मुस्लिम योग –2

इब्राहिमी धर्म व्याख्यान स्वदेशी मुस्लिम

Read Part – 1 of the Article Here.

अगली क्लिप में वे स्पष्ट रूप से दिखाती हैं कि मुस्लिमों को सुविधा पहुंचाने के लिए वे किस प्रकार योग को पचाने (डाइजेशन) का काम कर रही हैं इस प्रकार के एक इस्लामी या धर्मनिरपेक्ष या आध्यात्मिक परन्तु धार्मिक नहीं योग के माध्यम से | आईये देखें |

मैं इसे विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के लिए उपलब्ध करा रही हूँ ताकि जब वे इसका अभ्यास करें तो वे असहज अनुभव न करें |

वे इस्लामी तत्व क्या हैं जिन्हें आपने योग को और अधिक मुस्लिम-अनुकूल बनाने के लिए सम्मिलित किया है ?

मैंने मंत्र हटा दिए हैं क्योंकि वे एकेश्वरवादी मतों के प्रति मित्रवत नहीं हैं |

जब मैं लोगों को ध्यान, श्वास अभ्यास और योग अभ्यास कराती हूँ तो उन्हें अपने संसाधन ढूंढने के लिए कहती हूँ | तब मैं उन्हें अपने ईश्वर को याद करने के लिए कहती हूँ | मैंने उन्हें बहुत सहज बना दिया है और वे इसका आनंद लेते हैं | मैंने 3.5 वर्ष पहले योग शिक्षक के रूप में आरम्भ किया था और इतने समय में मेरी कक्षा के लोगों में परिवर्तन को देख सकती हूँ | उनके घुटनों का दर्द अदृश्य हो गया है, उनका पीठ दर्द समाप्त हो गया है, अस्थमा बहुत बेहतर है, और अवसाद समाप्त हो गया है | वे बेहतर सो रहे हैं | उनकी अनिद्रा चली गयी है |

मैं इन लाभों के साथ योग श्रृंखला तैयार कर रही हूँ ताकि यह विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं में लाभ दे सके | यह एक डॉक्टर के निदान की भांति नहीं है | मैं उस ज्ञान का उपयोग करती हूँ और इसे अधिक स्वीकार्य बनाने के लिए मुस्लिम समुदाय में ले जाती हूँ |

इस विशेष शिक्षक के इस अंतिम क्लिप में उनके स्टूडियो द्वारा समर्थन की जाने वाली विभिन्न परियोजनाओं पर ध्यान दें और किस प्रकार यह पैसा उनके विचारधारा और धर्म के प्रसार में उपयोग किया जाने वाला है | तो, यह केवल एक योग आंदोलन नहीं है | विभिन्न उद्देश्यों के लिए धन इकठ्ठा करने के लिए योग का उपयोग करने का यह एक माध्यम है | कृपया देखें |

यह मेरा स्टूडियो है जहां सभी कार्यवाही होती है | मैं विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय की सुविधा के लिए यह योग श्रृंखला तैयार कर रही हूँ | मुझे अनुभव है कि लोगों में योग के बारे में रूढ़िवादी या नकारात्मक विचार हैं और मैं समझती हूँ कि वे कहां से आ रहे हैं | मेरी मंशा है योग से उन सभी बातों को हटा देना जो मुस्लिम समुदाय को असहज बनाती हैं जैसे मंत्र या मंत्रोच्चारण | और मुस्लिम समुदाय को उस रूप में योग उपलब्ध कराना जिस रूप में मैं उपस्थित लोगों के लिए इसे आनंददायक बनाकर सिखाती हूँ |

