हिन्दू गुरुओं का उत्पीड़न / सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ — 1

भारत विखंडन व्याख्यान हिन्दू धर्म

नमस्ते | मैं अपने लोगों को जागृत करने के लिए व्यवस्थित रूप से एक महत्वपूर्ण विषय के बारे में बात करना चाहूंगा | हमारे प्रमुख गुरुओं पर उनके द्वारा आक्रमण किया जा रहा है जो नहीं चाहते हैं कि वे जो भी कर रहे हैं वह करें | विशेष रूप से वैसे गुरु जो दलितों, पीड़ितों और वंचितों के साथ थे | दरिद्रता और सामाजिक समस्याओं वाले स्थानों पर | सफल गुरुओं पर अधिक क्रूरतापूर्वक आक्रमण किया जाता है |

एक ओर, हमें कहा जाता है कि हम इन लोगों के लिए पर्याप्त नहीं कर रहे हैं | दूसरी ओर, जो लोग उनकी सहायता के लिए वर्षों से बहुत सारे संसाधनों को समर्पित करते हैं, उनपर आक्रमण किया जा रहा है | उन पर आक्रमण किया जाता है क्योंकि भारत विखंडन शक्तियां उनकी सफलता से ईर्ष्या करती हैं | वे वंचित भारतीयों को नियंत्रित करना चाहती हैं और उनका धर्म और राष्ट्र के विरुद्ध अस्त्र-शस्त्र के रूप में उपयोग करना चाहती हैं | वैसे गुरु जो इन दरिद्र गांवों में जाते हैं और उनकी सहायता करते हैं, उनपर आक्रमण किया जाता है | वे कपट प्रसंगों, (झूठे मामलों), आरोपों और मीडिया सनसनी के पीड़ित बन जाते हैं |

मीडिया के साथ-साथ चरम वामपंथियों के समर्थन वाले विदेशी वित्त पोषित गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) इसमें सम्मिलित हैं | यह भारत-विखंडन सांठ-गाँठ है जिसमें बहुत-से सिपाही काम कर रहे हैं | तो आज हम चार प्रमुख गुरुओं के चार प्रमुख प्रसंगों के बारे में बात करेंगे | सबसे पहले हम कांची शंकराचार्य, फिर हम पेजावर स्वामी के बारे में बात करेंगे जिनके पास एक बहुत ही महत्वपूर्ण मठ है | तीसरा जीयर स्वामी और चौथा स्वामी नित्यानंद |

वे बहुत भिन्न धार्मिक संप्रदाय से आते हैं | कांची शंकरचार्य एक बहुत ही महत्वपूर्ण सुप्रसिद्ध अद्वैत गुरु हैं | पेजावर स्वामी माधव संप्रदाय से द्वैत गुरु हैं | जीयर स्वामी विशिष्टाद्वैत का पालन करते हुए रामानुज के श्री वैष्णववाद को बढ़ावा देते हैं | स्वामी नित्यानंद उदार हैं और इन सभी विचारों को सम्मिलित करते हैं | वे मानवता और चेतना के विकास के लिए आगमों को वापस ला रहे हैं |

ये चार महत्वपूर्ण आचार्य, गुरु, और स्वामी दक्षिण में बसे हुए हैं जहां समस्या विशेष रूप से गहन है | परन्तु हम भारत के अन्य क्षेत्रों के प्रसंगों के साथ भी व्याख्या कर सकते हैं | मेरे पास स्काइप पर चेन्नई से एक विशेषज्ञ हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में शोध किया है |

राजीव मल्होत्रा: सुरेंद्रनाथजी, मेरे कार्यक्रम में आपका स्वागत है | सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ चेन्नई से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है |

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: नमस्ते सर ! मुझे अपने कार्यक्रम में बुलाने के लिए धन्यवाद |

