आर एस एस/मोहन भागवत से रहस्य हटाना

भारतीय महागाथा विशिष्ट व्याख्यान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत की और विश्व की भी एक महत्वपूर्ण संस्था है | पर उसकी छवि बहुत विवादास्पद और रहस्यों से घिरी रही है | उसे निकट से जानना आवश्यक है | मेरी छवि एक निष्पक्ष और वस्तुपरक प्रेक्षक की है, संभवतः इस कारण से मुझे संघ के सर्वोच्च नेताओं से सीधे मिलने का विशेष अवसर दिया गया | मुझसे पहले ही अपने प्रश्न भेजने को नहीं कहा गया | न ही मुझसे रोकॉर्ड किए गए फुटेज को उन्हें दिखाने और उसमें काट-छाँट करने को कहा गया | हमारे पास हमारी अपनी कैमरा टीम थी | यह अनेक विषयों पर एक खुली चर्चा थी, और उनकी ओर से कोई भी आपत्ति नहीं उठाई गई |

मैंने अपनी चर्चा को सात बड़े विषयों में व्यवस्थित किया | प्रत्येक विषय को इस लघु शृंखला में अलग वीडियो में समेटा गया है | यदि आपको हमारा काम पसंद आए, तो उसे दूसरों के साथ साझा करें, टिप्पणी करें, हमारे चैनल की सदस्या लें या उसका अनुगामी बनें |

राजीव मल्होत्रा: नमस्कार ! मैं सरसंघचालक मोहन भगत जी के साथ हूँ | प्रणाम |

मोहन भागवत: प्रणाम !

राजीव मल्होत्रा: आपसे मिलना और आपसे बातचीत करना सदैव ही मेरे लिए आनंद का विषय रहा है |

मोहन भागवत: मैं भी यही कहूँगा |

राजीव मल्होत्रा: जब से मैं आपको व्यक्तिगत रूप से जानने लगा हूँ, संघ के बारे में मेरी जानकारी बहुत बढ़ी है | उसके बारे में मेरा समग्र विचार बहुत परिवर्तित हुआ है | संघ के कुछ दूसरे वरिष्ठ लोगों से मिलकर भी मैं बहुत प्रसन्न हूँ | भागवतजी एक उत्कृष्ट व्यक्ति हैं | वे मेरे घर पधारे हैं, और मैंने उनके साथ मधुर चर्चाएँ की हैं | दत्तात्रेय जी बड़े अच्छे व्यक्ति हैं | मनमोहन वैद्य जी के साथ तो मेरी कुछ निजी चर्चाएँ भी हुई हैं, और उन्होंने मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए हैं | उन्होंने मुझे कुछ पुस्तकें दी हैं, जिन्हें मैं पढ़ रहा हूँ | मुकुंद राव जी एक मेधावी युवक हैं | और लोग भी हैं, जैसे विनय सहस्रबुद्धे जी | बहुत अच्छा |

मैं इन वरिष्ठ लोगों से मिला, और उनके बारे में मेरी बहुत ही अच्छी राय बनी | मैं संपूर्ण रूप से पश्चिमीकृत परिवेश में पला-बढ़ा हूँ, और बहुत वर्षों से अमेरिका में रह रहा हूँ | इसलिए संघ के बारे में मैं उतना ही जानता था, जितना मुझे बताया गया था | वह सब सुनी-सनाई और तोड़ी-मरोड़ी गई बातें थीं | इसलिए मैं एक नकारात्मक सांस्कृतिक दृष्टिकोण रखता था और बहुत ही शंकालु था | आज भी मेरे कई मित्र मुझसे पूछते हैं, तुम संघ क्यों जा रहे हो | पर जितना अधिक मैं आपसे और संघ के दूसरे वरिष्ठ लोगों से मिला हूँ, उतना ही ज्यादा मेरे विचार परिवर्तित हुए हैं | इन छवियों को परिवर्तित होने की आवश्यकता है | इसलिए, ऐसा लगता है कि भारत में मुख्यधारा के बहुत से लोगों में संघ की जो छवि बन गई है, और विदेशों में भी, वह एक गंभीर समस्या प्रस्तुत कर रही है | संघ ने इसे ठीक करने के लिए क्या किया है ? हम इसके लिए दूसरे लोगों को दोषी बना सकते हैं | पर मैं अमेरिका के मीडिया में, वहाँ की परिचर्चाओं में संघ के प्रतिनिधियों को बिरले ही देखता हूँ | इनमें सब इस्लामी, ईसाई और वामपंथी लोग उपस्थित रहते हैं | पर अच्छे, संवाद-कुशल संघ प्रतिनिधि मुख्यधारा के किसी भी मीडिया में दिखाई नहीं देते | इस समस्या को लेकर आपको क्या लगता है ?

