ऋतु राठौर, संक्रांत सानु और राहुल दीवान की एक मंडली (पैनल) हिन्दू बहुसंख्यक के विरुद्ध एवं भारतीय भाषाओं के विरुद्ध भारतीय कानून व्यवस्था के भेदभाव पर राजीव मल्होत्रा के साथ बातचीत कर रही है | मंडली अपनी याचिका पर भी चर्चा करती है जो http://www.HinduCharter.org पर प्रकाशित है |
ऋतु राठौर: सभी को नमस्ते ! यह यहाँ ऋतु राठौर हैं |राज्य प्रायोजित भेदभाव के बारे में हिंदुओं के बीच बढ़ती हुई जागरूकता है | वे अनुभव करते हैं कि उनके पूजा-स्थलों और शैक्षिक संस्थानों को उनके द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा रहा है | अल्पसंख्यक-समर्थक योजनाएं हैं जोबहुसंख्यक के लिए उपलब्ध नहीं हैं | इन विषयों पर चर्चा और बहस की जानी चाहिए |
मेरे साथ राहुल दीवान हैं |नमस्ते राहुल, आपका स्वागत है | राहुल सृजन फाउंडेशन के संस्थापक हैं, जो अनौपचारिक विद्यालय चलाते हैं |वे सृजन वार्ता नामक यूट्यूब चैनल चलाते हैं | वे हिंदू चार्टर आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं |
दूसरे अतिथि संक्रांत सानु हैं |स्वागत है संक्रांत !
संक्रांत सानु: धन्यवाद !
ऋतु राठौर: संक्रांत सोशल मीडिया और ट्विटर पर एक बहुत ही लोकप्रिय व्यक्ति हैं | वे भारतीय सभ्यता पर लिखते हैं |उन्होंने गरुड़ प्रकाशन की स्थापना की है जो भारतीय पुनर्जागरण से संबंधित पुस्तकें प्रकाशित करता है |गरुड़ ने हाल ही में शहरी नक्सलियों पर विवेक अग्निहोत्री की लिखी एक पुस्तक प्रकाशित की है |एक अति लोकप्रिय पुस्तक | उन्होंने स्वयं “द इंग्लिश मिडियम मिथ” नामक पुस्तक लिखी है |उन्हें लगता है कि भारतीय भाषाओं को पर्याप्त महत्व नहीं मिल रहा है |
तीसरे व्यक्ति राजीव मल्होत्राजी हैं | आपका स्वागत है राजीवजी |
राजीव मल्होत्रा: धन्यवाद !
ऋतु राठौर: मेरे पहला प्रश्न सृजन के राहुल दीवान के लिए है | हिंदू घोषणापत्र क्या है ?
राहुलदीवान: सबसे पहले, मैं आपको स्पष्ट करना चाहता हूँ कि कोई वास्तविक संस्थापक सदस्य नहीं है |हर कोई एक सदस्य है | कोई भी अपना स्वयं का घोषणापत्र बना सकता है | प्राथमिक संदर्भ थाडॉ सत्यपाल सिंह का विधेयक जो संसद में है | यह अनुच्छेद 26-30 के संशोधन की मांग करता है |इस प्रकार यह आरम्भ हुआ |
ऋतु राठौर: राजीवजी के लिए मेरा प्रश्न | आप दशकों से अमेरिका में रहे हैं और विश्व भर की यात्रा की है |क्या आपने कभी भी बहुमत के विरुद्ध, इस प्रकार का राज्य प्रायोजित भेदभाव का अनुभव किया है ?
राजीव मल्होत्रा: अल्पसंख्यक का विचार यह मानता है कि बहुसंख्यक शक्तिशाली रहा है | अमेरिका में अल्पसंख्यक वैसे लोग हैंजिन्हें या तो समाप्त कर दिया गया था या नष्ट | मूल अमेरिकियों को सुरक्षा की आवश्यकता है क्योंकि श्वेत अमेरिकी बहुमत बाहर से आया था |या वे अश्वेत हैं जिन्हें गुलामों के रूप में लाया गया था | वे अल्पसंख्यक हैं | इसी प्रकार यूरोप में भीअल्पसंख्यक हैं जैसे फ्रांस और इंग्लैंड में मुस्लिम | वे आप्रवासियों के रूप में आए थे |
भारत एकमात्र प्रमुख सभ्यता हैजो एक हजार वर्षों तक विदेशी अल्पसंख्यकों द्वारा शासित था | संख्यात्मक रूप से वे अल्पसंख्यक हैं जैसेमुसलमान और ईसाई | परन्तु वे शक्तिशाली हैं और 1000 वर्षों तक बहुसंख्यक पर शासन किया |अल्पसंख्यक इस प्रकार पूर्व शासक हैं | उनके पास भाषा का लाभ है | उनके पास बहुत सारे आधारभूत ढांचों का स्वामित्व है |उनके पास विदेशी गठजोड़ों का समर्थन है | वे सब लाभ उनके हाथों में हैं |परन्तु संख्यात्मक रूप से वे भारत में अल्पसंख्यक हैं, इसलिए पश्चिमी शैली के अल्पसंख्यक अधिकार उनके लिए लागू किए जा रहे हैं |
अल्पसंख्यक की परिभाषा पर बहस की आवश्यकता है | मैंने कई वर्षों से ऐसे बहस की मांग की है | जहां तक अधिकार औरविशेषाधिकारों का संबंध है, संयुक्त राज्य अमेरिका में कोई भी ईसाई-विरोधी अधिनियम नहीं है |कोई भी नहीं कहता है कि ईसाई बहुसंख्यक हैं और हमें उनसे कोटा छीन लेना चाहिए और इसे गैर-ईसाईयों को दे देना चाहिए |यह हास्यास्पद और बेढंगा माना जाएगा | यह धर्म और राज्य के संवैधानिक विच्छेद का उल्लंघन होगा |
