। भारत में तरक्की लाने के लिए जो भी किया जार हा हो, उसका विरोध हो रहा है… बहुत पहले मैंने एक साक्षात्कार में मैंने कहा था, दिअसल बिहारियों और छत्तीसगढ़-वासियों की कुर्बानियों से दक्षिण भारत को फायदा हुआ है। माल ढुलाई शुल्क में समानता 1950 के दशक में लाई गई। इससे बैंगलूर में, न कि धनबाद में कोई संयंत्र लगाना लाभकारी हो गया,

क्योंकि दोनों जगह कोयले की कीमत एक समान हो गई। दुनिया के हर भाग में, चाहे वह यूरोप हो या अमेरिका,

आप कोयले की खानों के जितने निकट हों, वहाँ अधिक संयंत्र पाए जाते हैं। पर यहाँ इसका उल्टा हुआ। इस तरह दक्षिण भारत को उल्लेखनीय फायदा पहुँचा। तो भारत-तोड़ो ताकतों की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वे कई तबकों के तहत काम करते हैं। तमिल नाडु में कुंदमकुलम के विरोध प्रदर्शनों के पीछे चर्च का हाथ था। वसंत कुमार, नित्यानंद और पीयूष जैसे लोग इसके पीछे थे। इन्होंने इस आंदोलन को तोड़ दिया। अखबारों ने, जिसमें द हिंदू जैसे प्रमुख अख्बार भी शामिल हैं, जो नक्सल समर्थक है, इन आंदलोनकारियों को बढ़ावा दिया। आज आंदोलनकारियों का पेशा सम्मान-जनक माना जाता है।

इस राजमार्ग के विरुद्ध आंदोलन करने वाले पीयूष मनुष ने अपने फेसबुक पृष्ठ पर लिखा, कि आंदोलनकारी बनने के लिए उस हर महीने दस-बारह हजार रुपए मिलते हैं। यदि आपके पास बाइक हो, तो इतना पैसा बहुत अच्छा है क्योंकि इसमें बहुत यात्रा करनी पड़ती है। इस तरह आंदोलन करना वेतन दिलाने वाला एक पेशा हो गया है। या यों कह लीजिए, आंदलन करना एक तरह का निगमित पेशा है। यह एक बड़ा मुद्दा है।

यह 2019 एक बहुत बड़ा मुद्दा बनने वाला है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, सत्ता में आने की नैतिक-अनैतिक सब तरह की कोशिशें कर रहा है। ऐसे समाचार भी हैं कि वे 225-250 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने वाले हैं। वे इन सीटों इन सब जाति-आधारित या मजहबी और परिवार-आधारित गुटों को दे सकते हैं। इनका बस एक ही लक्ष्य है, पैसे बनाना। भारत-तोड़ो ताकतों से जा मिलना या इन ताकतों को शह देना, उनकी नैतिकता में बुरा काम नहीं है।

राजीव: यही समस्या है। भारत-तोड़ो ताकतें वोट-बैंक वाली राजनीति में स्थान बना रही हैं। वोट बैंक वाली राजनीति स्वयं संसदी प्रणाली का नतीजा है। राष्ट्रपति वाली प्रणाली में आप राष्ट्रपति को मत देकर चुन सकते हैं। वह फिर एक कैबिनेट नियुक्त करेगा। हमें इसके जैसे स्थिरता लाने वाली सत्ता की आवश्यकता है। आज नेता नीचे से उभरकर आते हैं। इसमें लोकतंत्र की अति होती हैं, क्योंकि हर समय किसी न किसी राज्य में कोई न कोई उप-चुनाव होता ही रहता है। अतः अस्थिरता फैलाने का अवसर हर समय बना रहता है, क्योंकि कोई न कोई चुनाव हर समय होता ही रहता है। इसलिए पार्टियाँ अलग-अलग वोट-बैंकों से साँठगाँठ करती हैं और जाति-आधारित राजनीति में संलग्न होती हैं। तो वर्तमान संवैधानिक संसदयी लोकतंत्र प्रणाली ही इन सभी समस्याओं की जड़ है। यह मामला गंभीर है क्योंकि स्वयं संविधान का उपयोग भारत-तोड़ो उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। इस विकट स्थिति से कैसे पार पाएँ? संविधान में कोई संशोधन लाना आसान नहीं होगा।

