कैसे ‘गांधार’ बना ‘कांधार’ – 2

प्राचीन इतिहास

Translation Credit: Vandana Mishra.

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जातिसंहार भाग २: ग़ज़नी का महमूद

ग़ज़नविद राजवंश का स्थापक पूर्वी तुर्की दास था, जिसको ईरान के मुसलमान ग़ज़नी (कांधार के निकट एक नगर) का प्रबंधकर्ता मानते थे I उसके पुत्र महमूद ने (९९८-१०३० वर्षों तक) अपने साम्राज्य को भारत में विस्तृत किया I एक श्रद्धालु मुसलमान, महमूद ने ग़ज़नवीदों को इस्लाम रिलिजन में परिवर्तित किया, इस प्रकार इस्लाम को इस उपमहाद्वीप की सामान्य जनसँख्या के मध्य में स्थापित किया I ११ वीं शताब्दी में, उसने ग़ज़नी को उस बृहत ग़ज़नविदों के साम्राज्य की राजधानी बनायी, जो कि, अफ़ग़ानिस्तान की प्रथम मुसलमान राज-कुल हुआ I ग़ज़नी के महमूद द्वारा किये गए महापाप की तुलना में तालिबान, मृदु स्वभाव के प्रतीत होंगे I विल दुरंत वर्णन करते हैं:

१३) “भारत पर मोहम्मदी आक्रमण सम्पूर्ण विश्व इतिहास का संभवतः सर्वोच्च लहू-लुहान कृत है I यह एक निरुत्साहित करने वाला वृतांत है, क्यूंकि इसके प्रत्यक्ष प्रमाण ये है कि, सभ्यता एक संदिग्ध वास्तु है, जिसके कोमल व्यवस्था की जटिलता एवं स्वातन्त्र्य, संस्कृति एवं शान्ति किसी भी समय विध्वंस की जा सकती है अशिष्ट लोगों द्वारा, जो आक्रमण करते हैं बिना या अंदरूनी वंश-वृद्धि से…… ४०० वर्षों तक (६०० – १००० ए.डी) भारत ने अभिजिति को आमंत्रित किया; और अंततः वह आ गयी।”

“वर्ष ९९७ में, एक तुर्की प्रधान-पुरुष जिसका नाम महमूद था, पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में स्थित, लघु राज्य ग़ज़नी, का सुलतान बन गया I महमूद को ज्ञात था कि, उसकी राजगद्दी नूतन एवं निर्धन है, और उसने देखा कि, सीमा पार भारत, अत्यंत ही प्राचीन एवं समृद्ध है; निष्कर्ष अत्यंत ही स्‍पष्‍ट था I एक पावन उत्ताप का ढोंग करके, हिन्दू मूर्तिपूजा का विनाश करना सीमांत के निकट क्षेत्रों में, जहाँ बलपूर्वक लूटने की पवित्र अभिलाषा एक प्रेरणा हो I वह अप्रस्तुत हिन्दुओं से भीमनगर में मिला, उनका संघार कर दिया, उनके नगर को  लूटा, उनके मंदिरों का विनाश किया, और  कई शताब्दियों के संचित किये हुए धन को छीन कर, लिए चला गया I ग़ज़नी लौटते समय वह विदेशी सत्ता के राजदूतों को अचंभित कर देता, ” रत्नों एवं रोचक मोतियों, चिंगारी की भाँती चमकती हुई माणिक रत्नों, या मदिरा जिसमें हिम जमा हुआ प्रतीत होता है रत्नों, और हरित मणीयाँ जैसे मेंहदी की शाखाऐं, और दाड़िम्ब के आकृति एवं भार के हीरों को दर्शा कर I ”

“प्रत्येक शिशिर ऋतू में महमूद भारत में अवतीर्ण होता था, अपने धनसंग्रह कोषों को लूट सामग्री से भरता था, और अपने लोगों को सम्पूर्ण लूट-मार, डकैती हत्या की स्वतंत्रता देकर उन्हें प्रसन्न करता था; प्रत्येक वसंत ऋतू वह अपनी राजधानी पहले की अपेक्षा और धनवान होकर जाता था I मथुरा (यमुना नदी के निकट) में, उसने मंदिरों से सोने की बनी मूर्तियाँ एवं उनमें अनमोल जड़े रत्न लूट लिए, और वहां के कोषों से बृहत मात्रा में स्वर्ण, रजत एवं रत्नों को लूटा; उसने अपनी प्रशस्ति उन भव्य वास्तुकलाओं के लिए व्यक्त की, और निष्कर्ष निकला कि, समानरूपी वस्तुकलाकृति के निर्माण में उसको १०० मिलियन दीनार और २०० वर्षों तक के कर्मचारी एवं दास लगेंगे, उसके पश्चात उसने आदेश दिया कि, उन भव्य शिल्पकलाओं को मिटटी के तेल में डुबोकर उनमें अग्नि प्रज्वलित करके उन्हें मिट्टी में सम्मिलित कर दिया जाय I ६ वर्षों के उपरांत, उसने अन्य  वैभवपूर्ण उत्तर भारत के एक नगर, सोमनाथ को लूटा, वहां के ५०,००० निवासियों की हत्या की, और वहां की सम्पति को घसीट कर ग़ज़नी ले गया। अंत में वह, संभवतः, इस विश्व के सम्पूर्ण इतिहास में सर्वोच्चय स्तर का धनवान बन गया I”