संयुक्त राज्य अमेरिका मेंईसाइयों का कोई इसलिए मुंह नहीं बंद करता क्योंकि वे एक शक्तिशाली बहुमत हैं | भारत के विपरीत, जहां वे बहुमत वाले धर्म को इस आधार पर दबाने का प्रयास करते हैं कि यह बहुत शक्तिशाली है, बहुत बड़ा है और वगैरह वगैरह |ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जहां संविधान, कानून और व्यवस्था बहुसंख्यक धर्म विरोधी हैं |मैं ऐसा कहीं भी नहीं देखता हूँ | इस्लामी देश इस्लाम-विरोधी नहीं हैं | चीन कन्फ्यूशियस विरोधी नहीं है |किसी भी यूरोपीय देश या संयुक्त राज्य अमेरिका में कोई भी ईसाई-विरोध नहीं है | आश्चर्यजनक रूप से यह भारत में होता है |
हमारे अभिजात वर्ग में एक औपनिवेशिक हीन भावना है | वे अपने पश्चिमी स्वामियों को प्रमाणित करने का प्रयास कर रहे हैं कि हम वास्तव में स्वयं पर आघात करने जा रहे हैं, आप को यह प्रमाणित करने के लिए कि हम बहुत उदार हैं | यह देश को तोड़ने की एक उत्कृष्ट पद्धति है |
बहुसंख्यक पर प्रहार आरम्भ करना | फिर उनकी किसी प्रतिक्रिया की खोज करें | जब वे प्रतिक्रिया करें, तो आप सोशल मीडिया और अपने पश्चिमी प्रायोजकों के पास जा सकते हैं और कह सकते हैं,कि हिंदू क्रोध में हैं | यह बताये बिना कि वे क्रोधित क्यों हैं | मैं भारत में इस बहुसंख्यक-विरोध-वाद और अल्पसंख्यक-वादसे बहुत चिंतित हूँ जो बहुत स्थिर राजनीति बन गया है |
ऋतु राठौर: संक्रांत, मैं आपकी प्रतिक्रिया चाहती हूँ | आप स्वयं लंबे समय से अमेरिका में रहे हैं |
संक्रांत सानु: अवश्य ! यह वास्तव में भारत में एक विचित्र घटना है | विश्व के किसी अन्य देश में,अल्पसंख्यक बहुसंख्यक के समान अधिकार पाने के लिए लड़ते हैं | यह तथ्य कि हमें हिंदू घोषणापत्र की आवश्यकता पड़ी यह दिखाता है |और हिंदू घोषणापत्र का पहला अनुच्छेद है – भारत में बहुसंख्यकों की स्थिति को उन्नत करके अल्पसंख्यकों के समान लाना | यह बेतुका है |
यह भारत में एक विचित्र स्थिति है | यहां कुछ प्रयोजन हैं | उदाहरण के लिए,अमेरिका में एक “स्थापना” खंड है और उनके लिए धर्मनिरपेक्षता राज्य और धार्मिक संस्थानों को पृथक करने के बारे में है |राज्य उन धार्मिक संस्थानों को वित्त पोषित नहीं करेगा जो आधिकारिक रूप से धर्म सिखाएंगे | न ही वे धार्मिक संस्थानों के क्रियाकलापों में हस्तक्षेप करेंगे |भारत में यह ठीक विपरीत है | राज्य अल्पसंख्यक धार्मिक संस्थानों को वित्त पोषित करता और कर सकता है |अमेरिका में, यह अवैध होगा |
सभी प्रकार की छात्रवृत्तियां, और अल्पसंख्यक-समर्थक विशिष्ट योजनायें जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के शिल्पकारों के लिए विशेष योजनाएं, गैर-हिन्दुओं के लिए विशेष धार्मिक छात्रवृत्तियां, ये सभी अमेरिका में पूर्णतः अवैध होंगे | अमेरिकी जनगणना धर्म के लिए पूछ भी नहीं सकती है |तो धर्म के आधार पर भेदभाव वाली योजना का कोई प्रश्न ही नहीं है | यह बेतुका है |
एक अंतिम बात | हमारे पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है |किस प्रकार का देश या व्यवस्था कहती है कि अल्पसंख्यक के पास बहुसंख्यक से अधिक अधिकार होने चाहिए ?एकमात्र आधुनिक युग का देश दक्षिण अफ्रीका है | जहां अल्पसंख्यक श्वेत लोगों के पास अधिकांश गैर-श्वेत लोगों की तुलना में अधिक अधिकार थे |मैं भारत को एक धार्मिक रंगभेद वाला देश कहूंगा जिसमें अल्पसंख्यक के पास बहुसंख्यक से अधिक अधिकार हैं |बहुमत राज्य से अनुरोध कर रहा है कि उसे समान अधिकार मिले |
ऋतु राठौर: मीडिया, न्यायपालिका और वामपंथी कट्टरपंथियों का वर्चस्वइस धर्मभेद को वैध बनाता है | कोई भी विरोधी स्वर जो बहुमत के लिए समान अधिकार मांगता है उसे बकवास कहा जाता है |
संक्रांत सानु: पूर्ण रूप से ! जो लोग समानता या विविधता की मांग करते हैं उन्हें दक्षिण-पंथी हिंदू फासीवादी कहा जाता है | परन्तु धर्मभेद वाली एक प्रणाली का समर्थनउदारवादी माना जाता है |
ऋतु राठौर: प्रमुख हिंदू मंदिरों को राज्य द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है |केंद्रीय और राज्य सरकार दोनों | राज्य द्वारा दान और निधि का उपयोग किया जा रहा है |बहाना यह है कि हिंदू अपने धार्मिक संस्थानों का बहुत अच्छे ढंग से प्रबंधन नहीं कर पाएंगे | आपका विचार क्या है ?