इसने यहाँ कनाडा के मूव एंड इम्प्रूव स्टूडियो के अपने सदस्यों को बहुत सारे लाभ पहुंचाए हैं | इंशा अल्लाह हम उस सेवा को अगले महीने आरम्भ करने जा रहे हैं और आप सभी को एक आईडी उपहार स्वरुप देती हूँ | यह मुसलमानों द्वारा घर पर अभ्यास की जाने वाली केवल एक योग श्रृंखला नहीं है क्योंकि आपके क्रय का एक अंश मुस्लिम कल्याण केंद्र को दान दिया जाएगा | इसे सदका-ए-जरिया माना जाता है | तो कनाडा के इस मूव एंड इम्प्रूव सेवा के साथ इंशा अल्लाह आप अगले महीने से ऑनलाइन सेवा पायेंगे | न केवल आप अपने स्वास्थ्य की देखभाल करेंगे बल्कि आप वास्तव में तृतीय विश्व के देशों के सहायता पाने योग्य लोगों की सहायता करेंगे | यह एक सुंदर पहल है और आप जितना अधिक इसे दूसरों के साथ साझा करेंगे, उतना अधिक लाभ आपके खाते में बढ़ेगा क्योंकि अन्य लोग इस सेवा के कारण लाभ प्राप्त कर सकते हैं |

अब मैं अमेरिका की योगी फारी नामक एक और योग शिक्षक की चर्चा करना चाहता हूँ जिन्होंने अपनी गतिविधि आरम्भ की है जिसमें वे इस्लाम और धर्म परंपराओं के बीच विरोधाभासों को समझाकर मुस्लिम महिलाओं को योग के प्रति और अधिक सहज बना रही हैं | योगी फारी का उद्धरण, ‘कौन कहता है कि जब आप ध्यान करते हैं तो आप अल्लाह का स्मरण नहीं कर सकते ?’ ध्यान जो हमें सिखाया जाता है वह सब मौन के बारे में है या कुछ निर्धारित मन्त्रों के बारे में जिनमें कुछ अनुमानित लिखित और स्थापित प्रभावों वाले कंपन हैं |

हमने परीक्षण नहीं किया है कि कम्पन के रूप में अल्लाह में क्या होता है | जब आप अल्लाह का जप करना आरम्भ करते हैं तो हम नहीं जानते कि आपके मस्तिष्क में कौन से विचार सामने आएंगे | यह निश्चित रूप से अपरीक्षित है और योग परंपरा के प्रति निष्ठ व्यक्ति के रूप में मैं अनुशंसा नहीं करूँगा कि आप लोगों को अल्लाह का जप करने के लिए कहें |

यहां वे कहती हैं, “मुस्लिम प्रार्थना का वास्तविक दिनचर्या यौगिक मुद्राओं के समान ही है … इसमें पर्वत मुद्रा, नायक की मुद्रा, आगे की मोड़, बच्चे की मुद्रा और एक हाथ मुद्रा है |” वे कह रही हैं कि आप इस्लाम में भी योग के आसन और मुद्रा पा सकते हैं | तो इस्लामी संस्करण क्यों न करें ? वे कहती हैं, “जकात या दान देना सेवा से भिन्न नहीं है |”

वे कहती हैं, “इस्लाम में कर्म का एक सिद्धांत है | मुस्लिम पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते हैं, परन्तु मृत्यु के बाद आपको जीवन में आपके कर्मों के लिए पुरस्कृत या दंडित किया जाएगा |” समस्या यह है कि वे कर्म का अनुवाद साधारण रूप से मृत्यु के बाद के जीवन में पुरस्कृत या दंडित होने से कर रही हैं | परन्तु कोई पुनर्जन्म नहीं है, पिछला जीवन, भविष्य का जीवन, यह केवल एक जीवन है जिसके बाद चिरकालिक जन्नत या जहन्नुम होता है | यह कर्म के विचार की अखंडता को विकृत करता है | अधिक जानने के लिए मेरे गैर-अनुवादनीय को पढ़ें जहां मैंने वर्णन किया है कि कर्म का इस प्रकार अनुवाद क्यों नहीं किया जा सकता है |