वैद्यनाथन: बिलकुल नहीं। यह अत्यंत खेदजनक है कि कांग्रेस यह खेल खेल रही है। वे इस तरह के तत्वों को तूल दे रहे हैं, जैसे जाट, पाटीदार और लिंगायत।

राजीव: यह तो वैसा ही है जैसा गोर्बाचोव ने किया था, सोवियत संघ के अनेक टुकड़े कर डालना।

वैद्यनाथन: ठीक।

राजीव: यदि कांग्रेस सत्ता में आती है, तो शायद यहाँ भी गोर्बोचोव जैसा काम हो सकता है।

वैद्यनाथन: बिलकुल।

राजीव: वे पूरे देश को ही खारिज कर सकते हैं।

वैद्यनाथन: यहाँ 29 राज्य हैं।

राजीव: हाँ?

वैद्यनाथन: उन्हें ऐसा करके जरा भी अफसोस नहीं होगा। शिव सेना, डीएमके या मायावती जैसे क्षेत्रीय दलों को बस अपने इलाके की चिंता है। वे अखिल भारतीय स्तर पर काम नहीं करना चाहते हैं। भारत-तोड़ो ताकतें इसका पूरा लाभ उठाती हैं। और उन्हें इसके लिए बेशुमार पैसा मिलता है। वे बसों में भर-भरकर लोगों को ला सकते हैं। वे उन्हें शराब की बोतलें और खाना दे सकते हैं। बिन कुछ किए ये लोग अचानक अतिवादी नारे लगाने लग जाते हैं। आपने कर्णाटक में इसके बारे में सुना होगा। लिंगायतों से अचानक घोषित कर दिया कि वे हिंदू धर्म से अलग एक मजहब हैं और वे अपने इस मजहब के लिए सरकारी की मान्यता चाहते हैं। सरकारें मजहबें बना सकती हैं, ऐसा मैंने कभी नहीं सुना है। मजहबें लोगों द्वारा स्वाभाविक रूप बनाई जाती हैं। मजेदार बात यह है कि ये एक वर्तमान धर्म का ही एक संप्रदाय है।

राजीव: सच कहा।

वैद्यनाथन: यहाँ तक कि बौद्ध धर्म, सिक्ख धर्म और जैन धर्म भी हिंदू धर्म के ही विद्रोही संतानें हैं, स्वामी विवेकानंद तो यही कहते थे। और अंततः वे सभी मुख्यधारा में घुलमिल गए और उनकी जो भी अलग पहचान थी, वह मिट गई। सिक्ख धर्म शुरू से ही जाति का विरोधी था। आज सिक्खों में उतनी ही जातियाँ हैं, जितनी अन्य धर्मों में हैं। उनके यहाँ दलित सिक्ख हैं, जाट सिक्ख हैं…. लिंगायत अलग मजहब बनना चाहते थे। इसके पीछे कारण केवल आर्थिक था। वे अनेक शिक्षा संस्थाएँ चलाते हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम दरअसल हिंदू पर लागू नहीं होता है।

राजीव: हाँ।

वैद्यनाथन: इसलिए उन्होंने सोचा, यदि हम अलग मजहब बन जाते हैं, तो हमारे शिक्षा संस्थानों को भी… इस तरह, भारत-तोड़ो ताकतों और कुछ विदेशी ताकतों ने और कुछ अलगाववादियों ने जो शुरू किया,