राजीव मल्होत्रा: यदि भारत में ईसाई, मुस्लिम और सिख क्रमशः अपने स्वयं के चर्च, मस्जिदों और गुरुद्वारों का प्रबंधन कर सकते हैंतो फिर हिंदुओं को गैर जिम्मेदार और अपने मंदिरों के प्रबंधन में असमर्थ क्यों माना जाता है ?
सरकार स्वयं को इस कपट के आधार पर थोप देती है कि यह हिंदुओं के लिए अच्छा है | यह एक स्वैच्छिक हस्तांतरण नहीं है |यह बिल्कुल बकवास है | मंदिर नियंत्रण की यह बात अंग्रेजों द्वारा आरम्भ की गई थी |भारतीय अधिकारियों के पास इन औपनिवेशिक कानूनों को हटाने का साहस नहीं था | वे इस प्रकार के कानून को बस बनाए रखे |
अंग्रेजों ने इसे धार्मिक आधारों पर लोगों को विभाजित करने के लिए किया था | हिंदू बहुसंख्यक थे इसलिए उनके मंदिरों को नियंत्रित करना बहुत महत्वपूर्ण था |मंदिरों को बहुत सारा पैसा दिया जा रहा था | मंदिर उस पैसे को फिर से निवेश किया करते थे सभ्यता,शिक्षा, ज्ञान उत्पादन, लिपियों और पांडुलिपियों के संरक्षण, और संस्कृति में | परंपरा को स्वयं को वित्त पोषित करने की अनुमति देने के स्थान पर,अंग्रेज एक प्रकार से उसे अपने नियंत्रण में लेना चाहते थे | भारत सरकार ने इसे जारी रखा है | यह पूर्णतः बेतुका है | हमें तुलना के लिए अमेरिका की कोई आवश्यकता नहीं है |
अमेरिकी सरकार का कोई विभाग नहीं है जो किसी भी धार्मिक संस्थान को चला सकता है |परन्तु अमेरिका की चिंता क्यों करें ? यहां तक कि भारत में, हम केवल यह चाहते हैं कि अन्य अल्पसंख्यक धर्मों के समान व्यवहार हो |मेरे अमेरिकी मित्र इसपर विश्वास नहीं कर सकते हैं और सोचते हैं कि मैं मजाक कर रहा हूँ | यह अपमानजनक है | यह कैसे सहन किया जाता है ? और फिर भी इसे सहन किया जा रहा है |
ऋतु राठौर: राहुल, आपसे मेरा प्रश्न है | राजीवजी ने राज्य प्रायोजित भेदभाव के बारे में बात की | आपने उल्लेख किया थाकि अनुच्छेद 25 से 30 कारण है कि हम इस प्रकार के धार्मिक रंगभेद का सामना कर रहे हैं | क्या आप उन्हें समझा सकते हैं ?
राहुलदीवान: अवश्य |
ऋतु राठौर: अनुच्छेद क्या हैं और उनमें क्या बात है ?
राहुलदीवान: मैं वैधताओं में नहीं जाऊंगा | पहले यहां एक छोटी सी पृष्ठभूमि |हिन्दू बहुत भावुक हो जाया करते हैं मंदिरों, या आरटीई या हमारे शिक्षा संस्थानों के बारे में या हम अपने विद्यालयों में रामायण, महाभारत या योग नहीं पढ़ा पा रहे हैं | हमें व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता है,इसके बारे में एक पूरी गाथा है | हम अपना क्रोध प्रकट करते हैं न्यायाधीशों, सर्वोच्च न्यायालय व अन्य के विरुद्ध |परन्तु वे केवल कानून के व्याख्याकार हैं | जहां से कानून आता है वह संविधान है |
अनुच्छेद 25 से 30 डाले गए थेसंविधान सभा के बहस के दौरान | क्योंकि हम सभी अल्पसंख्यकों के लिए एक समान देश बनाना चाहते थे |वे चिंतित थे | क्या जब नया आधुनिक राष्ट्र राज्य बन रहा था तब सभी अल्पसंख्यकों को भारत समान अधिकार देगा ?