राजीव मल्होत्रा: यह एक सम्मान की बात है | मैंने आपकी पुस्तक “उडुपी-इफ्तार कोंट्रोवर्सी” पढ़ी और यह हमारे उदाहरणों में से एक है | उनकी पुस्तक और यह प्रसंग बहुत महत्वपूर्ण हैं | इसलिए मैंने उन्हें अनुसंधान के साथ इसे विकसित करने और इसे एक पूर्ण एपिसोड में रूपांतरित करने के लिए आमंत्रित किया | मुझे प्रसन्नता है कि हम सहयोग कर रहे हैं | चलिए हम चारो प्रसंगों को देखते हैं | पहला उदाहरण कांची के शंकराचार्य का है | सुरेंद्रनाथजी हमें बताएं कि क्या हो रहा है ? प्रत्येक प्रसंग में हम पहले यह चर्चा करेंगे कि स्वामी बहुत महत्वपूर्ण क्यों हैं, और फिर दलित समुदाय के साथ उनके संपर्क साधने के बारे में | और फिर उसके लिए किस प्रकार उन्हें भारत-विखंडन शक्तियों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है | कृपया जारी रखें |

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: कांची शंकराचार्य का भारत के सभी समुदायों के सभी लोगों के लिए आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों क्षेत्रों में नेतृत्व का लंबा इतिहास है | हम विशेष रूप से तमिलनाडु में दलित समुदायों के लिए किए गए कार्यों और संपर्कों को देखेंगे | 2002 में उन्होंने एक महत्वपूर्ण गतिरोध तोड़ा जब उन्होंने वास्तव में दलित पुजारियों वाले एक मंदिर में पूजा की | यह एक ऐसे क्षेत्र में था जहां बहुत सारे दलितों ने दबाव व प्रलोभन के कारण धर्मांतरण किया था | फिर उन्होंने प्रायः दलित क्षेत्रों और गांवों का दौरा किया है और उनसे भेंट-वार्तालाप किया है | वे दलितों की सहायता करने में भी महत्वपूर्ण रहे हैं, संगठन बनाकर और उन्हें एक मंच देकर स्वयं द्वारा स्वयं के लिए स्वयं की सामाजिक शक्ति और गरिमा पाने में | ये दलित-संपर्क के कई उदाहरण हैं जो उन्होंने किया है |

राजीव मल्होत्रा: अर्थात् पहली स्लाइड में यह बात बताई जा रही है कि उन्होंने एक निश्चित परम्परा तोड़ी जिसमें दलितों ने यह अनुभव किया कि उन्हें सम्मिलित नहीं किया गया था | और वे उनके पास गए और उन्हें समान स्थान देकर उन्हें साथ मिलाया |

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: वह सही है महाशय |

राजीव मल्होत्रा: तो अब बताएं कि यहाँ क्या हो रहा है ?

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: दलित समुदायों के साथ संपर्क के साथ, मठ ने प्रत्यक्ष रूप से चिकित्सा सहायता का आयोजन किया है | मठ संगठन ने आपदा राहत में सहायता की है | उन्होंने शिक्षा और चिकित्सा संस्थान भी स्थापित किए हैं | ये सभी समुदाय के लोगों को चिकित्सा सहायता और अच्छी गुणवत्ता व कम लागत वाली शिक्षा प्रदान करते हैं | विभिन्न पृष्ठभूमि से बच्चों के बीच किसी प्रकार का भेदभाव के बिना, जैसा कि सामान्यतः माना जाता है | सभी पृष्ठभूमि के बच्चों को मठ संचालित विद्यालयों और महाविद्यालयों में समान माना जाता है | वास्तव में हिंदू मिशन अस्पताल और कांची कामकोटी बाल ट्रस्ट अस्पताल ने चिकित्सा सहायता प्रदान की है, समाज के वंचित वर्गों के रोगियों को |

राजीव मल्होत्रा: हमें इस संगीतकार के बारे में बताएं जिनका वे सम्मान कर रहे हैं और यह क्या दर्शाता है |