राजीव: वह मुख्यधारा की चीज़ बन गई और संस्थागत हो गई।

वैद्यनाथन: बिलकुल।

राजीव: मीडिया और बहुत से राजनीतिक दल इनका समर्थन कर रहे हैं। इन आंदोलकारियों के पास बहुत पैसा आ गय है। ऐसा वक्त भी आएगा ही, जब भारत को तोड़ने की इन ताकतों का पलड़ा भारी होगा। ऐसा तब होगा जब कुछ और राज्यों में कश्मीर जैसी स्थिति पैदा की जाएगी। कश्मीर को भारत के साथ जोड़े रखना दिन-प्रति-दिन महँगा होता जा रहा है। यदि कश्मीर जैसी स्थिति कुछ और राज्यों में बन जाए, तो आगे चलकर कभी तो इन भारत-तोड़ो ताकतों के सामने भारत को घुटने टेकने पड़ेंगे।

और तो और, पाकिस्तान, चीन और कुछ दूसरे बाहरी लोग हमारे देश की जमीन हथियाने की ताक में पहले से ही खड़े हैं। कोई उत्तर-पूर्व को ले लेगा। मैंने इसी निराशाजनक स्थिति का उल्लेख किया था। दुर्भाग्यवश, सरकार की तरफ से कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई है, हालाँकि इसके बारे में काफी जागरूकता है। मैं कुछ लोगों पर नज़र रखता हूँ और उनके पास पैसे के आने-जाने का हिसाब रखता हूँ। इसके लिए मैंने एक डेटाबेस बनाया है। इस डेटाबेस को उनके साथ स्वेच्छा से साझा करने की पेशकश मैंने की थी। मैं सोच रहा था कि इस तरह के डेटाबेस में और उसमें मौजूद लोगों पर नजर रखने में सरकार को भारी रुचि होगी।

वैद्यनाथन: बिलकुल।

राजीव: कि मुझसे कहा जाएगा कि इस डेटाबेस के उपयोग के विषय में मैं कुछ लोगों को प्रशिक्षित करूँ। पर किसी को भी उसमें रुचि नहीं हुई। केवल मेरे व्याख्यान इधर-उधर आयोजित कराने में लोगों ने रुचि दिखाई।

वैद्यनाथन: हाँ।

राजीव: सभी मुझे शाबाशी देने में जुटे हुए हैं।

वैद्यनाथन: बिलकुल।

राजीव: पर सरकार में से कोई भी इस कार्य को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है न ही कोई इसके विरुद्ध कोई प्रत्यांदोलन चलाने में रुचि ले रहा है। न केवल ठोस ताकत का उपयोग करके और सैनिक बल से लड़ने में,

बल्कि बुद्धि के स्तर पर इन्हें निस्तेज करने में भी किसी को रुचि नहीं है।

वैद्यनाथन: हाँ।

राजीव:इन भारत-तोड़ो ताकतों को नाकाम करने में। मेरे जैसा कोई कितना कर सकता है, जिसके पास मुट्ठी भर सहायक ही हैं?

वैद्यनाथन: बिलकुल।

राजीव: हमने सोचा था कि हमें सरकारी मशीनरी का सहारा मिलेगा। – बिलकुल।

राजीव: संस्कृति मंत्रालय या मानव संसाधन मंत्रालय – लेकिन कोई भी हमारी मदद नहीं कर रहा है। बहुत ही खेदजनक स्थिति है।

वैद्यनाथन: अक्सर कहा जाता है कि लोग मूर्ख होते हैं। पर लोग मूर्ख नहीं होते हैं, सरकार बेहरी होती है। वे स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं रहे हैं। हम भारत-तोड़ो ताकतों के मामले में वाकई विस्फोटक स्थिति का सामना कर रहे हैं। विश्व स्तर पर काम करने वाला चर्च इसमें सक्रिय है।  मतांतरण में संल्गन चर्चों को भारी पैसा मिल रहा है।

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