कुछ सूक्ष्मभेद हैं |उदाहरण के लिए हिन्दुओं के तथाकथित निम्न वर्गों के विरुद्ध भेदभाव का इतिहास है |धारा 25 (2) (बी) डाला गया था जिसने हिंदुओं के सभी वर्गों को मंदिरों में प्रवेश की अनुमति दी थी |25 (2) (बी) और 26 के बीच अनुच्छेदों की बहुत सारी व्याख्याएं और दोषपूर्ण व्याख्याएं हुईं हैं |इसके कारण विभिन्न प्रकार के निर्णय आये हैं | एक उदाहरण धार्मिक संप्रदाय वाक्यांश का उपयोग है,जो सबरीमाला प्रकरण में आया है |
धर्म की कोई परिभाषा या संप्रदाय की कोई परिभाषा नहीं है |सभी की व्याख्या की जानी है | यह सब भिन्न-भिन्न निर्णयों की ओर ले जाता है |स्थिति आज ऐसी है, जिसकी संविधान निर्माण करने वाले लोगों ने कभी भी कल्पना नहीं की होगी |स्थिति न केवल बहुसंख्यक को समान अधिकार नहीं देने की है, अपितु वास्तव में बहुसंख्यक-विरोधी है | यह वैसा ही है जैसे अल्पसंख्यकों को कुर्सी दे दी जाएजबकि बहुसंख्यक भूमि पर बैठा है |
डॉ सत्यपाल का विधेयक, एक निजी सदस्य का विधेयक, संसद में है |यह केवल स्थिति को उन्नत करने के लिए कहता है, जैसा संक्रांत कह रहे थे | यह कुछ संशोधन की मांग करता है | जैसे अल्पसंख्यक शब्द को हटानाऔर इसे ‘समाज के सभी वर्ग’ के साथ प्रतिस्थापित करना |
ऋतु राठौर: राहुल क्या अनुच्छेद 25 से 30 केवल बहुसंख्यक हिंदू पर लागू होते हैं और अल्पसंख्यकों पर नहीं ? अल्पसंख्यक अपने स्वयं के संस्थान चला सकते हैं और अपने स्वयं के धार्मिक स्थानों को नियंत्रित कर सकते हैं | क्या आप यही कहने का प्रयास कर रहे हैं ?
राहुलदीवान: हाँ | मैं आपको एक उदाहरण दूंगा | भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है | जब राज्य किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता को छूता हैचाहे भूमि से जुड़ा या शिक्षकों की सहायता से जुड़ा, क्योंकि राज्य को किसी धर्म के प्रोत्साहन से दूरी बनाए रखनी है, क्या होता है… मुझे थोड़ा वापस जाने दें |
राज्य ने सभी हिंदू ग्रंथों को, यहां तक कि महाभारत और रामायण को भी, धार्मिक ग्रंथों के रूप में वर्गीकृत किया है |राज्य किसी भी धर्म को बढ़ावा नहीं दे सकता है | यदि यह भूमि या शिक्षक की आर्थिक सहायता द्वारा किसी भी संस्थान को निधि देता है,तो राज्य को उस संस्थान में किसी भी धार्मिक बात को बढ़ावा नहीं देना चाहिए | क्या होता है कियदि मैं राहुल दीवान या आप रितु राठौर सरकारी भूमि पर एक संस्था खोलते हैं, तो आपको अनुमति नहीं दी जाएगीअपने विद्यालय में महाभारत या रामायण या योग पढ़ाने की | तथापि राज्य हस्तक्षेप नहीं करेगा यदि मेरा नाम जैकब डिसूजा है |
ऋतु राठौर: परन्तु यह धर्मनिरपेक्षता नहीं हो सकती है |
राहुलदीवान: तब मैं अपना स्वयं का पाठ्यक्रम रखने के लिए स्वतंत्र हूँ | तो, जामिया मिलिया इस्लामिया परिसर के अंदर एक मस्जिद रख सकता हैसब कुछ केंद्र द्वारा वित्त पोषित | परन्तु आर्य समाज आर्य समाज द्वारा संचालित डीएवी विद्यालयों में सत्यार्थ प्रकाश नहीं पढ़ा सकता है |
ऋतु राठौर: मेरा अगला प्रश्न फिर राहुल से | घोषणापत्र गोमांस निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करता है |क्यों ?
राहुलदीवान: आज देश में केवल 75-80 वैध बूचड़खाना हैं |भारत विश्व में गोमांस का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है | तकनीकी रूप से यह गाय का मांस नहीं है |परन्तु विश्व में कोई भी भैंस और गाय के मांस के बीच अंतर नहीं करता है |भारत एकमात्र ऐसा स्थान है जहां उस भेद को माना जाता है |
हम भैंस के मांस का निर्यात करते हैं | प्रत्येक वर्ष 3 करोड़ भैंसमारे जाते हैं | लगभग 45% मादा भैंस | कोमल मांस के लिए शेष में से अधिकाँश बछड़े होते हैं | लगभग 50% अकेले उत्तर प्रदेश से है |इस प्रकार पूरे देश में से मवेशियों की एक व्यापक ढुलाई होती है क्योंकि उत्तर प्रदेश या पंजाब का डेराबस्सी इतने सारे भैंसों का उत्पादन नहीं करता है |
इस प्रकार की व्यापक ढुलाई के साथ गायों की चोरी होती है | यह समाज में एक विच्छेद उत्पन्न करता हैचूंकि हिंदुओं इस बात से भावुक हो जाते हैं कि गायों का वध हो रहा है | फिर गौ रक्षकों का विषय हैऔर उस पर सामूहिक हत्या | हम आपके भोजन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैंचाहे आप जहां भी हों, उत्तर-पूर्व, केरल, मध्य प्रदेश या दिल्ली में | हमें इसकी चिंता नहीं है | केवल गोमांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाएं |
क्या हम वास्तव में दो अरब डॉलर चाहते हैं जो इसके माध्यम से आता है ? लगभग 50,000 से 75,000 लोग इसमें रोजगार पाते हैं |समय के साथ नए व्यवसाय आरम्भ किए जा सकते हैं और इन लोगों को वैकल्पिक रोजगार प्रदान किया जा सकता है |
ऋतु राठौर: भारतीय मूल के धर्मावलम्बियों के लौटने के अधिकार पर एक आगामी प्रस्ताव है | क्या यह भारत को इजरायल की भांतिएक धार्मिक राज्य में परिवर्तित करेगा ? आप इसका औचित्य कैसे ठहरा सकते हैं ?
