योग: इतिहास से मुक्ति

हिन्दू धर्म

Translation Credits: – Vandana.

जब मैं ४ दशकों पूर्व उनाइटेड स्टेटस में स्थानांतरित हुआ, तब मैं यहाँ की अमरीकी सरकार की अमरीकी ऐतिहासिक व्यष्टित्व को अविरत प्रयास द्वारा व्यक्तिगत, नगर-विषयक समाजों में प्रसारण करने की प्रणाली से प्रभावित हुआ I धर्मनिरपेक्ष अमरीकी समाज, ऐतिहासिक समूहों से भरा हुआ है, जिसमें व्यावहारिक दृष्टि से प्रत्येक अमरीकी नगर व्यस्त है ध्वन्यालेखन, विश्‍लेषण एवं संरक्षण में अतीत की घटनाओं का, वे चाहे महत्वपूर्ण हों या ना हों I देशभक्तिपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएं, राष्ट्रिय स्मारक चिन्हों में वर्चस्व रूप में राज्यों की राजधानियों में व्याप्त हैं I उसी प्रकार, वंशावली एक उन्नतिशील शिक्षण है पश्चिम में, जिसमें अनुभवहीन व्यवसायी एवं व्यवसायी दोनों व्यस्त हैं परिवारों के और समाजों के ऐतिहासिक घटनाओं को संचय करने में और उन्हें अभिलेख करने में I  और न्यू यॉर्क नगर की परेड जो कई विभिन्न जनजातिओं द्वारा होती है, वह दर्शाती है, प्रत्येक अल्प संख्यकों के ऐतिहासिक बोध को एक में सम्मिलित करके सम्पूर्ण अमरीकी ऐतिहासिक चित्रयवनिका में I

तुलतनामक रूप से, युवावस्था में मैंने भारत में, उस पंजाबी जाती के अतीत शोषण के बोध से परस्पर अपने जन्म से ही अपनी जाती के विषय में अपक्षपात रहा I कोई भी यथातथ्यता नहीं थी जो चरित्रचित्रण करे दिनांकों, नामों, पूर्वी घटनाओं के अभिलेखों, आनुवांशिक विश्लेषणों और परिवार की कथाओं के संग्रह की ओर, और कई विभिन्न व्यक्तिगत एवं संस्थाओं को पश्चम में व्यस्त रखती हैं I इसके विपरीत, मेरे अतीत सम्बन्धी प्रश्न के मुख्यतः उत्तर दिए गए  एक विस्तृत, परिवार शिक्षा के बृहत चित्रण प्रस्तुतिकरण द्वारा, किंचित बलपूर्वक प्रभावशाली घटनों द्वारा, दिनांकों की असावधान रूप से अनादर द्वारा, समय रेखा और अन्य कई  यथाशब्द विवरण जो कि, मुख्यतः ऐतिहासिक संग्रहण में महत्वपूर्व होते हैं I सत्य का अंश, अलंकरण का अंश, जो महत्वपूर्ण था, वो अतीत काल से सीखे हुए पाठ थे, जिसको व्यक्त करना आवश्यक था I