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: एक सामान्य दोषपूर्ण धारणा है कि गैर-ब्राह्मणों के साथ कांची मठ में भिन्न व्यवहार किया जाता है | यहां हम दलित ईसाई विरासत वाले एक बहुत ही धार्मिक व्यक्ति संगीतकार इल्लयराजा को देखते हैं | उनकी पृष्ठभूमि एक दलित ईसाई की है, जिसे वे स्वयं और साथ ही शंकराचार्य भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं | जो कुछ महत्व रखता है वह भक्ति, सच्चा विश्वास और आस्था है | यहां हम इल्लयराजा और शंकराचार्य की एक निजी भेंट देखते हैं | वे शंकराचार्य के लिए भजन गा रहे हैं |

राजीव मल्होत्रा: उत्कृष्ट ! जिस प्रकार का काम उन्होंने किया है यह हमें उसकी पृष्ठभूमि देता है | हमें यह नहीं बताता कि कैसे और क्यों कांची के शंकराचार्य को प्रताड़ित किया जाता है ?

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: मैं पहले समझाऊंगा कि कैसे कांची शंकराचार्य का बहुत अधिक उत्पीड़न और प्रताड़न होता था | और फिर चर्चा करूँगा कि वे वास्तव में ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं |

2004 में एक व्यक्ति की हत्या हुई थी जिसका नाम शंकररमण था, वरदराज पेरुमल मंदिर का प्रबंधक | यह एक चौंकाने वाली हत्या थी जो मंदिर के परिसर में हुई थी | परिस्थिति संबंधी साक्ष्य या केवल संदेह के आधार पर, दोनों-कनिष्ठ और वरिष्ठ कांची शंकराचार्य को संभावित आरोपी के रूप में सम्मिलित किया गया था | हम सभी जानते हैं कि किस प्रकार उन्हें बंदी बनाया गया था और फिर कारागार में यातना दी गयी थी | मैं जिस पर ध्यान केंद्रित करना चाहता हूँ और …

राजीव मल्होत्रा: मुझे लगता है कि लोगों को याद दिलाया जाना चाहिए कि उन्हें दिवाली के दिन बंदी बनाया गया था |

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: हाँ  !

राजीव मल्होत्रा: और जयललिता की सरकार और कुछ सुप्रसिद्ध प्रभावशाली हिंदुओं ने परदे के पीछे काम किया था और ऐसा करने में भूमिका निभाई थी | ईर्ष्या या प्रतिद्वंद्विता के कारण | तो चलिए हम जारी रखते हैं |

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: हाँ | आइये हम देखते हैं सामान्य रूप से प्रेस का व्यवहार जो उस समय सम्मिलित थे जो कि तमिलनाडु के बाहर की जनता को कम ज्ञात है | सबसे पहले यह वो हत्या थी जिसमें कनिष्ठ और वरिष्ठ शंकराचार्य – दोनों को संभावित संदिग्धों के रूप में सम्मिलित किया गया था | इसके बारे में मीडिया द्वारा सुनवाई हुई थी जिसमें असंबद्ध प्रसंगों और कहानियों को उछाला गया था | भड़कीली कहानियां प्रकाशित की गईं | एक मीडिया उन्माद था |

उदाहरण के लिए एस आनंद नामक एक व्यक्ति आउटलुक इंडिया में लिखते थे | वे वर्तमान में नवयान नामक एक प्रकाशन संस्था के प्रकाशक हैं | वे एक दलित अधिकार कार्यकर्ता होने का दावा करते हैं और उस समय उन्होंने आउटलुक के लिए बहुत कुछ लिखा था | उनका लेखन दुर्भावनापूर्ण था और आरोपों से भरा था | लगभग पांच/छह अन्य प्रसंग थे जिन्हें जोड़ दिया गया था |

उन प्रसंगों में से एक में कोई प्रथमदृष्टया प्रमाण नहीं मिला और प्रसंग (मामला) हटा दिया गया | शंकरमन हत्या प्रसंग में भी सभी आरोपियों को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया था | अन्य कुछ प्रसंगों को, जिन्हें सभी समाचारपत्रों, दैनिक समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया था, कभी भी अभियोजन के लिए नहीं लिया गया था | एक आरोप-पत्र भी दायर नहीं किया गया था | परन्तु सभी क्षति पहुंचा दी गयी |