राजीव मल्होत्रा: मुझे लगता है कि स्वयं के प्रयास पर किसी भी धर्म से किसी भी धर्म में धर्मांतरण की स्वतंत्रता, इस आधार पर कि यह वास्तविक धर्मांतरण की क्रिया है, किसी उपभोक्ता का विशेषाधिकार है |यह ऐसा नहीं होना चाहिए कि विक्रेता, विपणनकर्ता, या आपूर्तिकर्ता आपको धर्मान्तरित करा रहा है | उत्पादकों और उपभोक्ताओं के अधिकारों के बीचएक अंतर है | उत्पादकों को लोगों को धर्मान्तरित करने के लिए यहाँ वहां नहीं जाना चाहिए |अपनी इच्छा से धर्मांतरण का उपभोक्ता अधिकार होना चाहिए |
आपूर्तिकर्ता पक्ष,संस्थागत धर्म, धर्मान्तरित करने के लिए एक दूसरे के विरुद्ध प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जो कि आज हो रहा है |वे विदेशी संस्थाओं द्वारा वित्त पोषित हैं और उनके पास एक-दूसरे के बारे में नकारात्मक बातें फैलाने के बहुत सारे कारण होते हैं |ऐसी बातें जैसे कि आप मूर्तिपूजक हैं या आप नरक में जा रहे हैं | यही है जो विवाद को जन्म देता है | विवाद यह नहीं हैएक व्यक्ति को बोध हुआ और वह एक विशिष्ट इष्ट देवता की पूजा करना चाहता था |
धर्म की स्वतंत्रता एक उपभोक्ता अधिकार होना चाहिए | किसी संस्थान का यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि यहाँ-वहां जाए और बड़े स्तर पर लोगों को धर्मान्तरित करे |
ऋतु राठौर: संक्रांत, हिंदू घोषणापत्र भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के बारे में बात करता है | आप यह कह रहे हैं कि यह हमारे आर्थिक, सांस्कृतिक और समग्र विकास को बढ़ावा देगा | आपने एक पुस्तक “द इंग्लिश मीडियम मिथ” भी लिखी है |भारत जैसे विवध देश में जहां इतनी सारी भाषाएं हैं, यह कैसे काम करता है ? प्रत्येक राज्य अपनी भाषा के प्रति सम्पूर्ण सम्मान और लगाव चाहता है |
संक्रांत सानु: सबसे पहले, मैं इस विषय का अध्ययन करने के लिए लगभग 35 देशों में गया और मैंने पायाकि हमारे ग्रह पर कोई प्रमुख देश नहीं है जो अपनी भाषा विकसित किए बिना विकसित बना है |वे अपनी भाषा में विज्ञान और प्रौद्योगिकी सिखाते हैं | इसलिए भारत विकास नहीं करेगा | लोगों का केवल एक छोटा सा अंशप्रगति करने में सक्षम हैं | विशाल जनमानस पीछे छूट गया है | हमारे पास इतनी सारी भाषाएं हैं |
भारत की जनसँख्या बहुत अधिक है,जो यूरोप की डेढ़ गुनी है | अब यूरोपीय संघ की 24 आधिकारिक भाषाएं हैं |विज्ञान और प्रौद्योगिकी 24 भाषाओं में होती है | आप 24 भाषाओं में से किसी में भी यूरोपीय संघ सरकार के साथ संवाद कर सकते हैं |आप 24 भाषाओं में से किसी में भी उन्हें ईमेल या फोन कर सकते हैं | इस प्रकार भारत को बहुभाषी देश के रूप में विकसित होने की आवश्यकता है |
परन्तु यह भारत सरकार है जो आज अंग्रेजी को थोप रही है | हमें लगता है कि सरकार भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दे रही है, परन्तु यह आईआईटी आईआईएम, एम्स, और भारत के अधिकांश न्यायालयोंके माध्यम से अंग्रेजी थोप रही है | सर्वोच्च न्यायालय केवल अंग्रेजी में काम कर सकता है |सरकार की नीति जो अंग्रेजी को थोपती है | इसे परिवर्तित होना होगा |
राजीव मल्होत्रा: संक्रांत, लोग शिक्षण की भाषा तब तक परिवर्तित नहीं करेंगेजब तक कि इससे नौकरी नहीं मिले | पंजाब में वे अंग्रेजी के लिए पंजाबी विद्यालय बंद कर रहे हैं क्योंकि इसी से आप नौकरियां पाते हैं |आपके आंदोलन को अपना ध्यान रोजगार बाजार की ओर स्थानांतरित करने की आवश्यकता है | आपको नौकरी देने वालों को मनाने की आवश्यकता है कि स्थानीय भाषा कौशल वाले लोगों को नौकरी पर रखें | आपको एचआर विभागों के पास जाने और लॉबी करने की आवश्यकता है | यह वह विभाग है जो हैअंग्रेजी भाषी लोगों के लिए अवसर उत्पन्न कर रहा है जब वे अंग्रेजी भाषी लोगों को नियुक्त करते हैं | साक्षात्कार, बायो-डाटा – सब कुछ अंग्रेजी में है |स्वाभाविक रूप से माता-पिता उन्हें अंग्रेजी विद्यालाओं में भेजते हैं | इस प्रकार स्थानीय भाषा वाले विद्यालय बंद होते जाते हैं | आपको अंतिम उत्पाद के साथ आरम्भ करना होगा जो कि नौकरियां हैं |