“कदाचित वह उजड़े हुए नगर के किंचित जनों को छोड़ देता था, और अपने देश ले जाकर उन्हें दास के रूप में उनका विक्रय करता; किन्तु इतनी विशाल मात्रा में वह बंदियों को ले गया था कि, किंचित वर्षों के पश्चात् उन दासों के लिए कोई १ पैसा भी नहीं देने के लिए तत्पर रहा I प्रत्येक महत्वपूर्ण अनुबंध के पूर्व महमूद प्रार्थना करता, और अपने ईश्वर से अपने शास्त्रों के लिए आशीर्वाद माँगता। उसने एक तिहाई शताब्दी की कालावधि तक राज किया, और जब उसकी मृत्यु हुई, स्वस्थ आयु और सम्मान से, तो मुसल्मानी इतिहासकारों ने उसको अपने समय का सर्वश्रेष्ठ अधीश्वर बताया, और किसी भी अन्य समय का श्रेष्ठ अधिपति बताया।”

जातिसंहार भाग ३: ग़ज़नी-पश्चात् आक्रमणकारी:

ग़ज़नी के महमूद ने अन्य मुसलमान आक्रमणकारियों के लिए मंच सुसज्जित कर दिया लूट और क्रूरता के भोग विलास के लिए, जैसा कि, विल दुरंत वर्णन करते हैं:

१४) “११८६ में, घुरि, अफ़ग़ानिस्तान की एक तुर्की अभिजाती ने. भारत पर आक्रमण किया, दिल्ली नगर पर अधिपत्य स्थापित किया, वहां के मंदिरों का विनाश किया, सम्पूर्ण संपत्ति को लूट लिया, और वहां के भव्य राजभवनों में निवास किया और दिल्ली सल्तनत की स्थापना किया — एक अपर देशीय निरंकुशता ने पूर्वी भारत पर ३ शताब्दियों तक राज्य किया, और मात्र वध एवं विद्रोह का निरिक्षण किया। इन ३ रक्तपिपासु सुलतानों में से, क़ुतुब-उद-दीन-ऐबक, एक सामान्य निदर्श स्वयं अपनी ही जाती का प्राणी था —  मतांध, अति क्रूर एवं निर्दयी। उसके उपहार, जैसा की मोहम्मीदान इतिहासकार बताते हैं हमें, “अर्पित किये जाते थे कई सहत्रों नर-संहार शव उसके असंख्य सहस्त्रों अनुयायियों द्वारा।” उसके एक यौद्धा के विजय में (जिसको दास के रूप में विक्रय किया गया था), “५० सहस्त्र जन दास बनाये गए, समतल क्षेत्र तारत्व की भाँति काला हो गया हिन्दुओं से I “

“दूसरा सुल्तान, बलबन, विद्रोहियों एवं उद्दंड जनों को हाथी के पैरों के नीचे कुचलवाकर मृत्यु दंड देता था, या उनके चर्म को निकलवाकर उनमें भूसा भरवाकर उनको दिल्ली द्वार पर लटकाकर उनको दण्डित करता था ।”

“जब किंचित मंगोल निवासी जो दिल्ली में बस चुके थे, और जिनके धर्म को इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया था, उन्होंने अपने लोगों का उत्थान करने का प्रयत्न किया तो, सुलतान अलाउद -द –दीन (चितोड़ को परास्त करनेवाला) ने सभी पुरुषों को मात्र १५ वर्ष की लघु आयु से जो लगभग ३० सहस्त्र थे, उनका एक ही दिन में वध कर दिया।”

“सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने अपने ही पिता की हत्या करके राजगद्दी प्राप्त की, एवं एक मिथ्यारूपी महान विद्वान और एक मनोहर लेखक बना, दिखावट के लिए गणित, भौतिकी एवं ग्रीक दर्शनशास्त्र में रूचि भी दिखाई, रक्तपात एवं क्रूरता में वह अपने पूर्वजों के भी परे हो गया, विद्रोही भतीजे का माँस उसी विद्रोही भतीजे की पत्नी एवं बच्चों को खिलाया, अविचारी मुद्राप्रसार द्वारा देश का सर्वनाश कर दिया, एवं भूमि को अनुपयोगी और मूलनिवासियों की हत्या से ढेर कर दिया जब तक कि किंचित मूलनिवासी अपने प्राणों की सुरक्षा के लिए वनों में नहीं भाग गए I उसने इतने हिन्दुओं की हत्या किया कि, एक मोसलेम इतिहासकार के कथन अनुसार, “उसके राजसी मंडप एवं सामाजिक न्यायालय के अग्र भाग में सर्वदा ही मृतकों के शवों के बृहत ढेर होते थे, स्वछता कर्मचारी एवं वधिकों ने स्वयं को शवों को खींचने वाले कार्य से पृथक कर लिया ” और पीड़ितों का “वध करके उन्हें जनसमूह में ही सम्मिलित कर देते थे।” दौलताबाद में एक नयी राजधानी स्थापित करने के लिए, उसने प्रत्येक मूलनिवासी को दिल्ली से भगा दिया और उस स्थान को मरुस्थल समान बना दिया…… ”

“फ़िरोज़ शाह ने बंगाल पर आक्रमण किया, प्रत्येक हिन्दू शीश के लिए पुरस्कार प्रदान किया, १८०,००० शीशों के लिए पुरस्कार दिया, हिन्दू ग्रामों में आक्रमण करके वहां से असंख्य लोगों को दास के रूप में लिए और ८० वर्ष की दीर्घ आयु तक जीवित रहा I सुल्तान अहमद शाह, तीन दिनों तक भोजन करता एवं प्रसन्ता व्यक्त करता यदि किसी एक दिन के भीतर में ही २०, ००० निहत्ते हिन्दुओं के शव उसके क्षेत्र में पाए जाते I”

“ये शासक अपने उद्देश्य में ……. रिलिजन सिद्धांतों से शस्त्र-सज्जित थे ….  [और निर्माण किया] सार्वजनिक अभ्यास करने से हिन्दुओं पर अनयायपुर्वक प्रतिबन्ध लगाया, जिसके कारण उनको और भी हिन्दू आत्मा के भीतरी भाग में भागा दिया। इनमें से किंचित प्यासे निरंकुश शासकों में संस्कृति एवं योग्यता भी थी; वे कला को आश्रय देते थे, और कई कलाकारों एवं शिल्पकारों में व्यस्त रहते थे, जो कि, मूलतः हिन्दू स्रोत के थे —- अपने लिए भव्य तेजस्वी मस्जिद एवं समाधि बनवाते थे: किंचित विद्द्वान भी थे, और इतिहासकारों, कवियों एवं वैज्ञानिकों से वार्तालाप करके आनंदित रहते थे।”

“सुल्तानों ने प्रत्येक व्यक्ति से एक एक पैसा अपने श्रद्धांजलि में अर्पण करने के लिए कर की प्राचीन कला के उपयोग से निचोड़ लिया करते थे, और साथ ही प्रत्यक्ष डकैती से भी ले लिया करते थे…. I”

“सुल्तानों की प्रायिक योजना स्पष्ट रूप से अलाउ-द-दीन के द्वारा रेखांकित थी, जिसने अपने परामर्शदाताओं को “नियमों और विनियमों से हिन्दुओं को चूर चूर करना, और उनकी धन सम्पति को छीन लेना जिससे की वे असहमत या विद्रोह ना कर सकें” ऐसा करने का आदेश दिया था I“ भूमि से उत्पन्न कृषि-उत्पादन, के सकल का आधा भाग सरकार द्वारा ले लिया जाता था; मूलनिवासी शेष भाग का १/६ वाँ भाग ही ले सकते थे I “कोई भी हिन्दू,” जैसा कि मोसलेम इतिहासकार द्वारा कथित है, “सम्मान से जीवनयापन नहीं कर सकता था, अपने घरों में किंचित मात्रा में भी रजत या स्वर्ण नहीं रख सकता था…… या किसी भी प्रकार का आधिक्य नहीं रख सकता था …… प्रहारों द्वारा, कुंदों में परिरोध करके, कष्टदायी  बेड़ियोँ में जकड़के……. इन सभी विभिन्न प्रकार के हथकंडों से उनसे बलपूर्वक धन छीना जाता था I ”