राजीव मल्होत्रा: हाँ | इस उत्पीड़न ने विश्व भर में पूरे हिंदू समुदाय को हिलाकर रख दिया | मुझे यह बहुत अच्छे से स्मरण है जब यह हुआ था | मैं व्यक्तिगत रूप से वरिष्ठ और कनिष्ठ कांची शंकराचार्य – दोनों से मिला हूँ और उनके लिए बहुत सम्मान है | वे बहुत गहन और बुद्धिमान हैं और व्यावहारिक मार्गों से समाज की सहायता करते हैं | डायलौग विद द मास्टर्स (गुरुओं के साथ संवाद) श्रृंखला में मेरा कनिष्ठ शंकराचार्य के साथ एक लंबा साक्षात्कार था | वे अपनी दृष्टि, मानवता की सहायता हेतु सम्पूर्ण भारत व विदेशों में अपने कार्यक्रम के बारे में समझाते हैं |

मुझे नहीं पता कि ऐसे लोगों को क्यों नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलता है जबकि मदर टेरेसा को मिलता है | किसी भी स्थिति में, नोबेल शांति पुरस्कार एक पश्चिमी पुरस्कार है और महानता के लिए इसे हमारा मापदंड नहीं होना चाहिए | पर यहां तक कि हमारी सरकार भी पश्चिमी पुरस्कारों का उपयोग करती है, जैसा मदर टेरेसा को मिला था, मापदंड के रूप में, यह निर्णय लेने के लिए कि किसे भारत रत्न व अन्य पुरस्कार दिया जाना चाहिए | जबकि यहाँ की मिट्टी में जन्मी परंपराएं, जो बहुत लम्बे समय से हैं, बहुत अधिक काम कर रही हैं |

मैं शंकरचार्य से बहुत प्रभावित था | फिर बाद में कैमरे पर बातचीत के दौरान, हमने बात करना जारी रखा और उन्होंने मुझे बहुत अधिक जानकारी दी | यह एक बहुत ही स्पष्ट प्रसंग है कि कोई हमारी परंपरा के लिए बहुत कुछ उपलब्धि प्राप्त कर रहा है और उसे सताया जा रहा है क्योंकि वह सफल है | चलिए हम दूसरे उदाहरण पेजावर स्वामी पर चलते हैं | कृपया समझाएँ |

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: पेजावर स्वामी द्वैतों के एक मठ पेजावर मठ के वर्तमान प्रमुख हैं | उनका 80 वर्षों का उत्कृष्ट नेतृत्व का इतिहास है | उनकी उम्र 80 से अधिक है | जिस समय से उन्होंने पेजावर के मठाधिपति के रूप में अपना पद ग्रहण किया है वे दलित लोगों तक पहुंच बनाने को लेकर बहुत उत्सुक और बहुत निष्कपट रहे हैं | 70 के दशक के आरंभ में, उन्होंने विश्व हिंदू परिषद सम्मेलन में अस्पृश्यता के विरुद्ध बहुत दृढ़ता से बात की | और सार्वजनिक रूप से एक दलित व्यक्ति को गले लगाया जो एक आईएएस अधिकारी भी थे | यह प्रमाणित करने के लिए कि अस्पृश्यता का पालन अत्यधिक दोषपूर्ण है | उन्होंने दलित गांवों का दौरा किया और वास्तव में वैष्णव दीक्षा दिया | जो कि माधव संप्रदाय में सामान्य भक्तों के लिए दीक्षा है | उन्होंने सभी पृष्ठभूमि और समुदाय के लोगों के लिए ऐसा किया है |

