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वैद्यनाथन: अक्सर कहा जाता है कि लोग मूर्ख होते हैं। पर लोग मूर्ख नहीं होते हैं, सरकार बेहरी होती है। वे स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं रहे हैं। हम भारत-तोड़ो ताकतों के मामले में वाकई विस्फोटक स्थिति का सामना कर रहे हैं। विश्व स्तर पर काम करने वाला चर्च इसमें सक्रिय है। मतांतरण में संल्गन चर्चों को भारी पैसा मिल रहा है।
राजीव: मुझे हमारे युवा पीढ़ी को लेकर भी निराशा है। हमारे युवा जनों में संज्ञानात्मक, मनोवैज्ञानिक, और भावनात्मक बौद्धिक क्षमता कम हो गई है। वे अल्प समय के लिए ही अपने ध्यान को केंद्रित रख पाते हैं। यदि सभी दो मिनट में दिए जा सकने वाले उत्तरों की तलाश में हैं, तो बौद्धिक क्षत्रियों की सेना कोई कैसे निर्मित कर सकता है?
किसी बड़े उद्देश्य के लिए तपस्या करने और बलिदान करने की क्षमता ही जाती रही है। लोग अपने निजी स्तर पर और पैसे कमाने के अर्थ में सफल होना चाहते हैं। आप प्रोफेसर हैं और आपका संपर्क बहुत से छात्रों के साथ होता है। भारतीय छात्रों के बारे में आपकी क्या राय है?
वैद्यनाथन: मैं पूरी तरह सहमत हूँ। यह सारा माज़रा – आई-मी-माईसेल्फ.कॉम
राजीव: आई, मी,
वैद्यनाथन: माईसेल्फ। – आई, मी, माईसेल्फ, डॉटकॉम।
राजीव: बहुत अच्छे।
वैद्यनाथन: यही मूलभूत सिद्धांत है। मैं, मेरा, मेरे लिए। और किसी भी चीज़ के बारे में मुझे परेशान नहीं करो। दूसरे, पढ़ने की आदत ही मर ही गई है। यदि आप मेरे लिए पढ़ सकें, तो वह ठीक है। अन्यथा, पढ़ना नहीं है। इसलिए मैं मज़ाक करता हूँ, आप मेरी किताब खरीदें। मैं आपसे उसे पढ़ने का आग्रह नहीं करूँगा।
बस खरीदें। लिखने की आदत भी चली गई है। केवल अब टाइप किया जाता है। यदि मैं अपने युवा छात्रों से कहूँ, मेरे लिए दो पृष्ठ लिखो, तो वे लिख नहीं पाते हैं। वे कह देते हैं, सर, आप हमें बहुविकल्पीय प्रश्न दीजिए, हम सही विकल्पों पर निशान कर देंगे। श्रवण की भी यही स्थिति है। बस कान में माइक लगा लो और सुनते जाओ। शायद हमें आपकी किताब का श्रव्य संस्करण निकालना चाहिए। शायद हम पुरानी श्रवण-आधारित शिक्षण पद्धति की ओर लौट रहे हैं।
राजीव: पर वीडियो भी, वे चंद मिनटों तक ही देखते हैं।
वैद्यनाथन: नहीं, श्रवण को अनिवार्य कर दें। उनके दिमाग में एक चिप डाल दीजिए। स्थिति अत्यंत शोचनीय हो गई है। अभी हाल में, मैं एक कन्नड़ चैनल देख रहा था, जिसमें वे कॉलेज जाने वाले कई युवा लोगों से पूछ रहे थे: आपका मुख्य मंत्री कौन हैं? कई युवाओं ने उत्तर दिया, मोदी। आपका प्रधान मंत्री कौन हैं? कई नहीं जानते थे। एक ने कहा: ट्रंप। इनके चारों ओर क्या हो रहा है, उसके प्रति वे बिलकुल बेफिक्र हैं।
पश्चिम की बड़ी-बड़ी कंपनियों और ताकतों को यह बहुत पसंद आता है। क्योंकि यह भारत-तोड़ो ताकतों का काम आसान कर देता है।
राजीव: जन-साधारण को मतिहीन कर दिया गया है
वैद्यनाथन: हाँ।
राजीव: अपनी बुद्धि का उपयोग बिलकुल न करो, इनका आईक्यू बहुत कम होता है और सामाजिक माध्यमों ने इन्हें और भी बुद्धिहीन कर दिया है। बस रीट्वीट करते रहो, 140 अक्षर, शायद अब यह सीमा दुगनी कर दी गई है। कोई गांभीर्य नहीं। कोई गहन चिंतन नहीं। कोई अध्ययन नहीं। लोग मुझे लिखते रहते हैं कि वे आकर मेरी मदद करना चाहते हैं। यदि मैं कहूँ आओ हम एक दिन पूरा बैठकर अध्ययन करें, तो ये सब लोग भाग जाएँगे।
राजीव: हाँ।
वैद्यनाथन: ये सब तात्कालिक सफलता चाहते हैं।
राजीव: ठीक। पर वे उस संघर्ष के लिए तैयार नहीं हैं, जो जीवन-पर्यंत चलता है, और जो एक प्रकार का मिशन होता है।
वैद्यनाथन: बैंगलूर जैसे कई शहरों में आधे से भी कम लोग मतदान करते हैं। इस शहर में तथा-कथित पढ़े-लिखे लोगों की ही तादाद ज्यादा है। मेरे अनुसार….