अंततः वे कहती हैं, “योग मुझे पहले की तुलना में अल्लाह के और निकट लाया है | योग ने मुझे अपनी सहज प्रवृत्ति पर विश्वास करना और अपने हृदय को सुनना सिखाया | मुझे एक मुस्लिम योगी के रूप में रहने में प्राकृतिक प्रवाह और संतुलन मिलता है |” अर्थात् वे योग के लाभ चाहती हैं परन्तु साथ ही साथ अन्य मुस्लिमों की आलोचना से स्वयं को बचाने की इच्छा रखती हैं | वे पिछली कनाडाई महिला की तुलना में धर्म के प्रति अधिक समझौतापरक हैं परन्तु साथ ही योग की किसी भी बात से सावधान रहती हैं जिसे ईशनिंदा माना जा सकता है |

इस्लाम में योग को पचाने (डाइजेस्ट) करने के लिए युवा मुसलमानों, विशेष रूप से महिलाओं के बीच एक व्यापक गतिविधि चल रही है | वे कह रही हैं कि योग एक धर्म नहीं है बल्कि केवल तकनीक का एक समूह है जिसे किसी भी धर्म में सम्मिलित किया जा सकता है | हिंदू धर्म के साथ योग का सम्बन्ध इस्लाम या किसी अन्य धर्म के साथ योग के सम्बन्ध से अधिक निकट नहीं है | जिस प्रकार हिंदुओं ने योग को हथिया लिया है, इस भाजपा के कारण, उसी प्रकार मुस्लिमों के पास यह अधिकार है कि वे इसे हिन्दू धर्म से पृथक कर सकें और इसे दोबारा से जोड़ सकें |

वे शिकागो विश्वविद्यालय के एक बहुत प्रसिद्ध प्रोफेसर एलीएड को उद्धृत कर रहे हैं | वे मध्य यूरोप से आये थे | वे एक बड़े भारतविज्ञानी (इंडोलॉजिस्ट) थे और संस्कृत जानते थे | वास्तव में, वेंडी डोनिगर एलीएड के नाम की एक पीठ (चेयर) पर आसीन हैं | एलीएड ने अपने करियर के पहले भाग में हिंदू धर्म और योग के बारे में बहुत कुछ लिखा था और वो भी बहुत ही आतंरिक, धर्मिक दृष्टिकोण से |

फिर उन्होंने यू-टर्न लिया, स्वयं को इससे दूर किया और इसकी आलोचना आरम्भ कर दी | वे उनके काम के उस अंश को उद्धृत कर रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि, योग की उत्पत्ति हिन्दू-धर्म के पहले के झाड़-फूंक में है | किसी बात को हथियाने या पचाने (डाइजेशन) का एक मार्ग है उस संस्कृति को नकारना जिसके पास उसका स्वामित्व है,  और यह कहना कि ऐसी बात सभी स्थानों पर थी | चूंकि यह सभी स्थानों पर थी, इसलिए इसका कोई विशेष उद्गम नहीं है |

इस स्लाइड में मैं उस मापचित्रण को दिखाता हूँ जिसका उपयोग सामान्यतः योग को पचाने (डाइजेशन) के लिए किया जाता है | बायीं ओर संस्कृत शब्द हैं जिनका उपयोग हम करते हैं और दाईं ओर अरबी समकक्ष हैं | आजकल यह एक बहुत ही आम प्रवृत्ति है | लोग इसके अरबी का भी उपयोग करते हैं क्योंकि हमारे पास ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ समान है | मैं उनमें से कुछ के माध्यम से आपको दिखाऊंगा कि किस प्रकार उनका पाचन किया जा रहा है जबकि वास्तव में वे समान नहीं हैं |

इस स्लाइड में, मुस्लिम योग शिक्षकों द्वारा लिखे गए लेखों में से 4 उदाहरण हैं जिसमें वे दावा कर रहे हैं कि चार विषयों में बायीं ओर के लाल रंग का शब्द दायीं ओर के पीले शब्द का अरबी समकक्ष है | वे दावा करते हैं कि यौगिक पदों, मुद्राओं और मुद्रा के रूप में नमस्ते के अरबी समकक्ष हैं | इस प्रकार वे अरबी और इस्लामी शब्दावली में योग के पाचन की सुविधा प्रदान करते हैं |