मैंने नौकरियों पर यह अध्ययन किया | कुछ व्यवसायों में उन भाषाओं में पेशेवर पाठ्य पुस्तकों की कमी है |हमें भारतीय भाषाओं में लिखी गई अभियांत्रिकी की पुस्तकों की आवश्यकता है | हमें कानूनी पुस्तकों और केस स्टडी की आवश्यकता है जो केवल अंग्रेजी में हैं | यदि एक अच्छा वकीलआपके अभियोग का प्रतिनिधित्व करना चाहता है, उसे अंग्रेजी में लिखे सभी कानूनों को देखना पड़ता है | यदि वह हिंदी भाषी शिक्षित व्यक्ति हैजो अंग्रेजी में अच्छा नहीं है, तो उसे आपके अभियोग के प्रतिनिधित्व का अनुमोदन नहीं मिलने जा रहा है |
अब यांत्रिक भाषा अनुवाद उपलब्ध है |गरुड़ प्रकाशन को यह करना चाहिए कि अगली कुछ पुस्तकें अंग्रेजी में लाने के स्थान पर, भारतीय भाषाओं में लिखीविज्ञान, प्रौद्योगिकी, कानून, और दवा की पुस्तकों पर आपको ध्यान देना चाहिए | आपको यांत्रिक भाषा अनुवाद के लिए, मनुष्यों की सहायता वाला एक केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है, जो बाद में इसे परिपूर्ण कर सकते हैं | कार्यक्षमता बहुत बेहतर है | आप भारतीय भाषाओं मेंपुस्तकें प्रकाशित करें | एक बार यह उपलब्ध हो जाने के बाद, पेशेवर संस्थानजो नौकरी के लिए स्नातक तैयार कर रहे हैं, के पास स्थानीय भाषा में अभियांत्रिकी, चिकित्सा,व्यापार, कानून आदि के उपकरण होंगे | अब यह एक बहुत बड़ी परियोजना है |
मैं इसमें अपना अनुभव बताऊंगा | हमारे पास 14 भाषाओं में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इतिहास है |मेरे मित्र, गणेश अरनल ने, अपने निजी धन की सहायता से, उनमें से पांच को मराठी में अनुवादित कराया |उन्होंने सोचा कि वे कुछ बड़ा आरम्भ करेंगे जिसे मराठी भाषी शिक्षा मंत्री और सभी स्वीकार करेंगे | उन्होंने नहीं किया | वे मराठी बोलने वाले प्रकाशनों में गए, उन्होंने नहीं किया | वे राजनीतिक समूहों में गएजो महाराष्ट्र-समर्थक थे | यहां तक कि उन्होंने भी नहीं किया | वे अपना धन वापस पाने में समर्थ नहीं रहे |किसी ने भी उन्हें प्रायोजित नहीं किया |
आपको वास्तविक प्रकरणों को देखना है | आप केवल एक राजनीतिक नीति के रूप में नहीं कह सकते हैंअंग्रेजी रोको और ऐसा करो | आपको मूल्य श्रृंखला में जाना होगा | यदि उनके पास नौकरियां नहीं होंगी तो वे ऐसा नहीं करेंगे | उनके पास नौकरियां नहीं हैं क्योंकि उन भाषाओं में कोई पाठ्य पुस्तक नहीं हैं |
गणेश अरनल ने पाठ्य पुस्तकों को तैयार करने का प्रयास किया था | मैंने उन्हें अपने सभी खंडों के अधिकार दिए और कहा, आप उन्हें किसी भी भाषा में अनुवादित करेंऔर आप पैसे रखें, उनका विपणन, विक्रय, या जो चाहें वो करें | हम कोई रॉयल्टी नहीं चाहते हैं | उनके जैसे लोग प्रायोजक नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं | शिक्षा/एचआरडी मंत्री जितना कुछ कर सकते हैं विषय उससे बहुत गहरा है |
संक्रांत सानु: धन्यवाद | मैं इसका उत्तर दूंगा | सबसे पहले, निश्चित रूप से, गरुड़ यह कर रहा है, विशेषकर चिकित्सा विज्ञान में | हमारा लक्ष्य दोनों करना है – एमबीबीएस पाठ्यक्रमऔर अभियांत्रिकी पाठ्यक्रम को हिंदी व अन्य भाषाओं में | जैसा कि आपने मराठी उदाहरण के साथ समझाया है, इसके लिए कोई पैसा नहीं है |
राजीव मल्होत्रा: कोई पैसा नहीं है |