राजीव: समाज के प्रति बिलकुल अवज्ञा है।
वैद्यनाथन: अधिकतर पढ़े-लिखे और समृद्ध जनों ने स्वेच्छा से भारत को त्याग दिया है और वे स्वच्छंद जीवन बिताने लगे हैं।
राजीव: हाँ।
वैद्यनाथन: अनेक शहरों में ऐसे लोग बड़े-बड़े फाटकों वाली सोसाइटियों में रहते हैं। पानी, बिलजी आदि के लिए उनके पास अपनी अलग व्यवस्था होती है। केवल एक चीज़ उन्हें अभी तक नहीं मिली है, अपना अलग श्मशान घाट। राजीव: ये समजा से बिलकुल अलग होकर अपनी ही दुनिया में रहते हैं।
वैद्यनाथन: ठीक।
राजीव: ये अधिक टिकाऊ नहीं हैं। इन्हें किसी भी चीज़ में रुचि नहीं है।
वैद्यनाथन: जब ये मर जाएँगे, तब तो इन्हें अपने फाटकों के बाहर आना ही पड़ेगा। अन्यथा, ये मल्टीप्लेक्सों, शॉपिंग मॉलों और इस तरह की जगहों में ही पूरी जिंदगी गुजार देते हैं। वे देश से बिलकुल कट गए हैं। आप कह रहे थे, चीन ने हम पर अधिकार कर लिया है, वे कहेंगे, ठहरिए, मैं सीएनएन में देखकर इसकी पुष्टि कर लेता हूँ।
युवा जनों में स्थिति बिलकुल ही खराब हो गई है।
राजीव: इस तरह भारत को तोड़ने वाली इन ताकतों ने एक नया समर शुरू कर दिया है – हमारे युवाओं को तोड़ो।
वैद्यनाथन: इसे ही आप भारत को मतिहीन करना कह रहे हैं।
राजीव: आधुनिकीकरण … भारत को मतिहीन करना।
वैद्यनाथन: और यह पूरी तरह से योग पर आधारित समाज के विपरीत है।
राजीव: बिलकुल। क्योंकि योग पर आधारित समुदाय सुस्पष्ट और सचेत होता है। – दृढ़, सतर्क, समेकित। समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने में निपुण। हम ढिंढोरा पीटते रहते हैं कि योग हमारे यहाँ पैदा हुआ था। और हम उसे दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाना चाहते हैं। योग फैलाने की ज्यादा जरूरत तो हमारे ही देश में है।
वैद्यनाथन: बिलकुल।
राजीव: व्यक्तियों को योग और साधना की आवश्यकता है। मूल्यों के बारे में समझ बढ़ाने, स्पष्टता लाने की- तभी वे क्षत्रिय बन सकते हैं। एक योगी क्षत्रिय बन सकता है, क्योंकि वह स्थिर-चित्त होता है, उसकी सोच में सफाई होती है, वह बलिदान करने के लिए तैयार होता है।
वैद्यनाथन: सही कहा।
राजीव: योग आपको लंबे समय तक अपने ध्यान को किसी विषय पर केंद्रित रखने की क्षमता देता है।
वैद्यनाथन: बिलकुल।
राजीव: अमेरिका में कुछ अध्ययन किए गए हैं, जो दिखाते हैं कि उच्च स्तर तक पढ़ हुए और अपने क्षेत्रों में सफल लोगों को उन कुशलताओं की बड़ी आवश्यकता है जो योग और साधना से मिलती है। सारी दुनिया इसे समझ रही है। पर यहाँ तो हम घटती एकाग्रता, लिखी हुई सामग्री को पढ़ने की क्षमता में कमी, स्वयं कुछ लिखने की क्षमता में कमी देख रहे हैं।
वैद्यनाथन: यहाँ के युवा भोगी हुए जा रहे हैं।
राजीव: क्या कहा आपने?
