राजीव मल्होत्रा: नमस्ते !
नित्यानंद मिश्रा: नमस्ते !
राजीव मल्होत्रा: नित्यानंद मिश्रा ने देवदत्त पट्टनायक की आलोचना के लिए जो एपिसोड किया, उसे बहुत बड़ी प्रतिक्रिया मिली और उसने बहुत उत्साह उत्पन्न किया | कुछ लोगों ने कुछ विषय उठाए, जिन्हें हमें संबोधित करना चाहिए | आज का उद्देश्य कुछ आलोचकों को उत्तर देना है | उठाए गए विषयों में से एक था, आप देवदत्त पट्टनायक से तर्क-वितर्क क्यों नहीं कर रहे हैं ?
नित्यानंद मिश्रा: मैं किसी तर्क-वितर्क के लिए तैयार हूँ | हम एक ही नगर में रहते हैं |
राजीव मल्होत्रा: हाँ |
नित्यानंद मिश्रा: मैं देवदत्त पट्टनायक को उनके पसंद के स्थान या मंच पर आमंत्रित करता हूँ | यह टीवी, एक जीवंत कार्यक्रम या कोई लिखित बहस हो सकती है | उनका सहर्ष स्वागत है | मैं उन्हें उनकी पुस्तक, द गीता पर एक बहस के लिए आमंत्रित करता हूँ | यदि आप उस समय मुंबई में हैं, तो आप इसका संचालन कर सकते हैं |
राजीव मल्होत्रा: मैंने उन्हें लिखा है और सोशल मीडिया पर उन्हें एक चर्चा के लिए आमंत्रित करने के लिए संदेश दिया है | हमारे एपिसोड से पहले मैंने उन्हें आमंत्रित किया | उन्हें कोई रूचि नहीं थी | हमारे एपिसोड के बाद, मैंने देवदत्त पट्टनायक को आने और प्रतिक्रिया देने का प्रस्ताव रखा |
नित्यानंद मिश्रा: हाँ |
राजीव मल्होत्रा: उन्होंने उत्तर नहीं दिया |
नित्यानंद मिश्रा: उनके एक ट्वीट या लेख में, उन्होंने कहा कि वीडियो में दोनों ईर्ष्या से प्रेरित है |
राजीव मल्होत्रा: यह कोई प्रतिक्रिया नहीं है | उन्हें बिन्दुवार ढंग से विषय दिए गयी थे, इसलिए, उन्हें सामग्री के साथ बचाव करनी चाहिए |
नित्यानंद मिश्रा: सही कहा |
राजीव मल्होत्रा: चाहे वह ईर्ष्या थी या नहीं | भले ही वह ईर्ष्या से प्रेरित हो, आलोचना वैध है |
नित्यानंद मिश्रा: तो, एक बार फिर, श्री देवदत्त पट्टनायक, मैं आपको आपकी रूचि के एक मंच पर बहस के लिए आमंत्रित करता हूँ | हम दोनों एक ही नगर में हैं | हमारी यह बहस माय गीता या आपके किसी भी पुस्तक पर हो सकती है या आप मेरे काम के बारे में बात कर सकते हैं या कोई अन्य विषय | मुझे आपके साथ बहस करने में प्रसन्नता होगी |
राजीव मल्होत्रा: यदि किसी ने आपकी पुस्तक का विश्लेषण किया है, तो आप कहेंगे चलो चर्चा करते हैं |
नित्यानंद मिश्रा: तो, मैं दो काम करूंगा | एक, यदि किसी ने मेरी पुस्तक में त्रुटियां बताई हैं, तो मैं त्रुटियों को देखूंगा | यदि मैं उनसे असहमत हूँ तो मैं ऐसा कहूँगा और अपने कारण बताऊंगा | यदि मैं त्रुटि से सहमत हूँ, तो मैं इसे त्रुटि मानूंगा |
राजीव मल्होत्रा: हम इसे ठीक कर देंगे |
नित्यानंद मिश्रा: मैं इसे अगले संस्करण में सही करवाऊंगा |
राजीव मल्होत्रा: हाँ |
नित्यानंद मिश्रा: यदि कोई कहता है कि आपने त्रुटियाँ की हैं, तो मैं कहूँगा कि हाँ ये त्रुटियाँ हैं | मुझे इसका दुख है | अपनी पुस्तकों के संदर्भ में, मैं सदैव कहता हूँ, यदि आपको मेरी पुस्तक में कोई त्रुटि दिखाई देती है, तो मुझे इंगित करें, मैं इसे अगले संस्करण में ठीक कराऊंगा |
राजीव मल्होत्रा: मेरी पुस्तक, “विभिन्नता” में 50-70 त्रुटियां थीं | हमने उन्हें वेबसाइट पर डाल दिया ताकि जब लोग त्रुटियों को इंगित कर रहे हों, तो उन्हें पहले यह देखना चाहिए कि क्या यह पहले से ही सूची में है | मेरी पुस्तक बहुत बिक रही थी और हर बार प्रायः हमें फिर से प्रकाशित करना होता है | मैंने अपने प्रकाशकों से कहा कि वे इन त्रुटियों को सुधारते रहें | मैं उन लोगों का आभारी था, जिन्होंने त्रुटियों को इंगित किया | मुझे लगता है कि उन्होंने अपनी असामान्य व बहुत बड़ी छवि बनाई है | वे उसके बारे में अधिक चिंतित है | एक सच्चे विद्वान को यह कहना चाहिए कि आइये विषयों पर चर्चा करें और उन्हें सुलझाएं |