संक्रांत सानु: इसे परोपकारी लोगों द्वारा वित्त पोषित किया जाना है क्योंकि यह इस समय पर वाणिज्यिक रूप से सफल प्रस्ताव नहीं है |एआईसीटीई, अभियांत्रिकी संस्थानों के लिए शासी निकाय, अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा का उपयोग करने वाले किसीअभियांत्रिकी संस्थान की स्थापना की अनुमति भी नहीं देता है | और सरकार अंग्रेजी के अलावा कुछ भी वित्तपोषित नहीं करने वाली है |
नौकरियों के संबंध में, जब कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी थाईलैंड, कोरिया, जर्मनी, फ्रांस जैसे देश में जाती है,यह उन भाषाओं में नौकरियां देती है | उन्हें केवल भारत में ही अंग्रेजी की आवश्यकता क्यों है ? क्योंकि हम केवल अंग्रेजी में इंजीनियरिंग स्नातक का उत्पादन कर रहे हैं |हम हिंदी में प्रबंधन स्नातकों का उत्पादन नहीं कर रहे हैं | इसलिए मैं आपसे सहमत हूँ, परन्तु पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र के लिए आपको इसके सभी अंगों को देखना होगा |
सरकारी नीति इसका एक बड़ा अंग है | हमारे पास व्यक्तिगत प्रयास भी होने चाहिए | परन्तु वर्तमान में हमारे पास एक भाषा-भेदी राज्य हैजो कानूनी रूप से गैर-अंग्रेजी को प्रतिबंधित करता है | आप अंग्रेजी के बिना सर्वोच्च न्यायालय में वकालत नहीं कर सकते हैं | हाल ही का एक प्रकरण था जिसमें एक जिला न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय में आया थाऔर हिंदी में बहस कर रहा था | सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश कहते हैं, क्या आप नहीं जानते कि आप इस न्यायालय में हिंदी में बात नहीं कर सकते ? तो, ऐसी हमारी स्थिति है |हमने औपनिवेशिक राज्य को अपरिवर्तित जारी रखा है |
राजीव मल्होत्रा: यह संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र एकीकृत है | आप एक स्थान को पृथक नहीं कर सकते क्योंकि ये सभी तत्त्व एक-दूसरे की पूर्ती करते हैं |सरकार, नियोक्ता, नौकरी बाजार, प्रशिक्षण संस्थान, शिक्षा इन सभी की नीति | भाषा अनुवाद की तकनीकएक बड़ी सफलता है जो हो रही है | संगणकीय भाषाविज्ञान में यह पाणिनी का इंजन है जो यह सब कर रहा है |
मशीन-आधारित अनुवाद करने का एक बड़ा अवसर है जो संभवतः 95% सटीक होगाऔर बाजार मे बाढ़ ला देगा | आप किसी भी विषय पर लिखी जाने वाली महत्वपूर्ण पुस्तकें लें, उनका अनुवाद करें और उन्हें वितरित कर दें |आप उन्हें इलेक्ट्रॉनिक रूप से भी वितरित कर सकते हैं, इसलिए छपाई की कोई लागत नहीं है |
किसी को इसका उत्तरदायित्व लेने की आवश्यकता है | यह उस प्रकार का काम है जिसे एचआरडी मंत्री,श्रम मंत्री, और जो लोग नौकरियां सृजित करने का प्रयास कर रहे हैं, उनके पास ले जाना चाहिए औरउन्हें शिक्षित करना चाहिए | नौकरियां सृजित करने के लिए उन्हें एक साथ आना होगा | स्थानीय भाषाओं में राष्ट्र निर्माण के लिए यह एक बड़ा एजेंडा होगा |
मुझे यह आगे ले जाना अच्छा लगेगा | हम एक महान राष्ट्र का निर्माण करने की आकांक्षा नहीं रख सकते हैं जहां हम उपनिवेशित हैं, यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि हम किसी प्रकार का यूरोपीय देश हैं |
ऋतु राठौर: राजीवजी, आप हिंदू घोषणापत्र को अपना पूरा आशीर्वाद दे रहे हैं |
राजीव मल्होत्रा: हिंदू घोषणापत्र द्वारा उठाए जा रहे विषय सभी वैध और ठोस विषय हैं |परन्तु आप इसे आगे कैसे बढ़ाने वाले हैं ? जैसा कि मैंने पहले कहा था, मैं इसे सभी मंत्रालय और सभी विभाग ले जाऊंगा |आपको शिक्षा सम्बन्धी विषय लेना चाहिए और शिक्षा मंत्रालय में सही लोगों से भेंट का समय लेना चाहिए | आइए सांस्कृतिक विषयों को पृथक रूप में लें |चलिए कानूनी विषयों को लेते हैं | चलिए घोषणापत्र लेते हैं, इसे सरकार और मंत्रालय के स्तर की विशेषज्ञता के अनुसार मापचित्रित करें |तब कोई भी नहीं कह सकता कि मैं इसके बारे में बात करने के लिए अनुचित व्यक्ति हूँ | हमें इसे इस प्रकार लेना चाहिएऔर देखें कि क्या होता है | मुझे इसका अंग बनना अच्छा लगेगा |