यहां हम उन्हें मठ परिसर में एक दलित के लिए यह दीक्षा देते हुए देखते हैं | यहां एक और प्रसंग है | वे दलित गांवों में केवल गए ही नहीं हैं बल्कि उनके घरों में भी गए, पूजा की और उन्हें आशीर्वाद दिया | मुझे कुछ सन्दर्भ देने दें, उन लोगों को, जो संभवतः इसके महत्व के बारे में पूर्णतः अवगत न हों | पेजावर स्वामी जैसा कोई व्यक्ति आपके घर जाए सबसे बड़े सम्मानों में से एक है जो आप प्राप्त कर सकते हैं | मैं उन लोगों को जानता हूँ जो अभी भी उस दिन को याद कर सकते हैं जब उनके विशेष गुरुजी उनके घर गए थे, यहाँ तक कि 50-60 वर्ष पहले भी | वे अपने घर का विक्रय भी नहीं करेंगे, यहाँ तक कि खाली भी नहीं करेंगे क्योंकि गुरूजी वहां कुछ 50 या 60 वर्ष पहले आये थे |

दलित समुदाय से किसी के लिए इस प्रकार की स्वीकृति हिंदू संप्रदाय के भीतर सशक्तिकरण का एक अद्भुत कार्य है | पेजावर स्वामी ने जो किया है, वह उन्हें सशक्तिकरण में गरिमा और गर्व की एक अतिव्यापक भावना प्रदान करता है | तो यहां हम देखते हैं कि स्वामीजी सबसे वंचित समुदायों के लोगों से मिल रहे हैं | वे नगर निगम के उपक्रमों में काम करते हैं, सड़क आदि की सफाई करने वाले कर्मचारी के रूप में | जैसा कि चित्रों से संकेत मिलता है, उन्होंने उनके घरों का दौरा किया है |

राजीव मल्होत्रा: तो सुरेंद्रनाथ-जी, यह स्लाइड पेजावर स्वामी ने, जो ये महान कार्य किये हैं उनके विरुद्ध प्रतिक्रियाओं को सारांशित करती है | हमें बताएं कि क्या हो रहा है |

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: पिछले वर्ष कर्नाटक में चलो उडुपी आंदोलन नामक एक आंदोलन हुआ था | इसका उद्देश्य था दलित लोगों द्वारा अनुभव किये जा रहे तथाकथित भेदभाव के विरुद्ध आक्रोश का उपयोग करना  उडुपी मठ में | यह आंदोलन मठ में दलितों के विरुद्ध भेदभाव के कुछ झूठे आरोपों पर आधारित था | चलो उडुपी आंदोलन का नेतृत्व प्रसाद नामक एक सज्जन ने किया था | वे गुजरात के बहुत ही सफल चलो उना आंदोलन से प्रेरित थे, जिसका नेतृत्व जिग्नेश मेवानी ने किया था |

इन आंदोलनों के पीछे जिग्नेश मेवानी और प्रसाद का हाथ है | श्री मेवानी मार्टिन मैकवान के एक चेले हैं जो गुजरात में नवसर्जन नामक एक ट्रस्ट चलाते हैं और जिसे विदेश से बड़ी मात्रा में वित्तपोषित किया जाता है | वे दलित फ़ौंडेशन नामक अन्य संगठन चलाते हैं जिसके बोर्ड के कुछ लोग भारत के संवेदनशील क्षेत्रों में काम करते हैं | अब प्रसाद को दिल्ली स्थित इण्डियन राइटर्स फोरम द्वारा चुना गया था और सक्रियता (एक्टिविज्म) में भाग लेने के लिए उनके द्वारा प्रशिक्षण दिया गया था | इण्डियन राइटर्स फोरम में लॉरेंस लियोन नामक एक सज्जन सम्मिलित हैं जो अतीत में सोरोस ओपन सोसाईटी फ़ौंडेशन से जुड़े रहे हैं |

राजीव मल्होत्रा: क्या यह इंगित करने के लिए प्रासंगिक है कि मार्टिन मैकवान एक ईसाई धर्मप्रचारक हैं ?

सुरेंद्रनाथ चंद्रनाथ: हाँ ! यह प्रासंगिक है कि श्री मैकवान एक ईसाई धर्मप्रचारक के रूप में काम करते हैं |

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