लोगों की अगली आलोचना है कि हमारी परंपरा कई व्याख्याओं के लिए खुली है | हर किसी को व्याख्या करने का अधिकार है | इसमें दोषपूर्ण क्या है ? वे जैसा अनुभव करते हैं वैसी व्याख्या क्यों नहीं कर सकते ?
नित्यानंद मिश्रा: हां हमारी परंपरा उदार है | इसलिए मुझे किसी और की व्याख्या पर एक राय रखने की भी अनुमति है |
राजीव मल्होत्रा: इसलिए, यह आपके लिए प्रतिक्रिया देने के लिए खुला है |
नित्यानंद मिश्रा: हाँ | यदि देवदत्त पट्टनायक गीता की व्याख्या करते हैं, तो मैं देवदत्त पट्टनायक के कार्यों की व्याख्या कर सकता हूँ |
राजीव मल्होत्रा: हाँ |
नित्यानंद मिश्रा: क्या उनके कार्य व्याख्या के लिए उपलब्ध नहीं हैं ?
राजीव मल्होत्रा: सही | क्या हम यह भी कह सकते हैं कि व्याख्या के लिए कुछ मानक हैं ?
नित्यानंद मिश्रा: अवश्य |
राजीव मल्होत्रा: वैदिक संरचना एक ढांचा है | इतिहास और बाद के कार्यों की व्याख्या उस ढाँचे के अनुसार की गई है न कि ढाँचे के रूप में फ्रायड के अनुसार | जब आप व्याख्यात्मक आधार के रूप में वैदिक आधार को हटाते हैं, और कोई उत्तर-आधुनिकतावादी या नारीवादी या फ्रायडीय ढाँचे को फिर से स्थापित करते हैं, तो हम मानते हैं कि यह परंपरा के साथ अन्याय है | जबकि वे अपनी व्याख्या के अधिकारी हैं, उनकी व्याख्या गीता की वैदिक व्याख्या के अनुसार नहीं है | यह गीता की एक फ्रायडीय, नारीवादी, उत्तर-आधुनिक व्याख्या है |
नित्यानंद मिश्रा: आप जो कहते हैं, मैं उससे सहमत हूँ | एक और बात मैं जोड़ना चाहूँगा कि जब आप किसी कार्य की व्याख्या करते हैं, तो कम से कम आपके पास कुछ परिचय होना चाहिए या उस भाषा की बहुत अच्छी समझ होनी चाहिए जिसमें पाठ को लिखा गया है | इसलिए, यदि आप गीता की एक मौलिक व्याख्या कर रहे हैं, तो आपको संस्कृत जानने की आवश्यकता है | यदि आप गीता के अनुवादों के आधार पर लिख रहे हैं, तो यह ठीक है क्योंकि तब आप हैं केवल अनुवाद का एक सर्वेक्षण कर रहे हैं | परन्तु यदि आप संस्कृत जाने बिना गीता की व्याख्या कर रहे हैं, तो यह एक विषय है | आपकी व्याख्या में बहुत सारी त्रुटियाँ हो सकती हैं | कोई व्याख्या निकृष्ट, दोषपूर्ण, अच्छी या महान हो सकती है | तथा साथ ही, क्या अच्छा है क्या नहीं इसपर टिप्पणी करना मेरा अधिकार है |
राजीव मल्होत्रा: तीसरी आपत्ति जो बहुत से लोगों को थी कि वे प्रत्यक्ष रूप से हमारा भला कर रहे हैं | हममें से बहुत से लोग कुछ भी नहीं जानते हैं और वे हिंदू पाठ को लोकप्रिय बना रहे हैं | उनकी पुस्तकें अब हवाई अड्डों में बेची जाती हैं और अधिकाँश लोगों को पता नहीं था कि ऐसी कोई सामग्री उपलब्ध है | उन्होंने अज्ञात ग्रंथों को प्रसिद्धि और महत्व दिलाई है | उन्होंने वास्तव में हमारा उपकार किया है |
नित्यानंद मिश्रा: यदि यह तर्क है तो जो कोई भी लोकप्रिय है, उसे सही माना जाना चाहिए | तो, आप लोगों को भटका सकते हैं | भटकाना अच्छा है या दोषपूर्ण है ? आप भटका सकते हैं और लोगों को जागरूक करने का दावा कर सकते हैं |
राजीव मल्होत्रा: तो, लोकप्रियता को सेवा के रूप में माना जा रहा है |
नित्यानंद मिश्रा: अवश्य !