सलात या नमाज़ स्पष्ट रूप से सभी आसनों को सम्मिलित करते हैं | उनके पास खड़े होने, खींचने, और उल्टा होने वाली मुद्राएं, बैठी हुई और मुड़ी हुई हैं | इन सभी को हर किसी के लिए सरल बनाने के लिए सम्मिलित किया गया है | उनके अनुसार इस्लाम ने योग को समतामूलक बनाने के लिए सरल बना दिया है |

तो, यह केवल विशिष्ट वर्ग और ब्राह्मणों के लिए नहीं है | यह सभी के लिए है जबकि भारत में योग कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को सिखाया गया था | उनका दावा है कि उस नमाज या प्रार्थना में इस्लामी मुद्राएं भारतीय योग से बेहतर हैं क्योंकि ये सरल हैं और सभी के लिए हैं |

रोचक बात यह है कि वे यह भी दावा करते हैं कि इस्लाम में कुंडलिनी भी पाई जाती है क्योंकि पैगंबर मोहम्मद एक महिला के सिर वाले एक पशु पर सवार होकर जन्नत गए थे | एक महिला के सिर वाले पशु की सवारी करते हुए जन्नत में पैगंबर मोहम्मद की यह चढ़ाई कुंडलिनी के स्त्री का इस्लामी समकक्ष है |

वे जिन सात चक्रों का अनुभव करते हैं वे पहले से ही वर्णित हैं क्योंकि सात जन्नत होते हैं | वे अपने ग्रंथों में समानता के किसी भी अंश की खोज में हैं, यह दावा करने के लिए कि वास्तव में यह वही बात है | मुसलमान यह भी कहते हैं कि वेदांत सूफियों की दिव्य एकात्मता के समान है | मैंने अपने कई वक्तव्यों में चर्चा की है कि सूफियों द्वारा अनुभव की गई एकात्मता अद्वैत वेदांत जैसी नहीं है | आप मेरे वक्तव्यों में अधिक जानकारी पा सकते हैं | परन्तु संक्षेप में, एकात्मता परस्पर नहीं है | यह वास्तविक एकात्मता नहीं है | यह केवल एक भावना है जिसकी अल्लाह आपको कभी-कभी अनुमति देता है | परन्तु स्वयं को यह सोचते हुए मूर्ख न बनाएं कि आप वास्तव में एकात्मता अनुभव कर रहे हैं |

मैंने सूफियों के साथ बहस की है | क्या यह कहना ईश निंदा नहीं है कि कोई अल्लाह के साथ एकात्म हो जाता है ? बहुत समय तक सच बोलने से कतराने के बाद वे कहते हैं कि एकात्मता वास्तविक नहीं बल्कि केवल एक भावना है | यह वैसा है कि मैं एक बैंक कैशियर हूँ परन्तु एक दिन के लिए वे मुझे बैंक के सीईओ की कुर्सी पर बैठने की अनुमति देते हैं यह अनुभव करने के लिए कि कैसा लगता है | इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं वास्तव में बैंक सीईओ हूँ | मेरे पास बैंक अध्यक्ष की शक्तियां नहीं हैं, मैं किसी को पदोन्नति नहीं दे सकता या स्वयं को बोनस नहीं दे सकता | परन्तु मैं उसकी कुर्सी पर बैठता हूँ और वैसा ही अनुभव करता हूँ क्योंकि वह उदार है और उसने मुझे उस अस्थायी अनुभव को पाने का उपहार दिया है |

सूफियों द्वारा दावा की गयी एकात्मता अनुभव आधारित है | यह मुख्य रूप से ज्ञानमीमान्सीय है और सत्तामूलक नहीं जबकि वेदांत में एकात्मता वास्तविक है | यह व्यक्तिगत अत्मा और ब्रह्म के साथ संबंध की वास्तविकता है |

एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ श्वास होता है परन्तु प्राण का अर्थ वास्तव में श्वास नहीं है | परन्तु हमारे अपने गुरु मूर्खतापूर्वक इसे श्वास के रूप में अनुवाद करते रहते हैं | तो उन्होंने द्वार खोल दिया है ताकि लोग दावा कर सकें कि प्राण श्वास है और श्वास का अरबी में भी एक शब्द है |

यह बहुत विचित्र है | मुझे नहीं लगता कि कोई भी भाषा होगी जिसमें श्वास के लिए एक शब्द न हो | क्योंकि श्वास कुछ है जो हम सभी अनुभव करते हैं | इसलिए हर भाषा में श्वास के लिए एक शब्द होगा | यदि आप प्राण को श्वास के रूप में अनुवाद करते हैं | हर भाषा प्राणायाम के होने का दावा कर सकती है | यह मूर्खतापूर्ण है | परन्तु यह हमारे अपने गुरुओं की त्रुटी है जिन्होंने गैर-अनुवादनीय के रूप में छोड़ने के स्थान पर प्राण का अनुवाद किया है |

यदि हमारे गुरुओं ने कहा होता कि प्राणायाम प्राण पर आधारित है और मैं आपको समझाऊंगा कि यह क्या है, परन्तु अनुवाद करने का प्रयास न करें क्योंकि यह श्वास के समान नहीं है | तो हम प्राणायाम की अखंडता को संरक्षित रख पाते और इसे इतनी सरलता से पचने नहीं देते |

पैगंबर ने यह भी सिखाया था कि घी लाभप्रद है | और वे कह रहे हैं कि कुरान ने इस विशेष आयत में अदरक के बारे में भी बात की है | अदरक भोजन पकाने के लिए जन्नत में उपयोग में लाया जाता है | और कुरान तुलसी के आध्यात्मिक गुणों को भी समझाता है | तो कुरान में तुलसी की भी अनुशंसा की जाती है | हमारे शब्द न केवल अंग्रेजी में पचाए व अनुवादित किये जा रहे हैं, और विकृतियों की ओर ले जाए जाते हैं परन्तु समानांतर में वही बात अरबी के साथ भी हो रही है |

तब वे पूछते हैं कि क्या ये प्राचीन शिक्षाएं भारत से अरब तक की यात्रा की हैं ? नहीं, ऐसे क्षैतिज स्थानांतरण को मानने की कोई आवश्यकता नहीं है | पवित्र सत्य सभी लोगों के लिए ऊपर स्वर्ग/ जन्नत से प्रकट किये जाते हैं | तो ज्ञान केवल स्वर्ग से सीधा आया था |

अल्लाह के सभी पैगम्बरों ने सभी स्थानों पर इसे लाया और फिर से पुष्टि की है | जब अरब दावा करते हैं कि उन्होंने यूरोप में कुछ पहुंचाया है, जैसे कि गणित, उन्होंने बस भारतीय गणित लिया और इसे प्रसारित किया | परन्तु यह छोड़कर, जब वे दावा करते हैं कि उन्होंने प्रसारित किया है यूरोप को कुछ ज्ञान, तो कोई यह भी कह सकता है कि उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि ईश्वर ने इसे सभी को दिया था | इसलिए, ईश्वर ने उन्हें और यूरोपीय लोगों को भी दिया |

हम मौलिकता के किसी भी दावे को नकारने के लिए उसी तर्क का उपयोग कर सकते हैं | इस तर्क का प्रयोग करके कोई कह सकता है कि मैं ई = एमसी² जानता हूँ क्योंकि ईश्वर ने आइंस्टीन को बताते समय मुझे भी बताया था | यह हास्यास्पद है और हमारे लोगों को इस प्रकार के विकृतियों के बारे में जानना चाहिए |

