राजीव मल्होत्रा: आइए, परम सत्य, सर्वोच्च व्यक्ति – ईश्वर और किस प्रकार वे विभिन्न भगवानों जैसे श्री कृष्ण, शिव, देवी आदि से संबंधित हैं, के साथ आरम्भ करते हैं | तब हम इसे वहां से आगे ले जा सकते हैं |
मधु पंडित दास: किसी विशिष्ट उत्तर में जाने के पहले, मैं एक बहुत ही मौलिक प्रक्रिया पर चर्चा करना चाहूंगा कि किस प्रकार समाज ज्ञान का एक कोष बनाता है | आज आधुनिक विश्व में, सबसे लोकप्रिय विषय आधुनिक विज्ञान है जो पांचो इंद्रियों या स्थूल उपकरणों के माध्यम से जांच करने पर आधारित है | वे चीजों को सहसंबंधित करते हैं और कारणों का पता लगाते हैं | वे प्रत्येक चरण का कारण ढूँढने के लिए गहराई में जाते रहते हैं | और इसी प्रकार वे वैज्ञानिक ज्ञान का निर्माण करते हैं |
परन्तु हमारे जैसे कुछ लोगों द्वारा ज्ञान प्राप्त करने की एक बहुत ही भिन्न प्रक्रिया का पालन किया जाता है और यह भारत में प्रचलित था | श्री प्रभुपाद की पुस्तकों को पढ़ने के पहले तक मुझे यह पता नहीं था | मुझपर इसका गहरा प्रभाव पड़ा | संस्कृत में पहली प्रक्रिया को आरोह पंथ या आरोही प्रक्रिया का मार्ग कहा जाता है | दूसरी प्रक्रिया को अवरोह पंथ कहा जाता है | अवरोह पंथ में, तैयार ज्ञान या तथ्य जो अस्तित्व में आए हैं, वे ब्रह्मांड में कहीं स्थित हैं | यदि ब्रह्मांड का अस्तित्व है, तो ब्रह्मांड के ज्ञान का भी अस्तित्व है | प्रश्न यह है कि उस विशेष कंपन के लिए स्वयं को कैसे साधें और उस ज्ञान को कैसे प्राप्त करें |
राजीव मल्होत्रा: अच्छा !
मधु पंडित दास: यह ज्ञान केवल सकल विश्व जहां विज्ञान लागू होता है में नहीं फैला है अपितु हमारे मस्तिष्क, बुद्धि, अहंकार, और अस्तित्व के सूक्ष्म तत्वों में भी फैला है | ये बाद के पहलू आधुनिक विज्ञान की सीमा के परे हैं | क्योंकि परिभाषा के अनुसार वे मेरी पाँचों इंद्रियों से बंधे हैं | परन्तु वास्तविकता इससे कहीं अधिक जटिल है | एक वैज्ञानिक अपने मस्तिष्क का उपयोग करता है, परन्तु यह नहीं जानता कि मस्तिष्क क्या है | वह बुद्धिमत्ता का उपयोग करता है, वह नहीं जानता कि यह किससे बना है | परन्तु हमारे शास्त्र कहते हैं कि यह एक पदार्थ है न कि रसायनों का कोई मनमाना मिश्रण |
राजीव मल्होत्रा: मैं एक सॉफ्टवेयर अभियंता हुआ करता था |
मधु पंडित दास: ठीक |