ये आश्चर्यजनक नहीं था मेरे लिए ये ज्ञात होना कि, जैसे ही मैंने सभ्यताओं के अध्ययन का आरम्भ किया, वैसे ही मैनें अनुभव किया कि, इस प्रकार की धर्मनिरपेक्ष पूर्वव्यस्तता पश्चिम में भी अपनी जड़ें जुडिओ-ईसाई परंपरा में पायी जाती हैं I इतिहास की ओर पृथक अभिवृत्‍ति जिसका उपरोक्त में व्याख्या किया है पश्चिमी और भारतियों के विषय में उनको रचा और प्रसारित किया गया है विभिन्न उपमार्गों द्वारा जुडिओ-ईसाई एवं धार्मिक मान्यताओं के मध्य में उस दिव्य के बोध की ज्ञप्ति के लिए I  जैसा कि, मैंने अपनी नूतनकलीन पुस्तक बीइंग डिफरेंट में स्पष्ट किया है: ऐन इंडियन चैलेंज टू वेस्टर्न युनीवर्सलिज़म (हार्पर कॉलिन्स २०११), जुडिओ-ईसाई परम्परा में, एक या अनेकों ऐतिहासिक घटनाओं पर विश्वास करना अत्यंत ही महत्वपूर्व होता है ईश्वर की ज्ञप्ती, आध्यात्मिक जीवन, एवं मोक्ष के लिए I ईश्वरोक्ति, ज्ञानातीत ईश्वर से आती है जो व्यक्तिगत रूप से हस्क्षेप करते हैं किसी विशेष स्थान, बिंदु, एवं कई परिस्थितियों के समूह में, मानवजाति को “सेव (रक्षा)” करने के लिए और सत्य प्रदान करते हैं I इस प्रकार के रिलीजनों के आधार-शैल अतः ऐसी ही ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित हैं और वे अधिकतर आसक्त संकलन एवं ऐतिहासिक विवरणों के अध्ययन के हस्क्षेपों द्वारा होते हैं, जिनको मैं “हिस्ट्री-सेंट्रिक (इतिहास-केन्द्रिक)” कहता हूँ I धार्मिक विश्वास इसके विपरीत में, इस प्रकार से किसी यथाशब्द ऐतिहासिक घटनाओं पर निर्भर नहीं करता है I उन्होंने अवस्थिति किया कि, सत्य को मात्र बाहरी जगत में ही नहीं बल्कि अभ्यंतर हो कर देखना चाहिए, प्रत्येक मनुष्य द्वारा, किसी भी दिए आगे आयु या समय की सीमा में I प्रत्येक व्यक्ति संपन्न है, अपनी सक्षमता से, अपने जीवन में सत-चित-आनंद स्थिति को प्राप्त करने हेतु या आनंदमय ज्ञान और एकता से उस ईश्वर से एक हो जाने के, कई प्रकार की अनेकों प्रणालियाँ उत्पन्न हुईं जैसे योग साधना, ध्यान इत्यादि., किसी भी प्रकार के महान ऐतिहासिक कथाओं, घटनाक्रमों या संसथातमक अधिपत्य से वंचित हुए बिना, सत्य के अन्वेषण हेतु I ये उपमार्ग, अत्यंत ही भिन्न है इतिहास-केन्द्रिक उपमार्ग से, इसी को मैं सन्निहित ज्ञप्ती का मार्ग कहता हूँ I

वैसे तो कई गुण हैं अतीत के घटना क्रमों के परीक्षणों, अभिलेखों और विश्लेषणों सम्बन्धी रिलिजन के क्षेत्र में, और कई गंभीर समस्याएं हैं संस्थाओं के प्राधिकारी वर्गों के द्वारा अशुद्धता से ऐतिहासिक पवन कथाओं के लेखन कार्य हेतु I कई महत्वपूर्ण कथनों ने निश्चित रूप से कहा है सत्य के साथ और मोक्ष को केंद्रित करते हुए—वर्जिन बर्थ (अक्षतयोनि जन्म) , क्रुसिफिक्सेशन (सूली पर चढ़ाने का कार्य) एवं रेसुरेक्शन (पुनरुज्जीवन) ईसाई रिलिजन में उदाहरण के लिए—अनिवार्य रूप से कदापि सत्यापित नहीं किया जायेगा I (ना ही वे वैज्ञानिक घोषणाओं को स्थापित करते हैं क्यूंकि वे मिथ्या भी नहीं हैं I) इसके अतिरिक्त, कई विरोधाभासपूर्ण कथन भी व्याप्त हैं इन घटनाओं के, जो मतभेदों को जन्म देती हैं रिलीजनों एवं प्रतिद्वंद्वियों के मध्य में, परिणाम स्वरुप मूलतः, विनाशकारी घटनाएं होंगी I सभ्यताओं का मतभेद वास्तव में एक शासकीय और बिना-विनिमेय ऐतिहासिक वृत्तान्त के मध्य का मतभेद है जो विभिन्न धार्मिक निष्ठा में प्रतिस्पर्धा के कारण है I

