Translation Credit: Vandana Mishra.
“आधुनिक सार्वभौमिक स्थिति में, पूर्वी एवं पश्चिमी ‘साभ्यता‘ एक दुसरे से समान सहयोगी के रूप में नहीं भेंट कर सकते हैं. वे पश्चिमी संसार में, पश्चिमियों द्वारा निर्मित विचार की परिस्थितियों में ही भेंट कर सकते हैं I “— डब्लू. हॉलब्फास [१]
ये निबंध चर्चा करता है कि, कैसे बुद्धिजीवी स्वराज मूल सिद्धान्त है, किसी सभ्यता की दीर्घ कालीन सफलता के लिए, उसी प्रकार जैसे राजनैतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में बुद्धिजीवी स्वराज का अत्यंत महत्त्व है I अतः ये महत्वपूर्ण प्रश्न है कि, ज्ञान के विषय में किसके प्रतिनिधित्व का नियंत्रण मान्य है? ये प्रतिनिधि प्रणाली ही है जो निर्दिष्ट करती है रूपकालंकार एवं परिभाषा, विभिन्न स्थितियों में उनके सन्दर्भ का अर्थ ज्ञात करवाती है, प्रभावित करती है कि, कौन सी समस्या का चयन करके उस पर केंद्रित किया जा रहा है और अत्यंत महत्वपूर्ण, उसको विशेषाधिकार दिया जाता है निर्धारक द्वारा, जो इस विचारधारा के विपणन स्थान का नियंत्रण करता है I
एक अंतर्निहित मापदंड संस्था, एक प्रतिनिधि प्रणाली जो इतर-विचारधारा का मुखौटा धारण करके आती है–सन्दर्भ का अध:स्तर जिस पर विशेष विचारधारायें प्रकट होती हैं और एक दुसरे से भेंट करती हैं I इसमें उपयुक्त भाषा व्याप्त है और अघोषित सन्दर्भों के ढांचे, और ये एक अवचेतन छननी की भाँति कार्य करता है जिसमें उनकी श्रेणी का निर्माण किया जाता है और उनके भाग्य का मोल भाव होता है I
वे लोग जिनकी अपनी कोई प्रतिनिधि प्रणाली नहीं है, निकृष्टतम परिदृश्य स्थिति में, निम्न अवस्था में होकर बुद्धिजीवी उपभोक्ता बन जाते हैं प्रबल सभ्यता की ओर मुँह उठा कर देकते हैं I सर्वोत्तम परिदृश्य स्थिति में, वे संभवतः बुद्धिजीवी उत्पादक बन सकते हैं, किन्तु मात्र प्रतिनिधि प्रणाली में ही रह कर, जो कि, प्रबल सभ्यता द्वारा परिभाषित एवं नियंत्रित किया गया है, जैसा कि नूतन काल में, कई भारतीय लेखकों का हुआ है जो अंग्रेजी भाषा में लिखते हैं I
आशिस नंदी संक्षिप्त में लिखते हैं कि, कैसे ये मानसिक उपनिवेशिता लायी गयी:
“ये उपनिवेशवाद ना मात्र मस्तिष्क को ही उपनिवेशी बनता है बल्कि शरीर को भी और ये ऐसे सैन्यदल छोड़ता है उपनिवेशी अंदरूनी समाज में, जो सदा के लिए उनकी सभ्यता प्राथमिकता का परिवर्तन कर देता है…. विशेषकर, जब अंरेज़ी शासकों और भारतियों के अनाश्रित अंश ने समावेश किया उपनिवेशवाद की भूमिका की परिभाषाओं का … तो पुरुषों की बुद्धि का संघर्ष कई सीमाओं तक राज द्वारा जीता गया था। “[२]