राजीव मल्होत्रा: और मैं इसे उस ढाँचे में बताने का प्रयास करने जा रहा हूँ जिसे मैं समझता हूँ और हो सकता है कि यहाँ उपस्थित कई लोग भी | एक काम जो कनिष्ठ सॉफ्टवेयर अभियंताओं को करना होता है वो है यह पता लगाना कि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखा गया सॉफ्टवेयर क्या करने का प्रयास कर रहा है | एक युवा व्यक्ति के रूप में, मुझे यह प्रोग्राम पकड़ा दिया जाता है | प्रोग्राम तैयार करने वाला जा चुका होता है | कोई उपयोगकर्ता नियमावली नहीं है और मेरा काम उत्क्रम अभियांत्रिकी (रिवर्स इंजीनियरिंग) और सभी प्रवाह चित्र (फ्लो चार्ट) बनाना है | वह कोई प्रवाह चित्र छोड़कर नहीं गया है | मुझे बाहरी रूप से प्रयास करना होगा कि सॉफ्टवेयर क्या करता है | कोई स्रोत (सोर्स) कोड उपलब्ध नहीं है | केवल मशीन भाषा कोड है | प्रणाली कैसा व्यवहार करता है इसका पता लगाने के लिए मुझे उर्ध्वगामी प्रयोग करना होगा | यदि मैं ऐसा करता हूँ, तो ऐसा होता है | मुझे लगता है कि प्रवाह चित्र यही है | तंत्र कैसे काम करता है यह उसकी उर्ध्वगामी खोज है | आप जो कह रहे हैं, वह यह है कि मूल स्रोत के मस्तिष्क की कोई रूपरेखा है |
मधु पंडित दास: हाँ |
राजीव मल्होत्रा: यदि मैं इस प्रयत्न-त्रुटी विधि का पालन करता रहता हूँ, तो मैं आंशिक सत्य के साथ आता रहूंगा, परन्तु उस मस्तिष्क के वास्तविक, मूल प्रवाह के साथ नहीं |
मधु पंडित दास: बिलकुल ठीक !
राजीव मल्होत्रा: जबकि यदि मैं उस तत्त्व के साथ जुड़ सकूं,
मधु पंडित दास: बिलकुल ठीक !
राजीव मल्होत्रा: और कहूं कि मैं संकट में हूँ | आप कृपया मुझे बताएं | तो उस व्यक्ति के पास मेरी त्रुटियों को बताने और वास्तविक प्रवाह चित्र साझा करने की क्षमता है | क्योंकि उस व्यक्ति ने प्रोग्राम लिखा है या पूरे ब्रह्मांड की रूपरेखा बनाई है | वह मुझे ज्ञान बता सकता है | तो आपके अनुसार, यदि इस विशेष प्रोग्राम प्रणाली का अस्तित्व है, तो इसके बारे में ज्ञान का भी अस्तित्व है |
मधु पंडित दास: सही कहा |
राजीव मल्होत्रा: तो, यदि सत्य का अस्तित्व है तो उच्चतम स्तर पर सत्य के ज्ञान का भी अस्तित्व है |
मधु पंडित दास: हाँ |
राजीव मल्होत्रा: विज्ञान की विधि जिसे अनुभववाद कहा जाता है, जिसपर इसे गर्व है
मधु पंडित दास: ठीक
राजीव मल्होत्रा: एक उर्ध्वगामी पद्धति है, जो प्रयोग, प्रलेखन और उत्क्रम अभियांत्रिकी (रिवर्स इंजीनियरिंग) पर आधारित है | विज्ञान ब्रह्मांडीय ज्ञान के उत्क्रम अभियांत्रिकी (रिवर्स इंजीनियरिंग) द्वारा ज्ञान प्राप्त कर रहा है |
मधु पंडित दास: ठीक |
राजीव मल्होत्रा: जबकि आप जो कह रहे हैं, वह यह है कि रचनाकार द्वारा बनाई मूल रूपरेखा की संरचना है और मनुष्य के पास इसकी पहुंच है यदि हम उचित कार्यप्रणाली का उपयोग करें |
मधु पंडित दास: हाँ |
राजीव मल्होत्रा: क्या यह सही है ?