राजीव मल्होत्रा: इसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति जितना अधिक लोकप्रिय है, उसे बातों की व्याख्या की उतनी ही अधिक शक्ति है | और कोई व्यक्ति जिसके पास वास्तव में अधिक प्रामाणिक ज्ञान है और जो संभवतः उतना लोकप्रिय नहीं हो, उसे सीधा हटाया जा सकता है | ऐसा कहना एक बहुत ही गंभीर समस्या है कि लोकप्रियता, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा सच्चाई का मापदंड है |
नित्यानंद मिश्रा: दो बातें हैं | एक सरलीकरण, और एक पदावनत करना |
राजीव मल्होत्रा: हाँ |
नित्यानंद मिश्रा: मैं सरलीकरण के पक्ष में हूँ | आप कुछ सरल करें, इसे बड़े दर्शकों के पास ले जाएं | यह अच्छा है | परन्तु यदि आप इसे अपनी व्याख्याओं का उपयोग करके पदावनत करते हैं और फिर विषयों की व्याख्या करते हैं जो मौलिक आठ में नहीं हैं, तो यह वास्तव में अपकार है |
राजीव मल्होत्रा: अधिक निकृष्ट दोषपूर्ण सूचना देना है और नई मंशाओं के साथ आना जो पाठ में नहीं हैं |
नित्यानंद मिश्रा: हिंदी में एक प्रसिद्ध कहावत है, नीम हकीम खतरे जान | जिसका अर्थ है कि आधा ज्ञान बहुत भयावह है | हकीम एक यूनानी चिकित्सा पद्धति का पालक है |
राजीव मल्होत्रा: सही |
नित्यानंद मिश्रा: नीम हकीम वह है जो केवल यह जानता है कि नीम सभी रोगों की दवा है | तो, वह वास्तव में आपके जीवन के लिए संकट है | आधा ज्ञान और आधा सत्य कभी-कभी भयावह होते हैं |
राजीव मल्होत्रा: यदि कोई अज्ञानी यह जानता है कि वह अज्ञानी है, तो कम से कम वह किसी दिन उचित ज्ञान के लिए तैयार हो सकता है | परन्तु कोई है जो अहंकार से भरा है, क्योंकि उसे लगता है कि वह देवदत्त पट्टनायक को पढ़ने या किसी वीडियो को देखने के कारण एक विशेषज्ञ है, वह वास्तव में इससे भी निकृष्ट है | क्योंकि अब आपको उसे बाहर निकालने के लिए बहुत बड़ी भावनात्मक लड़ाई लड़नी होगी | बहुत सारे आलोचक उस प्रकार के हैं | इसलिए, हम इस बातचीत को जारी रखना चाहते हैं |
मेरी सभी चर्चाओं में, मैं योग्य लोगों, ज्ञानियों और महान लोगों से विरोधी दृष्टिकोण का स्वागत करता हूँ | यदि आप मुझसे संपर्क करना चाहते हैं क्योंकि मैंने आपके बारे में कुछ कहा है, तो कृपया ऐसा करें | हमारे चैनल पर हमारी एक और बातचीत हो सकती है |
नित्यानंद मिश्रा: धन्यवाद !
राजीव मल्होत्रा: नमस्ते !
नित्यानंद मिश्रा: नमस्ते !