ये पुनरावृत्तीय प्रयोग, इस दिए गए प्रतिनिधि प्रणाली के, अंततोगत्वा विस्तृत स्वीकृति प्राप्त करता है एक ” अर्क,” के समूह की भाँति जैसा की घोषित किया गया है फ्रैडरिच निएत्ज़्स्चे द्वारा:
“प्रतिष्ठा, नाम एवं प्रकटन, प्रायिक मांप और किसी वस्तु का भार, क्या गणनांक है — आरंभ में अधिकतर सर्वदा अनुचित एवं इच्छाधीन — पीढ़ी दर पीढ़ी वृद्धि होना, मात्र इसी कारण से कि, लोग उनमें विश्वास करते हैं, जब तक वह यथाक्रम विस्तृत होकर किसी वस्तु का अंश नहीं बन जाता और अपना ही एक शरीर बन जाता है। जो प्रारम्भ में एक प्रकटन था, अंत में, अधिकतर निरपवाद रूप से, उसका अर्क एवं उसी रूप में प्रभावशाली बन जाता है I”
अतः, ज्ञान के प्रतिनिधित्व पर नियंत्रण समरूप है संगणक के परिचालन प्रणाली (ऑपरेटिंग सिस्टम) पर नियंत्रण के: जैसे प्रतिनिधित्व प्रणाली प्रतिस्पर्धा करनेवाली विचारधाराओं से है उसी के समान परिचालन प्रणाली (ऑपरेटिंग सिस्टम) संगणक प्रयोज्यता के लिए है I इस रंगमंच का नियंत्रण, विशेषकर इसके अदृश्य मांपदंड एवं नियम, एक कूटनीतिक परिणामों की भाँति है I
इस निबंध का ढांचा निम्नांकित है:
(१) नूतन उपनिवेशिता के प्रारम्भ का वर्णन करना ।
(२) ये दर्शना कि, किस प्रकार कई भारतीय स्वयं ही नूतन उपनिवेशवाद को वर्तमान में अविरत बनाये हुए हैं।
(३) काँच की छत के ऊपर से, इसको पश्चिमी नियंत्रण से जोड़ना।
अंश १: नूतन उपनिवेशिता का प्रारम्भ
अंश १ हमें समझाता है, भारत में, वर्तमान में, नूतन उपनिवेशवाद के प्रारम्भ एवं कारण के विषय में, जो अपनी बहुमूल्य उत्कृष्ट परंपरा की परित्यक्तता के परिणामस्वरूप, और ज्ञान प्रतिनिधित्व प्रणाली के प्रतिस्थापन द्वारा जो उपनिवेशवादियों द्वारा लागू किया गया था, उसके कारण हुआ है I चलिए हम समझने का प्रयत्न करते हैं कि, किस प्रकार पश्चिमियों को वर्तमान में, ज्ञान प्रतिनिधि प्रणाली का नियंत्रण मिला है I
उत्तम शिक्षा का प्रमाणांकन अमेरिका लिबरल आर्ट्स महाविद्यालय में, आधारित है “पश्चिमी श्रेण्य ग्रंथों” पर I पश्चिमी सभ्यता का अध्ययन आरम्भ होता है पुरातन ग्रीक अध्ययन एवं यहूदी विचारों के अध्ययन से, इसके पश्चात् वे रोम श्रेष्ठ ग्रन्थ, आधुनिक यूरोपी एवं अंततः, अमरीकी विचार का अध्ययन करते हैं I ऐसी बुद्धिजीवी नीव महत्वपूर्ण निर्णायक है, किसी भी व्यक्ति को मानविकी शास्त्र में उत्कृष्ट शिक्षित मान्यता देने के लिए, बिना उसके व्यक्तिगत धार्मिक विश्वास के (या आभाव के), और बिना उसके विशेष शैक्षिक मुख्य विषय के I मात्र स्पष्टीकरण से ही, निम्नांकित में दर्शाया है कि, एक लिबरल आर्ट्स क्या प्रचार करते हैं बड़े गर्व से अपने श्रेष्ठ ग्रन्थ कार्यक्रम के विषय में:
श्रेष्ठ ग्रन्थ एवं श्रेष्ठ सभ्यता, किसी भी लाक्षणिक अमरीकी लिबरल आर्ट्स महाविद्यालय में [३]:
“यूनाइटेड स्टेट्स के संविधान से, आधुनिक नियम के ढांचे तक, शब्दकोश एवं प्रतिदिन की वाक शक्ति और लेख के विचारों तक, श्रेष्ठ ग्रन्थ प्रयास करते हैं प्रभाव को प्रसारित करने का I ग्रीस और रोम की शक्ति विस्तृत है वस्तुतः प्रत्येक आधुनिक जीवन शैली में I पश्चिमी परंपरा दर्शनशास्त्र, विज्ञानं, धर्म, कला, और सर्वोपरि, साहित्य, सभी अपने स्रोत बुद्धिजीवी जिज्ञासा एवं रंगबिरंगी कल्पनाओं द्वारा पुरातन ग्रीस और रोम से लेते हैं I श्रेष्ठ ग्रन्थ के विभाग एक वातायन प्रदान करते हैं जीवन, समय एवं विचारों को उन पश्चिमी समाज के संस्थापकों को I ग्रीक के विद्यार्थी होमर की भाषा का अध्ययन करते हैं एवं एरिस्टोटल और प्लेटो के मुहावरे पढ़ते हैं, जबकि लैटिन कक्षा वाले सिसरो और जूलियस सीज़र की चर्चा करने की कला का अध्ययन करते हैं I वो ऋण जो हमको ग्रीक एवं रोम का आभारी होकर चुकाना है वह इतना बृहत एवं बहुआयामी है कि, श्रेष्ठ ग्रन्थ के अध्ययन प्रकृतिक रूप से अंतर्विषयक हैं। उदाहरण के लिए, श्रेष्ठ ग्रन्थ पाठ्यक्रम समावेश करते हैं, शृंखला जो, दर्शनशास्र, कला, धर्म , सरकार और विज्ञानं एवं उद्योग विभाग द्वारा प्रस्तुत किये जाते हैं I अंततोगत्वा, ये सभी श्रेणियां पूर्ण संसक्त अंश हैं उन प्रमुख एवं अमुख्य श्रेष्ठ ग्रन्थ की I श्रेष्ठ ग्रन्थ के विद्यार्थी, उदार कला शिक्षा से, इस लाभ को उठाते हुए सर्वस्व फल भोगते हैं, और साथ ही साथ, अपने अध्ययन में भी ध्यान लगाए रहते हैं I
“श्रेष्ठ ग्रन्थ के विभाग, उन्नतिशील हो रहे हैं श्रेष्ठ भाषा एवं सभ्यता में रूचि के पुनरुत्थान कारण । ….. विद्यार्थी चयन कर सकते हैं संक्षिप्त विवरण पाने का दीर्घ कालीन श्रेष्ठ इतिहास से, या अत्यंत सूक्षम्ता से लघु समय अध्ययन करने की इच्छा…..कक्षा में हम विभिन्न प्रकार के आधुनिक, यहाँ तक कि पथप्रदर्शक, सैद्धांतिक उपमार्ग बना सकते हैं मानव-शास्त्र, समाज-शास्त्र एवं साहित्यिक छिद्रान्वेषण के शिक्षण द्वारा। विभागों के कई प्रस्तुतिकरणों, जैसे, भाषा, साहित्य, इतिहास, सभ्यता एवं वे अध्ययन जो कई अन्य विभागों द्वारा प्रस्तुत किये जाते हैं, उदाहरण के लिए, पुरातन दर्शनशास्त्र, श्रेष्ठ कला एवं वास्तुकला, और श्रेष्ठ राजनैतिक विचारों में से, विद्यार्थी अध्ययनों के विस्तीर्ण सारणी से चयन कर सकते हैं I