मधु पंडित दास: हाँ | तो वास्तविक विषय है उस उचित कार्यप्रणाली या संचार को पाने का मार्ग |
राजीव मल्होत्रा: मैं इस उच्चतर चेतना से कैसे जुडूं ? यही समस्या है |
मधु पंडित दास: हां |
राजीव मल्होत्रा: यह पूरी परंपरा इसी के बारे में है |
मधु पंडित दास: सही |
राजीव मल्होत्रा: हमें उस उच्च चेतना से जोड़ने के लिए, ताकि मैं अनावश्यक प्रयोग करने के स्थान पर वहां से ज्ञान प्राप्त कर सकूं | हम यह कैसे करें ?
मधु पंडित दास: मान लीजिए कि एक प्रस्ताव है कि H2O जल है |
राजीव मल्होत्रा: ठीक |
मधु पंडित दास: किसी छात्र के पास रसायन विज्ञान की एक पाठ्य पुस्तक है | यह क्रियाकलाप की एक पाठ्य पुस्तक है | इसलिए, उसे कम से कम प्रस्ताव पर भरोसा है | और उसके बाद वह रसायन विज्ञान के किसी प्रोफेसर के पास जाता है | रसायन विज्ञान के प्रोफेसर के मार्गदर्शन में वह प्रयोग की एक विशिष्ट वैज्ञानिक संस्कृति का पालन करता है | एक विशेष ताप और दाब पर हाइड्रोजन के दो परमाणु और ऑक्सीजन के एक परमाणु को मिलाता है और तब आप अनुभव करेंगे कि H2O = जल है | तो आधुनिक विज्ञान में, यद्यपि वे लगभग एक समान ही तैयार ज्ञान का पालन कर रहे हैं, मुझे रसायन विज्ञान की पुस्तक पर विश्वास करना होगा | इसके आलावा तत्व एक समान हैं |
परन्तु हमारे विषय में, साधन केवल स्थूल नहीं हैं | मस्तिष्क, बुद्धि और अहंकार हैं | ये तीनों आत्मा के साधन हैं | एक दूरबीन या एक सूक्ष्मदर्शी किसी विशेष उद्देश्य के लिए तैयार की जाती है | इसी प्रकार, यदि आप इस अस्तित्व की सूक्ष्म वास्तविकता के सूक्ष्म सत्य को जानना चाहते हैं, तो मस्तिष्क, बुद्धि और अहंकार का अनुशासन होना चाहिए, ताकि उस सर्व-ज्ञानी स्रोत से जुड़ने के लिए यह उचित आवृत्ति में कंपन कर सके | तो, यही वो स्थान है जहाँ वे हार रहे हैं क्योंकि वे अपनी पूरी प्रक्रिया को स्थूल विश्व के भीतर बांधकर रखते हैं | वे मानसिक या बौद्धिक अनुशासन की चिंता नहीं करते हैं | बौद्धिक अनुशासन का अर्थ है आत्म-अनुशासन | बुद्धि को बाहरी विश्व पर लगाया जा रहा है परन्तु उनकी अपनी बुद्धि पर नहीं |
राजीव मल्होत्रा: इसलिए किसी व्यक्ति को उस मूल स्रोत ज्ञान तक पहुंचने के लिए, कार्यप्रणाली को इस सभी जीवन शैली की आवश्यकता होती है |
मधु पंडित दास: हाँ |
राजीव मल्होत्रा: इसलिए, खाने, पीने, सोचने व काम करने, सुबह उठने, कुछ साधना करने, एक विशेष जीवन शैली को जीने की स्वीकार्य व अस्वीकार्य पद्धतियाँ हैं | ये सब ऐसा करने में सक्षम होने वाले यन्त्र की तैयारी का अंग है |
मधु पंडित दास: शरीर एक प्रयोगशाला है |