मोहन भागवत: जब हम 1925 में आरम्भ हुए थे, तब हम एक बहुत छोटी संस्था थे | यदि उस समय हम मीडिया पर ध्यान देते, तो मीडिया ही हमारे लिए मुख्य विषय बन जाता जो अच्छी बात नहीं होती |

राजीव मल्होत्रा: ठीक है |

मोहन भागवत: प्रसिद्धि आपको एक विशेष रूप से प्रस्तुत कर देती है, पर इससे हमारी कसौटियों में सुधार नहीं होता | प्रस्तुति और वास्तविकता, ये दो भिन्न-भिन्न बातें हैं | संघ का पूरा काम इस पर घूमता है कि हम किस प्रकार के लोग हैं | प्रस्तुति हमारे लिए दोयम स्तर का विषय है |

राजीव मल्होत्रा: ठीक है |

मोहन भागवत: इसलिए हम इस क्षेत्र में अभी नए उतरे हैं | 1980 के दशक में हमने इस पर गंभीरता से विचार करना आरम्भ किया कि समाज हमारे बारे में क्या सोचता है | इससे पहले हम एक बंद संगठन थे, यद्यपि यह हमारा लक्ष्य नहीं था | पर इसके पीछे कुछ कारण थे | 47-48 के बाद, हम चारों ओर से घिर गए थे, और आत्म-रक्षा में ही हमारी सारी शक्ति खर्च हो रही थी |

राजीव मल्होत्रा: हाँ

मोहन भागवत: उससे हम धीरे-धीरे उभरे | आपातकाल के बाद हम बाहर निकल आए | लोग हम पर विश्वास करने लगे | संघ अब कोई पहेली नहीं रह गया | न ही कोई भयावह संस्था, जिससे दूर रहना है | इसलिए, हम भी समाज के सामने आने लगे | हमारा प्रचार विभाग 1980 के दशक के बाद आरम्भ हुआ | इसलिए, स्वाभाविक है हम इस खेल में थोड़े पीछे हैं, चूँकि हम नए खिलाड़ी हैं |

राजीव मल्होत्रा: ईसाइयों का एक आधिकारिक रूप से एक विभाग ही था, जिसे प्रोपोगैंडा, यानी प्रचार कहा जाता है | यह विभाग वाटिकन में 1,000 साल से चला आ रहा है | कम्यूनिस्टों ने प्रोपगैंडा शब्द का बहुत उपयोग किया, उनसे सैकड़ों साल पहले यह वाटिकन में मौजूद था |

मोहन भागवत: ठीक है |

राजीव मल्होत्रा: इसलिए वे इसमें बहुत अनुभव रखते हैं |

मोहन भागवत: हाँ हजार वर्षों का |

राजीव मल्होत्रा: हाँ

मोहन भागवत: हमारी संस्था 1925 की है, इसलिए हम पीछे हैं | पर हम तीव्र गति से सीख रहे हैं | हम अपने लोगों को जन-संपर्क में, स्तंभ लेखन में, चैनल चर्चाओं में सही ढंग से प्रस्तुत होने का प्रशिक्षण दे रहे हैं | हम मीडिया के साथ अपनी अंतर्क्रिया को बढ़ा रहे हैं | हमारा प्रचार विभाग न केवल संघ के काम का प्रचार करता है, अपितु संघ के बारे में फैलाए जा रहे नकारात्मक प्रचार का निरोध भी करता है | यह हमारी पहली प्राथमिकता है | जैसे-जैस हम बढ़ेंगे, हम इस प्रकार की अधिक अंतर्क्रियाएँ करेंगे और अधिक लोगों से मिलेंगे | संघ में ऐसी कई बातें हैं, जिन्हें किसी से बात करके या पुस्तकें पढ़कर समझा नहीं जा सकता है | आपको संघ का अनुभव करना होगा |