किसी विशेष परंपरा के संस्कृतियों की कथाओं को ऐतिहासिक सत्यता में परिवर्तित करने का प्रयत्न और तत्पश्चात उसको सार्वभौमिक घोषित कर देना भी  मुखर जातीयता-केन्द्रिक है I यहूदियों और ईसाईयों के संदर्भ में, ईश्वर ने कृपापात्रता की क्रीड़ा किया, उनको(निश्चित ही) “चयन” करके — इजराइल और चर्च दोनों को — अपने उदारता का प्राप्तकर्ता बनाकर। दिव्य द्वारा अभिषेक होने के पश्चात, सभी संस्कृतियों के पावन साहित्य को अस्वीकार कर दिया जाता है, मात्र उसको एक स्वयं-सेवा एवं इतिहास-पूर्व मिथ्या घोषित करके I मिथ्या, वो शब्द है जो उद्बोधक है कल्पना का, अवास्तविक और अतिउत्तम (किन्तु असत्य), बन जाता है एक हथियार जिससे प्रतिरोधी आध्यात्मिक परम्पराओं  को अवैध सिद्ध किया जाता है I यहूदी-ईसाई जड़ें जिनके दृष्टिकोण ऐसे हैं कि, इतिहास और कथा वास्तव में पारस्परिक रूप से विशिष्ट हैं, और ये स्पष्ट है उनके एक पत्र द्वारा जो उन्होंने पूर्वकालीन ईसाई एकत्रीकरण में दिया था जिसमें न्यू टेस्टामेंट में ये दृणतापूर्वक ये स्पष्ट किया गया है: “हमने चतुराई से रची गयी कथाओं का अनुगमन उचित ढंग से नहीं किया, जब हमने आपको लार्ड जीसस क्राइस्ट के आने और उनकी शक्ति के विषय में बताया, किन्तु हमारे समीप उनकी ऐश्वर्य के साक्षी हैं”I (२ पीटर १:१६)

धर्म की परम्पराएं, तथापि, ना तो मात्र हिस्ट्री, से और ना ही मात्र उसकी कथाओं से, बल्कि वे अपने अतीत को उसके “इतिहास” से सम्बंधित रखती हैं I इतिहास का चिंतन मात्र हिस्ट्री ही नहीं है, बल्कि उसकी सत्यता भी है I इतिहास हिस्ट्री और कथाओं का मिश्रण है I सत्य किसी पर ना तो निर्भर है और ना ही किसी हिस्ट्री पर आकस्मिक है, अपेक्षाकृत, हिस्ट्री तो उसकी अभिव्यक्तिी है I हिस्ट्री और मिथ्या के मध्य जो धार्मिक सम्बन्ध है, अतः वो कदापि, पश्चिमी के सत्य और अवास्तविकता के मध्य के संबंधों के तुल्य नहीं है I कई हिन्दुओं का झुकाव होता है अतीत काल की घटनाओं को उनकी परम्पराओं के प्रवाही रूप में देखना I वैसे भी समय अनंत चक्रों में पुनरावृत होता है I ऐतिहासिक कथाएं अध्यात्मिक यात्रा के प्रारम्भ में विशेषकर के भूमिका निभाती हैं, किन्तु धर्म के अभ्यासकों के लिए, ये साधुशीलता वर्णित हैं कथाओं में ना कि, यथार्त सत्य में जो की प्रधानतम है I श्री औरोबिन्दो दृणतापूर्वक इस बिंदु पर केंद्रित करते हैं, यदपि हम श्री कृष्ण भगवान् की हिस्ट्री से सहमत हैं, किन्तु उनकी जीवन शैली के गुणों या भावों (आदर्श) जो हम सबको सम्प्रेषित किया गया है वह उनके इतिहास से अधिक उच्च है I

क्यूंकि इतिहास का अध्ययन, अभ्यंतरी परिवर्तन लाने के उदेश्य से किया है और अन्तोत्गत्वा श्रेष्ठ स्थान एवं समय को स्वयं ही प्राप्त करने के लिए योग द्वारा किया गया है, भारतीय अधिकांश रूप से दबाव का अनुभव नहीं करते हैं अपनी कथाओं को पूर्णतया हिस्ट्री सिद्ध करने ले लिए और ना ही अपने सर्वोच्च सिद्ध अवतारों या संतों की जीवनशैली को सूक्ष्म अति सूक्ष्म विवरण द्वारा को दर्शाने के लिए बल देते हैं। अतः भारतीय अप्रस्तुत एवं असुसज्जित होते हैं इन शक्तिशाली उपकरणों और विस्तृत प्रणालियों के कार्यक्रम का सामना करने में। पश्चिमी मिथ्याएं जो परिवर्तित की जाती हैं एक ठोस एवं लिखित सत्यों में, उनका सामना करने में भी भारीतय असक्षम होते हैं I तब जो प्रयास किया जाता है हिस्ट्री को सार्वभौमिक और एक ही संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व पर थोपना की प्रणाली, वही “पश्चिमी सार्वभौमिकता” कहलाती है, जिसकी मैं अपनी पुस्तक बीइंग डिफरेंट में निंदा कर रहा हूँ I इस पुस्तक में, मैं अत्यंत गहराईयों से अतीत में व्याप्त धार्मिक एवं जुडिओ-ईसाई परम्पराओं के मध्य के दृष्टिकोणों की विभिन्नता का अन्वेषण  करता हूँ I

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