“श्रेष्ठ ग्रन्थ के विभाग दो कार्यक्रमों में प्रस्तुत करते हैं प्रमुख और अमुख्य: एक श्रेष्ठ ग्रन्थ में है, जो कि, ध्यान केन्द्रित करता है भाषा और साहित्य पर ग्रीक, लैटिन या दोनों में I दुतीय है श्रेष्ठ सभ्यता में जो, सम्मिलित करता है श्रेष्ठ सभ्यता के सकल पक्षों को I कई विद्यार्थी इन दोनों कार्यक्रमों से, ग्रीस एवं इटली में अध्ययन करने का अवसर प्राप्त करके लाभ उठा लेते हैं जो कि विशेषतः अमरीकी विद्यार्थियों के लिए निर्मित किया गया है I एथेंस में, पश्चिमी प्रजातंत्र का पालना, ग्रीक त्रासदी की जन्म भूमि एवं प्लेटो की विद्यापीठ, इन सभी से विद्यार्थी अपने अध्ययन की वृद्धि कर सकते हैं स्वयं को उनसे और एक्रोपोलिस एवं अगोरा से परिचित करवाते हुए I रोम में, वे अभी भी श्रेष्ठ शिक्षा के आदर्श के अनुसरण को प्रचलित रखते हैं और साथ ही उसी वायु का श्वसन करते हैं जिसका रोम के महाराजाओं ने किया था, और उन्ही मार्गों पर चलते हैं जो शताब्दियों से कई अन्य दूरस्थ जनों के ऊपर विजय प्राप्त कर चुकी हैं I नूतन काल में, हमारी प्रमुख संधि श्रेष्ठ/श्रेष्ठ सभ्यता-अंग्रेजी बहु – प्रचलित हो गयी है, और हमने अभी, एक और प्रमुख संधि किया है श्रेष्ठ सभ्यता-मानव-शास्त्र का I
“विभाग विवाद करते हैं, ग्रीक एवं रोम के बुद्धिजीवियों की जिज्ञासा का अनुकरण करने के लिए. हमारी गतविधियां कक्षा के बहार विस्तृत हैं कई सामाजिक, अंततोगत्वा शैक्षिक, घटनाओं में. हमने समय-समय पर आनंद उठाया है चलचित्रों एवं वीडियो को दर्शा कर जो श्रेष्ठ ग्रंथों से जुड़े थे I
“हम प्रख्यात विशेषयज्ञ को यू.एस और विदेशों से लाते हैं, पुरातन विश्व के विषयों पर नूतन परिदृश्य को सांझा करने के लिए I ….. हमें गर्व है कि, हमारे समीप राजकीय-कला संगणक समर्थन है अपने विद्यार्थियों के लिए I दोहन द्वारा किंचित कुंजी से, वे किसी भी ग्रीक या लैटिन प्रसंग का आह्वान कर सकते हैं, और अन्वेषण कर सकते हैं सम्पूर्ण श्रेष्ठ लेखक तोपों का मूलपत्र या अनुवादित साहित्य में I इसके अतिरिक्त हमने इंटरनेट पर कई श्रेष्ठ रूचि के कार्यस्थल पर अनेकों पुस्तक-चिन्ह लगाया है I ये सभी एक कक्ष में विद्यमान है जो श्रेष्ठ मूर्तियों की पुनरुत्पत्ति, पुष्पपात्रों एवं चित्रों से विभूषित है!