मैं चाहता हूँ कि आप ध्यान दें कि मुसलमानों द्वारा पूरी चर्चा सभी विचार-समूहों में उनके ढांचे के अंतर्गत रहा है | तो, हम बाहरी हैं और वे अंदरूनी, उनकी परम्परा, ढाँचे, शब्दावली, और विचारधारा में | वे हमें फिट करने का प्रयास कर रहे हैं | कुछ बातें फिर करती हैं और कुछ नहीं …

मैं जो करना चाहता हूँ वह पूर्णतः विपरीत है | मैं चाहता हूँ कि हमारे लोग संवाद को अपने नियंत्रण में लें, हमारी दृष्टि के माध्यम से | आइए हम अपनी दृष्टि से जांच करें | सबसे पहले उन्होंने देवता जैसे शब्दों का दोषपूर्ण अनुवाद किया है किसी प्रकार के झूठे ईश्वर के रूप में, धर्म को रिलिजन में, प्राण को श्वास में, और भी बहुत कुछ | सभी को अपनी प्रणाली में मापचित्रित करके, वे हमारे ज्ञान को अपने नियमों के अधीन कर सकते हैं |

प्रतिउत्तर देने का मार्ग उस ढांचे पर प्रश्न उठाना है जिसमें वे काम कर रहे हैं | इसके लिए शिक्षकों की आवश्यकता है जिनके पास ईमानदारी और साहस हो और जिन्होंने पर्याप्त पूर्वपक्ष किया हो | उन्हें कहना चाहिए कि इनमें से कोई भी अर्थ नहीं बताता है क्योंकि आपने संदर्भ को पृथक कर दिया है और आप योग से धर्म नहीं हटा सकते हैं और इसे किसी प्रकार के अरबी और इस्लामी संदर्भ में नहीं डाल सकते हैं और इसे तोड़-मरोड़ नहीं सकते हैं और चुनिंदा रूप से स्वीकार और अस्वीकार कर सकते हैं | आपको पूरी प्रणाली को उसी रूप में  स्वीकार करना है और हम संदर्भ प्रदान करते हैं |

यही कारण है कि मैंने यह एपिसोड किया है | मैं इस्लाम के विरुद्ध नहीं हूँ | मैं वास्तव में चाहता हूँ कि मुसलमान योगाभ्यास करें | परन्तु मैं चाहता हूँ कि वे निर्णय को स्थगित करें, तुरंत अपने इस्लाम को न लायें | इसका वैसा अनुभव करें जैसा कि यह है | ऐसा न कहें कि हम ऐसा नहीं करेंगे, हम वैसा नहीं करेंगे | इसकी अनुमति नहीं है | यह ईशनिंदा है | योग का अनुभव उसी रूप में करें जिसमें इसके होने की मंशा है |

एक बार जब वे लंबे समय तक वास्तविक योग का अनुभव कर चुके होते हैं, तो उनका आंतरिक स्वभाव परिवर्तित हो जाएगा, विकसित होगा | और वे परिवर्तित हो जाएंगे। एक बार जब वे उस परिवर्तन को अनुभव करते हैं, जो योग लाता है तो वे व्यक्तिगत निर्णय लेने के लिए बेहतर रूप से योग्य होंगे |

किसी मुफ्ती या किसी अधिकारी को उनके लिए यह निर्णय नहीं लेना चाहिए | यह मुसलमानों को अधिक स्वतंत्र, अधिक बुद्धिमान, स्वस्थ और दूसरों के प्रति अधिक सम्मान देने वाला बनाएगा | मैं योग द्वारा मुस्लिम समुदाय में वैसा परिवर्तन लाता हुआ देखना चाहता हूँ | मुझे आशा है कि पूरे विश्व को लाभ पहुंचाने के लिए हमारे शिक्षकों में इतना साहस हो कि वे मुसलमानों को उस रूप में योग सिखाएं |  नमस्ते !

Leave a Reply