राजीव मल्होत्रा: ठीक है |

मोहन भागवत: स्वयं अपना ही उदाहरण लें | जब आप यहाँ आएँ और संघ को भीतर से देखा, तब आप समझ पाए |

राजीव मल्होत्रा: मेरे विचार बदल गए, और लोगों को यह पता होना चाहिए | यदि आप बुद्धिमान व्यक्ति हों, तो आप स्वयं अपने अनुभवों का मूल्यांकन कर सकेंगे | दूसरों की राय को लेकर नहीं चलें, और यह न सोचें कि कोई पत्रकार आपसे अधिक जानता है | स्वयं अपना अनुसंधान करें |

मोहन भागवत: मैं अपने सार्वजनिक व्याख्यानों में ठीक यही कहता हूँ | सुनी-सुनाई बातों पर नहीं जाएँ | संघ में आएँ | सदस्यता के कोई कड़े नियम नहीं हैं |

राजीव मल्होत्रा: हाँ |

मोहन भागवत: यदि आप सहज नहीं अनुभव करते हैं, तो आप जा सकते हैं |

राजीव मल्होत्रा: हाँ |

मोहन भागवत: सदस्य बनें, 6 महीने या 1-2 साल रहें, और अंदर से संघ को जानें | हमें पूर्ण रूप से जानें-समझें, और इसके बाद आपकी जो भी राय बनती है, उसे सबको बताएँ |

राजीव मल्होत्रा: जिन लोगों से मैंने बातचीत की, उन्हें मैंने खुले हृदय का, ईमानदार, मिलनसार और अच्छा व्यक्ति पाया | यह आश्चर्य की बात है कि इतने सज्जन और संवेदनशील लोगों की छवि इतनी भयावह बना दी गई है | यही मेरा ईमानदार अनुभव रहा है |

मोहन भागवत: कुछ शक्तियों ने अपने स्वार्थ के लिए हमारी यह छवि फैला दी है |

राजीव मल्होत्रा: हाँ | अब हम अमेरिका के विश्वविद्यालयों के परिसरों और युवाओं को लें, तो यह छवि एकदम बुरी है | यानी यह मस्तिष्क की धुलाई और हमारे लोगों के भिवष्य में विष घोलना है | यदि मैं राय दे सकूँ, तो संघ को ऐसे लोग चाहिए जो सत्ता के संस्थानों से जुड़े हुए हों | यदि कोई चिकत्सक है, तो उसका अनुभव उसके कार्यालय और उसके कार्यालय के चार-पाँच लोगों तक सीमित होगा | वह कोई बड़ी कंपनी नहीं चला रहा है जिसमें सैकड़ों लोग काम कर रहे हों | कॉलेज का प्रोफेसर अभियांत्रिकी के विषय में अच्छा हो सकता है, एक सज्जन व्यक्ति हो सकता है, परन्तु वह मुख्यधारा के संस्थानों का अंग नहीं है और वह उनसे निपटना जानता भी नहीं होगा | ये लोग अच्छे लोग हैं | पर संघ को ऐसे लोगों की भी आवश्यकता है जो सर्वोच्च संस्थानों में ऊँचे पदों पर दसियों वर्ष  रह चुके हैं और जो मोल-तोल कर सकते हैं, सम्मिलित हो सकते हैं और वाद-विवाद कर सकते हैं | अमेरिका के लोग लेन-देन में कुशल होते हैं | जब लेन-देन ठीक से किया जाता है, तब बहुत से लोगों को विश्वास दिलाना संभव होता है | इसलिए, क्या बाहर के लोगों को संघ में लाने की आवश्यकता है ?