“इस विभाग का लक्ष्य है कि, वे प्रोत्साहन दें इच्छुक बुद्धिजीवी जिज्ञासुओं को एवं उन्हें विश्लेषण और समस्यात्मक-समाधानों के अक्षत सिद्धांत दें, उन्हें शैक्षिक उत्तेजना देकर और उन विद्यार्थियों को कल्पनाों की शक्ति का कवच प्रदान करें उसी प्रकार जैसे महान विचारक, राजनीतिज्ञ, कलाकार एवं लेखकों को ग्रीस और रोम में प्राप्त थी। ये आश्चर्यजनक नहीं है कि, प्रमुख [श्रेष्ठ] के स्नातक एक सफलतापूर्वक जीविका का अननुशीलन कर रहे हैं नियमावली, चिकित्सा, शैक्षिक परिषद्, सरकारी, कला, प्रबन्धन और अन्य क्षेत्रों में I श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन हमारे मस्तिष्क को अत्याधिक रूप से प्रशिक्षित करता है जो कि, अनुवादित प्रसंगों एवं सभ्यताओं के विश्लेषण से अधिक है I श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन आपका निर्माण भी करता है जीवन का सामना अखिलिस की भाँति आत्मविश्वास और ओडीसियस की भाँति आत्मनिर्भरता से करने के लिए I “
मैं समानरूपी गहरा आदर एवं आत्म-सम्मान पश्चिमी श्रेष्ठ साहित्यों के लिए देखता हूँ प्रिंस्टन, हारवर्ड, कोलंबिया, शिकागो विश्विद्यालय, येल, ऑक्सफ़ोर्ड, पेरिस और वस्तुतः सर्वस्व उच्च पश्चिमी विश्विद्यालयों में I ये प्रसुविधा अभीष्ट उन्हीं के लिए नहीं है जो पश्चिमी श्रेष्ठ ग्रन्थ में विशेषज्ञता प्राप्त कर रहे हैं I पश्चिमी श्रेष्ठ ग्रन्थ कई विद्यापीठों के मूल पाठ्यचर्या में विद्यमान हैं, बिना किसी विशेषज्ञता की मान्यता के I
भारतीय श्रेष्ठ साहित्य का भारत के उच्च शिक्षण में पार्श्वीकरण:
ये महत्वपूर्ण है ध्यानपूर्वक अध्ययन करना, उपरोक्त औचित्य का, पश्चिमी श्रेष्ठ साहित्य कार्यक्रम में, जिस से की आप प्रशंसा कर सकें कि, क्यों वर्तमान में पश्चिमी तकनीकी दृष्टि से आधुनिक धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र, जैसे कि, यूनाइटेड स्टेट्स में ये इतना प्रसंगोचित निर्णयक है I
इसकी तुलना कीजिये भारतीय श्रेष्ठ साहित्य के दुःखांत स्थिति से, भारत में अपने उच्च शिक्षण में I ग्रीक श्रेष्ठ ग्रन्थ के समतुल्य हैं हमारे वेद, पुराण एवं अन्य संस्कृत, पाली एवं तमिल ग्रन्थ I तुलनात्मक शिक्षण प्रणाली में, छात्र संभवतः शिक्षा प्राप्त करेंगे पाणिनि, पतंजलि, बुद्ध, नागार्जुन, धर्मकीर्ति, भर्तृहरि, शंकरा, अभिनवगुप्ता, भरत मुनि, गंगेश, कालिदास, आर्यभट्ट और दर्जनों महान श्रेष्ठ विचारक जो भारत से उत्पन्न हुए हैं I
दुर्भाग्यवश, उन्नति के नाम पर, आधुनिकता एवं राजनैतिक परिशुद्धता के कारण, भारतीय श्रेष्ठ ग्रन्थों को वस्तुतः निर्वासित कर दिया गया है भारतीय उच्च शिक्षण में से – भारतीय शिक्षण नीति की एक निरंतरता जो प्रारम्भ की गयी प्रसिद्द लार्ड मकौले द्वारा १५० वर्षों पूर्व…….. जबकि भारत आपूर्ति करता है सूचना उद्द्योग (आई.टी), जैव प्रौद्योगिकी, निगमित प्रबन्धन, चिकित्सीय एवं अन्य व्यावसायिकों को विश्व की सर्वोच्च संस्थाओं के [४], ये अपनी ही परंपरा के विश्व-स्तरीय विद्द्वानों की आपूर्ति करने में असक्षम है I