वैद्यनाथन: भोगी।
राजीव: अच्छा भोगी।
और इस चक्कर में वे रोगी भी होते जा रहे हैं।
राजीव: इस तरह उपभोक्तावाद।
वैद्यनाथन: हाँ। और खराब स्वास्थ्य।
राजीव: तात्कालिक उपभोक्तावाद। यह अच्छा रहा कि हम भारत तोड़ो ताकतों का संबंध हमारे युवकों की चारित्रिक कमजोरियों से जोड़ पाए
वैद्यनाथन: वे रोगी होते जा रहे हैं।
राजीव: इनसे ही अपेक्षा है कि वे लड़ेंगे
वैद्यनाथन: पर वे लड़ नहीं पाएँगे।
राजीव: भारत-तोड़ो ताकतों का मुकाबला नहीं कर पाएँगे। इनमें इतना दमखम नहीं है।
वैद्यनाथन: भारत-तोड़ो ताकतों ने भारत को मतिहीन कर दिया है।
राजीव: भारत को मूर्खों का देश बना दिया है।
वैद्यनाथन: सीधे शब्दों में कहें, तो हमारे अधिकतर युवा ऐसे लगते हैं मानो वे ड्रग्स लेते हों।
राजीव: हाँ।
वैद्यनाथन: उन्हें किसी भी चीज़ में भी रुचि नहीं है। वे अधिक-रफ्तार वाली दुनिया के खिलौने बन गए हैं। – हाँ।
राजीव: हमें इन्हें हर वक्त खुशफहमी का एहसास नहीं दिलाना चाहिए। कि सब कुछ ठीक चल रहा है कि हम इनकी तारीफ करते रहें। हमें गंभीर विषयों का सामना करना भी आना चाहिए।
वैद्यनाथन: बिलकुल।
राजीव: वरना हम अपने देश का निर्माण कैसे करेंगे?
वैद्यनाथन: शायद इस भारत-तोड़ो वीडियो के बाद, या तो आपको या आपकी टीम को…
राजीव: मैं भारत की महागाथा नाम की एक पुस्तक लिख रहा हूँ…
वैद्यनाथन: भारत का मतिहीन हो जाना।
राजीव: हाँ।
वैद्यनाथन: एक पबों में जाने वाला भारत है और एक मतिहीन लोगों का भारत है। हर कोई पबों में ही रहता है, ऐसा मालूम पड़ रहा है।
राजीव: हाँ।
वैद्यनाथन: किसे रुचि है? आप उनसे कहकर देखिए, युद्ध छिड़ गया है, और पाकिस्तान आपके पब के द्वार तक आ गया है। वे कहेंगे…, जरा रुको, मैं शराब का एक और दौर पूरा कर लूँ।
राजीव: हाँ।
वैद्यनाथन: और इसके बाद वे पिछले दरवाजे से भागकर अपनी जान बचा लेंगे।
राजीव: हाँ। लड़ने की उनमें कोई क्षमता नहीं है।
वैद्यनाथन: वे लड़ नहीं सकते… भारत के अधिक संपन्न लोग अक्सर, अत्यंत नरम तबीयत के लोगो हो गए हैं।
राजीव: यह बिलकुल सही है।
वैद्यनाथन: अधिक निर्धन तबकों के लोगों में अधिक स्वाभिमान और देश-भक्ति पाई जाती है।
राजीव: आप उन पर अधिक भरोसा कर सकते हैं।
वैद्यनाथन: निश्चय ही।
राजीव: मैंने भी यह देखा है।
वैद्यनाथन: मैंने देखा है कि कोई गरीब व्यक्ति जिसे नहीं पता कि उसे अगले दिन रोटी कहाँ से मिलने वाली है, देश की समस्याओं की चर्चा कर रहा है।
राजीव: तो हमें भारत को बनाओ आंदोलन शुरू करना होगा…
वैद्यनाथन: निश्चय ही।
राजीव: जो भारत-तोड़ो आंदोलन की हवा निकालेगा, किसी दूसरे दिन हमें इसकी अधिक चर्चा करनी पड़ेगी।
बहुत, बहुत धन्यवाद।
वैद्यनाथन: अवश्य करेंगे। धन्यवाद।