मोहन भागवत: हाँ, हम एक खुली संस्था हैं | हमारे द्वार सबके लिए खुले हैं | हमारा नीति-वाक्य है अच्छे लोगों को अच्छे पैरवीकार होना चाहिए, और अच्छे पैरवीकारों को अच्छे लोग होना चाहिए |

राजीव मल्होत्रा: बिलकुल ठीक कहा |

मोहन भागवत: इस प्रकार यह दोनों दिशाओं में काम करता है | हम अच्छे लोगों से संपर्क कर रहे हैं, उन्हें पैरवी करने के कार्य में, समाज से संलग्न होने में, लोगों को इकट्ठा करके उन्हें समझाने में कि हम क्या कर रहे हैं, प्रशिक्षण दे रहे हैं | उन्हें आपके लिए काम करने दें | हम इस प्रकार के सक्रिय लोगों को सज्जन शक्ति कहते हैं | सज्जन शक्ति को एक-जुट करना होगा, उन्हें संघ के बारे में बताना होगा, उनकी मदद करनी होगी, और यदि वे चाहें तो वे हमारे साथ हो सकते हैं | अन्यथा वे समांतर रहते हुए अपना अच्छा काम जारी रख सकते हैं |

राजीव मल्होत्रा: बहुत अच्छा ! एक अन्य क्षेत्र के बारे में भी मैं आपसे बात करना चाहता हूँ | अमेरिका में सार्वजनिक बौद्धिक क्षेत्र भी मुख्यधारा का एक अहम अंग है | यह किसी संस्था विशेष से नहीं जुड़ा होता है | ये लोग अपनी निजी स्थिति के आधार पर प्रभावी लोग होते हैं | प्रबल दक्षिणपंथी लोग, परंपरावादी लोग, आदि को भी उतना ही महत्व दिया जाता है, जितना वामपंथियों को | ऐसा नहीं है कि यह सब केवल दक्षिणपंथी और वामपंथियों का ही अखाड़ा है | मुख्य हस्तियाँ, वे लेखक जिनकी पुस्तकें बहुत बिकती हैं, जिनका अक्सर साक्षात्कार लिया जाता है, जो कालेज परिसरों में बुलाए जाते हैं | ये सब मुख्यधारा के बाहर के लोग नहीं हैं | पर भारत में ऐसा नहीं है | यहाँ तो सार्वजनिक बौद्धिक जमीन पर वामपंथियों ने कब्जा कर लिया है | दक्षिणपंथी और परंपरावादी या तो अपने दायरों में समिटे हुए हैं या मुख्यधारा उनकी उपेक्षा कर देती है, या उनकी खिल्ली उड़ाती है | क्या यह कोई समस्या है, जिसे गंभीरतापूर्वक सुलझाने की आवश्यकता है ?

मोहन भागवत: हाँ | हम बाहर जाकर इस प्रकार के लोगों से मिलने लगे हैं |

राजीव मल्होत्रा: अच्छी बात है !

मोहन भागवत: ऐसे लोगों से जिनके पास क्षमता है, हम प्रसन्नतापूर्वक उनसे संपर्क कर रहे हैं | हम इसे विशेष संपर्क कहते हैं | हमारे वर्ग में आपने जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से आए 12 लोगों को देखा | जब ये पहली बार संघ में आए, तब उन्हें संघ का अच्छा कार्य समझ में आया, और वे जान गए कि संघ कोई राक्षस नहीं है |

राजीव मल्होत्रा: बिलकुल ठीक कहा |

मोहन भागवत: हमारी चाल धीमी है क्योंकि हमारा मुख्य काम मनुष्य को गढ़ना है, जिसके लिए हमें उनके साथ व्यक्तिगत संपर्क करना आवश्यक होता है | संघ को समझने के लिए पुस्तकें पढ़ना या व्यख्यान सुनना पर्याप्त नहीं है | आपको संघ के लोगों को जानना होगा | हम ऐसे लोगों से संपर्क करते हैं, उन्हें भीतर ले आते हैं और इसके बाद हम जिस प्रकार से भी एक-दूसरे की सहायता कर सकते हैं, सहायता करते हैं | यह काम अभी आरम्भ ही हुआ है, इसलिए प्रगति धीमी है, पर वह गति पकड़ेगी |

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