“…… तिमूर-इ-लंग — एक तुर्की जिसने इस्लाम रिलिजन को अपनाया था एक आकर्षक शस्त्र के रूप में………जिसको और भी अत्यधिक स्वर्ण अर्जित करने की आकांशा थी, उसके ऊपर जैसे कोई पौ फटी कि, भारत अभी भी इस्लामी अविश्‍वासीयों से भरा हुआ है…….. मुल्लों ने क़ुरान का अध्ययन किया, तत्पश्चात उन्होंने किंचित प्रेरणादायक छंदों का उद्धरण दिया: “ओह ईश्वरदूत, इस्लामी अविश्वासियों और नास्तिकों पर आक्रमण करो, और उनके साथ अत्यंत निर्दयता का व्योहार करो I” तत्पश्चात, तिमूर ने भारत में १३९८ में प्रवेश किया, बृहत मात्रा में मूलनिवासियों का नरसंहार किया और ऐसे लोगों को दास बनाया जो उसको छोड़ कर भाग नहीं सकते थे, सुल्तान मेहमूद तुग़लक़ की सेना को परास्त किया, दिल्ली पर अधिपत्य स्थापित किया, कई शत सहस्त्र कारागार के बंदियों को निर्दयतापूर्वक ढेर कर दिया, उस नगर से अफ़ग़ान राजवंश की सम्पूर्ण अर्जित की गयी धन सम्पाती को लूट लिया, वहां से सब कुछ समरकंद ले गया कई असंख्य महिलाओं और दासों के संग, अपने पीछे अराजकता, अकाल एवं महामारी छोड़ गया I”

“आधुनिक भारत का यही है वो गुप्त राजनैतिक इतिहास I विभाजन द्वारा निर्बल हो कर, ये आक्रमणकारियों के अधीन हो गया; आक्रमणकारियों द्वारा दरिद्र हुआ, और अपनी प्रतिरोध करने की सभी सत्ताओं का अलोप कर दिया, और अतिप्राकृतिक आश्वासनों में आश्रय ले लिया ……. एक कटु पाठ जो हम संभवतः इन शोकपूर्ण घटनाओं से निष्कर्ष के रूप में निकल सकते हैं, वो ये है कि, सभ्यता की अनादि सतकर्ता इसका मोल है. एक राष्ट्र को अनिवार्य रूप से प्रेम, शांति के साथ, किन्तु चौकन्ना भी रहना आवश्यक है।”

इन शताब्दियों से चल रहे नरसंहारों के कालावधि में, किंचित हिन्दुओं के अंश यूरोप भाग गए थे I वर्तमान में यूरोप के लोग जिनको रोमा (जो ‘जिप्सी’ के नाम से प्रचलित हैं, एक ऐसी परिभाषा जिसको तुच्छ मन जाता है) कहा जाता है वे भारतीय स्रोत के हैं और यूरोप में लगभग शास्त्रों वर्षों से बंजारों की भाँति रह रहे हैं I ऐसा माना जाता है कि, वे भारत के पूर्वी-पश्चिम भाग से आये थे, किंचित गांधार, पंजाब और राजस्थान क्षेत्रों से भी थे I यूरोप में वे संगीतकार एवं  प्रदर्शक की भाँती जीवित रहे, क्यूंकि यूरोपिय समाज ने उन्हें एक सहस्त्र वर्षों के पश्चात भी अपने समाज में सम्मिलित नहीं किया। उन लोगों ने अपनी स्थिति को मार्ग में निवास करनेवालों के रूप में स्वीकार कर लिया जिनका कोई अपना ‘घर’ नहीं है I उनके इतिहास भरे पड़े हैं यूरोपियों द्वारा कई ऐसे निरतर प्रयत्नों से जिससे कि, उनके समाज का सम्पूर्ण संहार किया जा सके I १५ (भारत के कास्ट प्रणालियों पर कई न्यायोचित छिद्रान्वेषण व्याप्त मिलेंगे जिसके द्वारा कई विभिन्न जातीयताओं से आपस में व्यवहार किया गया I तथापि, मुझे अभी भी ये निरिक्षण करना है, इस तुलना का इस सत्य के संग कि, कैसे यूरोपी समाज ने यूरोपी-भिन्न समाज को नरसंहार द्वारा व्यवहार किया (जैसा कि, अमेरिका में हुआ), या उन पर कई प्रयत्न किये गए नरसंहार के, जैसे की रोमा के संग हुआ I)

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