कारण ये है कि, भारत-विद्या अध्ययन की सांठ-गांठ पश्चिमी महाविद्यालयों में इस प्रकार व्याप्त है, लगभग ऐसे जैसे कि, राजनीतिक स्वाधीनता कभी थी ही नहीं I उच्च श्रेणी के शैक्षिक पत्रिकायें एवं समारोह जो भारत – विद्या अध्ययन और भारत से सम्बंधित क्षेत्र की हैं, वे पश्चिम में हैं, और वे अधिकतर पश्चिमियों द्वारा चलायी जाती हैं और उनको पूँजी दी जाती है व्यक्तिगत पश्चिमीयों, गिरिजाघरों एवं सरकार के निहित स्वार्थ के कारण I सर्वोत्तम अनुसंधान के साहित्यिक ग्रन्थालय जो भारतीय श्रेष्ठ ग्रन्थ के हैं, वे पश्चिम में स्थित हैं I धार्मिक अध्ययन अत्यधिक प्रचलित है यू.एस के मानविकी शास्त्रों के शैक्षिक क्षेत्र में, और ये अत्यंत तीव्र गति से बढ़ रहा है, किन्तु भारतीय विश्वविद्यालयों में ये लुप्त शास्त्र है I
अतः, अंतरराष्ट्रीय रूप से प्रतिस्पर्धात्मक विद्यावाचस्पति की उपाधि संस्कृत में, भारतीय श्रेष्ठ ग्रन्थों में, हिन्दू धार्मिक अध्यन में, बौद्ध धर्म में या जैन धर्म के अध्यन के साथ, अत्यंत उच्च दृढ़ता प्रणालियों एवं सिद्धांतों में करना पड़ता है, जिससे कि, शैक्षिक कार्यालय में नियुक्ति मिल सके इस विशेष प्रधान अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में, विद्यार्थी को बाध्य किया जाता है यू.एस, यू.के या जर्मनी विश्वविद्यालय में जाने के लिए I
अतः, किसी को भारत में योग्य भारतीय धर्मों के विशेषयज्ञ नहीं मिलते हैं, जो पश्चिमी विद्द्वानों से वाद विवाद कर सकें I किंचित भारतीय विद्द्वान जो पश्चिमी परिषद् में हैं और जो भारतीय श्रेष्ट ग्रंथों में शिक्षित हैं, वे या तो काँच की छत के नीचे हैं (अदृश्य बाधा), या राजनैतिक सावधानी रखते हैं अपने आजीविका की महत्त्वाकांक्षा पर संकट ना आने से I
इसके अतिरिक्त, शिक्षण प्रणाली की जो भारतीय धरोहर है उसका पार्श्वीकरण कर दिया है, विशेषकर अंग्रेजी माध्यम प्रणाली में जो लगभग सभी आधुनिक नेताओं का निर्माण करते हैं भारतीय समाज के, उसने ऐसे नेताओं को उत्पन्न किया है उद्द्योग, राजनैतिक सेवाओं, संचार माध्यम एवं शिक्षा प्रणाली में जो सभ्यता के सन्दर्भ में लुप्त पीढ़ी के सामान हैं I परिणामस्वरूप, वर्तमान में कई स्थानों में आत्म-विमुख, मानवद्वेषी युवा व्याप्त हैं, विशेषकर सर्वोत्कृष्ट पदवियों पर I [५]
जो पक्ष समर्थन दिया जाता है ग्रीक श्रेष्ठ ग्रन्थ के अध्यन का पश्चिम में वो ऐसा नहीं है की १०० % “सत्य” है वर्तमान में (चाहे जो भी उसका अर्थ हो), या अपेक्षाकृत अधिक उत्तम विचार नहीं पछाड़ सके उनको। अपेक्षाकृत, पश्चिमी बुद्धि के इतिहास की दशा को समझने का उदेश्य है, जिससे कि, छात्र ठोस एवं शक्तिशाली नीव रख सकें अपने विचारों की, जिससे की इस सभ्यता को भविष्य में उचित रूप से विस्तृत कर सकें I पश्चिमी श्रेष्ठ ग्रन्थ वर्तमान में, पश्चिमी बुद्धिजीवियों को गंभीर विचारक बनने के लिए संसाधन प्रदान करते हैं I