राजीव मल्होत्रा: तो, यह शिष्टाचार की भांति है |
मधु पंडित दास: हाँ |
राजीव मल्होत्रा: वाई-फाई स्थापित करने के लिए, मुझे एक शिष्टाचार (प्रोटोकॉल) का पालन करना होता है ताकि यह क्लाउड से जुड़ सके |
मधु पंडित दास: हाँ | इसे परंपरा कहते हैं | परम्परा का अर्थ है, अनुशासन को होना ही पड़ेगा |
राजीव मल्होत्रा: इसलिए आपको परम्परा की आवश्यकता है |
मधु पंडित दास: प्रत्येक परम्परा का अपना निर्धारित अनुशासन होता है जिसके द्वारा वे सही आवृत्ति में कंपन कर सकते हैं | रसायन विज्ञान के प्रोफेसर की भांति, हमारे पास एक गुरु हैं | आपको गुरु के साथ एक ही आवृत्ति में कंपन करना होगा और वह अपने गुरु के समान आपको सौंप देंगे |
राजीव मल्होत्रा: कंप्यूटर स्रोत कोड के उदाहरण में, मैं उस व्यक्ति के साथ बैठूंगा जिसने इसे लिखा था और वह मुझे बौद्धिक स्तर पर शिक्षा देगा | बाद में मैं अपने उत्तराधिकारी को सिखाऊंगा | परन्तु इस प्रकरण में, उचित रस और प्रक्रिया के माध्यम से संचरण को बहुत अधिक परिष्कृत तंत्र की आवश्यकता होती है |
मधु पंडित दास: बिलकुल ठीक |
राजीव मल्होत्रा: इस प्रकार का ज्ञान बहुत अधिक परिष्कृत है और केवल सामान्य बौद्धिक ज्ञान नहीं है | गुरु के साथ संबंध की पूरी बात यही है |
मधु पंडित दास: 100%
राजीव मल्होत्रा: सम्पूर्ण जीवनशैली और गुरु संबंध की पूरी बात यही है | तो मैं उस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक अनुभववाद पर आश्रित होने के स्थान पर ज्ञान के स्रोत की आवृति को पकड़ सकता हूँ | मुझे सीधे उचित ज्ञान प्राप्त होगा और यह मुझे वास्तविकता की प्रकृति के बारे में बताएगा और मेरे कार्यों को निर्धारित करेगा | यह वास्तव में सामान्य विज्ञान की तुलना में कहीं अधिक परिष्कृत विज्ञान है |
मधु पंडित दास: इसे साधना कहा जाता है |
राजीव मल्होत्रा: ठीक | यह अद्भुत है | इस पद्धति को देखते हुए और श्रीप्रभुपाद इसका एक आधुनिक उदाहरण हैं, कृपया परम सत्य और श्री कृष्ण व अन्य देवताओं के स्थान के संबंध में प्रभुपाद की समझ की व्याख्या करें |
मधु पंडित दास: श्रील प्रभुपाद एक परम्परा का अंग हैं |
राजीव मल्होत्रा: ठीक |
मधु पंडित दास: एक गुरु से दूसरे गुरु तक | प्रमुख जोड़ हैं ब्रह्मा फिर व्यासदेव, फिर माधवाचार्य, भगवान चैतन्य, फिर वृंदावन के कई गोस्वामी, गुरु भक्तिविनोद ठाकुर और फिर उनके गुरु भक्तिसिद्धान्त | यह परम्परा की एक श्रृंखला है |
राजीव मल्होत्रा: क्या मैं यहाँ एक प्रश्न पूछ सकता हूँ ?
मधु पंडित दास: हाँ |
राजीव मल्होत्रा: क्या रूप गोस्वामी इसके अंग हैं ?