ऋतु राठौर: यह एक उत्कृष्ट सुझाव है |
संक्रांत सानु: इसकी सफलता के लिए इसी प्रकार के रणनीतिक सोच की आवश्यकता है |हम सभी के पास अच्छे विचार हैं परन्तु हम वास्तव में इसे मूर्त रूप कैसे देंगे ? राजीव उस पर बिलकुल सही मार्ग पर हैं |
राजीव मल्होत्रा: एक साधन जिसे रखनेकी आवश्यकता है वो है विपणन शक्ति जिसे रणनीतिक ग्राहक विपणन कहा जाता है | तो एक विक्रेता जिसके पास 50 खाते या 500 खाते हैं उसके स्थान पर आप आईबीएम को बेचते हैं और आपके पास 100 विक्रेताओं की शक्ति है | आपके पास केवल एक संघीय सरकार को बेचने के लिए एक बड़ी कंपनी में हजारों लोग हैं | तो जब आप एक बहुत बड़े ग्राहक के लिए विपणन कर रहे हैंतो पहला काम है उस संगठन का मापचित्र तैयार करना – निर्णय निर्माताओं, विभागों, प्राधिकरणों और अनुमतियों की |
आप अंदर जाते ही सभी को पूरी परियोजना बताना आरम्भ नहीं करते हैं | आपको बहुत सारा शोध करना हैकि कैसे भारत सरकार निर्णय, विभाग और प्राधिकरण बनाती है | यह उचित परिश्रम करना होगाऔर मैं इसमें आपकी सहायता कर सकता हूँ | फिर आप उस व्यक्ति के पास जाते हैं और उसके पास नहीं करने का कोई बहाना नहीं होगा|आप उसे बताएं कि यह आपके घोषणापत्र के अनुसार है | यह आपका काम है | मैं आपकी पास यह प्रस्ताव ला रहा हूँ | वह भाग नहीं सकता | इसी प्रकार हमें इसे करना है |
अन्यसभी: उत्तम !अच्छा विचार !
ऋतु राठौर: राजीवजी, यह एक बहुत अच्छा सुझाव है | अब वाम-उदार मीडिया गिरोहहिंदू घोषणापत्र पर आक्रमण करेगा कि हिन्दू अनावश्यक रूप से पीड़ित होने की चाल चल रहे हैं | बरखा दत्त हाल ही में एक वीडियो के साथ आईं जिसमें उन्होंने वास्तव में कहा,कि हिन्दू इस हिंदू घोषणापत्र को लाकर दुष्प्रचार कर रहे हैं | हिंदुओं के विरुद्ध कुछ भी नहीं है | हिंदू घोषणापत्र की टीम को इससे कैसे निपटना चाहिए ?
राजीव मल्होत्रा: मुझे लगता है कि स्वदेशी मुस्लिमों और स्वदेशी ईसाईयों पर अपने काम के आधार पर कुछ ईसाइयों को, जिन्हें मैं जानता हूँ, समझा सकता हूँ |मैं इसके साथ सार्वजनिक नहीं हुआ हूँ, परन्तु मेरे पास ईसाइयों और मुस्लिमों से बहुत सारा निजी समर्थन है, जो कहते हैं कि हम स्वदेशी हैं |हम कैसे जुड़ें ? तो, मैंने उन्हें बताया कि आपके जुड़ने का मार्ग यही है हम एक-दूसरे का समर्थन करते हैं | यदि यह एक उचित मुस्लिम विषय है तो हमें इसका समर्थन करना चाहिए | और वे भी ऐसा करेंगे |हम एक बहुत ही विविध गठबंधन बना सकते हैं जो इसका समर्थन करता है |
कुछ विवादास्पद बातें हैं जो उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित करेंगी | परन्तु शिक्षा का अधिकार जैसी कुछ बातें हैं, जो उन्हें प्रभावित नहीं करती हैं |हमारे मंदिरों को मुक्त करना उन्हें प्रभावित नहीं करता है | कुछ विरोधी हिंदू बातें जो किसी अन्य धर्म के लाभ के लिए नहीं हैं | हमें कम से कम उन बिंदुओं पर एकता बनानी चाहिएऔर उन्हें पहले आगे बढ़ाना चाहिए | मैं यही करूंगा |
ऋतु राठौर: एक बढ़ती धारणा थी कि यह हिंदू घोषणापत्र भाजपा-विरोधी है | क्या ऐसा है ?
राहुलदीवान: निश्चित रूप से नहीं | इसके विपरीत घोषणापत्र इस सरकार के लिए यह करेगाकि यदि यह इन बिंदुओं में से किसी एक को उठाती है, जैसा कि राजीवजी ने कहा… वे सभी वैध हैं | तो कार्यान्वयन में कुछ अंतर हो सकते हैं |परन्तु यदि इन्हें कार्यान्वित किया जाता है तो देश में एक बहुत बड़ा हिंदू एकीकरण होगा |
ऋतु राठौर: तो, धन्यवाद राहुल, संक्रांत, और राजीवजी, हिंदू घोषणापत्र पर इस अद्भुत चर्चा के लिए | हम शीघ्र ही आपसे मिलेंगे | धन्यवाद ! नमस्ते !