ये पश्चिमियों और उनकी सभ्यता की व्यष्टित्व का विषय भी है I अत्यंत बल दिया गया है पुराने “पश्चिमी सभ्यता” की संपूर्णता पर जिसका अनुरेखण ग्रीस तक किया गया है (जबकि भीमकाय निवेश अन्य-पश्चिमी सूत्रों से जो मिला है उसको सावधानी से दबाया गया है — देखिये भाग ३) I पश्चिमी सभ्यता का ये पुनर्निमाण एक अविरत परियोजना है, और इसको अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है उसके जीवित एवं समृद्ध रहने के लिए जिसको हम “पश्चिम” कहते हैं I
हमें यही तर्क शास्त्र भारतीय श्रेष्ठ साहित्यिक विचारों पर भी लागू करना चाहिए और अक्षांश रेखा के अनुरूप इसका लाभ भारतीय पुनर्जागरण में देखना चाहिए I दुर्भाग्यवश, अत्यंत बृहत क्षति पहुँचाया गया है भारतीय श्रेष्ठ साहित्य को, उसको धर्म के समानरूप सिद्ध करके I विवादास्पद रूप से, सर्वोच्च विस्तारयुक्त एवं चुनौतीपूर्ण ज्ञान प्रतिनिधि प्रणाली जो पश्चिम से बहार व्याप्त है वह भारीतय श्रेष्ठ ग्रन्थों में विद्यमान है I भारतीय श्रेष्ठ ग्रंथों की पारदर्शक महिमा, ग्रीक श्रेष्ठ ग्रंथ की तुलना में १०० गुना अधिक है I एक संक्षिप्त क्षणज्योति, अन्तर्निहित शक्ति में जो भारतीय श्रेष्ट ग्रंथों पर आधारित है इसी विषय पर, शैक्षिक वार्तालाप की वेबसाइट को देखें[६] I अंततोगत्वा, जो किंचित भी शिक्षा दी जाती है भारतीय श्रेष्ठ साहित्य के विषय में वह अल्पसंख्यकों के अविकसित स्थान की भाँति कष्ट झेलने वाली, पदवी जैसे “दक्षिण एशिया,” की हो वैसी दर्शायी जाती है जबकि ग्रीक विचारों को “सार्वभौम” की भाँति दर्शाया जाता है I प्रभावी(यूरोपी) सभ्यता, जिसमें ग्रीक विचार सम्मिलित हो गए हैं, वे घोषणा करते हैं, प्रतीक चिह्नों (तर्कसंगत सिद्धांत का जो विश्व पर शासन एवं विकास करते हैं) के स्वामित्व का, जबकि जो पश्चिमी-भिन्न हैं, उन लोगों के देशावरी विचारों को मिथ्या एवं विचित्र वस्तुएँ घोषित कर दिया है I ग्रीक श्रेष्ठ साहित्य को मुख्यधारा शैक्षिक परिषद् में पध्याय जाता है और उसको इस विश्व में निष्कासित नहीं किया जाता है किसी एक विशेष मानवजाति या “क्षेत्र” के आधार पर I भारतीय श्रेष्ठ ग्रन्थों को, दूसरी ओर, अधिकतर उपयुक्त माना जाता है मात्र एक अदुतीय (अर्थात विचित्र) मार्ग समझने का भारतीय मानवजाति के विषय में I
इसके अतिरिक्त, ग्रीक विचार को ग्रीक स्रोत से संदर्भित किया जाता है, जबकि, भारतीय विचारों को यथोचित करके, उनके भारतीय स्रोत को किंचित समय पश्चात् मिटा दिया जाता है: वास्तविक ज्ञान मात्र पश्चिमी स्रोतों से ही, अंतर्निहित रूप से आते हैं, सभी स्रोतों को प्रतीक्षा करनी पड़ती है जबतक कि वे पश्चिमियों द्वारा वैध नहीं घोषित किये जाते हैं I ऐसा इस कारण से है, क्यूंकि ज्ञान प्रितिनिधि प्रणाली पश्चिमियों के नियंत्रण में है, अतः वे ही अंतिम न्यायकर्त्ता हैं कि “क्या” “कहाँ” से किसका है I पश्चिमियों के नियंतरण के अंतर्गत जब वह न्यायतर्क सिद्ध होता है तभी वह वैध माना जाता है I