मधु पंडित दास: हाँ |
राजीव मल्होत्रा: अच्छा | क्योंकि मैं वह भी अध्ययन कर रहा हूँ |
मधु पंडित दास: ठीक है | बहुत अच्छा | रूप गोस्वामी वर्तमान के कृष्ण चेतना आंदोलन के नेता हैं |
राजीव मल्होत्रा: ठीक है | अच्छा | तो मैं उचित स्थान पर हूँ |
मधु पंडित दास: हाँ | हमें रूपानुग कहा जाता है, रूप के अनुयायी |
राजीव मल्होत्रा: ठीक है।
मधु पंडित दास: तो, प्रभुपाद इस परम्परा में आ रहे हैं | उन्हें जो ज्ञान प्राप्त हुआ है, वह इस विशिष्ट परम्परा में ब्रह्मा के बाद व्यासदेव के माध्यम से प्राप्त हुआ है | इसलिए, प्रभुपाद ने विश्व के सामने जो भी प्रस्तुत किया है, वह परंपरा से मिला ज्ञान है |
राजीव मल्होत्रा: हाँ |
मधु पंडित दास: इस प्रकार, व्यासदेव ने पूर्ण सत्य के बारे में जो कुछ बात कही, प्रभुपाद ने उसका प्रतिनिधित्व किया | अब व्यासदेव ने अपने वृत्तिकाल (करियर) के दौरान
राजीव मल्होत्रा: हाँ | अद्भुत वृत्तिकाल (करियर) |
मधु पंडित दास: ढेर सारी साहित्यिक रचनाएं की | उन्होंने वेदांत सूत्र, पुराण, इतिहास भी पूरा किया, वेदों को विभाजित और संगठित किया | फिर उन्होंने स्वयं को अभी भी पूर्णतः संतुष्ट नहीं पाया | यह भगवतम में है | तो, नारद मुनि ने संपर्क किया और पूछा: आप इस प्रकार क्यों दिख रहे हैं ? – मैं बहुत प्रसन्न नहीं हूँ | मैं वास्तव में जानना चाहता हूँ कि मुझे बहुत अच्छा क्यों नहीं लग रहा है | वेदांत सूत्र, जो वेदों का सर्वश्रेष्ठ अंश है, मैंने लिख डाला है | मुझे तृप्ति की अनुभूति क्यों नहीं हो रही है ? तो, नारद मुनि ने उनसे कहा कि आपने पर्याप्त रूप से कृष्ण का महिमामंडन नहीं किया है | तभी व्यासदेव श्रीमद्भागवतम् लिखना आरम्भ करते हैं | यह उनकी अंतिम रचना है |
यदि आप किसी विषय पर दस पुस्तकें लिखते हैं, तो दसवीं पुस्तक में सबसे परिपक्व ज्ञान होंगे | ठीक ? आइए श्रीमद्भागवतम् का पहला श्लोक देखें | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | मैं वसुदेव के पुत्र वासुदेव को अपना प्रणाम अर्पित करता हूँ | वासुदेव कृष्ण को | ‘जन्मादस्य यत: अन्वयात इतरतस् च अर्थेशु अभिज्ञ स्वराट’ | अभिज्ञ का अर्थ है, वो जो सब कुछ जान रहा है | वो जो सबसे अवगत है | स्वराट का अर्थ है पूर्णतः स्वतंत्र, वो जिसका कोई कारण नहीं है | इसी प्रकार से वे वसुदेव के पुत्र कृष्ण को देखते हैं | जन्मादि का अर्थ उससे है जो प्रकट ब्रह्मांडों के निर्माण, रखरखाव, विनाश का कारण है | वे कृष्ण को इसके कारण के रूप में देखते हैं और वह जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सम्पूर्ण अस्तित्व के प्रति सचेत है | उसे मैं अपना प्रणाम अर्पित करता हूँ |
श्लोक ‘निरस्तकुहक सत्यं परं धीमहि’ से समाप्त होती है | इसका अर्थ है कि वे परम सत्य हैं, जो सभी भ्रमों से मुक्त हैं | व्यासदेव ने परम सत्य को सबसे अवगत और सब कुछ जानने वाले के रूप में परिभाषित करते हुए श्रीमद् भागवतम् को आरम्भ किया | यदि कोई व्यक्तित्व नहीं है, तो स्वराट का कोई प्रश्न नहीं है | क्योंकि ऊर्जा के पास स्वतंत्र इच्छाशक्ति नहीं है | तो, आपको एक व्यक्ति होना होगा |